Saturday 24 October 2015

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जानिए अघोरियों की रहस्यमयी दुनिया की कुछ अनजानी और रोचक बात

By: Secret On: 23:17
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  • अघोर पंथ हिंदू धर्म का एक संप्रदाय है। इसका पालन करने
    वालों को अघोरी कहते हैं। अघोर पंथ
    की उत्पत्ति के काल के बारे में अभी
    निश्चित प्रमाण नहीं मिले हैं, परन्तु इन्हें
    कपालिक संप्रदाय के समकक्ष मानते हैं। ये भारत के
    प्राचीनतम धर्म “शैव” (शिव साधक) से संबधित
    हैं। अघोरियों को इस पृथ्वी पर भगवान शिव का
    जीवित रूप भी माना जाता है।
    शिवजी के पांच रूपों में से एक रूप अघोर रूप है।
    अघोरी हमेशा से लोगों की जिज्ञासा
    का विषय रहे हैं। अघोरियों का जीवन जितना कठिन
    है, उतना ही रहस्यमयी
    भी। अघोरियों की साधना विधि सबसे
    ज्यादा रहस्यमयी है। उनकी
    अपनी शैली, अपना विधान है,
    अपनी अलग विधियां हैं। अघोरी उसे
    कहते हैं जो घोर नहीं हो। यानी बहुत
    सरल और सहज हो। जिसके मन में कोई भेदभाव
    नहीं हो। अघोरी हर चीज
    में समान भाव रखते हैं। वे सड़ते जीव के मांस को
    भी उतना ही स्वाद लेकर खाते हैं,
    जितना स्वादिष्ट पकवानों को स्वाद लेकर खाया जाता है।
    अघोरियों की दुनिया ही
    नहीं, उनकी हर बात
    निराली है। वे जिस पर प्रसन्न हो जाएं उसे सब
    कुछ दे देते हैं। अघोरियों की कई बातें
    ऐसी हैं जो सुनकर आप दांतों तले
    अंगुली दबा लेंगे। हम आपको अघोरियों
    की दुनिया की कुछ ऐसी
    ही बातें बता रहे हैं, जिनको पढ़कर आपको
    एहसास होगा कि वे कितनी कठिन साधना करते हैं।
    साथ ही उन श्मशानों के बारे में भी
    आज आप जानेंगे, जहां अघोरी मुख्य रूप से
    अपनी साधना करते हैं। जानिए अघोरियों के बारे में
    रोचक बातें-
    1. अघोरी मूलत: तीन तरह
    की साधनाएं करते हैं। शिव साधना, शव साधना
    और श्मशान साधना। शिव साधना में शव के ऊपर पैर रखकर
    खड़े रहकर साधना की जाती है।
    बाकी तरीके शव साधना की
    ही तरह होते हैं। इस साधना का मूल शिव
    की छाती पर पार्वती द्वारा
    रखा हुआ पैर है। ऐसी साधनाओं में मुर्दे को
    प्रसाद के रूप में मांस और मदिरा चढ़ाई जाती है।
    शव और शिव साधना के अतिरिक्त
    तीसरी साधना होती है
    श्मशान साधना, जिसमें आम परिवारजनों को भी
    शामिल किया जा सकता है। इस साधना में मुर्दे की
    जगह शवपीठ (जिस स्थान पर शवों का दाह
    संस्कार किया जाता है) की पूजा की
    जाती है। उस पर गंगा जल चढ़ाया जाता है। यहां
    प्रसाद के रूप में भी मांस-मदिरा की
    जगह मावा चढ़ाया जाता है।
    अघोरी शव साधना के लिए शव कहाँ
    से लाते है?
    हिन्दू धर्म में आज भी किसी 5 साल
    से कम उम्र के बच्चे, सांप काटने से मरे हुए लोगों,
    आत्महत्या किए लोगों का शव जलाया नहीं जाता
    बल्कि दफनाया या गंगा में प्रवाहित कर कर दिया जाता है।
    पानी में प्रवाहित ये शव डूबने के बाद हल्के
    होकर पानी में तैरने लगते हैं। अक्सर
    अघोरी तांत्रिक इन्हीं शवों को
    पानी से ढूंढ़कर निकालते और अपनी
    तंत्र सिद्धि के लिए प्रयोग करते हैं।
    2. बहुत कम लोग जानते हैं कि अघोरियों की साधना
    में इतना बल होता है कि वो मुर्दे से भी बात कर
    सकते हैं। ये बातें पढऩे-सुनने में भले ही
    अजीब लगे, लेकिन इन्हें पूरी तरह
    नकारा भी नहीं जा सकता।
    उनकी साधना को कोई चुनौती
    नहीं दी जा सकती।
    अघोरियों के बारे में कई बातें प्रसिद्ध हैं जैसे कि वे बहुत
    ही हठी होते हैं, अगर
    किसी बात पर अड़ जाएं तो उसे पूरा किए बगैर
    नहीं छोड़ते। गुस्सा हो जाएं तो किसी
    भी हद तक जा सकते हैं। अधिकतर अघोरियों
    की आंखें लाल होती हैं, जैसे वो बहुत
    गुस्सा हो, लेकिन उनका मन उतना ही शांत
    भी होता है। काले वस्त्रों में लिपटे
    अघोरी गले में धातु की
    बनी नरमुंड की माला पहनते हैं।
    3. अघोरी अक्सर श्मशानों में ही
    अपनी कुटिया बनाते हैं। जहां एक छोटी
    सी धूनी जलती
    रहती है। जानवरों में वो सिर्फ कुत्ते पालना पसंद
    करते हैं। उनके साथ उनके शिष्य रहते हैं, जो
    उनकी सेवा करते हैं। अघोरी
    अपनी बात के बहुत पक्के होते हैं, वे अगर
    किसी से कोई बात कह दें तो उसे पूरा करते हैं।
    4. अघोरी गाय का मांस छोड़ कर बाकी
    सभी चीजों को खाते हैं। मानव मल से
    लेकर मुर्दे का मांस तक। अघोरपंथ में श्मशान साधना का
    विशेष महत्व है। इसलिए वे श्मशान में रहना
    ही ज्यादा पंसद करते हैं। श्मशान में साधना
    करना शीघ्र ही फलदायक होता है।
    श्मशान में साधारण मानव जाता ही
    नहीं। इसीलिए साधना में विध्न पडऩे
    का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। उनके
    मन से अच्छे बुरे का भाव निकल जाता है, इसलिए वे प्यास
    लगने पर खुद का मूत्र भी पी लेते
    हैं।
    5. अघोरी अमूमन आम दुनिया से कटे हुए होते
    हैं। वे अपने आप में मस्त रहने वाले, अधिकांश समय दिन
    में सोने और रात को श्मशान में साधना करने वाले होते हैं। वे
    आम लोगों से कोई संपर्क नहीं रखते। ना
    ही ज्यादा बातें करते हैं। वे अधिकांश समय अपना
    सिद्ध मंत्र ही जाप करते रहते हैं।
    6. आज भी ऐसे अघोरी और तंत्र
    साधक हैं जो पराशक्तियों को अपने वश में कर सकते हैं। ये
    साधनाएं श्मशान में होती हैं और दुनिया में सिर्फ
    चार श्मशान घाट ही ऐसे हैं जहां तंत्र क्रियाओं
    का परिणाम बहुत जल्दी मिलता है। ये हैं
    तारापीठ का श्मशान (पश्चिम बंगाल), कामाख्या
    पीठ (असम) काश्मशान, त्र्र्यम्बकेश्वर
    (नासिक) और उज्जैन (मध्य प्रदेश) का श्मशान।
    तारापीठ
    यह मंदिर पश्चिम बंगाल के वीरभूमि जिले में एक
    छोटा शहर है। यहां तारा देवी का मंदिर है। इस
    मंदिर में मां काली का एक रूप तारा मां
    की प्रतिमा स्थापित है। रामपुर हाट से
    तारापीठ की दूरी लगभग 6
    किलोमीटर है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहां
    पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। इसलिए
    इस स्थान को नयन तारा भी कहा जाता है।
    तारापीठ मंदिर का प्रांगण श्मशान घाट के निकट
    स्थित है, इसे महाश्मशान घाट के नाम से जाना जाता है। इस
    महाश्मशान घाट में जलने वाली चिता
    की अग्नि कभी बुझती
    नहीं है। यहां आने पर लोगों को किसी
    प्रकार का भय नहीं लगता है। मंदिर के चारों ओर
    द्वारका नदी बहती है। इस श्मशान
    में दूर-दूर से साधक साधनाएं करने आते हैं।
    कामाख्या पीठ
    असम की राजधानी दिसपुर के पास
    गुवाहाटी से 8 किलोमीटर दूर कामाख्या
    मंदिर है। यह मंदिर एक पहाड़ी पर बना है व
    इसका तांत्रिक महत्व है। प्राचीन काल से
    सतयुगीन तीर्थ कामाख्या वर्तमान में
    तंत्र सिद्धि का सर्वोच्च स्थल है।
    पूर्वोत्तर के मुख्य द्वार कहे जाने वाले असम राज्य
    की राजधानी दिसपुर से 6
    किलोमीटर की दूरी पर
    स्थित नीलांचल अथवा नीलशैल
    पर्वतमालाओं पर स्थित मां भगवती कामाख्या का
    सिद्ध शक्तिपीठ सती के इक्यावन
    शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है।
    यहीं भगवती की
    महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है। यह स्थान तांत्रिकों के लिए
    स्वर्ग के समान है। यहां स्थित श्मशान में भारत के विभिन्न
    स्थानों से तांत्रिक तंत्र सिद्धि प्राप्त करने आते हैं।

    नासिक
    त्र्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर महाराष्ट्र के नासिक जिले
    में है। यहां के ब्रह्म गिरि पर्वत से गोदावरी
    नदी का उद्गम है। मंदिर के अंदर एक छोटे से
    गड्ढे में तीन छोटे-छोटे लिंग है, ब्रह्मा, विष्णु
    और शिव- इन तीनों देवों के प्रतीक
    माने जाते हैं। ब्रह्मगिरि पर्वत के ऊपर जाने के लिये सात सौ
    सीढिय़ां बनी हुई हैं।
    इन सीढिय़ों पर चढऩे के बाद रामकुण्ड और
    लक्ष्मण कुण्ड मिलते हैं और शिखर के ऊपर पहुँचने पर
    गोमुख से निकलती हुई भगवती
    गोदावरी के दर्शन होते हैं। भगवान शिव को तंत्र
    शास्त्र का देवता माना जाता है। तंत्र और अघोरवाद के
    जन्मदाता भगवान शिव ही हैं। यहां स्थित श्मशान
    भी तंत्र क्रिया के लिए प्रसिद्ध है।
    उज्जैन
    महाकालेश्वर मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मध्य
    प्रदेश के उज्जैन जिले में है। स्वयंभू, भव्य और
    दक्षिणमुखी होने के कारण महाकालेश्वर महादेव
    की अत्यन्त पुण्यदायी माना जाता है।
    इस कारण तंत्र शास्त्र में भी शिव के इस शहर
    को बहुत जल्दी फल देने वाला माना गया है। यहां
    के श्मशान में दूर-दूर से साधक तंत्र क्रिया करने आते हैं।

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