Friday, 23 October 2015
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समुद्र है रहस्यों की दुनिया
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On: 20:24
समुद्र है रहस्यों की दुनिया
समुद्र की गहराइयां का रहस्य आज भी बरकरार है. समंदर के गर्भ में अद्भुत जीव-जंतु, दुर्लम पौधे और हैरान कर देने वाले बैक्टीरिया मौजूद है.
समुद्र की गहराइयां इक्कीसवीं सदी में भी रहस्य बनी हुई हैं, जबकि धरती का करीब 70 प्रतिशत हिस्सा समुद्र से घिरा है. इसकी औसत गहराई किलोमीटर में आंकी जाती है. समुद्र को जीवों के सबसे बड़े बसेरे के रूप में भी जाना जाता है लेकिन दिक्कत यह है कि इनका बसेरा भी सुरक्षित नहीं रह गया है.
समुद्र की गहराइयां बेहद ठंडी, अंधेरी होती हैं और कभी-कभी तो ज्यादा दबाव के कारण यहां ऑक्सीजन भी काफी कम हो जाता है. दबाव की बात आयी है, तो तुम्हें बता दें कि धरती पर जितना दबाव महसूस होता है, समुद्र की गहराइयों में यह 1000 गुना ज्यादा होता है.
इतना ज्यादा दबाव कि बायोकैमेस्ट्री भी यहां फेल हो जाए. इतनी मुश्किलों के बावजूद सचाई यह है कि समुद्र की तलहटी में रहने की एक प्रतिशत से भी कम जगहों का अभी तक पता चला है. जानते हैं- समुद्र की गहराई के इस एक प्रतिशत में रहने वाले जीवों और वनस्पतियों की किस्मों के बारे में-
समुद्री दुनियां के अद्भुत जीव
गहरे समुद्र में अजीब रहन-सहन वाली दुनिया में शार्क, डरावनी शक्लों वाले ड्रैगन जैसी दिखने वाली मछलियां रहती हैं. इनकी आंखें वहीं से लैंप की तरह दमकती हैं, चमकीली मछलियां, केएलाकैंथ नामक मछली, कमल जैसे दिखने वाले रेंगते फूल, ब्लड रेड समुद्र फेनी (स्विड), भयानक सूंडों वाले काले ऑक्टोपस, करीब एक मीटर चौड़ी जेलीफिश, रेंगने और कई भुजाओं वाले पौधे और जेलीफिश जिनके चमकीले चंगुल से बच पाना आसान नहीं, क्योंकि इन्हीं से ये मछली अपने शिकार को आकषिर्त भी करती है. लेकिन, इन समुद्री गहराइयों में शायद सबसे ज्यादा नाटकबाज जीव है करीब 13 मीटर लंबा स्विड.
इन्हें आर्किटय़ूथिस भी कहते हैं. हाल में पहले बार इन्हें जिंदा पकड़ने में कामयाबी मिली है. ये करीब 15 मीटर लंबा जीव है. लेकिन इसे कभी जीवित नहीं देखा गया. गहरे समुद्र में इसका बराबरी करने वाले दो जीव हैं- स्पर्म व्हेल और अंटाकर्टिक स्लीपर शार्क. यहीं रहकर ये अपने लिए शिकार तलाशती हैं.
समुद्र की बेहद गहराइयों में बैक्टीरिया
यह जानकर ताज्जुब होगा कि समुद्र की बेहद गहराइयों में बैक्टीरिया, कीड़ों और दूसरे केकड़े-झींगे जैसे क्रस्टासियस पाये जाते हैं. जैसे खेतों में कई तरह के कीड़े-मकोड़े और किस्म-किस्म के पौधे दिख जाते हैं, वैसे ही समुद्र की तलहटी में भी पाये जाते हैं लेकिन वहां जो दिखते हैं, धरती पर पाये जाने वाले से अलग होते हैं.
समुद्र में पाये जाने वाले कीड़े-मकोड़े बर्फ खाते हैं. यह बर्फ ऊंचाई से यहां तक गिरकर आती है. समुद्र के ज्यादा गहरी तली में जीवन होने की कल्पना करना संभव नहीं है. लेकिन 2003 में शोधकर्ताओं ने पाया कि कई अजीब किस्म के बैक्टीरिया 300 मीटर की गहराई में पाए जाने वाले चट्टानों में पाये गये.
गहरे पानी में कोरल रीफ
शोधकर्ताओं ने प्रशांत महासागर के सीफ्लोर पर यह रिसर्च किया था. उन्होंने अपनी रिसर्च में पाया कि लाखों साल पहले से वे इन चट्टानों में खाते-पीते पनपते रहे हैं. गहरे में मौजूद मूंगा भित्ति (कोरल रीफ) से तो काफी चौंकाने वाले तथ्यों का पता चला. वहां करीब 6000 मीटर की गहराई में, जहां पानी का तापमान दो डिग्री सेल्सियस था, ये चट्टानों के आसपास पाये गये.
इतना ही नहीं, ये बैक्टीरिया उष्णकटिबंधीय यानी ट्रॉपिकल क्षेत्रों और उथले पानी में भी मजे में रह रहे हैं. आयरलैंड से न्यूजीलैंड तक ये धीरे-धीरे पनपते मिले हैं और इनका पता तब चला, जब तेल की खोज के दौरान खनिकों ने इन्हें यहां आहिस्ता-आहिस्ता पनपते पाया. लेकिन इन्हें उस समय ज्यादा नुकसान हुआ, जब मछुआरों के मछली पकड़ने के लिए इन इलाकों में बड़े-बड़े जाल डालना शुरू किया.
समुद्र में 2 मीटर लंबी बैक्टीरिया
इन जाल से मूंगा भित्तियों को कितना नुकसान हुआ होगा. केवल 2002 में नाव्रे के नजदीक 100 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में ये भित्तियां देखी गयी थीं. लेकिन कीड़ों की बात करें तो 2 मीटर लंबी रिफ्शिया पचिटिला नामक बैक्टीरिया भी इन्हीं समुद्रों की बहुत गहराई में पायी जाती हैं. इसी तरह समुद्र के भीतर 121 डिग्री सेल्सियस की गर्मी में भी कुछ बैक्टीरिया को जीवित पाया गया है.
खास बात तो यह है कि समूची पृथ्वी पर पाये जाने वाले पर्वतीय श्रृंखलाओं में से एक है 70 हजार किलोमीटर लंबे समुद्र के भीतर का पर्वतनुमा क्षेत्र. समूचे समुद्र में ऐसे करीब एक लाख बड़े पर्वतनुमा क्षेत्र हैं जहां मछुआरों की टोली अपने उपकरणों से बड़े स्केल पर मछलियां मारने में लगे हैं.
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