Friday 15 September 2017

प्रह्लाद जानी एक अबूझ पहेली (एक योगी)

By: Secret On: 17:20
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  • हवाख़ोर योगी विज्ञान के लिए अबूझ पहेली
    वे न कुछ खाते हैं और न पीते हैं. सात दशकों से केवल हवा पर जीते हैं. गुजरात में मेहसाणा ज़िले के प्रहलाद जानी एक ऐसा चमत्कार बन गये हैं, जिसने विज्ञान को चौतरफ़ा चक्कर में डाल दिया है.
    भूख-प्यास से पूरी तरह मुक्त अपनी चमत्कारिक जैव ऊर्जा के बारे में प्रहलाद जानी स्वयं कहते हैं कि यह तो दुर्गा माता का वरदान हैः "मैं जब 12 साल का था, तब कुछ साधू मेरे पास आये. कहा, हमारे साथ चलो. लेकिन मैंने मना कर दिया. क़रीब छह महीने बाद देवी जैसी तीन कन्याएं मेरे पास आयीं और मेरी जीभ पर उंगली रखी. तब से ले कर आज तक मुझे न तो प्यास लगती है और न भूख."

    उसी समय से प्रहलाद जानी दुर्गा देवी के भक्त हैं. उन के अपने भक्त उन्हें माताजी कहते हैं. लंबी सफ़ेद दाढ़ी वाला पुरुष होते हुए भी वे किसी देवी के समान लाल रंग के कपड़े पहनते और महिलाओं जैसा श्रृंगार करते हैं.

    कई बार जांच-परख

    भारत के डॉक्टर 2003 और 2005 में भी प्रहलाद जानी की अच्छी तरह जांच-परख कर चुके हैं. पर, अंत में दातों तले उंगली दबाने के सिवाय कोई विज्ञान सम्मत व्याख्या नहीं दे पाये. इन जाचों के अगुआ रहे अहमदाबाद के न्यूरॉलॉजिस्ट (तंत्रिकारोग विशेषज्ञ) डॉ. सुधीर शाह ने कहाः "उनका कोई शारीरिक ट्रांसफॉर्मेशन (कायाकल्प) हुआ है. वे जाने-अनजाने में बाहर से शक्ति प्राप्त करते हैं. उन्हें कैलरी (यानी भोजन) की ज़रूरत ही नहीं पड़ती. हमने तो कई दिन तक उनका अवलोकन किया, एक-एक सेकंड का वीडियो लिया. उन्होंने न तो कुछ खाया, न पिया, न पेशाब किया और न शौचालय गये."

    भारतीय सेना की भी दिलचस्पी

    गत 22 अप्रैल से नौ मई तक प्रहलाद जानी डॉक्टरी जाँच-परख के लिए एक बार फिर अहमदाबाद के एक अस्पातल में 15 दिनों तक भर्ती थे. इस बार भारतीय सेना के रक्षा शोध और विकास संगठन का शरीरक्रिया


    डॉक्टर जांचते हैं, पर पाते कुछ नहीं
    विज्ञान संस्थान DIPAS जानना चाहता था कि प्रहलाद जानी के शरीर में ऐसी कौन सी क्रियाएं चलती हैं कि उन्हें खाने-पीने की कोई ज़रूरत ही नहीं पड़ती.

    तीस डॉक्टरों की एक टीम ने तरह तरह की डॉक्टरी परीक्षाएं कीं. मैग्नेटिक रिजोनैंस इमेजींग मशीन से उन के शरीर को स्कैन किया. हृदय और मस्तिष्क क्रियाओं को तरह तरह से मापा. रक्त परीक्षा की. दो वीडियो कैमरों के द्वारा चौबीसो घंटे प्रहलाद जानी पर नज़र रखी. जब भी वे अपना बिस्तर छोड़ते, एक वीडियो कैमरा साथ साथ चलता.

    परिणाम आने की प्रतीक्षा

    इस बार डीएनए विश्लेषण के लिए आवश्यक नमूने भी लिये गये. शरीर के हार्मोनों, एंज़ाइमों और ऊर्जादायी चयापचय (मेटाबॉलिज़्म) क्रिया संबंधी ठेर सारे आंकड़े जुटाये गये. उनका अध्ययन करने और उन्हें समझने-बूझने में दो महीने तक का समय लग सकता है.

    डॉक्टरों का कहना है कि इन सारे परीक्षणों और आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर प्रहलाद जानी के जीवित रहने का रहस्य या तो मिल जायेगा या उनके दावे का पर्दाफ़ाश हो जायेगा. पिछली परीक्षाओं और अवलोकनों से न तो कोई रहस्य खुला और न कोई पर्दाफ़ाश हो पाया. बल्कि, जैसा कि डॉ. सुधीर शाह ने बताया, डॉक्टरों की उलझन और भी बढ़ गयीः "(कहने पर) वे अपने आप अपने ब्लैडर (मूत्राशय) में यूरीन (पेशाब) लाते हैं. यदि वह (पेशाब) 120 मिलीलीटर था और हमने कहा कि हमें आज शाम को 100 मिलीलीटर चाहिये, तो वे 100 मिलीलीटर कर देंगे. यदि हम कहेंगे कि कल सुबह ज़ीरो (शून्य) होना चाहिये, तो ज़ीरो कर देंगे. कहने पर शाम को 50 मिलीलीटर कर देंगे. यानी हम जो भी कहें, वे हर बार वैसा ही कर पाये हैं. यह अपने आप में ही एक चमत्कार है."

    विज्ञान को विश्वास नहीं


    दैवीय आशीर्वाद या छल-प्रपंच?

    प्रहलाद जानी अपनी आयु के आठवें दशक में भी नियमित रूप से योगाभ्यास करते हैं और ध्यान लगाते हैं. योगी-ध्यानी व्यक्तियों में चमत्कारिक गुणों की कहानियों पर भारत में लोगों को आश्चर्य नहीं होता, पर विज्ञान उन्हें स्वीकार नहीं करता.

    विज्ञान केवल उन्हीं चीज़ों को स्वीकार करता है, जो स्थूल हैं या नापी-तौली जा सकती हैं. प्रहलाद जानी इस सांचे में फ़िट नहीं बैठते. तब भी, विज्ञान उनके अद्भुत चमत्कार का व्यावहारिक लाभ उठाने में कोई बुराई भी नहीं देखता. डॉ. सुधीर शाहः "कैलरी या भोजन के बदले वे किसी दूसरे प्रकार की ऊर्जा से अपने शरीर को बल देते हैं. अगर हम उस ऊर्जा को पकड़ सके, उसे माप सके, तो हो सकता है कि हम दूसरे आदमियों में भी उसे प्रस्थापित कर सकें और तब पूरी मानवजाति का और चिकित्सा विज्ञान का भविष्य बदल जायेगा."

    अंतरिक्ष यात्राओं के लिए विशेष उपयोगी

    भारतीय सेना का रक्षा शोध संस्थान भी यही समझता है कि यदि यह रहस्य मालूम पड़ जाये, तो लोगों को न केवल लड़ाई के मैदान में और प्राकृतिक आपदाओं के समय बिना अन्न-पानी के लंबे समय तक जीवित रहना सिखाया जा सकता है, बल्कि चंद्रमा और मंगल ग्रह पर जाने वाले अंतरिक्षयात्रियों के राशन-पानी की समस्या भी हल हो सकती है.

    लेकिन, प्रश्न यह है कि क्या किसी तपस्वी की तपस्या का फल उन लोगों को भी बांटा जा सकता है, जो तप-तपस्या का न तो अर्थ जानते हैं और न उसमें विश्वास करते हैं? क्या यह हो सकता है कि सिगरेट से परहेज़ तो आप करें, पर कैंसर से छुटकारा मिले धूम्रपान करने वालों को?

    प्राचीन भारतीय और आधुनिक ब्रम्हांड की परिकल्पना

    By: Secret On: 16:56
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  • महर्षि चित्र ने अपने गुरुकुल में यज्ञ-आयोजित किया था । ऋत्विक् के लिये उन्होंने महर्षि उद्दालक को आमंत्रित किया लेकिन उद्दालक कुछ समय के लिये समाधि लेकर अन्तरिक्ष के कुछ रहस्यों का अध्ययन करना चाहते थे इसलिये उन्होंने अपने पुत्र श्वेतकेतु को यज्ञ के ऋत्विक् के रूप में भेज दिया, अब महर्षि चित्र को हिचकिचाहट इस बात की थी कि बगैर योग्यता की परख किये महर्षि चित्र उन्हें यज्ञ का आचार्य कैसे बनाए इसलिए उन्होंने श्वेतकेतु से प्रश्न किया- ‘सवृत लोके यस्मित्राधास्य हो बोचदध्वा लोके वास्यसीति’ । अर्थात्-क्या इस लोक में कोई आवरण वाला ऐसा स्थान है जहाँ तुम मेरे प्राणों को स्थिर कर सकोगे अथवा कोई ऐसा आवरण रहित अद्भुत स्थान है जहाँ पहुँचा कर मुझे यज्ञ के फलस्वरूप दिव्य अक्षय लोक का भागी बनाओगे ?।

    श्वेतकेतु ने इस प्रश्न का उत्तर देने में अपनी असमर्थता प्रकट की (यद्यपि श्वेतकेतु स्वयं एक उच्चकोटि के ऋषि थे) । वे लौटकर अपने पिता के पास गये और उनसे वही प्रश्न पूछा जो उनसे (श्वेतकेतु से) महर्षि चित्र ने पूछा था । महर्षि उद्दालक बड़े सूक्ष्मदर्शी थे उन्होंने सारी स्थिति समझ ली कि चित्र ने श्वेतकेतु से ऐसा प्रश्न क्यों पूछा | लेकिन सच्चाई तो ये थी कि, वे (महर्षि उद्दालक) स्वयं इसी रहस्य को जानने के लिए अविकल्प समाधि (जिस समाधि में चिन्तन, मनन, भावानुभूति चलती रहती है उसे सविकल्प समाधि कहते हैं) लेना चाहते थे ।

    उन्होंने अपने ध्यान में ये अनुभव किया कि महर्षि चित्र यह रहस्य पहले से ही जानते हैं सो पिता पुत्र दोनों महर्षि चित्र के पास गये और उनके प्रश्न का उत्तर सविनय उन्हीं से बताने का आग्रह करने लगे । उनकी जिज्ञासा को समझकर महर्षि चित्र ने उन्हें मृत्यु की अवस्था और देवयान मार्ग द्वारा दिव्य उच्च लोकों की प्राप्ति का जो ज्ञान दिया है वह सारा का सारा ही आख्यान महान् वैज्ञानिक सत्यों ओर आश्चर्यों से ओत-प्रोत है और कौषीतकि ब्राह्मणोपनिषद् में उसका विस्तार से वर्णन है । उससे यह पता चलता है कि भारतीय मनीषा (ऋषि-मुनी) न केवल प्राण और जीवन के रहस्यों से विज्ञ थे वरन् उन्हें सूक्ष्म से सूक्ष्म भौगोलिक ओर ब्रह्माण्ड विज्ञान के रहस्यों का भी ज्ञान था । आज जब उस ज्ञान को हम आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर कसते हैं तो हमें यह मानना पड़ता है कि भारतीय साधनायें किसी भी भौतिक जगत के विज्ञान से अधिक महत्वपूर्ण हैं और जीवन से सम्बन्धित समस्त जिज्ञासाओं और समस्याओं का वही सर्वश्रेष्ठ विकल्प है ।
    महर्षि चित्र, महर्षि उद्दालक और श्वेतकेतु को बताते हैं- आर्य ! यज्ञादि श्रेष्ठ कर्म करने वाले लोगों को उच्च लोकों की प्राप्ति जिस तरह होती है वह मैं आप लोगों को बताता हूँ, प्राणों के योग से चन्द्रमा को बल मिलता है, पर कृष्ण पक्ष में तथा दक्षिणायन सूर्यगति के समय स्वर्गादि उच्च लोकों का द्वार अवरुद्ध रहता है इसलिये योगीजन उस समय अपने प्राणों को अपने ध्यान में ही स्थिर कर लेते हैं । अपनी निष्काम भावना को दृढ़ रखते हुए वे जितेन्द्रिय, देवयान मार्ग से अपनी मानवेतर यात्रा प्रारम्भ करते हैं, और सबसे पहले अग्नि लोक को प्राप्त होते हैं, फिर वायुलोक और वहाँ से सूर्य लोक की ओर गमन करते हैं । सूर्य लोक से वरुण लोक, इन्द्रलोक, प्रजापति लोक में पहुँचते हुए वे अंत में ब्रह्म लोक के अधिकारी बनते है |

    कौषीतकि ब्राह्मणोपनिषद् की इस आख्यायिका में आगे के वर्णन में बड़े विस्तार पूर्वक देवयान मार्ग की अनुभूतियों का वर्णन हैं | जीवात्मा को वहाँ से जैसे दृश्य दिखाई देते हैं जैसी-जैसी ध्वनियाँ और गन्ध की अनुभूति होती है उस सब का बड़ा ही अलंकारिक और मनोरम वर्णन किया गया है । पहली बार पढ़ने से ऐसा लग सकता है जैसे इसका वास्तविकता से कोई सम्बन्ध न हो पर जब दर्शन और आज के आधुनिक विज्ञान के सिद्धांतो पर हम उसे तौलते और उसका विश्लेषण करते हैं तब आश्चर्यचकित रह जाते हैं कि इतनी विराट् अनुभूति प्राचीन ऋषियों को कैसे सम्भव हो सकी ।

    जैसे–जैसे आधुनिक द्रव्य और ब्रह्माण्ड विज्ञान समय के पथ पर आगे बढ़ रहा है, उनकी अनुभूतियों को शतप्रतिशत सत्य प्रमाणित कर रहा है । इसका एक ज्वलंत प्रमाण अभी कुछ वर्षों पहले आई क्रिस्टोफ़र नोलेन द्वारा रचित फिल्म इन्टरस्टेलर थी जो विशुद्ध रूप से भारतीय ब्रह्माण्ड विज्ञान के सिद्धांतो से प्रेरित थी | यद्यपि अभी विज्ञान अपूर्णावस्था में है तथापि अभी तक उसने जो भी निष्कर्ष निकाले हैं वह भारतीय तत्वदर्शन से एक भी कदम आगे नहीं बढ़ पाते।


    Tuesday 12 September 2017

    शराब से नशा क्यों होता है?

    By: Secret On: 10:00
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  • आज कल के ज्यादातर यंगस्टर्स पूरी तरह से शराब के आदी हैं। शराब पीने वाले लोग भी बहुत अलग अलग प्रकार के होते हैं। कुछ ऐसे होते हैं, जिन्हें 7-8 ड्रिंक्स के बाद भी कुछ फर्क नहीं पड़ता, वहीं कुछ ऐेसे भी होते हैं, जिन्हें 2 ड्रिंक्स के बाद ही इतना नशा हो जाता है कि फिर उन्हें कुछ होश नहीं रहता है।

    अक्सर आपने शराब के नशे में लोगो को मस्ती से झूमते और नाचते देखा होगा। तो आखिर ऐसा क्यों है कि अगर एक ड्रिंक आपको अच्छा महसूस कराती है, तो वहीं 5-6 ड्रिंक्स के बाद आपको नशा चढ़ने लगता है? तो बता दें कि इसका कारण है अल्कोहल, या यूं कहें कि अल्कोहल में बरसों से पाया जाने वाला में इथेनॉल।

    दरअसल जब आप अल्कोहल पीते हैं, तो आपके शरीर में पानी में घुलनशील इथेनॉल स्वतंत्र रूप से पास होता है। यह आपके पाचन तंत्र में प्रवेश करने के बाद, आपके खून में जाता है। इसके बाद सेल मैमबरेंस से गुजरता हुआ यह आपके दिल के माध्यम से स्ट्रॉल करता है।

    इसे विशेष रूप से मस्तिष्क में रहना पसंद होता है, जहां यह एक केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को अवसादग्रस्त कर देता है। मस्तिष्क में पहुंचने पर इथेनॉल भटकता रहता है और इसकी वजह से फीलगुड डोपामाइन रिलीज होते हैं और तंत्रिका रिसेप्टर्स के साथ लिंक हो जाते हैं। इन रिसेप्टर्स में से इथेनॉल विशेष रूप से ग्लूटामेट से जुड़ता है।

    यह एक न्यूरोट्रांसमीटर है, जो न्यूरॉन्स को उत्तेजित करता है। इथेनॉल ग्लूटामेट को सक्रिय बनाने की अनुमति नहीं देता है और यह उत्तेजनाओं का जवाब देने के लिए मस्तिष्क को धीमा कर देता है। इथेनॉल, गामा एमिनोब्युटिक एसिड (जीएबीए) को बांधता है। ग्लूटामेट के साथ अपनी कठोरता के विपरीत, इथेनॉल गाबा रिसेप्टर्स को सक्रिय करता है।

    ये रिसेप्टर्स एक व्यक्ति को शांत और निद्रा महसूस कराते हैं, जिससे मस्तिष्क की क्रिया भी आगे बढ़ती है। बेशक, किसी की शराबी की गंभीरता अन्य कारकों पर भी निर्भर है। आपको यकीन नहीं होगा लेकिन आपका लिंग, आयु, वजन, यहां तक कि आप जो खाते हैं, वो भी आपकी नशे की लत में कुछ भूमिका निभाते हैं।

    अल्कोहल को अंत में लगभग 29 मिलीलीटर प्रति घंटे की दर से लिवर में एंजाइमों द्वारा मेटाबोलाइज किया जाता है, लेकिन इस प्रक्रिया से अंगों को लंबे समय तक के लिए नुकसान हो सकता है। शराब की ओवरडोज मस्तिष्क के कामों में इतनी ज्यादा कमी कर सकती है कि यह शरीर में महत्वपूर्ण सिग्नल भेजने में भी विफल रहता है।

    Monday 11 September 2017

    क्या होगा अगर पृथ्वी 5 सेकण्ड के लिए अपना गुरुत्वाकर्षण खो दे!

    By: Secret On: 10:00
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  • अक्सर हमने पढ़ा है कि यह ग्रेविटी ही है, जिसकी वजह से हम जमीन पर चल पा रहे हैं, ग्राउंडेड रहते हैं। गुरुत्वाकर्षण , जो कि एक साथ पदार्थ खींचने वाली प्राकृतिक घटना है। लेकिन क्या हो अगर हमारे ग्रह को पाँच सेकेंड्स तक गुरुत्वाकर्षण खोना पड़ जाए? तो क्या यह वास्तव में पृथ्वी पर जीवन का अंत हो सकता है?

    गुरुत्वाकर्षण किसी ऑब्जेक्ट को एक दूसरे की ओर खींचती है, कोई ऑब्जेक्ट जितना बड़ा हेगा, उसका ग्रेविटेशनल पुल भी उतना ही ज्यादा होगा। हम जानते हैं कि हमारी पृथ्वी बहुत बड़ी है और बहुत करीब है। इसकी गुरुत्वाकर्षण की वजह से जब हम कुछ हवा में भी फेंकते हैं तो वो ज़मीन पर आकर गिरता है।

    सूर्य पृथ्वी से बहुत अधिक बड़ा है, इतना की हमारे ग्रह की करीब 1 मिलियन से अधिक कॉपीज़ इसके अंदर फिट हो सकती हैं। यह सूरज का गुरुत्वाकर्षण ही है, जिसकी वजह से हमारा ग्रह और अन्य इसके चारों ओर ऑर्बिट करते हैं। गुरुत्वाकर्षण के बिना, इंसान और अन्य वस्तुएं वजनहीन हो जाती हैं।

    कभी फिल्में देखें जहां अंतरिक्ष यात्री चन्द्रमा पर अपने देश के झंडे लगाने की कोशिश कर रहे हैं? वे ऊपर और नीचे होते रहते हैं, क्योंकि चंद्रमा बहुत छोटा है और इसलिए वहां पृथ्वी की तुलना में बहुत कम गुरुत्व है। ऐसा ही कुछ अंतरिक्ष यान में वेटलेस होकर तैरते अंतरिक्ष यात्री के साथ भी होता है।

    वहीं पृथ्वी पर वापस आते ही वो वापस ज़मीन पर आ जाते हैं, क्योंकि यहां का गुरूत्वाकर्षण उन्हें वापस खींच लेता है। अगर धरती अचानक अपना सारा गुरूत्वाकर्षण को खो देती है, तो हम सिर्फ फ्लोटिंग शुरू नहीं करेंगे, बल्कि यह मानवों के साथ-साथ कारों और इमारतों जैसे चीजों को भी फास्ट-मूविंग बना देगा।

    इसका कारण यह है कि ग्रह गुरुत्वाकर्षण के बिना भी स्पिनिंग जारी रखेगा। गुरुत्वाकर्षण की हानि का मतलब होगा कि ग्रह हवा, पानी और पृथ्वी के वायुमंडल को भी नीचे खींचने से रोक देगा। शायद यही तबाही की वजह बन सकता है। अचानक और महत्वपूर्ण वायु दबाव के नुकसान से सभी के इनर ईयर को नुकसान पहुंचाएगा।

    Sunday 10 September 2017

    हम सपने क्यों देखते है?

    By: Secret On: 10:00
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  • मानव मस्तिष्क ग्रे पदार्थ की रहस्यमय छोटी गेंद है। शोधकर्ता अभी भी कई पहलुओं से चकित हैं कि यह कैसे और क्यों संचालित होता है। कई दशकों से वैज्ञानिक नींद और सपने की स्टडीज का अभ्यास कर रहे हैं, और हम अभी भी स्लपिंग के बारे में 100 प्रतिशत नहीं जानते हैं। हम यह नहीं जानते हैं कि वास्तव में हम कैसे और क्यों हम सपने देखते हैं। हम यह जानते हैं कि हमारे सपने का चक्र आम तौर पर नींद के आरईएम चरण के दौरान आता है।

    यह भी वैज्ञानिक समुदाय के बीच काफी सामान्य रूप से स्वीकार किया गया है कि हम सभी सपने देखते हैं, हालांकि हर आवृत्ति में देखे गए सपने अलग-अलग होते हैं। सपने वास्तव में कोई शारीरिक, जैविक या मनोवैज्ञानिक फंक्शन होते हैं या नहीं, इसका पता लगाना अभी बाकी है। कई सिद्धांत हैं कि हम सपने क्यों देखते हैं। एक यह है कि सपने हमारी नींद के साथ-साथ काम करते हैं।

    जिससे कि हमारे वेकिंग आवर्स के दौरान इकट्ठा हुई हर चीज के माध्यम से मस्तिष्क को सॉर्ट किया जा सके। आपका मस्तिष्क एक दिन में सैकड़ों हजारों चीजों से मिलता है और हर दिन लाखों इनपुट हमारे ब्रेन में सैट होते हैं। नींद के दौरान, मस्तिष्क इस सारी जानकारी को सॉर्ट करने के लिए काम करता है, यह तय करता है कि क्या रखना है और क्या भूलना है। कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि इस प्रक्रिया में सपने एक भूमिका निभाते हैं।

    ऐसे विचारों का समर्थन करने के लिए कुछ शोध भी हैं। अध्ययन से पता चलता है कि हम अपने जागने के समय में नई चीजें सीख रहे होते हैं, तो जब हम सोते हैं तो सपने बढ़ते हैं। एक अध्ययन में भाग लेने वाले जो लोग एक लैंग्वेज कोर्स कर रहे थे, वो उन लोगों की तुलना में अधिक सपना देखते हैं, जो कोर्स नहीं कर रहे थे। इस तरह के अध्ययनों में विचार है कि हम अपने सपनों का इस्तेमाल करते हैं और अल्पकालीन यादों को दीर्घकालिक यादों में परिवर्तित करते हैं।

    एक और सिद्धांत यह है कि सपनों को आम तौर पर हमारी भावनाओं को दर्शाता हैं। दिन के दौरान, हमारे दिमाग कुछ कार्यों को प्राप्त करने के लिए कनेक्शन बनाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। मस्तिष्क केवल मानसिक कार्य ही नहीं करता है यह सही संबंध बनाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। कुछ ने प्रस्ताव किया है कि रात में सब कुछ धीमा हो जाता है। हमें नींद के दौरान कुछ भी ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है, इसलिए हमारे दिमाग बहुत ढीले कनेक्शन बनाते हैं।

    नींद के दौरान है कि दिन की भावनाएं हमारे सपनों के चक्र में युद्ध करती हैं। उदाहरण के लिए, यदि आप अपनी नौकरी खोने के बारे में चिंतित हैं, तो आप सपने देख सकते हैं कि आप दिग्गजों की दुनिया में रहने वाले एक सिकुड़े हुए व्यक्ति हैं, या आप एक महान रेगिस्तानी खाई के माध्यम से निशाना बना रहे हैं। एक सिद्धांत यह है कि सपने सचमुच किसी भी फंक्शन में काम नहीं करते हैं, कि जब हमें नींद आती है तो वे मस्तिष्क की फायरिंग का सिर्फ एक बेकार उप-उत्पाद है।

    हम जानते हैं कि आरईएम की नींद के दौरान हमारे दिमाग का पीछे वाला भाग बहुत सक्रिय हो जाता है, इस दौरान सबसे ज्यादा सपना देखा जाता है। यह है कि जब तक मस्तिष्क ऐसे रहस्य रखता है, तब तक हम निश्चित रूप से बिल्कुल नहीं कह सकते कि हम सपने क्यों देखते हैं।

    Saturday 9 September 2017

    Neanderthals और आधुुनिक मानव के बीच क्या कुछ संबंध रहा, जानिए यहां

    By: Secret On: 08:24
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  • शोधकर्ताओं का कहना है कि Neanderthals  पहले की तुलना में मर चुके हैं। हाल ही के अध्ययन के निष्कर्ष में ये संकेत सामने आए हैं कि Neanderthals  आधुनिक मानवों के साथ भी  नहीं रहते थे, जैसा पहले माना गया था।

     एक अंतरराष्ट्रीय टीम के शोधकर्ताओं  ने 215 हड्डियों की जांच की है, जो पहले स्पेन में स्थित क्षेत्र में दक्षिणी इबेरिया में 11 साइटों से खुदाई की गई के दौरान मिली  थी। उनके आंकड़े बताते हैं कि आधुनिक मानव और Neanderthals वास्तव में इस क्षेत्र में पूरी तरह से अलग-अलग समय पर रहते थे, कभी भी मार्गों को पार नहीं कर सकते थे। इन निष्कर्षों में यह  सवाल भी आया कि क्या आधुनिक इंसान और Neanderthals एक बार सेक्स करते थे। निष्कर्ष यह दर्शाते हैं कि आधुनिक मानव में प्रवेश करने से पहल ही अंतर-प्रजनन पहले हो चुका होगा।

    इंटरब्रीड से आनुवंशिक सबूत वर्तमान आधुनिक मनुष्यों में 1 से 4 प्रतिशत हैं Neanderthals के डीएनए  से पता चलता है । वैज्ञानिकों ने विभिन्न प्रकार की तकनीकों का उपयोग करके कलाकृतियों और जीवाश्मों की आयु का पता लगाया है। उदाहरण के लिए, रेडियोगारबन डेटिंग कार्बन आइसोटोप कार्बन -12 और कार्बन -14 के बीच के अनुपात के आधार पर जैविक अवशेषों की आयु निर्धारित की गई ।

      जैफ़ोरैया गुफा में एक समान परत में Neanderthals जीवाश्म के रूप में पाया गया था। हड्डियों का अनुमान पहले 33,300 वर्ष की आयु में का था। हालांकि, एक अल्ट्राफिल्टरेशन तकनीक का उपयोग करके पता चला कि ये   46,700 साल से अधिक पुरानी थी।

     हमारे परिणाम 1990 के दशक के शुरूआती दिनों से स्वीकार किए गए एक अनुमान पर संदेह करते हैं जो Neanderthals जीवित रहने के लिए अंतिम स्थान दक्षिणी Iberian प्रायद्वीप में था। वैसे ज्यादातर सबूत ने इस विचार को समर्थन दिया है। ये निष्कर्ष बताते हैं कि आधुनिक इंसानों और Neanderthals ने इस क्षेत्र में बातचीत नहीं की है। पिछले अनुसंधान ने सुझाव दिया कि आधुनिक इंसान केवल 42,000 साल पहले शुरू हुए थे।

    Friday 8 September 2017

    हिन्दू धर्म के 10 ऐसे रहस्य, जो अब तक अनसुलझे हैं

    By: Om Tiwari On: 19:17
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  • 1.क्या कल्पवृक्ष अभी भी है?

    वेद और पुराणों में कल्पवृक्ष का उल्लेख मिलता है। कल्पवृक्ष स्वर्ग का एक विशेष वृक्ष है। पौराणिक धर्मग्रंथों और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यह माना जाता है कि इस वृक्ष के नीचे बैठकर व्यक्ति जो भी इच्छा करता है, वह पूर्ण हो जाती है, क्योंकि इस वृक्ष में अपार सकारात्मक ऊर्जा का भंडार होता है। यह वृक्ष समुद्र मंथन से निकला था। समुद्र मंथन से प्राप्त यह वृक्ष देवराज इन्द्र को दे दिया गया था और इन्द्र ने इसकी स्थापना 'सुरकानन वन' (हिमालय के उत्तर में) में कर दी थी।



    एक कल्प की आयु- कल्पवृक्ष का अर्थ होता है, जो एक कल्प तक जीवित रहे। लेकिन अब सवाल यह उठता है कि क्या सचमुच ऐसा कोई वृक्ष था या है? यदि था तो आज भी उसे होना चाहिए था, क्योंकि उसे तो एक कल्प तक जीवित रहना है। यदि ऐसा कोई-सा वृक्ष है तो वह कैसा दिखता है? और उसके क्या फायदे हैं? हालांकि कुछ लोग कहते हैं कि अपरिजात के वृक्ष को ही कल्पवृक्ष माना जाता है, लेकिन अधिकतर इससे सहमत नहीं हैं।



    3. क्या कामधेनु गाय होती थी?

    कामधेनु गाय की उत्पत्ति भी समुद्र मंथन से हुई थी। यह एक चमत्कारी गाय होती थी जिसके दर्शन मात्र से ही सभी तरह के दु:ख-दर्द दूर हो जाते थे। दैवीय शक्तियों से संपन्न यह गाय जिसके भी पास होती थी उससे चमत्कारिक लाभ मिलता था। इस गाय का दूध अमृत के समान माना जाता था।

    गाय हिन्दु्ओं के लिए सबसे पवित्र पशु है। इस धरती पर पहले गायों की कुछ ही प्रजातियां होती थीं। उससे भी प्रारंभिक काल में एक ही प्रजाति थी। आज से लगभग 9,500 वर्ष पूर्व गुरु वशिष्ठ ने गाय के कुल का विस्तार किया और उन्होंने गाय की नई प्रजातियों को भी बनाया, तब गाय की 8 या 10 नस्लें ही थीं जिनका नाम कामधेनु, कपिला, देवनी, नंदनी, भौमा आदि था। कामधेनु के लिए गुरु वशिष्ठ से विश्वामित्र सहित कई अन्य राजाओं ने कई बार युद्ध किया, लेकिन उन्होंने कामधेनु गाय को किसी को भी नहीं दिया। गाय के इस झगड़े में गुरु वशिष्ठ के 100 पुत्र मारे गए थे।



    4. 33 कोटि देवता-


    हिन्दू धर्म के अनुसार गाय में 33 कोटि के देवी-देवता निवास करते हैं। कोटि का अर्थ 'करोड़' नहीं, 'प्रकार' होता है। इसका मतलब गाय में 33 प्रकार के देवता निवास करते हैं। ये देवता हैं- 12 आदित्य, 8 वसु, 11 रुद्र और 2 अश्‍विन कुमार। ये मिलकर कुल 33 होते हैं।

    गाय की सूर्यकेतु नाड़ी : गाय की पीठ पर रीढ़ की हड्डी में स्थित सूर्यकेतु स्नायु हानिकारक विकिरण को रोककर वातावरण को स्वच्छ बनाते हैं। यह पर्यावरण के लिए लाभदायक है। दूसरी ओर, सूर्यकेतु नाड़ी सूर्य के संपर्क में आने पर यह स्वर्ण का उत्पादन करती है। गाय के शरीर से उत्पन्न यह सोना गाय के दूध, मूत्र व गोबर में मिलता है। यह स्वर्ण दूध या मूत्र पीने से शरीर में जाता है और गोबर के माध्यम से खेतों में। कई रोगियों को स्वर्ण भस्म दिया जाता है।



    5. पंचगव्य-


    पंचगव्य कई रोगों में लाभदायक है। पंचगव्य का निर्माण गाय के दूध, दही, घी, मूत्र, गोबर द्वारा किया जाता है। पंचगव्य द्वारा शरीर की रोग निरोधक क्षमता को बढ़ाकर रोगों को दूर किया जाता है। ऐसा कोई रोग नहीं है जिसका इलाज पंचगव्य से न किया जा सके।



    6. कैलाश पर्वत और देव आत्मस्थान-


    उत्तराखंड में एक ऐसा रहस्यमय स्थान है जिसे देवस्थान कहते हैं। मुण्डकोपनिषद के अनुसार सूक्ष्म-शरीरधारी आत्माओं का एक संघ है। इनका केंद्र हिमालय की वादियों में उत्तराखंड में स्थित है। इसे देवात्मा हिमालय कहा जाता है। इन दुर्गम क्षेत्रों में स्थूल-शरीरधारी व्यक्ति सामान्यतया नहीं पहुंच पाते हैं।



    7. अपने श्रेष्ठ कर्मों के अनुसार सूक्ष्म-


    शरीरधारी आत्माएं यहां प्रवेश कर जाती हैं। जब भी पृथ्वी पर संकट आता है, नेक और श्रेष्ठ व्यक्तियों की सहायता करने के लिए वे पृथ्वी पर भी आती हैं। देवताओं, यक्षों, गंधर्वों, सिद्ध पुरुषों का निवास इसी क्षेत्र में पाया जाता रहा है।



    8. देवस्था-



    प्राचीनकाल में हिमालय में ही देवता रहते थे। यहीं पर ब्रह्मा, विष्णु और शिव का स्थान था और यहीं पर नंदनकानन वन में इंद्र का राज्य था। इंद्र के राज्य के पास ही गंधर्वों और यक्षों का भी राज्य था। स्वर्ग की स्थिति 2 जगह बताई गई है- पहली हिमालय में और दूसरी कैलाश पर्वत के कई योजन ऊपर। यहीं पर मानसरोवर है और इसी हिमालय में अमरनाथ की गुफाएं हैं।



    9. अन्य रहस्यमय बातें-

    हिमालय में ही यति जैसे कई रहस्यमय प्राणी रहते हैं। इसके अलावा यहां चमत्कारिक और दुर्लभ जड़ी-बूटियां भी मिलती हैं। भारत और चीन की सेना ने हिमालय क्षेत्र में ही एलियन और यूएफओ को देखने का का दावा किया है। हिमालय में ही एक रूपकुंड झील है। इसके तट पर मानव कंकाल पाए गए हैं। पिछले कई वर्षों से भारतीय और यूरोपीय वैज्ञानिकों के विभिन्न समूहों ने इस रहस्य को सुलझाने के कई प्रयास किए, पर नाकाम रहे।



    10. सोमरस आखिर क्या था?


    सोमरस के बारे में अक्सर पढ़ने और सुनने को मिलता है। आखिर यह सोमरस क्या था? क्या यह शराब जैसा कोई पदार्थ था या कि यह व्यक्ति को युवा बनाए रखने वाला कोई रस था?



    ऋग्वेद में शराब की घोर निंदा करते हुए कहा गया है-

    ।।हृत्सु पीतासो युध्यन्ते दुर्मदासो न सुरायाम्।।

    अर्थात : सुरापान करने या नशीले पदार्थों को पीने वाले अक्सर युद्ध, मार-पिटाई या उत्पात मचाया करते हैं।

    हालांकि वेदों में शराब को बुराइयों की जड़ कहा गया है, ऐसे में वे देवताओं को कैसे शराब चढ़ा सकते हैं। सुरापान और सोमरस में फर्क था।

    अजगर की तरह उड़ने वाले जानवर।

    By: Secret On: 08:21
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  • एक विशाल प्राचीन उड़ने वाले सरीसर्प अजगर की तरह दिखते थे जिन्हें फिल्म "अवतार" में " ikran" नामक हवाई शिकारी के रुप में दिखाया गया है । शोधकर्ताओं ने कहा कि pterosaur जिसे अब Ikrandraco   (लैटिन में "ड्रैको" का अर्थ है ड्रैगन) कहा जाता है, पर ऐसा माना जा सकता pterosaur(ये उड़ने वाले सरीसृपों की एक श्रेणी ) उड़ने के लिए पंखों के झुंड के  पहले पीठों वाले जानवर थे।  डायनासोर के अंत में pterosaur  के विलुप्त होने से पहले ही वे सबसे बड़े जानवर थे, जो कभी पंछी थीं, जिसकी पंख 39 फीट (12 मीटर) तक थी। हालांकि डायनासोर के साथ pterosaur  रहते थे, इन उड़ाने वाले सरीसर्प (Ikrandraco) डायनासोर नहीं थे पर इन्हें डायनासोर की प्रजाति ही माना जाता है।।

    वैज्ञानिकों ने लगभग 120 मिलियन वर्ष पहले सरीसर्प के दो आंशिक कंकाल की जांच की थी, जो कि शुरुआती क्रेटासियस अवधि में था। उन्होंने इन जीवाश्मों को पूर्वोत्तर चीन के लिओनिंग प्रांत में शुष्क पहाड़ियों में की जो कि पिछले दशक में वहां पंख वाले डायनासोरों की खोज के लिए प्रसिद्ध रहा है।

    पहले जब सरीसृप जीवित था, उस क्षेत्र में जहां यह पाया गया था एक  मीठे पानी की झील थी जो गर्म जलवायु के साथ कई प्रकार के जानवरों जैसे मछली, कछुए, अन्य pterosaurs, पंख वाले डायनासोर, पक्षियों और स्तनधारियों के लिए घर हुआ करता था ।

    pterosaur लगभग 2.3 फीट (0.7 मीटर) लंबा था और इसके लगभग 4.9 फीट (1.5 मीटर) की पंख होते थे। इसकी लम्बी खोपड़ी और एक निचली जबड़े की चोटी पर एक अनोखा शिखा या हड्डी पर उभार था। Ikrandraco के जबड़े के शिखर के पीछे थोड़ा हुकुआ संरचना थी शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि इस पायदान ने मुलायम ऊतकों के लिए एक लंगर के रूप में काम किया होगा ।साथ ही यह भी सामने आया है कि Ikrandraco के पास गले की थैली थी जैसे कि पोलिकन भोजन का भंडार करने का उपयोग करता है

     शोधकर्ताओं ने कहा कि Ikrandraco को कभी-कभी पानी के ऊपर घूमते हुए और सतह के पास शिकार किया करते थे। हालांकि, Ikrandraco आधुनिक स्कीमिंग पक्षियों की तुलना में बड़ा है, इसलिए यह नियमित रूप से skimmed नहीं हो सकता है, बल्कि आमतौर पर शिकार के लिए उथले पानी में खड़ा होता था।

    Tuesday 5 September 2017

    जानिए x-ray की खोज से जुड़ी रोचक घटना।

    By: Successlocator On: 10:00
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  • क्या आपने कभी एक्स-रे करवाया है? मानव-शरीर में हड्डियों, दांतों और अंगों के साथ समस्याओं का विश्लेषण करने के लिए एक्स-रे का उपयोग किया जाता है। वहीं उद्योग में किसी धातु में दरारों का पता लगाने के लिए और हवाई अड्डे पर सामान का निरीक्षण करने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।

    ये तो हम सभी जानते हैं कि एक्स-रे हमारे लिए कितनी काम की चीज़ है, लेकिन फिर भी आपको जानकर हैरानी होगी कि एक्स-रे का आविष्कार जानबूझकर नहीं हुआ था। दरअसल ये 1895 में जर्मन भौतिकविद् विल्हेम कॉनराड रोन्टजेन द्वारा की गई एक आकस्मिक खोज है।

    ग्लास कैथोड-रे ट्यूबों के माध्यम से विद्युत धाराओं का प्रयोग करते हुए, रॉन्टजेन ने पाया कि बैरियम प्लैटिनोसाइनाइड का एक टुकड़ा चमक रहा है, जबकि ट्यूब मोटी ब्लैक कार्डबोर्ड में लगाई गई थी और वह कमरे के पास थी। उन्होंने सोचा कि शायद अंतरिक्ष में किसी तरह का रेडीएशन ट्रेवल कर रहा होगा।

    रोन्टजेन को तब तक अपनी खोज पूरी तरह से समझ नहीं आई थी, इसलिए उसने अपनी इस अस्पष्ट प्रकृति को एक्स-रेडिएशन करार दिया। अपने नए सिद्धांत का परीक्षण करने के लिए रोन्टजेन ने सबसे पहले अपनी पत्नी की मदद से अपनी पहली एक्सरे फोटो में उनके हाथों की हड्डियों और उसकी शादी की अंगूठी का एक्सरे निकाला।

    इस पहली तस्वीर को रॉन्टजेनोग्राम के रूप में जाना जाने लगा। उन्होंने पाया कि जब पूरे अंधेरे कमरे में इसे निकालते हैं, तो एक्स-रे अलग-अलग घनत्व की वस्तुओं के माध्यम से पारित होते हैं, जो कि उनकी पत्नी के हाथों की मांस और मांसपेशियों को अधिकतर पारदर्शी बनाता है।

    डेंसर हड्डियां और अंगूठी बेरियम प्लैटिनोसाइनाइड में शामिल एक विशेष फोटो प्लेट पर एक शेडो पीछे छोड़ती है। शब्द एक्स-विकिरण या एक्स-रे अब भी कभी-कभी जर्मन बोलने वाले देशों में रॉन्टजेन किरण के रूप में संदर्भित होता है। रोन्टजेन की खोज ने वैज्ञानिक समुदाय और जनता के बीच सबसे ज्यादा ध्यान आकर्षित किया।

    उन्होंने जनवरी 1896 में एक्स-रे पर अपना पहला सार्वजनिक व्याख्यान दिया और जीवित मांस के भीतर की हड्डियों को चित्रित करने की किरणों की क्षमता दिखायी। कुछ हफ्ते बाद कनाडा में, एक एक्स-रे का उपयोग मरीज के पैर में एक बुलेट को खोजने के लिए किया गया था।

    इस खोज के लिए 1901 में भौतिक विज्ञान का पहला नोबेल पुरस्कार मिला। रोन्टजेन ने जानबूझकर अपनी खोज को पेटेंट नहीं किया, क्योंकि उनका ये मानना था कि वैज्ञानिक प्रगति दुनिया के लिए होती है, ना कि लाभ के लिए।

    Monday 4 September 2017

    चूहों पर ही ज्यादातर प्रयोग क्यों होते है जानिए adhbhut कारण

    By: Successlocator On: 10:00
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  • यह सच है कि विज्ञान समुदाय में चूहे निश्चित रूप से सबसे आम टेस्ट सब्जेक्ट होते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में पशु शोध के करीब 95 प्रतिशत तक शोध चूहों पर आयोजित किये जाते हैं। हम यह भी जानते हैं कि यूरोपीय संघ में 79 प्रतिशत पशु परीक्षण के शोध और अध्ययन के लिए चूहों का इस्तेमाल होता है।

    हालांकि हम यह पता नहीं कर सकते हैं कि स्टडीज और प्रयोगों में कितने चूहों का उपयोग किया जाता है। जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका का कृषि विभाग परीक्षण के लिए इस्तेमाल की जाने वाली कई प्रजातियों का ट्रैक रखता है लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका में कोई भी अनुसंधान में इस्तेमाल किये गए सभी चूहों की एक विस्तृत सूची नहीं रखता है।

    हम जानते हैं कि 1965 से चूहों से जुड़े शैक्षणिक उद्धरणों की संख्या चौगुनी हो गई है, जबकि अधिकांश अन्य विषयों (कुत्तों, बिल्लियों, गिनी सूअरों, खरगोशों) का अध्ययन काफी निरंतर गति से किया जाता है। तो आखिर लैब्स इतने चूहों और चूहों का उपयोग क्यों कर रहे हैं?

    कुछ कारण व्यावहारिक हैं : वे छोटे हैं, वे नस्ल में आसान होते हैं और वे सस्ते होते हैं। जब आप कई विषयों पर परीक्षण कर रहे होते हैं और एक समय में एक से अधिक पीढ़ियों का अध्ययन करने में लाभ हो सकता है, लेकिन एक माइस या चूहे को बीट करना कठिन होता है।

    इसके अलावा वे स्तनधारी होते हैं, इसलिए हम सभी एक ही परिवार के कहे जा सकते हैं। इस प्रकार ये लगभग समान आनुवांशिकी का निर्माण करते हैं, वो भी बिना किसी खराब प्रभाव के। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारे स्तनधारी कृंतक मित्र प्राइमेट्स नहीं है। जबकि प्राइमेट्स आनुवंशिक रूप से हमसे बहुत करीब से जुड़े होते हैं।

    अनुसंधान में प्राइमेट का उपयोग बेहद विवादास्पद होता है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि चूहों के जीन को बदलना आसान होता है। इस पर विचार करें : विज्ञान पिछले काम के निर्माण के बारे में भी है। प्रयोगशाला में चूहों और चूहों का उपयोग तेजी से बढ़ गया है, यह विकास वास्तव में उनकी लोकप्रियता का कारण हो सकता है।

    ऐसा इसलिए है क्योंकि इसका परिणाम इसके विपरीत होता है। यदि कोई वैज्ञानिक प्रयोगशाला परिवेश में किसी विशिष्ट जानवर का उपयोग करने का विकल्प चुनता है, तो समान या संबंधित शोधों का परीक्षण करते समय एक ही जानवर को चुनने के लिए बहुत सारी समझ चाहिए होती है।

    Sunday 3 September 2017

    आज भी अनसुलझा है Patna के अगम कुएं का रहस्य

    By: Successlocator On: 10:00
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  • प्राचीन भारत के पाटलिपुत्र को आज पटना के नाम से जाना जाता है, जो बिहार का प्रमुख शहर होने के साथ-साथ उसकी राजधानी भी है. नन्द वंश और मौर्य वंश के शासन काल में यह शहर न केवल मगध की, बल्कि पूरे भारत की सांस्कृतिक और आर्थिक राजधानी के रूप में विख्यात रहा है. भारत का यह ऐतिहासिक शहर आज भी अपने आप में कई रहस्यों को समेटे हुए हैं, उन्ही रहस्यों में से एक हैं Patna का अगम कुआं.
    इतिहासकार बताते हैं इस कुएं का निर्माण आज से लगभग दो हजार साल पहले हुआ था. जब से यह कुआं अपने अस्तित्व में आया है, तब से यह कभी सूखा नहीं है. यह अपने आप में एक हैरान कर देने वाला सच है.

    आखिर यह कुआं अब तक सूखा क्यों नहीं यह अभी तक एक पहली बना हुआ है. इस कुएं के बारे में यह कहा जाता है कि गर्मियों के समय इसका पानी एक से डेढ़ फुट नीचे और बारिश के समय यह एक से डेढ़ फुट तक बढ़ जाता है.
    सम्राट अशोक के समय में अस्तित्व में आये इस कुएं के रहस्य को जानने के लिए तीन बार कोशिश की जा चुकी है. पहली बार 1932 में, दूसरी बार 1965 में, और तीसरी बार 1995 में लेकिन अगम कुएं के रहस्य को अब तक नहीं सुलझाया जा सका है.

    कुएं के बारे में यह कहा जाता है कि कई बार भयंकर अकाल और सूखा पड़ने पर भी इस कुएं का पानी नहीं सूखा. यहां तक कि बाढ़ आने पर भी कुएं के पानी में कोई ख़ास बढ़ोत्तरी भी नहीं हुई. स्थानीय लोग इस कुएं के बारे में एक और रहस्यमयी बात बताते हैं हुए कहते हैं की कुएं के पानी का रंग अक्सर बदलता रहता है.
    यहां के लोग इस कुएं का संबंध पश्चिम बंगाल में स्थित गंगा सागर से बताते हैं. लोगों का कहना है कि एक बार एक अंग्रेज की छड़ी गंगा सागर में गिर गयी जो बहते-बहते पाटलिपुत्र के इस कुएं में आ गयी थी.
    आज भी वह छड़ी कोलकाता के एक म्यूजियम में मौजूद है. सम्राट अशोक के समय में भारत आये चीनी दार्शनिकों ने भी अपनी पुस्तक में इस अजीब कुएं का जिक्र किया था.

    Saturday 2 September 2017

    एक गुड़िया की सच्ची कहानी जिस पर 4 फिल्में बन चुकी हैं

    By: Successlocator On: 12:29
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  • एनाबेल क्रिएशन फिल्म रिलीज हो चुकी है. जिसमें एक ऐसी गुड़िया की कहानी बताई गई है जिसमें एक शैतान की आत्मा बसती है और जो उसे अपने घर में पनाह देता है वो उसी की जान लेने की कोशिश करती है. वैसे तो लोगों के दिलों में हमेशा से ये सवाल रहा है कि क्या नाम की चीज होती है? लेकिन इस दावे को सच करती है यह फिल्म जो एक सत्य घटना पर आधारित है और ये घटना हुई थी दशकों पहले अमेरिका में.

    हॉलीवुड में बनी चर्चित फिल्म ‘The Conjuring’ के चौथे पार्ट ‘एनाबेल क्रिएशन’ डरावनी फिल्मों में दिलचस्पी रखने वालों को अपनी ओर खींच रही है. ये चौथी फिल्म एक गुड़िया ‘Annabelle’ पर आधारित है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि ये इस गुड़िया की कहानी सिर्फ फिल्मी नहीं है, असल में ये असल जिंदगी में भी लोगों की जिंदगी में डर और खौफ भर चुकी है.
    ये गुड़िया आज भी अमेरिका के Occult विशेषज्ञ दंपति Ed और लॉरेन के म्यूजियम में रखी हुई है. आज तो ये किसी को परेशान नहीं कर रही, लेकिन आज से करीब 40 साल पहले इसने अमेरिका के कई परिवारों के जीवन में आतंक भर दिया था. देखने ये भले ही एक आम गुड़िया की तरह ही दिखती है और फिल्म की डॉल से अलग दिखती है, लेकिन इसकी कहानी फिल्म की कहानी से कहीं ज्यादा भयानक है.

    Annabelle की डरावनी कहानी 1970 में शुरू हुई थी, जब एक महिला ने अपनी बेटी डोना के जन्मदिन के लिए इस डॉल को खरीदा था. डोना इस डॉल को अपने फ्लैट पर ले आई थी. डोना यहां अपनी दोस्त Angie के साथ रहती थी. जैसे ही उन्होंने फ्लैट में कदम रखा, उन्होंने इस गुड़िया में कुछ अजीबोगरीब हलचल महसूस की.
    इसी घटना के बाद से ही उसकी हरकतें बढ़ने लगीं, जैसे कि इस डॉल को डोना के बेड पर बैठाया गया, लेकिन वो Angie के कमरे के बाहर बैठी मिलीं थी. लेकिन अभी तो ये शैतानी हरकतों की शुरुआत थी, अभी तो इसका असली आतंक सामने आना था. डोना का एक दोस्त लॉउ इस गुड़िया के आस-पास बेहद नर्वस हो जाता था. उसे ऐसा महसूस होता था कि इस डॉल में कोई बुरी आत्मा रहती है, लेकिन डोना और Angie ने उसकी बातों को टाल दिया. इसी के कुछ दिनों बाद ही उनके फ्लैट के आस-पास बच्चे की हेंड-राइटिंग में ‘हमें बचा लो’ और ‘लॉउ को बचा लो’ जैसे नोट्स मिलने लगे.

    डोना एक बार जब ऑफिस से घर वापस आईं तो उन्होंने पाया कि Annabelle के हाथ ‘खून’ से सने हुए थे. वो यूं तो अपने बेड पर बैठी थी, लेकिन उसके हाथों पर लाल रंग लगा हुआ था. इसके बाद जब इस फ्लैट का इतिहास खंगाला गया, तो पता चला कि अपार्टमेंट बनने से पहले ये जगह एक खाली मैदान था. यहां कई साल पहले एक 7 साल की बच्ची Annabelle Higgins की लाश पाई गई थी. जब इस डॉल को फ्लैट में लाया गया था, उस समय Annabelle की आत्मा इसी क्षेत्र में थी. ऐसा माना जाता है कि Annabelle इस डॉल की मुरीद हो गई और उसने इसके बेजान शरीर पर कब्जा कर लिया.
    इस फ्लैट में अब अजीबोगरीब घटनाएं बढ़ती जा रही थीं. एक रात लॉउ एक बेहद बुरे सपने से उठा और उसे घबराहट महसूस होने लगी. उसने आस-पास देखा तो पाया कि वो डॉल धीरे-धीरे उसकी तरफ बढ़ रही थी और अचानक सामने आकर उसका गला दबाने लगी. लॉउ अपने Senses खो चुका था और सुबह जब वो उठा तो उसे पता नहीं था कि जो भी उसके साथ हुआ वो सपना था या हकीकत.
    इसी के कुछ दिनों बाद लॉउ ने देखा कि Annabelle कुर्सी पर बैठी हुई थी, लेकिन वो जानते थे कि आमतौर पर उसे वहां नहीं रखा जाता था. जैसे ही वो उस गुड़िया की तरफ बढ़े, उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि कोई उनके पीछे है. जब तक वो कुछ समझ पाता उसके पीठ पर किसी ने नाखूनों से वार कर दिए. उन्हें ऐसा लगा कि किसी ने उसकी पीठ पर कई बार हमले किए हों चुके थे. लॉउ की पीठ पर सात नाखूनों के निशान थे. लेकिन सबसे हैरानी की बात ये थी कि ये सभी निशान दो दिनों में अपने आप ही गायब हो गए.
    वो सभी हादसे के बाद बेहद डर गए और उन्होंने इस मामले से निपटने के लिए एक पादरी मदद ली. लेकिन पादरी ने इस मामले में हाथ डालने से मना कर दिया और Occult विशेषज्ञों से सलाह लेने की बात कही. इसके बाद डोना ने एक Occult विशेषज्ञ दंपति से संपर्क किया और वो थे Ed और लॉरेन. ये दोनों ही पति पत्नी थे. उन्होंने बताया कि बेजान वस्तु होने के बावजूद Annabelle की आत्मा इस गुड़िया से जुड़ चुकी है. इसलिए ये डॉल एक रहस्यमयी और भयानक डॉल में तब्दील हो चुकी है.
    Ed ने इस फ्लैट को अपनी पूजापाठ से ‘पवित्र’ किया और उसके बाद उस गुड़िया को लेकर अपने घर ले गए, जहां उन्होंने उसे अपने म्यूजियम में रख दिया. कुछ ही दिनों बाद एक पादरी Ed के घर आया. उसने जब इस गुड़िया के बारे में सुना, तो वो इसके पास पहुंचा और कहा कि तुम किसी का कुछ नहीं बिगाड़ सकती और उसका मजाक बनाने लगा।

    लेकिन इस घटना के बाद Ed को एहसास हो गया था कि पादरी को उस गुड़िया के बारे में ऐसा नहीं कहना चाहिए था. पादरी के जाने के थोड़ी देर बाद ही Ed को एक फोन आया. दूसरी लाइन पर वह पादरी ही था और वो बेहद डरा हुआ था. उसने बताया कि उसकी कार का ब्रेक फेल हो गया था और लेकिन किसी तरह वो अपनी जान बचाने में कामयाब रहा. लॉरेन वॉरेंस अपने म्यूजियम में. वे कभी इस गुड़िया की तरफ नहीं देखती हैं
    Ed समझ चुके था कि ये मामला बेहद गंभीर है. उन्होंने कुछ खास प्रार्थनाओं के जरिए इस डॉल को एक ग्लास बॉक्स में रख कर बंद कर दिया. उसके बाद से ही वो डॉल इस म्यूजियम में रखी हुई है लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई थी. Ed की पत्नी लॉरेन का मानना है कि आज भी अगर इस गुड़िया का कोई मजाक उड़ाने की कोशिश करता है, तो ये गुड़िया उन्हें जिंदा नहीं छोड़ती है.
    इस म्यूजियम में पहुंचे किसी व्यक्ति ने भी एक बार उस गुड़िया का मजाक उड़ाया था और कुछ ही देर में उस आदमी की सड़क हादसे में मौत हो गई. साल 2006 में Ed का देहांत हुआ था, लेकिन उनकी पत्नी आज भी इस गुड़िया की तरफ़ नहीं देखती हैं क्योंकि वे इससे बेहद नफरत करती हैं.।