Wednesday 19 October 2016

नासा ने खोजा पृथ्वी का जुड़वां ग्रह !

By: Secret On: 20:00
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  • नासा ने खोजा पृथ्वी का जुड़वां ग्रह !


    पृथ्वी के बाहर जीवन की चाह फिर से परवान चढ़ रही है. दुनिया की सबसे बड़ी वैज्ञानिक संस्था नासा ने बिलकुल पृथ्वी जैसा ग्रह खोज निकाला है. वह अपने सूर्य का चक्कर लगाता है. न बहुत ठंडा, न बहुत गर्म और पानी की पूरी संभावना.
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    कोई तीन साल पहले अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने नए ग्रहों की तलाश में केपलर नाम का टेलीस्कोप पृथ्वी से बाहर अनजान दुनिया की खोज में भेजा था. दो साल की मेहनत के बाद वैज्ञानिकों को वे तस्वीरें मिल गईं, जो अब तक की सबसे उत्साहित करने वाली बताई जा रही हैं. ऐसे ग्रह का पता चल रहा है, जो पृथ्वी से ढाई गुना बड़ा होगा. तापमान 22 डिग्री के आस पास यानी पानी न तो जमेगा और न ही खौलेगा. दिन वसंत ऋतु के किसी दिन की तरह खुशगवार होगा. उसकी स्थिति ऐसी जगह है, जहां पानी होने की पूरी संभावना दिख रही है यानी उस ग्रह में वह सारे गुण हैं, जो पृथ्वी में हैं और जिसके आधार पर जीवन की कल्पना की जा सकती है. केपलर को सम्मान देते हुए ग्रह का नाम रखा गया है, केपलर-22बी.
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    घर के बाहर घर
    नए ग्रहों की तलाश के मामले में बड़ा योगदान देने वाले यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के ज्यॉफ मार्सी का कहना है, "यह मानव इतिहास की महान खोज मानी जाएगी. यह खोज बताती है हम होमोसेपियन (मनुष्य का बायोलॉजिकल नाम) पृथ्वी के बाहर घर की तलाश कर रहे हैं और ऐसी जगह पहुंच चुके हैं, जो हमें अपने घर की याद दिला रहा है."
    नया ग्रह अपने प्रमुख सितारे की उसी तरह परिक्रमा कर रहा है, जैसा पृथ्वी सूर्य की करता है. उसका तारा सूर्य जितना ही बड़ा लग रहा है. केपलर-22बी को इसकी परिक्रमा करने में पृथ्वी से करीब 10 महीने कम लगभग 290 दिन का वक्त लगा है. बस इस ग्रह का आकार थोड़ा बड़ा है. यह पृथ्वी से करीब 2.4 गुना बड़ा है. फिर भी हमारे सौरमंडल के बाहर मिले दूसरे ग्रहों से इसका आकार छोटा है और यहां पानी होने की पूरी संभावना दिख रही है. ग्रह पानी और पत्थरों से बना हो सकता है और इसकी बनावट पृथ्वी और गैस तथा द्रव से बने नेप्च्यून ग्रहों के बीच की बताई जा रही है.
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    कैसे कहूं, क्या है
    इस खोज से उत्साहित सैन जोस स्टेट यूनिवर्सिटी की अंतरिक्ष विज्ञानी और नासा के केपलर अभियान की उप प्रमुख नताली बतालहा का कहना है, "हम पृथ्वी और नेप्च्यून ग्रहों के बीच के किसी ग्रह के बारे में ज्यादा नहीं बात कर सकते हैं क्योंकि हमारे सौरमंडल में ऐसा कोई ग्रह नहीं है. हम नहीं कह सकते हैं कि किस हिस्से में पानी होगा, कहां पत्थर होगा और किन इलाकों में बर्फ जमा होगी. हम जब तक इस बारे में जानकारी इकट्ठी नहीं कर लेते, तब तक कुछ नहीं बता पाएंगे."
    लेकिन जानकारी इकट्ठी करना इतना आसान नहीं होगा. यह ग्रह हमारे सौरमंडल से कोई 600 प्रकाश वर्ष दूर है. एक प्रकाश वर्ष की दूरी तय करने में अनुमानित 10,000 अरब साल का वक्त लग जाता है. यानी मौजूदा वक्त की सबसे तेज उड़ान भरने वाला अंतरिक्ष यान केपलर-बी22 तक पहुंचने में कोई सवा दो करोड़ साल लगाएगा. मौजूदा वक्त में भले ही यह नामुमकिन लग रहा हो लेकिन विज्ञान अद्भुत आविष्कारों का गवाह रहा है और कब कौन सा आविष्कार कौन से दरवाजे खोल दे, कोई नहीं कह सकता.
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    मुश्किल से मिलता ग्रह
    केपलर को बेहद जटिल प्रक्रिया के बाद गोल्डीलॉक्स जोन में इस ग्रह के बारे में पता चला. यह टेलीस्कोप सिर्फ उन्हीं ग्रहों की निशानदेही करता है, जो अपने तारों का चक्कर लगा रहे हों. किसी ठोस नतीजे पर पहुंचने से पहले उस ग्रह के तीन चक्कर पूरे होने जरूरी हैं यानी तीन मौका ऐसा आना चाहिए, जब वह अपने मुख्य ग्रह के सामने से गुजरे. इस खोज को अलग अलग तीन जगहों की सहमति मिलनी चाहिए. केपलर की रिसर्च में 2326 ग्रहों की स्टडी की गई, जिसमें 10 ग्रह ऐसे निकले, जो पृथ्वी के आकार के हैं और अपने तारों का चक्कर लगाते दिखे.
    केपलर की एक उड़ान ने वैज्ञानिकों को पृथ्वी के जुड़वां ग्रह तक तो पहुंचा दिया. अब कल्पना की दूसरी उड़ान उन्हें उस धरातल पर उतार भी सकती है.

    सुपरनोवा के रहस्य से उठेगा पर्दा

    By: Secret On: 07:00
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  • सुपरनोवा के रहस्य से उठेगा पर्दा


    अनंत अंतरिक्ष में एक सुपरनोवा के विस्फोट के कुछ ही घंटों के अंदर यह वैज्ञानिकों की पकड़ में आ गया. इसके बाद ब्रह्मांड को सबसे ज्यादा चकाचौंध कर डालने वाले चमकीले राज के बारे में बहुत कुछ बताया जा सकता है.
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    इसी साल 24 अगस्त को अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने सहस्त्रों अरब मील दूर हुए एक विस्फोट का प्रकाश लगभग 11 घंटे बाद पकड़ लिया. इस विस्फोट के कारण एसएन 2011 एफई सुपरनोवा का निर्माण हुआ, जो पिछले 25 सालों में पृथ्वी के सबसे निकट उत्पन्न हुआ सुपरनोवा था. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह जगह हमारी धरती से मात्र दो करोड़ प्रकाश वर्ष दूर है. प्रकाश वर्ष को प्रकाश की गति में मापा जाता है. यानी 365 दिन में प्रकाश जितनी दूरी तय करेगी, उसे एक प्रकाश वर्ष कहा जाता है. एक प्रकाश वर्ष में अनुमानित 10,000,000,000,000 (एक हजार अरब) किलोमीटर होते हैं.
    अमेरिका के लॉरेंस बेर्केली नेशनल लेबोरेट्री के पीटर नूगेंट ने बताया, "सुपरनोवा के विस्फोट के मात्र 11 घंटे बाद हमें यह दिख गया. इस वजह से हमें 20 मिनट के अंदर ही इसके होने के वास्तविक समय का पता लग गया. इसके बाद हमें जो जानकारियां मिली हैं, कोई उसके बारे में सपने में भी नहीं सोच सकता था."
    बदलती धारणा
    1ए टाइप के सुपरनोवा से उत्पन्न ऊर्जा को ही किसी भी सुपरनोवा की दूरी मापने के लिए मानक के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. सुपरनोवा के खोज से जुड़ी जानकारी जुटाने पर इस साल का नोबेल पुरस्कार भी दिया गया है. वैज्ञानिकों का दावा है कि अंतरिक्ष का विस्तार हो रहा है, जबकि पहले धारणा यह थी कि अंतरिक्ष बढ़ नहीं रहा है बल्कि सिकुड़ रहा है.
    खगोल वैज्ञानिकों का दावा है कि तीन कारणों से 1ए टाइप का सुपरनोवा बन सकता है. लेकिन ये अद्भुत खगोलीय घटनाएं कोई 100-200 साल में सिर्फ एक बार होती हैं. इन तीनों ही मामलों में व्हाइट ड्वार्फ नाम का टूटता हुआ एक बुजुर्ग तारा अपने पड़ोसी तारों की ऊर्जा और द्रव्य खींचता है. इसी प्रक्रिया के दौरान एक भयंकर विस्फोट होता है और यह तारा टुकड़े टुकड़े में बंट जाता है. इस विस्फोट से जो रोशनी पैदा होती है, वह सूरज के प्रकाश से एक अरब गुना ज्यादा चमकीली होती है.
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    क्या है सुपरनोवा?
    किसी बुजुर्ग तारे के टूटने से वहां जो ऊर्जा पैदा होती है, उसे ही सुपरनोवा कहते हैं. कई बार एक तारे से जितनी ऊर्जा निकलती है, वह हमारे सौरमंडल के सबसे मजबूत सदस्य सूरज के पूरे जीवन से निकलने वाली ऊर्जा से भी ज्यादा होती है.
    सुपरनोवा की ऊर्जा इतनी बलवान होती है कि वह हमारी धरती की आकाशगंगा को कई हफ्तों तक फीका कर सकती है. व्हाइट ड्वार्फ को धरती के आकार का हीरा बताया जाता है. इसके बस एक चम्मच द्रव्य का वजन 10 टन तक हो सकता है. ज्यादातर व्हाइट ड्वार्फ गर्म होते होते पलक झपकते लोप हो जाते हैं. लेकिन कुछ गिने चुने व्हाइट ड्वार्फ दूसरे तारों से मिल कर सुपरनोवा का निर्माण करते हैं.
    राज और भी हैं
    अब सवाल यह उठता है कि वे कौन से तारे होते हैं, जो व्हाइट ड्वार्फ की मदद करते हैं. इन्हें दूसरा व्हाइट ड्वार्फ या रेड जाएंट तारा कहते हैं. हमारी सौर मंडल का प्रमुख तारा सूर्य भी एक रेड जाएंट है. ली वाइडांग की टीम ने हबल स्पेस टेलिस्कोप से कुछ तस्वीरें जमा की हैं, जिसमें विस्फोट से पहले रेड जाएंट पकड़ में आ गया है. उस वक्त उसकी ऊर्जा हमारे सूर्य से 10,000 गुना ज्यादा थी.
    नुगेंट की टीम ने इस खोज को थोड़ा आगे बढ़ाने की कोशिश की है. कैलिफोर्निया के प्रयोगशाला से उन्होंने जो जानकारी जमा की, उसके मुताबिक सुपरनोवा के विस्फोट के बाद इसका कुछ मलबा उस पड़ोसी तारे पर गिरता है, जिससे आतिशबाजी जैसा नजारा दिखता है.
    हालांकि वैज्ञानिकों को अभी इस बारे में पक्का पता नहीं लग पाया है कि इन पड़ोसी तारों का आकार क्या होता है. यहीं आकर खगोल विज्ञानियों को हाथ रोक लेना पड़ता है. अंतरिक्ष और ब्रह्मांड जितने राज खोलता है, उतने नए राज सामने भी ले आता है. अब टिकटिकी डाल कर तारे देखने वाले अंतरिक्ष विज्ञानियों को कम से कम 30 साल का इंतजार करना पड़ेगा. तब अगले सुपरनोवा विस्फोट की उम्मीद है. और अगर किस्मत अच्छी हुई, तो वह सुपरनोवा धरती के बहुत पास अपनी आकाशगंगा में भी बन सकता है.

    Tuesday 18 October 2016

    प्रकाश की गति से तेज कुछ नहीं

    By: Secret On: 17:00
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  • प्रकाश की गति से तेज कुछ नहीं


    आइंस्टीन ने 100 साल पहले कहा था कि प्रकाश की गति से तेज कुछ नहीं हो सकता है. पिछले साल इस पर सवाल उठे और कहा गया कि न्यूट्रीनो तेज हो सकते हैं. कई परीक्षणों के बाद वैज्ञानिकों ने मान लिया कि आइंस्टीन सही थे.
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    एटम यानी परमाणु से भी छोटे इस कण पर स्विट्जरलैंड की मशहूर सेर्न प्रयोगशाला में प्रयोग किए गए. इटली की ग्रैन सासो ने पिछले साल सितंबर में यहीं दावा किया था कि गति के मामले में प्रकाश को भी मात देने वाला कोई कण पा लिया गया है. हालांकि इसे तथ्य के तौर पर नहीं रखा गया था और कहा गया था कि कुछ और प्रयोगों की जरूरत है. पिछले महीने पता चला कि मशीन में तार लगाते वक्त कहीं कुछ गड़बड़ हुई थी. उसके बाद से इस बात पर शक और गहरा गया.
    नई जानकारी इकारुस नाम के प्रयोग से सामने आई है. इसमें सर्न के वैज्ञानिकों ने एक एक कर सात न्यूट्रीनो को छोड़ा और देखा कि उनकी रफ्तार लगभग प्रकाश की गति के बराबर ही है. उससे ज्यादा कतई नहीं. इस नए प्रयोग के बारे में इससे जुड़े वैज्ञानिक सैंड्रो सेंट्रो का मानना कि इस बार सही नतीजे पा लिए गए हैं. उन्होंने कहा, "प्रकाश की गति और न्यूट्रीनो की गति बिलकुल बराबर थी."
    ये सारे प्रयोग उस महाप्रयोग के हिस्से हैं, जो 2008 में शुरू हुआ था और शुरू में जिसकी वजह से अफवाह उड़ी थी कि दुनिया खत्म हो सकती है. हालांकि वैज्ञानिकों का कहना है कि वह ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बारे में जानने के लिए यह प्रयोग कर रहे हैं कि आखिर पृथ्वी और इसका वातावरण कैसा बना. वे बिग बैंग थ्योरी पर काम कर रहे हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसे ही एक विस्फोट के बाद धरती बनी थी.
    पिछले बार के रिसर्च में कहा गया था कि न्यूट्रीनो ने सर्न से ग्रान सासो तक की 730 किलोमीटर तक की दूरी 60 नैनोसेकंड यानी सेकंड के 60 अरबवें हिस्से में पूरी कर ली थी. यह गति निश्चित तौर पर प्रकाश की गति से कहीं ज्यादा है. सर्न के रिसर्च डायरेक्टर सर्गियो बर्तेलुच्ची का कहना है, "अभी वैज्ञानिक मई में कुछ और प्रयोग करने वाले हैं. उसके बाद ही सर्न पक्के तौर पर कुछ कह सकता है."
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    कई वैज्ञानिकों ने पिछले प्रयोग के बाद से ही उस पर अंगुली उठानी शुरू कर दी थी क्योंकि उससे आइंस्टीन का बुनियादी सिद्घांत गलत साबित हो रहा था. साल 1905 में आइंस्टीन ने सापेक्षता का सिद्धांत दिया था, जिसमें कहा गया था कि इस ब्रह्मांड में कोई भी वस्तु प्रकाश की गति से तेज नहीं चल सकता है. अगर यह सिद्धांत गलत साबित हो जाए, तो आधुनिक भौतिकी के दर्जनों सिद्धांत खारिज हो जाएंगे क्योंकि वे उसी बुनियाद पर तैयार हुए हैं. इसके अलावा विज्ञान की हजारों किताबों को दोबारा लिखना होगा.
    इसी से मिलते जुलते प्रयोग पर रोम के पास की एक प्रयोगशाला में भी रिसर्च चल रहा है. यहां के वैज्ञानिक शुरू से उस बात पर सवाल उठा रहे थे, जिसमें न्यूट्रीनो की गति के बारे में बात चल रही थी. उनका सीधा सा तर्क था कि अगर न्यूट्रीनो ने प्रकाश की गति भेद दी होती, तो उसकी ऊर्जा अत्यधिक कम हो जाती जो कि नहीं हुआ.
    वैज्ञानिकों ने पहाड़ियों के बीच में सुरंगनुमा प्रयोगशाला तैयार की है, जिस पर बरसों चलने वली रिसर्च की जा रही है.

    ग्रहों को निगल रहा है ब्लैक होल धनु-ए

    By: Secret On: 06:30
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  • ग्रहों को निगल रहा है ब्लैक होल धनु-ए


    धरती से 26,000 प्रकाश वर्ष दूर एक विशाल ब्लैक होल एक एक कर ग्रहों, तारों और पिंडो को निगल रहा है. ब्लैक होल हमारी आकाश गंगा के केंद्र में है. वैज्ञानिकों के मुताबिक ब्लैक होल सूर्य से चार लाख गुना बड़ा है.
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    ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ लिसेस्टर के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि यह ब्लैक होल हर दिन ब्रह्मांड में तैरती चीजों को निगलता जा रहा है. ब्लैक होल को सैजिटेरियस-A (धनु-ए) नाम दिया गया है. डॉक्टर कास्टीटिस जुबोवास के मुताबिक धनु-ए अपने सामने आने वाले गैस और धूल से बने क्षुद्र ग्रहों को तोड़ कर निगल रहा है. इस दौरान एक्स-रे किरणें और इंफ्रारेड विकीरण भी दिखाई पड़ रहा है.
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    डॉक्टर जुबोवास और उनके साथियों कहते हैं कि ब्लैक होल आकार में सूर्य से 4,00,000 गुना बड़ा है. ब्रह्मांड में तैर रहे तारों के अवशेषों को भी धनु-ए निगलता जा रहा है.
    ब्लैक होल सोलर सिस्टम
    यह जानकारी सामने आने के बाद यह बहस फिर छिड़ गई है कि क्या ब्लैक होल सौर मंडल को नए सिरे से बनाते हैं. ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के माउंट स्ट्रोम्लो ऑब्जरवेट्री के मिशेल बैनिस्टर कहती हैं, "आकाश गंगा का केंद्र एक अत्यंत ऊर्जा वाला स्थान है. बहुत कम दायरे में गतिशील रहने वाले कुछ ग्रह वहां पर बन सकते हैं."
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    एक्स रे किरणें और इंफ्रारेड विकीरण से साबित होता है कि आकाश गंगा के केंद्र के पास क्षुद्र ग्रह, पुच्छल तारे और ग्रह हो सकते हैं. मिशेल यह संभावना जताती है कि ब्लैक होल के किनारों पर ग्रहों का निर्माण हो सकता है.
    ग्रहों की मौत
    ब्रिटिश यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का तर्क है कि ब्लैक होल के किनारे भले ही ग्रहों की उपत्ति के लिए अच्छा माहौल बनाते हों लेकिन इसी इलाके में ग्रहों की मृत्यु भी होती है. इस दौरान अपार ऊर्जा निकलती है. जब कोई बड़ा ग्रह ब्लैक होल में समाता है तो कुछ ही पलों के लिए इंफ्रारेड विकीरण और एक्स रे किरणें दिखाई पड़ती हैं.
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    ब्लैक होल और उसके किनारे बनते ग्रहों के संबंध में यह जानकारी नई है. मेलबर्न की स्विनबर्न यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर एलिस्टर ग्रैहम कहते हैं, "सभी नहीं, लेकिन अधिकतर आकाशगंगाओं के केंद्र में विशाल ब्लैक होल है." ग्रैहम भी इस बात से सहमत हैं कि धनु-ए की ताकत तारों को तोड़ रही है और हर दिन उससे एक्स रे किरणें और इंफ्रारेड विकीरण देखा जा रहा है.

    Monday 17 October 2016

    हनुमान जी के विवाह का रहस्य – The Secret of Lord Hanuman Marriage

    By: Secret On: 06:30
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  • हनुमान जी के विवाह का रहस्य – The Secret of Lord Hanuman Marriage:

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    दोस्तों, जय श्री राम। संकट मोचन हनुमान जी के ब्रह्मचारी रूप से तो हम सब परिचित हैं, उन्हें बाल ब्रम्हचारी भी कहा जाता है। लेकिन क्या अपने कभी सुना है की हनुमान जी का विवाह भी हुआ था, और उनका उनकी पत्नी के साथ एक मंदिर भी है, जिसके दर्शन के लिए दूर दूर से लोग आते हैं?
    कहा जाता है कि हनुमान जी के उनकी पत्नी के साथ दर्शन करने के बाद घर मे चल रहे पति पत्नी के बीच के सारे तनाव खत्म हो जाते हैं। आन्ध्र प्रदेश के खम्मम जिले में बना हनुमान जी का यह मंदिर काफी मायनों में ख़ास है। ख़ास इसलिए की यहाँ हनुमान जी अपने ब्रम्हचारी रूप में नहीं बल्कि गृहस्थ रूप में अपनी पत्नी सुवर्चला के साथ विराजमान है। हनुमान जी के सभी भक्त यही मानते आये हैं की वे बाल ब्रह्मचारी थे.
    और बाल्मीकि, कम्भ, सहित किसी भी रामायण और रामचरित मानस में बालाजी के इसी रूप का वर्णन मिलता है, लेकिन पराशर संहिता में हनुमान जी के विवाह का उल्लेख है।
    इसका सबूत है, आंध्र प्रदेश के खम्मम ज़िले में बना एक खास मंदिर जो प्रमाण है हनुमान जी की शादी का।
    ये मंदिर याद दिलाता है रामदूत के उस चरित्र का जब उन्हें विवाह के बंधन में बंधना पड़ा था, लेकिन इसका ये अर्थ नहीं कि भगवान हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी नहीं थे।
    पवनपुत्र का विवाह भी हुआ था और वो बाल ब्रह्मचारी भी थे, कुछ विशेष परिस्थियों के कारण ही बजरंगबली को सुवर्चला के साथ विवाह बंधन मे बंधना पड़ा। हनुमान जी ने भगवान सूर्य को अपना गुरु बनाया था। हनुमान, सूर्य से अपनी शिक्षा ग्रहण कर रहे थे, सूर्य कहीं रुक नहीं सकते थे इसलिए हनुमान जी को सारा दिन भगवान सूर्य के रथ के साथ साथ उड़ना पड़ता और भगवान सूर्य उन्हें तरह- तरह की विद्याओं का ज्ञान देते।
    लेकिन हनुमान जी को ज्ञान देते समय सूर्य के सामने एक दिन धर्मसंकट खड़ा हो गया, कुल 9 तरह की विद्याओं में से हनुमान जी को उनके गुरु ने पांच तरह की विद्या तो सिखा दी लेकिन बची चार तरह की विद्या और ज्ञान ऐसे थे जो केवल किसी विवाहित को ही सिखाए जा सकते थे।
    हनुमान जी पूरी शिक्षा लेने का प्रण कर चुके थे और इससे कम पर वो मानने को राजी नहीं थे। इधर भगवान सूर्य के सामने संकट था कि वो धर्म के अनुशासन के कारण किसी अविवाहित को कुछ विशेष विद्याएं नहीं सिखला सकते थे। ऐसी स्थिति में सूर्य देव ने हनुमान जी को विवाह की सलाह दी और अपने प्रण को पूरा करने के लिए हनुमान जी भी विवाह सूत्र में बंधकर शिक्षा ग्रहण करने को तैयार हो गए।
    लेकिन हनुमान जी के लिए दुल्हन कौन हो और कहा से वह मिलेगी इसे लेकर सभी चिंतित थे, ऐसे में सूर्यदेव ने अपने शिष्य हनुमान जी को राह दिखलाई। सूर्य देव ने अपनी परम तपस्वी और तेजस्वी पुत्री सुवर्चला को हनुमान जी के साथ शादी के लिए तैयार कर लिया।
    इसके बाद हनुमान जी ने अपनी शिक्षा पूर्ण की और सुवर्चला सदा के लिए अपनी तपस्या में रत हो गई।
    इस तरह हनुमान जी भले ही शादी के बंधन में बांध गए हो लेकिन शाररिक रूप से वे आज भी एक ब्रह्मचारी ही हैं।
    पराशर संहिता में तो लिखा गया है की खुद सूर्यदेव ने इस शादी पर यह कहा की – यह शादी ब्रह्मांड के कल्याण के लिए ही हुई है और इससे हनुमान जी का ब्रह्मचर्य प्रभावित नहीं हुआ।
    जय सियाराम।

    विक्रम बेताल – कहानी 8 – Vikram Betaal Hindi Kahaani – Story

    By: Secret On: 05:30
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  • विक्रम बेताल – कहानी 8 – Vikram Betaal Hindi Kahaani – Story

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    अंग देश के एक गाँव मे एक बहुत ही धनी ब्राह्मण रहता था। उसके तीन पुत्र थे। एक बार धनी ब्राह्मण ने एक यज्ञ करना चाहा। उसके लिए उसे एक कछुए की जरूरत हुई। उसने तीनों भाइयों को कछुआ लाने को कहा। वे तीनों समुद्र पर पहुँचे। वहाँ उन्हें एक कछुआ मिल गया। बड़े ने कहा, ‘‘मैं भोजनचंग हूँ, इसलिए कछुए को नहीं छुऊँगा।’’ मझला बोला, ‘‘मैं नारीचंग हूँ, मैं नहीं ले जाऊँगा।’’ सबसे छोटा बोल, ‘‘मैं शैयाचंग हूँ, सो मैं नहीं ले जाऊँगा।’’
    वे तीनों इस बहस में पड़ गये कि उनमें कौन बढ़कर है। जब वे आपस में इसका फैसला न कर सके तो राजा के पास पहुँचे। राजा ने कहा, ‘‘आप लोग रुकें। मैं तीनों की अलग-अलग जाँच करूँगा।’’

    इसके बाद राजा ने बढ़िया भोजन तैयार कराया और तीनों खाने बैठे। सबसे बड़े ने कहा, ‘‘मैं खाना नहीं खाऊँगा। इसमें मुर्दे की गन्ध आती है।’’ वह उठकर चला। राजा ने पता लगाया तो मालूम हुआ कि वह भोजन श्मशान के पास के खेत का बना था। राजा ने कहा, ‘‘तुम सचमुच भोजनचंग हो, तुम्हें भोजन की पहचान है।’’
    रात के समय राजा ने एक सुन्दर वेश्या को मझले भाई के पास भेजा। ज्योंही वह वहाँ पहुँची कि मझले भाई ने कहा, ‘‘इसे हटाओ यहाँ से। इसके शरीर से बकरी का दूध की गंध आती है।’’
    राजा ने यह सुनकर पता लगाया तो मालूम हुआ कि वह वेश्या बचपन में बकरी के दूध पर पली थी। राजा बड़ा खुश हुआ और बोला, ‘‘तुम सचमुच नारीचंग हो।’’
    इसके बाद उसने तीसरे भाई को सोने के लिए सात गद्दों का पलंग दिया। जैसे ही वह उस पर लेटा कि एकदम चीखकर उठ बैठा। लोगों ने देखा, उसकी पीठ पर एक लाल रेखा खींची थी। राजा को ख़बर मिली तो उसने बिछौने को दिखवाया। सात गद्दों के नीचे उसमें एक बाल निकला। उसी से उसकी पीठ पर लाल लकीर हो गयी थीं।
    राजा को बड़ा अचरज हुआ उसने तीनों को एक-एक लाख अशर्फियाँ दीं। अब वे तीनों कछुए को ले जाना भूल गये, वहीं आनन्द से रहने लगे।
    इतना कहकर बेताल बोला, ‘‘हे राजा! तुम बताओ, उन तीनों में से बढ़कर कौन था?’’
    राजा ने कहा, ‘‘मेरे विचार से सबसे बढ़कर शैयाचंग था, क्योंकि उसकी पीठ पर बाल का निशान दिखाई दिया और ढूँढ़ने पर बिस्तर में बाल पाया भी गया। बाकी दो के बारे में तो यह कहा जा सकता है कि उन्होंने किसी से पूछकर जान लिया होगा।’’
    इतना सुनते ही बेताल फिर पेड़ पर जा लटका

    Sunday 16 October 2016

    ज्वालादेवी मंदिर का रहस्य – Jwala Devi Temple Story in Hindi

    By: Secret On: 11:24
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  • ज्वालादेवी मंदिर का रहस्य – Jwala Devi Temple Story in Hindi:

    ज्वालादेवी मंदिर का रहस्य
             दोस्तों, हिमाचल प्रदेश में देश के करोड़ों हिंदुओं की आस्था के केंंद्र ज्वालादेवी मंदिर (Jwala Devi Temple) में जल रही प्राकृतिक ज्योति का रहस्य वैज्ञानिक इतने सालों बाद भी नहीं खोज पाए हैं। पिछले अनेक सालों से ऑयल एंड नेचुरल गैस कारपोरेशन लिमिटेड (ONGC) के वैज्ञानिकों ने क्षेत्र के भूगर्भ का कई किलोमीटर तक चपा-चपा छान मारा पर कहीं भी गैस और तेल के अंश नहीं मिले। अब ओएनजीसी फिर से एक बार इस रहस्य को जाने के लिए कार्य शुरू कर रहा है।

    भूगर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की होती है यहां पूजा
     यह मंदिर माता के अन्य मंदिरों की तुलना में अनोखा है क्योंकि यहां पर किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की पूजा होती है। यहां पर पृथ्वी के गर्भ से 9 अलग-अलग जगह से ज्वालाएं निकल रही हैं जिसके ऊपर ही मंदिर बना दिया गया है। इन नौ ज्योतियां को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यावासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का प्राथमिक निमार्ण राजा भूमि चंद के करवाया था। बाद में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का पूर्ण निमार्ण कराया।
    यहां गिरी थी देवी सती की जीभ ज्वालादेवी मंदिर हिमाचल के कांगड़ा जिला में स्थित है। ज्वालादेवी मंदिर को ज्योता वाली का मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवो को जाता है। इसकी गिनती माता के प्रमुख शक्ति पीठों में होती है। मान्यता है यहां देवी सती की जीभ गिरी थी।
    अकबर ने ज्योति को बुझाने के लिए खुदवा दी थी नहर – इस जगह के बारे में एक कथा अकबर और माता के परम भक्त ध्यानु भगत से जुडी है। हिमाचल के नादौन ग्राम निवासी माता का एक सेवक धयानू भक्त एक हजार यात्रियों सहित माता के दर्शन के लिए जा रहा था। इतना बड़ा दल देखकर बादशाह के सिपाहियों ने चांदनी चौक दिल्ली मे उन्हें रोक लिया और अकबर के दरबार में ले जाकर ध्यानु भक्त को पेश किया।
    बादशाह ने पूछा तुम इतने आदमियों को साथ लेकर कहां जा रहे हो। ध्यानू ने हाथ जोड़ कर उत्तर दिया मैं ज्वालामाई के दर्शन के लिए जा रहा हूं मेरे साथ जो लोग हैं, वह भी माता जी के भक्त हैं, और यात्रा पर जा रहे हैं।
    अकबर ने सुनकर कहा यह ज्वालामाई कौन है ? और वहां जाने से क्या होगा? ध्यानू भक्त ने उत्तर दिया महाराज ज्वालामाई संसार का पालन करने वाली माता है। वे भक्तों के सच्चे ह्रदय से की गई प्राथनाएं स्वीकार करती हैं। उनका प्रताप ऐसा है उनके स्थान पर बिना तेल-बत्ती के ज्योति जलती रहती है। हम लोग प्रतिवर्ष उनके दर्शन जाते हैं।
    अकबर ने कहा अगर तुम्हारी बंदगी पाक है तो देवी माता जरुर तुम्हारी इज्जत रखेगी। अगर वह तुम जैसे भक्तों का ख्याल न रखे तो फिर तुम्हारी इबादत का क्या फायदा? या तो वह देवी ही यकीन के काबिल नहीं, या फिर तुम्हारी इबादत झूठी है। इम्तहान के लिए हम तुम्हारे घोड़े की गर्दन अलग कर देते है, तुम अपनी देवी से कहकर उसे दोबारा जिन्दा करवा लेना। इस प्रकार घोड़े की गर्दन काट दी गई।
    ध्यानू भक्त ने कोई उपाए न देखकर बादशाह से एक माह की अवधि तक घोड़े के सिर व धड़ को सुरक्षित रखने की प्रार्थना की। अकबर ने ध्यानू भक्त की बात मान ली और उसे यात्रा करने की अनुमति भी मिल गई।
    बादशाह से विदा होकर ध्यानू भक्त अपने साथियों सहित माता के दरबार मे जा उपस्थित हुआ। स्नान-पूजन आदि करने के बाद रात भर जागरण किया। प्रात:काल आरती के समय हाथ जोड़ कर ध्यानू ने प्राथना की कि मातेश्वरी आप अन्तर्यामी हैं। बादशाह मेरी भक्ती की परीक्षा ले रहा है, मेरी लाज रखना, मेरे घोड़े को अपनी कृपा व शक्ति से जीवित कर देना। कहते है की अपने भक्त की लाज रखते हुए माँ ने घोड़े को फिर से ज़िंदा कर दिया।
    यह सब कुछ देखकर बादशाह अकबर हैरान हो गया | उसने अपनी सेना बुलाई और खुद मंदिर की तरफ चल पड़ा | वहाँ पहुँच कर फिर उसके मन में शंका हुई | उसने अपनी सेना से मंदिर पूरे मंदिर में पानी डलवाया, लेकिन माता की ज्वाला बुझी नहीं।| तब जाकर उसे माँ की महिमा का यकीन हुआ और उसने सवा मन (पचास किलो) सोने का छतर चढ़ाया | लेकिन माता ने वह छतर कबूल नहीं किया और वह छतर गिर कर किसी अन्य पदार्थ में परिवर्तित हो गया |
    आप आज भी वह अकबर का छतर ज्वाला देवी के मंदिर में देख सकते हैं।
    गोरख डिब्बी का चमत्कारिक स्थान मंदिर का मुख्य द्वार काफी सुंदर एव भव्य है। मंदिर में प्रवेश के साथ ही बाये हाथ पर अकबर नहर है। इस नहर को अकबर ने बनवाया था। उसने मंदिर में प्रज्‍जवलित ज्योतियों को बुझाने के लिए यह नहर बनवाया था। उसके आगे मंदिर का गर्भ द्वार है जिसके अंदर माता ज्योति के रूम में विराजमान है। थोडा ऊपर की ओर जाने पर गोरखनाथ का मंदिर है जिसे गोरख डिब्बी के नाम से जाना जाता है। कहते है की यहाँ गुरु गोरखनाथ जी पधारे थे और कई चमत्कार दिखाए थे। यहाँ पर आज भी एक पानी का कुण्ड है जो देख्नने मे खौलता हुआ लगता है पर वास्तव मे पानी ठंडा है। ज्वालाजी के पास ही में 4.5 कि.मी. की दूरी पर नगिनी माता का मंदिर है। इस मंदिर में जुलाई और अगस्त के माह में मेले का आयोजन किया जाता है। 5 कि.मी. कि दूरी पर रघुनाथ जी का मंदिर है जो राम, लक्ष्मण और सीता को समर्पि है। इस मंदिर का निर्माण पांडवो द्वारा कराया गया था। ज्वालामुखी मंदिर की चोटी पर सोने की परत चढी हुई है।
    बादशाह अकबर के बाद ONGC जुटी है रहस्य जानने में भारत के आजाद होने के बाद इस मंदिर में ज्वाला निकलने के रहस्य को जाने के लिए हमारे देश के वैज्ञानिकों ने प्रयास शुरू किए। 1959 से ऑयल एंड नेचुरल गैस कारपोरेशन लिमिटेड ज्वालादेवी व इसके आसपास के क्षेत्रों में कुएं खोदकर इस कार्य में जुटी हुई है। ज्वालादेवी के टेढ़ा मंदिर में 1959 में पहली बार कुआं खोदा गया था। उसके बाद 1965 में सुराणी में, बग्गी, बंडोल, घीणा, लंज, सुराणी व कालीधार के जंगलों में खुदाई की गई थी।
    चमत्कारिक है ज्वाला  पृत्वी के गर्भ से इस तरह की ज्वाला निकला वैसे कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि पृथ्वी की अंदरूनी हलचल के कारण पूरी दुनिया में कहीं ज्वाला कहीं गरम पानी निकलता रहता है। कहीं-कहीं तो बाकायदा पावर हाऊस भी बनाए गए हैं, जिनसे बिजली उत्पादित की जाती है। लेकिन यहाँ पर ज्वाला प्राकर्तिक न होकर चमत्कारिक है क्योंकि अंग्रेजी काल में अंग्रेजों ने अपनी तरफ से पूरा जोर लगा दिया कि जमीन के अन्दर से निकलती ‘ऊर्जा’ का इस्तेमाल किया जाए। लेकिन लाख कोशिश करने पर भी वे इस ‘ऊर्जा’ को नहीं ढूंढ पाए। वही अकबर लाख कोशिशों के बाद भी इसे बुझा न पाए। यह दोनों बाते यह सिद्ध करती है की यहां ज्वाला चमत्कारी रूप से ही निकलती है ना कि प्राकृतिक रूप से, नहीं तो आज यहां मंदिर की जगह मशीनें लगी होतीं और बिजली का उत्पादन होता।
    जिम्मेवारी फ्रंटियर बेसिन देहरादून को ओएनजीसी ने खुदाई के कार्य की जिम्मेवारी फ्रंटियर बेसिन देहरादून को सौंपी है। इस मर्तबा कंपनी जिन ड्रिलिंग मशीनों को असेंबल कर रही है, वह भूमि के नीचे 8000 मीटर तक खुदाई करने में सक्षम है। ओएनजीसी के ड्रिलिंग इंचार्ज सतविंद्र सिंह ने बताया कि यहां पर तेल के स्त्रोत के संकेत मिलते हैं तो क्षेत्र की तस्वीर बदल जाएगी।
    क्या कहते हैं कंपनी के महानिदेशक फ्रंटियर बेसिन देहरादून के महानिदेशक डा. डीके श्रीवास्तव ने बताया कि इसके लिए प्रदेश सरकार ने ड्रिलिंग को 2 वर्षों की अनुमति प्रदान की है जिससे प्रदेश में तेल व गैस की खोज के प्रयासों में और तेजी आएगी। उन्होंने बताया कि कंपनी द्वारा हाल ही में ज्वालामुखी के पास सुरानी गांव में ड्रिलिंग की गई थी, जिसमें तेल व गैस के भंडार होने के आसार मिले हैं व कंपनी जल्द ही आधुनिक उपकरणों के साथ एक बार फिर यहां संभावनाएं तलाशने पहुंच सकती है।

    मृत्य के बाद का अनुभव – Experience After Death

    By: Secret On: 04:30
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  • मृत्य के बाद का अनुभव – Experience After Death

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    दोस्तों, जिसने भी इस धरती पर किसी भी रूप में जन्म लिया है, उसे एक न एक दिन इस शरीर को छोड़ कर मृत्यु को गले लगाना ही है, यह इस संसार का शाश्वत सत्य है। हम सभी कभी न कभी यह जरूर सोचते होंगे की आखिर मृत्यु के बाद होता क्या है। खैर, अभी तक इस प्रश्न का उत्तर किसी को नहीं मिला है, हाँ यह जरूर है की पूरी दुनिया के वैज्ञानिक अपने अपने स्तर पर इसका जवाब खोजने में लगे हुए हैं, और थोड़ी सी ही सही लेकिन कुछ जानकारी जरूर हमें प्राप्त हुयी है।
    एक सबसे बड़े medical studies में वैज्ञानिकों ने मौत से नजदीकी अनुभव (Near-death Experiences) और शरीर के बाहर का अनुभव (Out-of-body Experiences) होने की खोज की है, जिसमे उन्होंने साबित किया हैं की इन्सान के मृत्यु के बाद उसका दिमाग पूरी तरह बंद हो जाता है लेकिन तब भी उसके अन्दर की चेतना (Consciousness) और जागृतता (Awareness) जारी रहती है।  वैज्ञानिकों ने 4 साल तक 2000 जितने लोगो की जांच की है और उन्होंने देखा की इनमे से 40% लोग ऐसे थे जो मर चुके थे और थोड़े समय के बाद इनका दिल फिर से धडकने लगा था। इस जीवन और मृत्यु के समय के दौरान लोगों ने किसी तरह की जागृतता (Awareness) अनुभव करने का वर्णन किया है।
    कई लोगों ने मृत्यु के बाद अपने शरीर को पूरी तरह से छोड़ने के बाद खुद के ही शरीर को Room के किसी एक corner से देख सकने का का अनुभव किया। उन्होंने अनुभव किया की वे room में उनके शरीर से थोड़ी ऊंचाई पर स्थित हैं और doctors उनका ईलाज कर रहे हैं। वे लोग अपने आप को देख सकते थे। इलाज के वक्त कुछ लोगों ने 3-5 मिनट तक मर चुके होने के बावजूद उस वक्त के दौरान उस room में होती हुई प्रत्येक activities का वर्णन किया। उसमें उन्होंने Nursing staffs के लोगों के काम का वर्णन किया और machines की आवाजें सुनी। ज्यादातर मामले में दिल धडकना बंद हो जाने के बाद 20-30 सेकंड के अंदर दिमाग काम करना बंद कर देता है, लेकिन इन मामलों में दिल धडकना बंद हो जाने के 3-5 मिनिट तक वहाँ पर शरीर में जागृतता (Awareness) मौजूद थी।
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    कुछ लोगों ने असामान्य रूप से शांति की भावना का अनुभव किया तो कुछ लोगों ने समय बहुत धीरे से चलने का या बहुत ही तेजी से चलने का अनुभव किया। कुछ लोगों ने सूरज के जैसी सुनहरे रंग की बहुत चमकदार रोशनी को देखने की बात कही तो कुछ लोगों ने किसी अनजान डर का अनुभव किया और कुछ लोगों ने खुद को गहरे पानी में डूबने का या गहराई में घसीटे जाने का अनुभव किया। कुछ लोगों को चमकदार रौशनी की tunnel दिखती हैं जिसमे वे light की ओर तेजी से जाने लगते हैं।
    69% मामलों में लोग अपने आसपास एक असामान्य प्यार की मौजूदगी होने का अनुभव करते हैं, वहाँ पर उन्हें कुछ इन्सान के आकार के रोशनी से भरपूर कुछ प्राणी दिखते हैं, कईयों का मानना है की यह प्राणी उनके मरे हुए प्रियजन थे। कुछ लोग ऐसी जगह पर पहुँच जाते हैं जहाँ पर उन्हें बहुत सारा प्यार और ख़ुशी महसूस होती है। उन्हें पृथ्वी के जीवन से यहाँ का जीवन ज्यादा असली लगता है। उनको लगता है की मानव शरीर वाला जीवन एक सपना था लेकिन यह सच्चाई है। कुछ लोग भगवान से मिलकर वापस आने की बात करते हैं। कुछ लोगो का कहना है की उनको दिखनेवाले रोशनीवाले प्राणी उनसे कहा है की तुम्हारा अभी यहाँ पर आने का वक़्त नहीं हुआ है, तुम्हे अभी बहुत काम करने बाकी है इसलिए तुम्हे वापस जाना पड़ेगा। कुछ लोग भविष्य की झलक देखने का दावा करते हैं तो कुछ लोग असीमित ज्ञान प्राप्त कर लेने का दावा करते हैं।
    वैसे वैज्ञानिक अभी इस विषय पर पूरी तरह से सही निष्कष तक नहीं पहुँच पाए हैं। कुछ वैज्ञानिकों का दावा हैं की ऐसे अनुभव लोगों के भ्रम भी हो सकते हैं या फिर दिमाग के अन्दर होती कोई chemical reactions का परिणाम हो सकते हैं, लेकिन मौत से नजदीकी अनुभव (Near-death Experiences) करने वाले लोगों ने जो देखा उस पर पूरा भरोसा रखते हैं। खैर, सच्चाई चाहे जो भी हो लेकिन science एक न एक दिन इस विषय पर से पर्दा जरुर उठाएगा।

    Tuesday 11 October 2016

    भारत को लूटनेवाले क्रूर, बर्बर विदेशी शासक – एक तथ्य

    By: Secret On: 17:00
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  • भारत को लूटनेवाले क्रूर, बर्बर विदेशी शासक – एक तथ्य



    हमारे देश भारत को कभी सोने की चिडिया कहा जाता था। कुछ दार्शनिक और विदेशी इतिहासकारोंने भारत में कभी गरीबी नहीं देखी थी। हम सब जानते है की मध्य युग में भारत सोने की चिड़िया कहलाता था। इसलिए हमारा देश शुरू से ही विदेशी आक्रांताओंके निशाने पर रहा। सन १८७ ईपू में मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद भारतीय इतिहास की राजनीतिक एकता बिखर गई।
    इस खंडित एकता के चलते देश के उत्तर-पश्चिमी मार्गोंसे कई विदेशी आक्रांताओंने आकर अनेक भागों में एक ओर जहां लूटपाट की, वहीं दूसरी ओर उन्होंने अपने-अपने राज्य स्थापित कर लिए। इन आक्रांताओं और लुटेरों में से कुछ तो महाक्रूर और बर्बर हत्यारे थे जिन्होंने भारतीय जनता को बेरहमी से कुचला।

    आओं जानते हैं ऐसे कुछ बर्बर लुटेरोंके बारे में . . .

    मुहम्मद बिन कासिम (Muhammad Bin Qasim)


    ७वीं सदी के बाद अफगानिस्तान और पाकिस्तान भारत के हाथ से जाता रहा। भारत में इस्लामिक शासन का विस्तार ७वीं शताब्दी के अंत में मोहम्मद बिन कासिम के सिन्ध पर आक्रमण और बाद के मुस्लिम शासकोंद्वारा हुआ। लगभग ७१२ में इराकी शासक अल हज्जाज के भतीजे एवं दामाद मुहम्मद बिन कासिम ने १७ वर्ष की अवस्था में सिन्ध और बूच पर के अभियान का सफल नेतृत्व किया।
    इस्लामिक खलीफाओंने सिन्ध फतह के लिए कई अभियान चलाए। १० हजार सैनिकोंका एक दल ऊंट-घोड़ोंके साथ सिन्ध पर आक्रमण करने के लिए भेजा गया। सिन्ध पर ईस्वी सन ६३८ से ७११ ई. तक के ७४ वर्षोंके काल में ९ खलीफाओंने १५ बार आक्रमण किया। १५वें आक्रमण का नेतृत्व मोहम्मद बिन कासिम ने किया।
    मुहम्मद बिन कासिम अत्यंत क्रूर यौद्धा था। सिंध के दीवान गुन्दुमल की बेटी ने सर कटवाना स्वीकर किया, पर मीर कासिम की पत्नी बनना नहीं। इसी तरह वहां के राजा दाहिर (६७९ईस्वी में राजा बने) और उनकी पत्नियों और पुत्रियोंने भी अपनी मातृभूमि और अस्मिता की रक्षा के लिए अपना बलिदान दे दिया। सिंध देश के सभी राजाओंकी कहानियां बहुत ही मार्मिक और दुखदायी हैं। आज सिंध देश पाकिस्तान का एक प्रांत बनकर रह गया है। राजा दाहिर अकेले ही अरब और ईरान के दरिंदोंसे लड़ते रहे। उनका साथ किसी ने नहीं दिया बल्कि कुछ लोगोंने उनके साथ गद्दारी की।

    महमूद गज़नवी (Mahmud Ghaznavi)


    अरबोंके बाद तुर्कोंने भारत पर आक्रमण किया। अलप्तगीन नामक एक तुर्क सरदार ने गजनी में तुर्क साम्राज्य की स्थापना की। ९७७ ई. में अलप्तगीन के दामाद सुबुक्तगीन ने गजनी पर शासन किया। सबुक्तगीन ने मरने से पहले कई लड़ाइयां लड़ते हुए अपने राज्य की सीमाएं अफगानिस्तान, खुरासान, बल्ख एवं पश्चिमोत्तर भारत तक फैला ली थीं। सुबुक्तगीन की मुत्यु के बाद उसका पुत्र महमूद गजनवी गजनी की गद्दी पर बैठा। महमूद गजनवी ने बगदाद के खलीफा के आदेशानुसार भारत के अन्य हिस्सोंपर आक्रमण करना शुरू किए।
    उसने भारत पर १००१ से १०२६ ई. के बीच १७ बार आक्रमण किए। उसने प्रत्येक वर्ष भारत के अन्य हिस्सोंपर आक्रमण करने की प्रतिज्ञा की। अपने १३वें अभियान में गजनवी ने बुंदेलखंड, किरात तथा लोहकोट आदि को जीत लिया। १४वां आक्रमण ग्वालियर तथा कालिंजर पर किया। अपने १५वें आक्रमण में उसने लोदोर्ग (जैसलमेर), चिकलोदर (गुजरात) तथा अन्हिलवाड (गुजरात) पर आक्रमण कर वहां खूब लूटपाट की।
    माना जाता है कि महमूद गजनवी ने अपना १६वां आक्रमण (१०२५ ई.) सोमनाथ पर किया। उसने वहां के प्रसिद्ध मंदिरोंको तोड़ा और वहां अपार धन प्राप्त किया। इस मंदिर को लूटते समय महमूद ने लगभग ५०,००० ब्राह्मणों एवं हिन्दुओंका कत्ल कर दिया। इसकी चर्चा पूरे देश में आग की तरह फैल गई। १७वां आक्रमण उसने सिन्ध और मुल्तान के तटवर्ती क्षेत्रोंके जाटोंके पर किया। इसमें जाट पराजित हुए।

    मुहम्मद गोरी (Muhammad Ghori)


    मुहम्मद बिन कासिम के बाद महमूद गजनवी और उसके बाद मुहम्मद गोरी ने भारत पर आक्रमण कर अंधाधुंध कत्लेआम और लूटपाट मचाई। इसका पूरा नाम शिहाबुद्दीन उर्फ मुईजुद्दीन मुहम्मद गोरी था। भारत में तुर्क साम्राज्य की स्थापना करने का श्रेय मुहम्मद गोरी को ही जाता है। गोरी गजनी और हेरात के मध्य स्थित छोटे से पहाड़ी प्रदेश गोर का शासक था।
    उसने पहला आक्रमण ११७५ ईस्वी में मुल्तान पर किया, दूसरा आक्रमण ११७८ ईस्वी में गुजरात पर किया। इसके बाद ११७९-८६ ईस्वी के बीच उसने पंजाब पर फतह हासिल की। इसके बाद उसने ११७९ ईस्वी में पेशावर तथा ११८५ ईस्वी में स्यालकोट अपने कब्जे में ले लिया। ११९१ ईस्वी में उसका युद्ध पृथ्वीराज चौहान से हुआ। इस युद्ध में मुहम्मद गोरी को बुरी तरह पराजित होना पड़ा। इस युद्ध में गौरी को बंधक बना लिया गया, किंतु पृथ्वीराज चौहान ने उसे छोड दिया। इसे तराइन का प्रथम युद्ध कहा जाता था।
    इसके बाद मुहम्मद गोरी ने अधिक ताकत के साथ पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण कर दिया। तराइन का यह द्वितीय युद्ध ११९२ ईस्वी में हुआ था। अबकी बार इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान हार गए और उनको बंधक बना लिया गया। ऐसा माना जाता है कि बाद में उन्हें गजनी ले जाकर मार दिया गया। गोरी भारत में गुलामवंश का शासन स्थापित करके पुन: अपने राज्य लौट गया।

    चंगेज खान (Changez khan)


    (मंगोलियाई नाम चिंगिस खान, सन ११६२ से १८ अगस्त, १२२७)। चंगेज खान ने मुस्लिम साम्राज्य को लगभग नष्ट ही कर दिया था। वह एक मंगोल शासक था। वह बौद्ध धर्म का अनुयायी था। हलाकू खान भी बौद्ध था। चंगेज अपनी संगठन शक्ति, बर्बरता तथा साम्राज्य विस्तार के लिए कुख्यात रहा। भारत सहित संपूर्ण रशिया, एशिया और अरब देश चंगेज खान के नाम से ही कांपते थे।
    चंगेज खान का जन्म ११६२ के आसपास आधुनिक मंगोलिया के उत्तरी भाग में ओनोन नदी के निकट हुआ था। उसका वास्तविक या प्रारंभिक नाम तेमुजिन (या तेमूचिन) था। उसके पिता का नाम येसूजेई था जो कियात कबीले का मुखिया था।
    चंगेज खान ने अपने अभियान चलाकर ईरान, गजनी सहित पश्‍चिम भारत के काबुल, कन्धार, पेशावर सहित उसने कश्मीर पर भी अधिकार कर लिया। इस समय चंगेज खान ने सिंधु नदी को पार कर उत्तरी भारत और असम के रास्ते मंगोलिया वापस लौटने की सोची। किंतु वह ऐसा नहीं कर पाया। इस तरह उत्तर भारत एक संभावित लूटपाट और वीभत्स उत्पात से बच गया।
    एक नए अनुसंधान के अनुसार इस क्रूर मंगोल योद्धा ने अपने हमलों में इस कदर लूटपाट की और खूनखराबा किया कि एशिया में चीन, अफगानिस्तान सहित उजबेकिस्तान, तिब्बत और बर्मा आदि देशोंकी बहुत बड़ी आबादी का सफाया हो गया था। मुसलमानोंके लिए तो चंगेज खान और हलाकू खान अल्लाह का कहर था।

    तैमूर (Timur Lang)


    तैमूल लंग भी चंगेज खान जैसा शासक बनना चाहता था। सन १३६९ ईस्व में समरकंद का शासक बना। उसके बाद उसने अपनी विजय और क्रूरता की यात्रा शुरू की। मध्य एशिया के मंगोल लोग इस बीच में मुसलमान हो चुके थे और तैमूर खुद भी मुसलमान था।
    क्रूरता के मामले में वह चंगेज खान की तरह ही था। कहते हैं, एक जगह उसने दो हजार जिन्दा आदमियोंकी एक मीनार बनवाई और उन्हें ईंट और गारे में चुनवा दिया।
    जब तैमूर ने भारत पर आक्रमण किया तब उत्तर भारत में तुगलक वंश का राज था। १३९९ में तैमूर लंगद्वारा देहली पर आक्रमण के साथ ही तुगलक साम्राज्य का अंत माना जाना चाहिए। तैमूर मंगोलोंकी फौज लेकर आया तो उसका कोई कड़ा मुकाबला नहीं हुआ और वह कत्लेआम करता हुआ मजे के साथ आगे बढ़ता गया।
    तैमूर के आक्रमण के समय वक्त हिन्दू और मुसलमान दोनोंने मिलकर जौहर की राजपूती रस्म अदा की थी, यानी युद्ध में लड़ते-लड़ते मर जाने के लिए बाहर निकल पड़े थे। देहली में वह १५ दिन रहा और उसने इस बड़े शहर को कसाईखाना बना दिया। बाद में कश्मीर को लूटता हुआ वह समरकंद वापस लौट गया। तैमूर के जाने के बाद देहली मुर्दोंका शहर रह गया था।

    बाबर (Babar)


    मुगलवंश का संस्थापक बाबर एक लूटेरा था। उसने उत्तर भारत में कई लूट को अंजाम दिया। मध्य एशिया के समरकंद राज्य की एक बहुत छोटी सी जागीर फरगना (वर्तमान खोकन्द) में १४८३ ई. में बाबर का जन्म हुआ था। उसका पिता उमर शेख मिर्जा, तैमूरशाह तथा माता कुनलुक निगार खानम मंगोलोंकी वंशज थी।
    बाबर ने चगताई तुर्की भाषा में अपनी आत्मकथा ‘तुजुक ए बाबरी’ लिखी इसे इतिहास में बाबरनामा भी कहा जाता है। बाबर का टकराव देहली के शासक इब्राहिम लोदी से हुआ। बाबर के जीवन का सबसे बड़ा टकराव मेवाड़ के राणा सांगा के साथ था। बाबरनामा में इसका विस्तृत वर्णन है। संघर्ष में १९२७ ई. में खन्वाह के युद्ध में, अन्त में उसे सफलता मिली।
    बाबर ने अपने विजय पत्र में अपने को मूर्तियोंकी नींव का खण्डन करनेवाला बताया। इस भयंकर संघर्ष से बाबर को गाजी की उपाधि प्राप्त की। गाजी वह जो काफिरोंका कत्ल करे। बाबर ने अमानुषिक ढंग से तथा क्रूरतापूर्वक हिन्दुओंका नरसंहार ही नहीं किया, बल्कि अनेक हिन्दू मंदिरोंको भी नष्ट किया। बाबर की आज्ञा से मीर बाकी ने अयोध्या में राम जन्मभूमि पर निर्मित प्रसिद्ध मंदिर को नष्ट कर मस्जिद बनवाई, इसी भांति ग्वालियर के निकट उरवा में अनेक जैन मंदिरोंको नष्ट किया। उसने चंदेरी के प्राचित और ऐतिहासिक मंदिरोंको भी नष्ट करवा दिया था, जो आज बस खंडहर है।

    औरंगजेब (Aurangzeb)

    aurangazeb
    भारत में मुगल शासकों में सबसे क्रूर औरंगजेब था। मुहीउद्दीन मुहम्मद औरंगजेब का जन्म १६१८ ईस्वी में हुआ था। उसके पिता शाहजहां और माता का नाम मुमताज था।
    बाबर का बेटा नासिरुद्दीन मुहम्मद हुमायूं देहली के तख्त पर बैठा। हुमायूं के बाद जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर, अकबर के बाद नूरुद्दीन सलीम जहांगीर, जहांगीर के बाद शाहबउद्दीन मुहम्मद शाहजहां, शाहजहां के बाद मुहीउद्दीन मुहम्मद औरंगजेब ने तख्त संभाला।
    हिन्दुस्तान के इतिहास के सबसे जालिम शासक जिसने, अपने पिता को कैद किया, अपने सगे भाइयों और भतीजोंकी बेरहमी से ह्त्या की, गुरु तेग बहादुर का सर कटवाया, गुरु गोविन्द सिंह के बच्चोंको जिंदा दीवार में चुनवाया, जिसने सैकड़ों मंदिरोंको तुडवाया, जिसने अपनी प्रजा पर वे-इन्तहा जुल्म किए और अपने शासन क्षेत्र में गैर-मुस्लिमोंके लिए मुनादी करावा दी थी कि या तो आप इस्लाम कबूल कर ले या फिर मरने के लिए तैयार रहें। औरंगजेब एक तुर्क था। उसके काल में ही उत्तर भारत का तेजी से इस्लामिकरण हुआ। अधिकतर ब्राह्मणोंको या तो मुसलमान बनना पड़ा या उन्होंने प्रदेश को छोड़कर महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के गांवों में शरण ली।
    उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध इतिहासकार राधाकृष्ण बुंदेली अनुसार मुगल शासक औरंगजेब ने अपनी सेना को सन १६६९ में जारी अपने एक हुक्मनामे पर हिंदुओंके सभी मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया था। इस दौरान सोमनाथ मंदिर, वाराणसी का मंदिर, मथुरा का केशव राय मंदिर के अलावा कई हिंदू देवी-देवताओंके प्रसिद्ध मंदिर तोड़ दिए गए थे।
    औरंगजेब ने हिन्दू त्योहारोंको सार्वजनिक तौर पर मनाने पर प्रतिबन्ध लगाया और उसने हिन्दू मंदिरोंको तोड़ने का आदेश दिया. औरंगजेब दारुल हर्ब (काफिरोंका देश भारत) को दारुल इस्लाम (इस्लाम का देश) में परिवर्तित करने को अपना महत्त्वपूर्ण लक्ष्य बनाया था। १६६९ ई. में औरंगजेब ने बनारस के विश्वनाथ मंदिर एवं मथुरा के केशव राय मदिंर को तुड़वा दिया था।

    नादिर शाह (Nadir Shah)


    (जन्म ६ अगस्त, १६८८ मृत्यु १७ जून, १७४७) : नादिरशाह का पूरा नाम नादिर कोली बेग था। यह ईरान का शासक था। उसने भारत पर आक्रमण कर कई तरह की लूटपाट और कत्लेआम को अंजाम दिया। देहली की सत्ता पर आसीन उस वक्त के मुगल बादशाह मुहम्मदशाह को हराने के बाद उसने वहां से अपार सम्पत्ति अर्जित की, जिसमें कोहिनूर हीरा भी शामिल था।
    मुगल बादशाह मुहम्मदशाह और नादिरशाह के मध्य करनाल का युद्ध १७३९ ई. में लड़ा गया। काबुल पर कब्ज करने के बाद उसने देहली पर आक्रमण किया। करनाल में मुगल राजा मोहम्मद शाह और नादिर की सेना के बीच लड़ाई हुई। इसमें नादिर की सेना मुगलोंके मुकाबले छोटी थी पर अपने बारूदी अस्त्रोंके कारण फारसी सेना जीत गई।
    हरने के बाद देहली के सुल्तान मोहम्मद शाह ने संभवत मार्च १७३९ में देहली पहुंचने पर यह अफवाह फैली कि नादिर शाह मारा गया। इससे देहली में भगदड़ मच गई और फारसी सेना का कत्ल शुरू हो गया। नादिर को जब यह पता चला तो उसने इस का बदला लेने के लिए देहली पर आक्रमण कर दिया। उसने देहली में भयानक खूनखराबा किया और एक दिन में कोई हजारों लोगोंको मौत के घाट उतार दिया। इसके अलावा उसने शाह से भारी धनराशि भी लूट ली। मोहम्मद शाह ने सिंधु नदी के पश्चिम की सारी भूमि भी नादिरशाह को दान में दे दी। हीरे जवाहरात का एक जखीरा भी उसे भेंट किया गया जिसमें कोहिनूर (कूह-ए-नूर), दरियानूर और ताज-ए-मह नामक विख्यात हीरे शामिल थे।

    अहमद शाह अब्दाली (Ahmad Shah Abdali)


    अहमदशाह अब्दाली को अहमदशाह दुर्रानी भी कहते हैं। सन १७४७ में नादिर शाह की मौत के बाद वह अफगानिस्तान का शासक बना। अपने पिता की तरह अब्दाली ने भी भारत पर सन १७४८ से १७५८ तक कई बार आक्रमण किए और लूटपाट करके अपार धन संपत्ति को इकट्ठा किया।
    सन १७५७ में जनवरी के माह में देहली पर किया। उसने अब्दाली से बहुत ही शर्मनाक संधि की, जिसमें एक शर्त देहली को लूटने की अनुमति देना भी था। अहमदशाह एक माह तक देहली में ठहरकर लूटमार और कत्लेआम करता रहा। वहां की लूट में उसे करोड़ोंकी संपदा हाथ लगी।
    देहली लूटने के बाद अब्दाली का लालच बढ गया। वहां से उसने आगरा पर आक्रमण किया। आगरा के बाद बल्लभगढ़ पर आक्रमण किया। वल्लभगण में उसने जाटोंको हराया और बल्लभगढ़ और उसके आस-पास लूटा और व्यापक जन−संहार किया।
    उसके बाद अहमदशाह ने अपने पठान सैनिकोंको मथुरा लूटने और हिन्दुओंके सभी पवित्र स्थलोंको तोड़ने के साथ ही हिन्दुओंका व्यापक पैमाने पर कत्लेआम करने का आदेश दिया। उसने अपने सिपाहियोंसे कहा प्रत्येक हिन्दू के एक कटे सिर के बदले इनाम दिया जाएगा।

    मथुरा के इस जनसंहार के विस्तृत ब्योरा आज भी मथुरा के इतिहास में दर्ज है। अब्दालीद्वारा मथुरा और ब्रज की भीषण लूट बहुत ही क्रूर और बर्बर थी। यह लेख यहां से लिया गया है।

    नोटों के नंबरों पर छुपी जानकारी..

    By: Secret On: 07:30
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  • नोटों के नंबरों पर छुपी जानकारी..




    क्या आपने कभी अपनी जेब में रखे नोटों के नंबरों को ध्यान से देखा है। क्या आपने इन नंबरों पर छुपी जानकारी तलाशने की कोशिश की है। अगर नहीं तो आज हम आपको ऐसी जानकारी दे रहे हैं, जो शायद आपको चौंका सकती है। नोटों के नंबर पर आपकी या किसी सेलेब्रिटी की जन्मतिथि यानी बर्थ-डेट छुपी होती है। ऐसे नोट न सिर्फ आपके लिए खास हैं, बल्कि यही नोट आपको धनवान भी बना सकते हैं। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म ईबे पर ऐसे नोटों की बोली लगाई जाती है, जिसमें ऐसे खास नोट हजारों रुपए तक का बिकता है।
    क्या है इनकी खासियत
    स्पेशल सीरीज वाले नोट बहुत कम लोगों के पास होते हैं। इनमें ही ऐसे भी नोट होते हैं जिनमें डेट ऑफ बर्थ लिखी होती है। जरूरी नहीं ये नोट आसानी से मिल जाए, लेकिन इत्तेफाक से ये नोट हाथ आए तो इसे नजरअंदाज न करें। ऐसे नोट स्पेशल कैटेगरी में रखे जाते हैं। ईबे पर इनकी बोली लगती है। कीमत इस आधार पर तय होती है कि उस पर लिखा नंबर कितना खास है। हाल ही में ईबे पर एक बर्थ-डेट वाले नोट की नीलामी की जा रही है। यह नोट एम सारावनन के नाम पर है। उनकी बर्थ-डेट इस नोट के नंबरों से मेल खाती है। नीलामी में इसकी शुरुआती कीमत 5 डॉलर रखी गई है।
    क्यों खास है नीलामी वाला ये नोट
    इस नोट पर अंकित नंबर यानी डेट(23/04/78) बहुत खास है। इसी दिन प्रख्यात लेखक विलियम शेक्सपियर का जन्म हुआ था। यही नहीं, रेस्लिंग के शौकीन इसकी और ज्यादा कीमत अदा कर सकते हैं। क्योंकि, इस दिन प्रसिद्ध रेस्लर जॉन सीना का भी जन्मदिन है।
    पहले भी बिकते रहे हैं नोट
    ईबे पर ही कुछ समय पहले एक रुपए का एक नोट 7 लाख रुपए में बेचा गया था। 7 लाख रुपए में बिकने वाले एक रुपए के नोट की खासियत थी कि वह आजादी से पहले का एकमात्र नोट था। जिस पर उस समय के गवर्नर जे डब्ल्यू केली के साइन हैं। 80 साल पुराने इस नोट को ब्रिटिश इंडिया की ओर से 1935 में जारी किया गया था।
    नीक और एन्टीक नोट और क्वॉइंस पर कलेक्टर्स पैसे खर्च करते थे, लेकिन जैसे-जैसे इन पर मिलने वाला रिटर्न कई गुना बढ़ा है। लोग बतौर निवेशक भी इन नोट और क्वाइंस को खरीदने लगे हैं। भारत के मुकाबले विदेशी बाजार इस मामले में काफी आगे निकल चुके हैं। जॉर्जिया का सबसे पुराना और दुर्लभ बैंक नोट इस हफ्ते नीलाम होना है। इस नोट के लिए बिडिंग 30 हजार डॉलर से शुरू होगी। जानकार की मानें तो ये बैंक नोट 1 लाख डॉलर की रकम में नीलाम हो सकता है।
    1 करोड़ डॉलर में बिका एक डॉलर का सिक्का
    अगर सिक्कों और बैंक नोट के बाजार की बात करें तो 1794 के 1 डॉलर का एक सिक्का 2013 में 1 करोड़ डॉलर में बिका था। वहीं, 1891 के 1000 डॉलर का नोट अप्रैल 2013 में 25 लाख डॉलर का बिका था। भारतीय मुद्राओं की बात करें तो इनकी कीमत का अंदाज लगाना मुश्किल है लेकिन भारत की दुर्लभ करेंसी पर नजर रखने वाली वेबसाइट की माने तो 1970 के दौरान का सौ रुपए के एक नोट की कीमत 15 से 20 हजार रुपए हो सकती है। वहीं 1964 में छपे 1 रुपए के नोट की कीमत इससे भी कहीं ज्यादा आंकी गई है।

    Monday 10 October 2016

    भास्कराचार्य का गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त – न्युटन से पहले बताया था।

    By: Secret On: 07:00
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  • भास्कराचार्य का गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त – न्युटन से पहले बताया था।

    अक्सर हम सभी लोग पश्चिमी लोगों को ही वैज्ञान का श्रेय देते हैं। हम यह मानते हैं कि सबसे पहले जितने भी सिद्धांत आज विज्ञान में हैं वे सभी अंग्रेजों की देन है। पर, वास्तव में ऐसा नही हैं हमारे ऋषि-मुनियों ने बहुत ही पहले अध्ययन करके यह सभी सिद्धांत सफलतापुर्वक खोज लिये थे। आज हम आपको  गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे न्युटन से पहले भास्कराचार्य जी ने खोज लिया था, औऱ दुनिया के समाने रखा।

    खगोल विज्ञान को वेद का नेत्र कहा गया, क्योंकि सम्पूर्ण सृष्टियों में होने वाले व्यवहार का निर्धारण काल से होता है और काल का ज्ञान ग्रहीय गति से होता है। अत: प्राचीन काल से खगोल विज्ञान वेदांग का हिस्सा रहा है। ऋग्वेद, शतपथ ब्राहृण आदि ग्रथों में नक्षत्र, चान्द्रमास, सौरमास, मल मास, ऋतु परिवर्तन, उत्तरायन, दक्षिणायन, आकाशचक्र, सूर्य की महिमा, कल्प का माप आदि के संदर्भ में अनेक उद्धरण मिलते हैं। इस हेतु ऋषि प्रत्यक्ष अवलोकन करते थे। कहते हैं, ऋषि दीर्घतमस् सूर्य का अध्ययन करने में ही अंधे हुए, ऋषि गृत्स्मद ने चन्द्रमा के गर्भ पर होने वाले परिणामों के बारे में बताया। यजुर्वेद के 18वें अध्याय के चालीसवें मंत्र में यह बताया गया है कि सूर्य किरणों के कारण चन्द्रमा प्रकाशमान है। यंत्रों का उपयोग कर खगोल का निरीक्षण करने की पद्धति रही है। आर्यभट्ट के समय आज से 1500 से अधिक वर्ष पूर्व पाटलीपुत्र में वेधशाला (Observatory) थी, जिसका प्रयोग कर आर्यभट्ट ने कई निष्कर्ष निकाले।
    भास्कराचार्य सिद्धान्त शिरोमणि ग्रंथ के यंत्राध्याय प्रकरण में कहते हैं

    >>LIGO ने दूसरी बार गुरुत्वाकर्षण तरंग देखने मे सफ़लता पायी 

     “काल” के सूक्ष्म खण्डों का ज्ञान यंत्रों के बिना संभव नहीं है। इसलिए अब मैं यंत्रों के बारे में कहता हूं। वे नाड़ीवलय यंत्र, यष्टि यंत्र, घटी यंत्र, चक्र यंत्र, शंकु यंत्र, चाप, तुर्य, फलक आदि का वर्णन करते हैं।

    प्रत्यक्ष निरीक्षण एवं अचूक ग्रहीय व कालगणना का 6000 वर्ष से अधिक पुराना इतिहास :-
    श्री धर्मपाल ने “Indian Science and Technology in the Eighteenth Century” नामक पुस्तक लिखी है। उसमें प्रख्यात खगोलज्ञ जॉन प्लेफेयर का एक लेख “Remarks on the Astronomy of the brahmins” (1790 से प्रकाशित) दिया है। यह लेख सिद्ध करता है कि 6000 से अधिक वर्ष पूर्व में भारत में खगोल का ज्ञान था और यहां की गणनाएं दुनिया में प्रयुक्त होती थीं। उनके लेख का सार यह है कि सन् 1667 में एम.लॉ. लाबेट, जो स्याम के दूतावास में थे, जब वापस आये तो अपने साथ एक पंचांग लाए। दो पंचांग मिशनरियों ने भारत से भेजे, जो एक दक्षिण भारत से था और एक वाराणसी से। एक और पंचांग एम.डी. लिस्ले ने भेजा, जो दक्षिण भारत के नरसापुर से था। वह पंचांग जब उस समय के फ्रेंच गणितज्ञों की समझ में न आया तो उन्होंने वह जॉन प्लेफेयर के पास भेज दिया, जो उस समय रॉयल एस्ट्रोनोमर थे। उन्होंने जब एक और विचित्र बात प्लेफेयर के ध्यान में आई कि स्याम के पंचांग में दी गई यामोत्तर रेखा-दी मेरिडियन (आकाश में उच्च काल्पनिक बिन्दु से निकलती रेखा) 180-15″। पश्चिम में है और स्याम इस पर स्थित नहीं है। आश्चर्य कि यह बनारस के मेरिडियन से मिलती है। इसका अर्थ है कि स्याम के पंचांग का मूल हिन्दुस्तान है।

    दूसरी बात वह लिखता है, “एक आश्चर्य की बात यह है कि सभी पंचांग एक संवत् का उल्लेख करते हैं, जिसे वे कलियुग का प्रारंभ मानते हैं। और कलियुग के प्रारंभ के दिन जो नक्षत्रों की स्थिति थी, उसका वर्णन अपने पंचांग में करते हैं तथा वहीं से काल की गणना करते हैं। उस समय ग्रहों की क्या स्थिति थी, यह बताते हैं। तो यह बड़ी विचित्र बात लगती है। क्योंकि कलियुग का प्रारंभ यानि ईसा से 3000 वर्ष पुरानी बात।


    (1) ब्राहृणों ने गिनती की निर्दोष और अचूक पद्धति विकसित की होगी तथा ब्रह्मांड में दूर और पास के ग्रहों को आकर्षित करने के लिए कारणीभूत गुरुत्वाकर्षण के नियम से ब्राहृण परिचित थे। (2) ब्राहृणों ने आकाश का निरीक्षण वैज्ञानिक ढंग से किया।
    प्लेफेयर के निष्कर्ष

    अंत में प्लेफेयर दो बातें कहते हैं-
    (1) यह सिद्ध होता है कि भारत वर्ष में एस्ट्रोनॉमी ईसा से 3000 वर्ष पूर्व से थी तथा कलियुगारम्भ पर सूर्य और चन्द्र की वर्णित स्थिति वास्तविक निरीक्षण पर आधारित थी।
    (2) एक तटस्थ विदेशी का यह विश्लेषण हमें आगे कुछ करने की प्रेरणा देता है।
    श्री धर्मपाल ने अपनी इसी पुस्तक में लिखा है कि तत्कालीन बंगाल की ब्रिाटिश सेना के सेनापति, जो बाद में ब्रिटिश पार्लियामेंट के सदस्य बने, सर रॉबर्ट बारकर ने 1777 में लिखे एक लेख Bramins observatory at Banaras (बनारस की वेधशाला) पर प्रकाश डाला है। सन् 1772 में उन्होंने वेधशाला का निरीक्षण किया था। उस समय इसकी हालत खराब थी क्योंकि लंबे समय से उसका कोई उपयोग नहीं हुआ था। इसके बाद भी उस वेधशाला में जो यंत्र व साधन बचे थे , उनका श्री बारकर ने बारीकी से अध्ययन किया। उनके निरीक्षण में एक महत्वपूर्ण बात यह ध्यान में आई कि ये साधन लगभग 400 वर्ष पूर्व तैयार किए गए थे।

    प्राचीन खगोल विज्ञान की कुछ झलकियां 

     

    (1) प्रकाश की गति :- क्या हमारे पूर्वजों को प्रकाश की गति का ज्ञान था? उपर्युक्त प्रश्न एक बार गुजरात के राज्यपाल रहे श्री के.के.शाह ने मैसूर विश्वविद्यालय के भौतिकी के प्राध्यापक प्रो. एल. शिवय्या से पूछा। श्री शिवय्या संस्कृत और विज्ञान दोनों के जानकार थे। उन्होंने तुरंत उत्तर दिया, “हां जानते थे।” प्रमाण में उन्होंने बताया कि ऋग्वेद के प्रथम मंडल में दो ऋचाएं है- मनो न योऽध्वन: सद्य एत्येक: सत्रा सूरो वस्व ईशे अर्थात् मन की तरह शीघ्रगामी जो सूर्य स्वर्गीय पथ पर अकेले जाते हैं। ( 1-71-9) (“तरणिर्विश्वदर्शतो ज्योतिकृदसि सूर्य विश्वमाभासिरोचनम्” अर्थात् हे सूर्य, तुम तीव्रगामी एवं सर्वसुन्दर तथा प्रकाश के दाता और जगत् को प्रकाशित करने वाले हो। ( 1.50.9)
    योजनानां सहस्रे द्वे द्वेशते द्वे च योजने।
    एकेन निमिषार्धेन क्रममाण नमोऽस्तुते।।
    अर्थात् आधे निमेष में 2202 योजन का मार्गक्रमण करने वाले प्रकाश तुम्हें नमस्कार है। इसमें 1 योजन- 9 मील 160 गज
    अर्थात् 1 योजन- 9.11 मील
    1 दिन रात में- 810000 अर्ध निषेष
    अत: 1 सेकेंड में – 9.41 अर्ध निमेष
    इस प्रकार 2202 x 9.11- 20060.22 मील प्रति अर्ध निमेष तथा 20060.22 x 9.41- 188766.67 मील प्रति सेकण्ड। आधुनिक विज्ञान को मान्य प्रकाश गति के यह अत्यधिक निकट है।


    (2) गुरुत्वाकर्षण: “पिताजी, यह पृथ्वी, जिस पर हम निवास करते हैं, किस पर टिकी हुई है?” लीलावती ने शताब्दियों पूर्व यह प्रश्न अपने पिता भास्कराचार्य से पूछा था। इसके उत्तर में भास्कराचार्य ने कहा, “बाले लीलावती, कुछ लोग जो यह कहते हैं कि यह पृथ्वी शेषनाग, कछुआ या हाथी या अन्य किसी वस्तु पर आधारित है तो वे गलत कहते हैं। यदि यह मान भी लिया जाए कि यह किसी वस्तु पर टिकी हुई है तो भी प्रश्न बना रहता है कि वह वस्तु किस पर टिकी हुई है और इस प्रकार कारण का कारण और फिर उसका कारण… यह क्रम चलता रहा, तो न्याय शास्त्र में इसे अनवस्था दोष कहते हैं।
    लीलावती ने कहा फिर भी यह प्रश्न बना रहता है पिताजी कि पृथ्वी किस चीज पर टिकी है?
    तब भास्कराचार्य ने कहा,क्यों हम यह नहीं मान सकते कि पृथ्वी किसी भी वस्तु पर आधारित नहीं है।….. यदि हम यह कहें कि पृथ्वी अपने ही बल से टिकी है और इसे धारणात्मिका शक्ति कह दें तो क्या दोष है? इस पर लीलावती ने पूछा यह कैसे संभव है।
    तब भास्कराचार्य सिद्धान्त की बात कहते हैं कि वस्तुओं की शक्ति बड़ी विचित्र है।
    मरुच्लो भूरचला स्वभावतो यतो
    विचित्रावतवस्तु शक्त्य:।।
    सिद्धांत शिरोमणी गोलाध्याय-भुवनकोश (5) 
    आगे कहते हैं-
    आकृष्टिशक्तिश्च मही तया यत् खस्थं
    गुरुस्वाभिमुखं स्वशक्तत्या। 
    आकृष्यते तत्पततीव भाति
    समेसमन्तात् क्व पतत्वियं खे।।
    सिद्धांत शिरोमणी गोलाध्याय-भुवनकोश- (6) 
    अर्थात् पृथ्वी में आकर्षण शक्ति है। पृथ्वी अपनी आकर्षण शक्ति से भारी पदार्थों को अपनी ओर खींचती है और आकर्षण के कारण वह जमीन पर गिरते हैं। पर जब आकाश में समान ताकत चारों ओर से लगे, तो कोई कैसे गिरे? अर्थात् आकाश में ग्रह निरावलम्ब रहते हैं क्योंकि विविध ग्रहों की गुरुत्व शक्तियां संतुलन बनाए रखती हैं।
    आजकल हम कहते हैं कि न्यूटन ने ही सर्वप्रथम गुरुत्वाकर्षण की खोज की, परन्तु उसके 550 वर्ष पूर्व भास्कराचार्य ने यह बता दिया था।