क्या द्रोपदी थी अभिमन्यु के वध का कारण ? जाने महाभारत की अनसुनी कहानी !
Draupadi :-
कुरुक्षेत्र के भूमि में लड़ी गयी महाभारत के युद्ध से तो हम सभी परिचित है ( draupadi ). अपने बचपन के दिनों से ही हम पांडवो और कौरवों के मध्य हुए भीषण युद्ध के बारे में सुनते और पढ़ते आये है. महाभारत का युद्ध पांडवो और कौरवों के बीच हस्तिनापुर के सम्राज्य को लेकर उनके बीच बिगड़ते रिश्तों पर आधारित था. कौरवों के अंदर अपने चचेरे भाइयो पांडवो के लिए पनप रही ईर्ष्या ही महाभारत जैसे भयंकर युद्ध का कारण बनी.वैसे तो लालच, ईर्ष्या, जलन आदि ने पांडवो और कौरवों को एक-दूसरे से अलग रख रखा था, परतु जब से पांडवो का विवाह पांचाल नरेश की राजकुमारी द्रोपदी ( draupadi ) से हुआ तब से पांडवो और कौरवों के मध्य कुछ ऐसे घटनाक्रम घटित हुए जिसने महाभारत जैसे भीषण युद्ध की नींव रख दी.
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हम यह तो जानते है की द्रोपदी ( draupadi ) द्वारा दुर्योधन का एक बार भरी सभा में अपमान किया था जिसके प्रतिशोध में दुर्योधन ने भी द्रोपदी ( draupadi ) का भरी सभा में चीरहरण किया था जो महाभारत के युद्ध के कारणों में से एक था.
परन्तु बहुत सी अनेक घटनाएं भी ऐसी घटित हुई है की जो यह सिद्ध करती है की द्रोपदी ( draupadi ) ने भी महाभारत के युद्ध की बुन्याद रखी थी. अर्थात जहाँ पांडव और कौरव इस युद्ध के लिए जिम्मेदार थे उतना ही द्रोपदी भी इस युद्ध के लिए कहीं न कहीं बराबर की उत्तरदायी थी. आइये जानते कौन सी वे ऐसी घटनाएं थी जो द्रोपदी ( draupadi ) को भी महाभारत के युद्ध का बराबर का जिम्मेदार बनाती है.
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1 .द्रोपदी ( draupadi ) से जुडी पहली घटना जिसने महाभारत युद्ध को अंजाम दिया था, जब इंद्रप्रस्थ राज्य में युवराज युधिस्ठर का राज्याभिषेक हो रहा था तब दुर्योधन भी उस अवसर पर इंद्रप्रस्थ पहुंचा था. इंद्रप्रस्थ के महल की रचना मयदानव ने की थी.
उसने अपनी माया से उस महल की रचना इस प्रकार से की थी की कोई भी व्यक्ति वहां की हर चीजों से धोखा खा सकता था. दुर्योधन भी इसी चाल में आ गया और फर्श समझकर तालाब में गिर गया. तब दुर्योधन की उस दशा को देखकर द्रोपदी ( draupadi ) बहुत जोर से हसी और दुर्योधन पर व्यंग्य कस्ते हुए कहा की ”अंधे का पुत्र तो अंधा ही होता है” . उस समय दुर्योधन ने अपनी भरी सभा में हुए अपमान का बदला लेने का दृढ़निश्चय किया था.
दुर्योधन अपने अपमान का बदला भुला नहीं था उसने भरी सभा में अपने भाई दुःशासन के हाथो द्रोपदी का चिर हरण करने का प्रयास किया. पांडवो सहित भीष्म, दोणाचार्य सभी मूक बने रहे कोई भी द्रोपदी ( draupadi ) का सम्मान बचा नहीं पाया. उस समय द्रोपदी ( draupadi ) ने यह प्रतिज्ञा ली थी की वह तब तक अपने खुले बालों को में जुड़ा नहीं करेगी जब तक वह दुःशासन के रक्त से अपने बाल धो ना ले. द्रोपदी ( draupadi ) की यही प्रतिज्ञा ने पांडवो को भी क्रोधित किया और यह भी महाभारत के युद्ध की ओर बढ़ा एक कदम साबित हुआ.
3 .पांडव के एक चोपड़ का दाँव हारने के कारण उन्हें वनवास भी मिला था. इस वनवास के लिए जब पांडव वन की ओर जा रहे थे तब द्रोपदी ( draupadi ) भी उनके साथ गई. पांडव द्रोपदी को महल में ही रखना चाहते थे परन्तु द्रोपदी ( draupadi ) का पांडवो के साथ वनवास की लिए चलने का मुख्य कारण यह था की पांडव चाहे जिस हाल में भी रहे परन्तु उन्हें अपनी पत्नी का अपमान सदैव याद रखना होगा. अतः पांडवो को अपने अपमान का प्रतिशोध याद दिलाने के लिए द्रोपदी ( draupadi ) ने भी पांडवो के साथ वनवास को चुना.
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जब अर्जुन जयद्रध का वध करने के लिए आगे बढ़ा तो द्रोपदी ( draupadi ) ने अर्जुन को ऐसा करने से किसी तरह रोक लिया तथा जयद्रध का सर मुड़वाकर उसे पांच चोटी रखने की सजा दे दी. अब जयद्रध किसी को मुंह दिखाने के लायक नहीं रह गया था तथा अपने इसी अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए जयद्रध ने महभारत युद्ध में चक्रव्यूह में फसे अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु का वध किया था.
5 .द्रोपदी ( draupadi ) के पिता ने दोणाचार्य के वध की प्रतिज्ञा ले रखी थी और वह यह जानते थे की अर्जुन के अल्वा कोई अन्य द्रोण का वध नहीं कर सकता अतः उन्होंने अपनी पुत्री द्रोपदी ( draupadi ) का विवाह पांडवो से करवाया था.
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