Saturday 24 October 2015

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जानिए भारत में ‘एलियंस’ के उतरने के सात रहस्यमयी स्थान

By: Secret On: 00:08
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  • दूसरे ग्रहों पर जीवन की तलाश विज्ञान के लिए बेहद चुनौतीभरा काम रहा है और हो सकता है कि यही काम दूसरे ग्रहों के वैज्ञानिक भी करते हों। ऐसे में वे अपने किसी यान द्वारा धरती पर आ जाते हों तो कोई आश्चर्य नहीं। हम भी तो चंद्र ग्रह, मंगल ग्रह पर पहुंच गए हैं। हमने शनि पर भी एक यान भेज दिया है। अब किसी न किसी दिन मानव भी उन यानों में बैठकर जाने की हिम्मत करेंगे। वैज्ञानिकों के लिए सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या कोई ऐसे भी इंसान हैं, ‍जो बगैर किसी ग्रह के जीवन जी रहे हों और वे इसी तरह अपना संपूर्ण जीवन यान में ही गुजार देते हों? जो भी हो, दुनियाभर के वैज्ञानिकों में इस वक्त दूसरे ग्रह के प्राणियों का धरती पर आने को लेकर शोध बढ़ गया है। हर देश का वैज्ञानिक इस खोज में लगा हुआ है कि क्या सचमुच अपने देश भी एलियंस आए थे और क्या किसी ने इसे देखा है? लोग इसे मानें या न मानें, लेकिन यह सच है कि धरती पर दूसरे ग्रह के लोग आकर चले गए हैं और वे आते रहते हैं और यह भी कि वे धरती पर किसी अनजानी जगह पर रहते भी हैं। वैज्ञानिक यही सब कुछ खोज रहे हैं। इस खोज के चलते ही भारत में ऐसे कई स्थानों की खोज की गई है, लेकिन यहां प्रस्तुत है सिर्फ 7 स्थानों की जानकारी। अब सवाल यह भी है कि इसका सनातन धर्म से क्या संबंध है। कहना होगा कि इसका हर धर्म से संबंध है। यह अगले पन्ने पर पता चलेगा। हिमालय में रहते हैं एलियंस? विश्वभर के वैज्ञानिक मानते हैं कि धरती पर कुछ जगहों पर छुपकर रहते हैं दूसरे ग्रह के लोग। उन जगहों में से एक हिमालय है। भारतीय सेना और वैज्ञानिक इस बात को स्वीकार नहीं करते लेकिन वे अस्वीकार भी नहीं करते हैं। हिस्ट्री चैनल्स की एक सीरिज में इसका खुलासा किया गया। भारतीय सेना और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) की यूनिटों ने सन् 2010 में जम्मू और कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र में उड़ने वाली अनजान वस्तुओं (यूएफओ) के देखे जाने की खबर दी थी, लेकिन बाद में इस खबर को दबा दिया गया। लेकिन सोशल मीडिया पर इस खबर की खासी चर्चा रही। पहली घटना : 20 अक्टूबर 2011, सुबह 4.15 बजे, रात की ड्यूटी कर रहे भारतीय सेना के एक जवान ने तश्तरी के आकार वाला चमकती रोशनी से आच्छादित एक अंतरिक्ष यान सीमा रेखा के नजदीक एक सीमांत बस्ती में उतरते देखा। दो प्रकाश उत्सर्जक करीब 3 फुट ऊंचे जीव, जिनमें प्रत्येक के 6 पैर और 4 आंखें थीं। यान के किनारे से एक ट्यूब से उभरे वो जवान के पास पहुंचे और अंग्रेजी के भारी-भरकम उच्चारण के साथ जोर्ग ग्रह का रास्ता पूछा। हालांकि इस घटना में कितनी सच्चाई है यह कोई नहीं जानता। दूसरी घटना : एक अन्य सूचित घटना में 15 फरवरी दोपहर तकरीबन 2.18 पर भारत-चीन सीमा से करीब 0.25 किलोमीटर दूर एक छोटे से क्षेत्र में मैदान से करीब 500 मीटर ऊपर चमकदार सफेद रोशनी नजर आई और आठ भारतीय कमांडो, एक कुत्ते, तीन पहाड़ी बकरियों और एक बर्फीले तेंदुए को भारी बादलों में ले जाने से पहले वह गायब हो गई। हालांकि कुछ मानते हैं कि वह ले जाने में कामयाब नहीं हो पाई। कहा जाता है कि बाद में छह कमांडो को गोवा के एक स्वीमिंग पूल से बचाया गया। दो लापता हैं। बचे हुए लोगों को यह घटना याद नहीं। इस घटना का गवाह एक स्थानीय किसान बना, जो सीमा रेखा के नजदीक भेड़ चरा रहा था। तीसरी घटना : 22 जून को शाम 5.42 बजे एक बड़ा अंडाकार अंतरिक्ष यान उच्च हिमालय में गायब होने से पहले अस्थायी रूप से चीन की तरफ एक सैन्य पड़ाव के ऊपर मंडराता नजर आया, ऐसा कई प्रत्यक्षदर्शियों ने कहा। रिपोर्टों में उद्धृत किया गया कि वो करीब एक बड़े वायुयान के माप का था, जो चमकते चक्रों और पीछे घसीटते कपड़ों से आच्छादित था। आईटीबीपी की धुंधली तस्वीरों के अध्ययन के बाद भारतीय सैन्य अधिकारियों का मानना है कि ये गोले न तो मानवरहित हवाई उपकरण (यूएवी) हैं और न ही ड्रोन या कोई छोटे उपग्रह हैं। ड्रोन पहचान में आ जाता है और इनका अलग रिकॉर्ड रखा जाता है। यह वह नहीं था। सेना ने 2011 जनवरी से अगस्त के बीच 99 चीनी ड्रोन देखे जाने की रिपोर्ट दी है। इनमें 62 पूर्वी सेक्टर के लद्दाख में देखे गए थे और 37 पूर्वी सेक्टर के अरुणाचल प्रदेश में। इनमें से तीन ड्रोन लद्दाख में चीन से लगी 365 किमी लंबी भारतीय सीमा में प्रवेश कर गए थे, जहां आईटीबीपी की तैनाती है। पहले भी लद्दाख में ऐसे प्रकाश पुंज देखे गए हैं। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और चीन अधिकृत अक्साई चिन के बीच 86,000 वर्ग किमी में फैले लद्दाख में सेना की भारी तैनाती है। इस साल लगातार आईटीबीपी के ऐसे प्रकाश पुंज देखे जाने की खबर से सेना की लेह स्थित 14वीं कोर में हलचल मच गई थी। जो प्रकाश पुंज आंखों से देखे जा सकते थे, वे रडार की जद में नहीं आ सके। इससे यह साबित हुआ कि इन पुंजों में धातु नहीं है। स्पेक्ट्रम एनालाइजर भी इससे निकलने वाली किसी तरंग को नहीं पकड़ सका। इस उड़ती हुई वस्तु की दिशा में सेना ने एक ड्रोन भी छोड़ा, लेकिन उससे भी कोई फायदा नहीं हुआ। इसे पहचानने में कोई मदद नहीं मिली। ड्रोन अपनी अधिकतम ऊंचाई तक तो पहुंच गया लेकिन उड़ते हुए प्रकाश पुंज का पता नहीं लगा सका। भारतीय वायुसेना के पूर्व प्रमुख एयर चीफ मार्शल (सेवानिवृत्त) पीवी नाइक कहते हैं कि हम इसे नजरअंदाज नहीं कर सकते। हमें पता लगाना होगा कि उन्होंने कौन-सी नई तकनीक अपनाई है। भारतीय वायुसेना ने 2010 में सेना के ऐसी वस्तुओं के देखे जाने के बाद जांच में इन्हें ‘चीनी लालटेन’ करार दिया था। पिछले एक दशक के दौरान लद्दाख में यूएफओ का दिखना बढ़ा है। 2003 के अंत में 14वीं कोर ने इस बारे में सेना मुख्यालय को विस्तृत रिपोर्ट भेजी थी। सियाचिन पर तैनात सैन्य टुकड़ियों ने भी चीन की तरफ तैरते हुए प्रकाश पुंज देखे हैं, लेकिन ऐसी चीजों के बारे में रिपोर्ट करने पर हंसी उड़ने का खतरा रहता है। ओडिशा में उतरे थे एलियन : इस बात का पता एक ताड़पत्र की खुदाई से चला है। वर्ष 1947 में भारत के आजाद होने से कुछ माह पहले ही एक यूएफओ को ओडिशा के नयागढ़ जिला में उतरते देखे जाने की बात कही गई थी। एक स्थानीय कलाकार पचानन मोहरना ने इस घटना को ताड़पत्र पर खुदाई कर दर्ज किया था। पचानन ने उन एलियन व उनके विमान के रेखाचित्र भी बनाए थे। यह यूएफओ 31 मई 1947 को पहाड़ी इलाके नयागढ़ में उतरे थे। इस घटना के एक माह बाद ही न्यू मैक्सिको के पास एक संदिग्ध दुर्घटना हुई थी। इसके बाद अमेरिकी वायुसेना ने दुर्घटनास्थल से एक उडनतश्तरी को बरामद करने का दावा किया था। हालांकि इस घटना को बाद में अमेरिका और भारत ने छिपाने का प्रयास किया। नर्मदा की सैर करने आते थे एलियन : 1300 किलोमीटर का सफर तय करके अमरकंटक से निकलकर नर्मदा विंध्य और सतपुड़ा के बीच से होकर भडूच (भरुच) के पास खंभात की खाड़ी में अरब सागर से जा मिलती है। नर्मदा घाटी को विश्व की सबसे प्राचीन घाटियों में गिना जाता है। यहां भीमबैठका, भेड़ाघाट, नेमावर, हरदा, ओंकारेश्वर, महेश्वर, होशंगाबाद, बावनगजा, अंगारेश्वर, शुलपाणी आदि नर्मदा तट के प्राचीन स्थान हैं। नर्मदा घाटी में डायनासोर के अंडे भी पाए गए हैं और यहां कई विशालकाय प्रजातियों के कंकाल भी मिले हैं। यहां प्रागैतिहासिक शैलचित्रों के शोध में जुटी एक संस्था ने रायसेन के करीब 70 किलोमीटिर दूर घने जंगलों के शैलचित्रों के आधार पर अनुमान जताया है कि प्रदेश के इस हिस्से में दूसरे ग्रहों के प्राणी ‘एलियन’ आए होंगे। संस्था का मानना है कि यहां आदिमानव ने इन शैलचित्रों में उड़नतश्तरी की तस्वीर भी उकेरी है। पत्थर पर दर्ज आकृति नर्मदा घाटी में नए प्रागैतिहासिक स्थलों की खोज में जुटी सिड्रा आर्कियोलॉजिकल एन्वॉयरन्मेंट रिसर्च, ट्राइब वेलफेयर सोसाइटी के पुरातत्वविदों के अनुसार ये शैलचित्र रायसेन जिले के भरतीपुर, घना के आदिवासी गांव के आसपास की पहाड़ियों में मिले हैं। इनमें से एक शैलचित्र में उड़नतस्तरी (यूएफओ) का चित्र देखा जा सकता है। इसके पास ही एक आकृति दिखाई देती है जिसका सिर एलियन जैसा है। यह आकृति खड़ी है। जैसा देखा, वैसा बनाया। संस्था के अनुसार प्रागैतिहासिक मानव अपने आस-पास नजर आने वाली चीजों को ही पहाड़ों की गुफाओं, कंदराओं में पत्थरों पर उकेरते थे। ऐसे में संभव है कि उन्होंने एलियन और उड़नतश्तरी को देखा हो। देखने के बाद ही उन्होंने इनके चित्र बनाए होंगे, क्योंकि उन्होंने उड़ने वाली जिस चीज का चित्र बनाया है ऐसा तो आज का मानव ही बना सकता है। रायसेन के पास मिले शैलचित्र आदिमानव के तत्कालीन जीवनशैली से भी मेल नहीं खाते हैं। खान के अनुसार कुछ इसी तरह के चित्र भीमबैठका और रायसेन के फुलतरी गांव की घाटी में भी मिले हैं। माना जाता है कि भीमबैठका के शैलचित्र करीब 35 हजार वर्ष पुराने हैं। इन शैलचित्रों ने शोध की नई और व्यापक संभावनाओं को जन्म दिया है। इनका मिलान विश्‍व के अनेक स्थानों पर मिले शैलचित्रों से भी किया जा रहा है। अनुमान है कि दूसरे ग्रहों के प्राणियों का नर्मदा घाटी के प्रागैतिहासिक मानव से कुछ न कुछ संबंध जरूर रहा है। यह संबंध किस प्रकार का था इस पर शोध जारी है। पुरासंपदा का खजाना कुछ दशक पूर्व जियोलॉजिस्ट डॉ. अरुण सोनकिया ने नर्मदा घाटी के हथनौरा गांव से अतिप्राचीन मानव कपाल खोजा था। उसकी कार्बन आयु वैज्ञानिकों ने साढ़े तीन लाख वर्ष बताई है। नर्मदा घाटी का क्षेत्र कई पुरासंपदाओं का खजाना माना जाता है। बस्तर : छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में एक गुफा में 10 हजार वर्ष पुराने शैलचित्र मिले हैं। नासा और भारतीय आर्कियोलॉजिकल की इस खोज ने भारत में एलियंस के रहने की बात पुख्ता कर दी है। यहां मिले शैलचित्रों में स्पष्ट रूप से एक उड़नतश्तरी बनी हुई है। साथ ही इस तश्तरी से निकलने वाले एलियंस का चित्र भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, जो आम मानव को एक अजीब छड़ी द्वारा निर्देश दे रहा है। इस एलियंस ने अपने सिर पर हेलमेट जैसा भी कुछ पहन रखा है जिस पर कुछ एंटीना लगे हैं। वैज्ञानिक कहते हैं कि 10 हजार वर्ष पूर्व बनाए गए ये चित्र स्पष्ट करते हैं कि यहां एलियन आए थे, जो तकनीकी मामले में हमसे कम से कम 10 हजार वर्ष आगे हैं ही। अजंता-एलोरा : माना जाता है कि एलोरा की गुफाओं के अंदर नीचे एलियंस का एक सीक्रेट शहर है। यह हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म का प्रमुख स्थल है। यहां की जांच-पड़ताल करने के बाद पता चलता है कि यहां पर एलियंस के रहने के लिए एक अंडरग्राउंड स्थान बनाया गया था। आर्कियोलॉजिकल और जियोलॉजिस्ट की रिसर्च से यह पता चला कि ये कोई सामान्य गुफाएं नहीं हैं। इन गुफाओं को कोई आम इंसान या आज की आधुनिक तकनीक नहीं बना सकती। यहां एक ऐसी सुरंग है, जो इसे अंडरग्राउंड शहर में ले जाती है। अजंता के कैलाश मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह एलियंस के सहयोग से बनाया गया था। आर्कियोलॉजिस्टों के अनुसार इसे कम से कम 4 हजार वर्ष पूर्व बनाया गया था। 40 लाख टन की चट्टानों से बनाए गए इस मंदिर को किस तकनीक से बनाया गया होगा? यह आज की आधुनिक इंजीनियरिंग के बस की बात नहीं है। महाबलीपुरम : केरल का महाबलीपुरम शहर बहुत ही प्राचीन शहर है। यहां के अब तक ज्ञात सबसे प्राचीन राजा बलि थे। बलि के कारण ही विष्णु को वामन अवतार लेना पड़ा था। यहां पर एक प्राचीन गणेश मंदिर बना है जिसके शिखर को स्पष्ट रूप से रॉकेट की आकृति का बनाया गया है। इस मंदिर की जांच करने के बाद यहां रेडियो एक्टिविटी मटेरियल्स मिला है। यहां पर एक बहुत ही फरफेक्स होल्स बना है। माना जाता है कि यहीं से रॉकेट लांच किया जाता था।

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