भले ही विज्ञान ने आज कितनी ही तरक्की क्यों न कर ली हो , फिरभी उसके सामने चुनौतियों का पहाड़ हमेशा ही मुँहबाए खड़ा रहा है . इस श्रृंखला में ऐसे ही कुछ रोचक विषयों की बात की जाएगी , जो आज भी विज्ञान के लिए अबूझ पहेली बने हुए हैं .
इस पहेली की पहली कड़ी में हम बात करते हैं ब्रिटेन की धरती पर पाए गए स्टोनहेंज के रहस्यमय पत्थरों की . यह एक प्रागैतिहासिक काल का ऐसा स्मारक है , जो चट्टान के विभिन्न टुकड़ो को जोड़कर बनाई गई वक्राकार आकृतियाँ हैं , जो मिलकर एक बड़े से गोले के समान दिखाई पड़ती हैं . बहुत से खगोल शास्त्री इसे एक प्राचीन खगोल वेधशाला के रूप में मानते हैं , जिसकी संरचना इतनी जटिल है कि इसे एक प्रागैतिहासिक कम्प्यूटर भी कहा जा सकता है .
ये स्मारक दक्षिणी इंग्लैण्ड के सेलिसबरी के मैदानी इलाकों में स्थित हैं . ये पत्थर लगभग 13 फिट ऊंचे हैं और बलुआ पत्थरों से बने हुए हैं . ऐसा माना जाता है कि इनकी आयु 4 हजार वर्षों से भी अधिक है .
पुरातत्व विज्ञान के अनुसार स्टोनहेंज के पत्थर ईसा से 2750 वर्ष पूर्व के हैं . एक मान्यता के अनुसार इनका निर्माण ब्रिटेन और गाल के ड्रुइड ( Druids ) पुजारियों ने किया था . लेकिन आधुनिक पुरातत्वशास्त्री इससे सहमत नहीं हैं . उनके अनुसार ये पत्थर ड्रुइड पुजारियों से भी एक हजार साल पुराने हैं . कुछ पुरातत्वशास्त्रियों का मानना है कि इनका निर्माण रोमनों ने किया होगा . जबकि कुछ का मानना है कि इनके निर्माण के पीछे मिस्रियों का हाथ है .
उपलब्ध जानकारी के अनुसार स्टोनहेंज के निर्माण का इतिहास तीन चरणों में विभक्त है . पहला चरण ईसा से 2750 वर्ष पहले का है , जिसमें स्टोनहेंज के रहस्यमय औब्रे छिद्र ( ऑब्रे छेद) का निर्माण किया गया . इन छिद्रों की संख्या 56 है और इन्हीं के द्वारा स्टोनहेंज की बाहरी परिधि बनी है . पुरातत्वशास्त्रियों का मत है कि इसी दौरान स्टोनहेंज के प्रसिद्ध हील स्टोन (एड़ी स्टोन) का भी निर्माण हुआ , जो मुख्य दरवाजे के बाहर की ओर अवस्थित है .
स्टोनहेंज की बाहरी परिधि के
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भीतर 83 नीले पत्थरों के बने दुहरे वृत्त का निर्माण ईसा से 2000 वर्ष पहले माना जाता है . ऐसा माना जाता है कि ये पत्थर पैम्पशायर एवन ( हैम्पशायर एवन ) से मंगवाए गये थे , जोकि लगभग 4 टन वजनी थे . स्टोनहेंज में पाई गई कुल्हाड़ी आदि भी इसी पत्थर की बनी थी . इससे यह पता चलता है कि उस दौरान इन पत्थरों को काफी पवित्र माना जाता था .
तीसरे चरण में स्टोनहेंज में 75 विशालकाय बलुआ पत्थरों को वहाँ पर लाया गया . ऐसा माना जाता है कि ये पत्थर एवेबुरी से 20 मील दूर के इलाके से लाए गये थे . उसके बाद इन पत्थरों को तराश गया और तत्पश्चात उन्हें लगभग 18 इंच की ढ़ाल वाली जमीन पर स्थापित किया गया .
खगोलशास्त्री एडवर्ड ड्यूक ( Adward ड्यूक ) के अनुसार स्टोनहेंज का पूरा स्मारक सौर प्रणाली को प्रदर्शित करता है और उसमें स्टोनहेंज शनि की कक्षा के समान है जबकि नार्मन लाकयर ( Norrman लॉकयर ) के अनुसार हील स्टोन की स्थिति ग्रीष्मकालीन संक्राति ( मिड गर्मियों संक्रांति ) को प्रकट करता है . लेकिन यदि इसे उल्टा करके देखा जाए तो यह शरदकालीन संक्रान्ति ( मिड सर्दियों संक्रांति ) की स्थिति दर्शाता है . उनका अनुमान है कि इनके अध्ययन से विभिन्न प्रकार के कैलेण्डर बनाए जाते होंगे .
भले ही आधुनिक खगोलशास्त्री इन मतों से सहमत न हों , पर इतना तो तय हैकि स्टोनहेंज को बनाने के पीछे कोई न कोई उद्देश्य अवश्य रहा होगा . लेकिन वह उद्देश्य क्या होगा , यह भी खगोलशास्त्रियों के लिए चुनौती बना हुआ है .
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