Sunday 18 October 2015

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अजब है इन हजारों सीढ़ियों का तिलिस्म

By: Secret On: 09:07
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  • अजब है इन हजारों सीढ़ियों का तिलिस्म छिंदवाड़ा। ‘प्रदेश के रोचक स्थान नॉलेज पैकेज’ के अंतर्गत आज हम आपको प्रकृति की गोद में बसे एक ऐसे अद्भुत गांव के बारे में बता रहे हैं, जिसके बारे में शायद ही आप जानते हों। किस्सों में आप अक्सर पाताल के बारे में सुनते आए हैं। लेकिन क्या आपने कभी वास्तविक जीवन में पाताल देखा है? नहीं, तो यह जानकर आपको खुशी होगी कि हमारे ही देश में एक ऐसा स्थान है, जो पाताल का दूसरा रूप है। उस अद्भुत स्थान का नाम है - पातालकोट। नाम से ही स्पष्ट है कि यह पाताल में बसा हुआ है। मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा से 78 किमी. दूर स्थित यह स्थान 12 गांवों का समूह है। प्रकृति की गोद में बसा यह पाताललोक सतपुड़ा की पहाड़ियों के बीच 3000 फुट ऊंची पर्वत श्रृंखलाओं से तीन ओर से घिरा हुआ है। इस अतुलनीय स्थान पर दो-तीन गांव तो ऐसे हैं जहां आज भी जाना नामुमकिन है। ऐसा माना जाता है कि इन गांवों में कभी सवेरा नहीं होता। पैराणिक कथाओं के अनुसार यह वही स्थान है, जहां से मेघनाथ, भगवान शिव की आराधना कर पाताल लोक में गया था। यही नहीं, यहां के स्थानीय लोग आज भी शहर की चकाचौंध से दूर हैं। उन्हें तो पूरी तरह से यह भी नहीं मालूम की शहर जैसी कोई भी चीज भी है। पातालकोट में ऐसी बेहतरीन जड़ी-बूटियां हैं, जिससे कई जानलेवा बीमारियों का आसानी से इलाज होता है। यहां के स्थानीय लोग इन्हीं जड़ी-बूटियों का प्रयोग करते हैं। पाताल लोक में जाने की इजाजत किसी को नहीं। पाताल लोक के दर्शन करने हैं तो सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है। दुनिया तीन लोको से जानी जाती है। पहला इंद्रलोक यानी अनंत तक फैला आसमान। दूसरा मृत्युलोक यानि अनंत तक फैली हुई धरती लेकिन ज़मीन के अंदर दुनिया का तीसरा लोक है पाताललोक। भोपाल से तकरीबन 300 किलोमीटर के फासले पर पातालकोट में है। धरती के नीचे झांक कर देखने पर उठता है एक रहस्य से पर्दा। पाताल का घना अंधेरा, वहां के रहस्य सिर्फ कहानी में सुने होंगे। धरती के गर्भ में जाती हैं हजारों सीढि़यां जाती हैं। इसी धरती पर बसती है तीसरी दुनिया। पातालकोट के निवासी मानते धरती को अपनी मां प्रशासन को भी जड़ी बूटियों पर मंडरा रहे खतरे का अहसास है, इसलिए अब वो इन जड़ी-बूटियों को सहेजने की योजना बना रहा है। प्रकृति पातालकोट पर मेहरबान हैं और पातालकोट के लोग प्रकृति पर। पातालकोट के निवासी धरती को मां मानते हैं, और उस पर हल चलाने से परहेज करते हैं। जो भी खेती होती है, खुर्पी के सहारे होती है। पातालकोट में फसल पकने और शादी-ब्याह के वक्त करमा नाच होता है। गोंड और भारिया आदिवासी सैकड़ों साल से पातालकोट में रह रहे हैं। यही उनकी जिंदगी है बाकी दुनिया की तरक्की इन्हें जरा भी नहीं लुभाती, इनके लिए तो पातालकोट का सुख ही सबकुछ है। ये सुख उनका अपना है जो बाकी दुनिया के लिए शायद सपना है। तीसरी दुनिया तक पहुंचने के हैं पांच रास्ते पातालकोट जाने के लिए पांच रास्ते हैं। आप किसी भी रास्ते में जाइए आपको गहरी घाटी में पांच किलोमीटर का सफ़र पैदल तय करना होगा। तब जाकर बड़ी मशक्कत के बाद आप जिस जगह पर पहुंचेंगे तो मान जाएंगे कि धरती पर ये भी किसी स्वर्ग से कम नहीं है। मौत की घाटी है पाताललोक लोगों का कहना है कि पाताल मौत की घाटी की तरह है जहां जो एक बार जाता है वापस नहीं आता। पातालकोट में नाग देवता के बाद अगर कोई भगवान माना जाता है तो वो हैं भूमका। ये भूमका ही हैं जो पातालकोट के बाशिंदों की सेहत का ख्याल रखते हैं। साथ ही वे कुछ ऐसे रहस्य भी जानते हैं जिन्हें पातालकोट के आम लोग नहीं जानते। मौत की घाटी है पाताललोक लोगों का कहना है कि पाताल मौत की घाटी की तरह है जहां जो एक बार जाता है वापस नहीं आता। पातालकोट में नाग देवता के बाद अगर कोई भगवान माना जाता है तो वो हैं भूमका। ये भूमका ही हैं जो पातालकोट के बाशिंदों की सेहत का ख्याल रखते हैं। साथ ही वे कुछ ऐसे रहस्य भी जानते हैं जिन्हें पातालकोट के आम लोग नहीं जानते। कलीराम जैसे दो दर्जन भूमका पूरे पातालकोट में कलीराम जैसे दो दर्जन भूमका हैं। ये लोग सदियों से जड़ी बूटियों से इलाज कर रहे हैं। मीज़ल्स, हाइपरटेंशन, डायबिटीज़ यहां तक कि सांप के काटने की दवा भी भूमका के पास होती है। लेकिन भूमकाओं का पारंपरिक हुनर सीखने की ललक नई पीढ़ी में उतनी नहीं है जिसकी वजह से इसके खत्म होने का खतरा पैदा हो गया है। खतरा जड़ी-बूटियों पर भी मंडरा रहा है जिनकी तलाश में दूर-दूर से लोग यहां आते हैं। कोई नहीं होता पातालकोट में बीमार भूमका पातालकोट की हर जड़ी बूटी की खासियत समझते हैं। यूं तो पातालकोट में अमूमन कोई बीमार नहीं होता, लेकिन अगर किसी को कोई परेशानी हो जाती है तो वो सीधे भूमका के पास पहुंचता है। कलीराम भूमका की मानें, तो पातालकोट की जड़ी-बूटियों में हर मर्ज़ का इलाज मौजूद है। यहां मिलने वाली कई जड़ी बूटियां दुर्लभ हैं। पाताल में भी रहते हैं लोग पाताल के बाहर मिला सताराम इनवाती। वनविभाग के रेस्टहाउस का कर्मचारी। उसके गले से फूट रहे लोकगीत बता रहे थे कि ये पातालवासियों का ही कोई गीत होगा। सताराम ने कहा कि धरती की खुदगर्ज दुनिया पातालवासियों को रास नहीं आती। उन्हें हमारी जरूरत नहीं है। इनको सब वहीं पाताल में मिल जाता है। ये पाताल वाले नीचे ही रहते हैं और वहीं उनका संबंध बनता रहता है।

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