200 किलो का पत्थर हवा में कैसे झूल रहा है? बीते कुछ सालों में विज्ञान और तकनीक के विकास के साथ-साथ इंसानी जीवन को कई तरह की सहूलियतें उपलब्ध हुई हैं. ऐसी सुविधाओं की ही वजह से आज बड़ी आसानी से जीवनशैली को अंजाम दिया जाता है. इतना ही नहीं पहले जिन सवालों के जवाब खोजने में पूरा जीवन लगा दिया जाता था अब वह सवाल चुटकी में हल कर दिए जाते हैं. चुटकी में उन गुत्थियों को सुलझा लिया जाता है जिनके लिए कभी बेवजह के तर्क दिए जाते थे. लेकिन इतना सब होने के बाद आज भी कुछ रहस्यमयी सवाल या कहें परिस्थितियां ऐसी हैं जिन्हें सुलझाया नहीं जा सका है. ऐसा क्यों हुआ या ऐसा क्यों हो रहा है, इस सवाल तक पहुंचा भी नहीं जा सका है. ऐसी ही कुछ प्रख्यात जगहों से हम आपको रूबरू करवाने जा रहे हैं जिनके रहस्यों को विज्ञान भी चुनौती नहीं दे पाया है. मैग्नेटिक हिल (लद्दाख): पहाड़ी पर अगर कोई वाहन खड़ा हो तो वह नीचे की तरफ दौड़ता है लेकिन भारत का स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर में स्थित मैग्नेटिक पहाड़ी एक ऐसी जगह है जहां पर अगर कोई गाड़ी न्यूट्रल करके खड़ी कर दी जाए तो वह नीचे की ओर नहीं बल्कि पहाड़ी के ऊपर की ओर चल पड़ती है. गाड़ी लगभग 20 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से ऊपर की ओर चढ़ने लगती है. ना सिर्फ गाड़ियां बल्कि आसमान से उड़ने वाले जहाज भी इस गुरुत्वाकर्षण शक्ति से खुद को बचा नहीं पाते. कोई इसे गुरुत्वाकर्षण शक्ति कहते हैं तो कुछ इसे सिर्फ एक भ्रम मानते हैं लेकिन इस पहाड़ी का रहस्य सुलझाया नहीं जा सका है. उड़ता पत्थर (शिवपुर): उड़ता पत्थर पढ़कर ही आपको लगा होगा यह कोई मनगढ़ंत बात है लेकिन पुणे (महाराष्ट्र) में स्थित शिवपुर गांव में एक मकबरे में यह पत्थर मौजूद है जिसका रहस्य आज तक किसी को समझ नहीं आया है. स्थानीय लोगों के अनुसार यह मकबरा कमर अली नामक एक व्यक्ति का है जिसके पास कई अलौकिक ताकतें थीं. जब वह मरने वाला था तो उसने यह कहा था कि उसकी कब्र के पास एक पत्थर रख दिया जाए. यही पत्थर आज रहस्यमयी उड़ता पत्थर के नाम से जाना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि अगर 11 लोग इस पत्थर पर अंगुली रखकर कमर अली दर्वेश का नाम पुकारते हैं तो यह पत्थर अपने आप ही हवा में उड़ने लगता है. इस पत्थर का वजन करीब 200 किलो है और इतना भारी पत्थर हवा में कैसे उड़ जाता है यह बात किसी को समझ नहीं आई. रूपकुंड झील: हिमालय पर्वतमाला के दुर्गम स्थल के बीचो-बीच स्थित रूपकुंड झील के आसपास करीब 200-300 मानव धड़ पाए गए हैं. इस स्थान को एक सामूहिक कब्रगाह के तौर पर जाना जाता है लेकिन कोई यह नहीं जान पाया कि इतने लोग यहां आए कहां से और अगर आए तो सभी की मृत्यु यहां कैसे हो गई. इस स्थान पर पहुंचना आसान नहीं है इसी वजह से यहां कोई नहीं आता-जाता लेकिन 300-400 मानव धड़ मिलना अपने आप में हैरानी का विषय है. शनि मंदिर (शिंगड़ापुर): शिरडी (महाराष्ट्र) से करीब 80 किलोमीटर दूरी पर स्थित शिंगड़ापुर एक छोटा सा गांव है. शनिदेव के विश्वविख्यात मंदिर की वजह से इस स्थान पर लोगों की आवाजाही लगी ही रहती है. आपको यकीन नहीं होगा कि इस गांव के किसी भी घर में बाहर का दरवाजा नहीं है. स्थानीय निवासी अपने घरों में ताले नहीं लगाते, घर में कितना ही कीमती सामान क्यों ना पड़ा हो वह उन्हें लॉकर या तालों में बंद करके नहीं रखते क्योंकि उनकी आस्था शनि देव में अटूट है और वह ऐसा मानते हैं कि शनिदेव उनकी रक्षा करेंगे.
Sunday, 18 October 2015
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