महभारत युद्ध में यह योद्धा अपने हर शत्रु से था अधिक बलवान, जाने अभिमन्यु से जुड़े रहस्य !
महाभारत युद्ध में सर्वश्रेष्ठ धनुधर कहलाने वाले अर्जुन का पुत्र था वीर अभिमन्यु. अभिमन्यु ने महाभारत में अपनी वीरता, बुद्धिमानी, कौशल एवं पौरुष का एक महान उदाहरण पेश किया था. अर्जुन की भाँती ही अभिमन्यु भी अपने पिता के समान आकर्षक एवं युद्ध कौशल में निपुण थे या यह कहे की वह अपने पिता अर्जुन की छाया लेकर उतपन्न हुए थे.
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शास्त्रों का आरंभिक ज्ञान अभिमन्यु को भगवान श्री कृष्ण के पुत्र प्रद्युमन ने दिया था. अपने पिता से वे धनुरविद्या के ज्ञान में कुशल हुए थे. अभिमन्यु के संबंध में यह बहुत ही रोचक बात पुराण में बताई गई है की उन्होंने न केवल अपने जीवन काल में बल्कि जब वह अपनी माता सुभद्रा के कोख में थे तभी उन्होंने युद्ध का ज्ञान सीख लिया था.
यह तब की बात है जब अर्जुन एक दिन अपनी पत्नी सुभद्रा को चक्रव्यूह कला की तकनीक समझा रहे थे उस समय अभिमन्यु सुभद्रा के गर्भ से ही अपने पिता अर्जुन की बातो को सुन रहा था. अर्जुन ने चक्रव्यूह की कला के संबंध में सुभद्रा को बताया की कैसे चक्रव्यूह के भीतर घुसना है, उसे भेदना है तथा उससे बाहर निकलना है.
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सुभद्रा को सोये देख अर्जुन ने उन्हें आगे परेशान न करने की सोची और वहां से चले गए. इस प्रकार सुभद्रा के गर्भ में अभिमन्यु ने चक्रव्यूह से संबंधित अनेक महत्वपूर्ण ज्ञान ले लिया. परन्तु जो महत्वपूर्ण एवं अंतिम जानकारी चक्रव्यूह के संबंध में थी वह अभिमन्यु सीख न सके.
सम्पूर्ण महाभारत में यदि अर्जुन के आल्वा किसी व्यक्ति में चक्रव्यूह भेदने का साहस था तो वह केवल अभिमन्यु ही थे.
गुरु द्रोण ने अर्जुन को चक्रव्यूह की कला को सिखाई थी यह कला द्रोण ने खुद अपने पुत्र अश्वथामा को भी नहीं सिखाई थी. अभिमन्यु अपने पिता की भाति ही चक्रव्यूह को तोड़ने तथा उसके भीतर घुसने में कुशल थे परन्तु वे चक्रव्यूह से बहार निकलने का ज्ञान नहीं जानते थे. और इसी का फायदा उनके शत्रुओ ने उठाया.
एक पौराणिक कथा के अनुसार अभिमन्यु के पिता अर्जुन ने उनकी माता सुभद्रा को द्वारका से भगाकर विवाह किया था. सुभद्रा के ज्येष्ठ भ्राता बलराम सुभुद्रा का विवाह कौरवों में ज्येष्ठ दुर्योधन से करना कहते थे. परन्तु भगवान श्री कृष्ण ने तो कुछ और ही सोच रखा था. भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को सुभद्रा को साथ में भगा ले जाने का इशारा किया और इस में वे सफल भी हुए. एक पीढ़ी के बाद जब बलराम की पुत्री वत्स्ला पैदा हुई तो उसका विवाह बलराम ने दुर्योधन के पुत्र लक्ष्मण से करने की ठानी.
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यह बात जब श्रीकृष्ण को पता लगी तो उन्होंने बरसों पहले अपनाई गई उस योजना को दोहराने का निश्चय किया. उन्होंने अभिमन्यु को घटोत्कच की मदद लेने को कहा.घटोत्कच ने आज्ञा अनुसार वत्सला का हरण किया और अंत में अभिमन्यु और वत्सला का विवाह हुआ.
अभिमन्यु का वास्तविक कौशल सभी ने महाभारत युद्ध के 13 वे दिन देखा वे यह देख जब अभिमन्यु एक के बाद एक कौरवों के महारथियों को पराजित कर रहे थे. कौरव सेना भयभीत हो गई.वह समझ नहीं पा रहे थे कि किस प्रकार से अभिमन्यु को रोका जाए.
गुरु द्रोण ने पांडवो को युद्ध के लिए चुनौती दी तथा उन्हें घेरने के चक्रव्यूह का निर्माण किया उधर उन्होंने अर्जुन को भी किसी कार्य में उलझाकर रणभूमि से बाहर कर दिया.
अर्जुन इस बात से अंजान थे की गुरु द्रोण पांडवो के लिए चक्र व्यूह की रचना कर रखी है.
अर्जुन की अनुपस्थिति में द्रोणाचार्य ने एक विशाल चक्रव्यूह की रचना की. इस चक्रव्यूह को यदि अर्जुन के बाद कोई भेद सकता था, तो वह था उनका पुत्र अभिमन्यु. तब शेष पाण्डवों ने यह योजना बनाई कि अब वे पीछे नहीं हट सकते, लेकिन अभिमन्यु को सहारा देने के लिए चक्रव्यूह के भीतर जाएंगे.
अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु चक्रव्यूह को भेदने के लिए उसके भीतर घुस गए. उन्होंने बड़ी कुशलता से चक्रव्यूह के छः चरण भेद लिए. तथा साथ दुर्योधन के पुत्र लक्ष्मण का भी वध कर दिया. अपने पुत्र के मृत्यु की सुचना पाकर दुर्योधन अत्यधिक क्रोधित हो गया तथा उसने युद्ध के सभी नियम तोड़ डाले व फिर ऐसा हुआ जो इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ था.
छह चरण पार करने के बाद अभिमन्यु जैसे ही सातवें और आखिरी चरण पर पहुंचा, तो उसे दुर्योधन, जयद्रथ आदि सात महारथियों ने घेर लिया. अपने सामने इतने सारे महारथी देख कर भी अभिमन्यु ने साहस ना छोड़ा. उन्होंने अभिमन्यु के रथ को घेर लिया और उसके घोड़ों को मार दिया.
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इसके बाद कौरवों द्वारा अभिमन्यु का तलवार भी तोड़ दिया गया व उसके उसके हाथ में स्थित रथ के पहिए को चकनाचूर कर दिया. अब अभिमन्यु पूरी तरह से निहत्थे हो गए थे इस पर भी उन्होंने हार नहीं मानी और वे कौरवों को समाना करते रहे.
तभी जयद्रथ ने पीछे से निहत्थे अभिमन्यु पर ज़ोरदार प्रहार किया. उस वार की मार अभिमन्यु सह ना सका और वीरगति को प्राप्त हो गया. अभिमन्यु की मृत्यु का समाचार जब अर्जुन को मिला तो वह बेहद क्रोधित हो उठे और अपने पुत्र की मृत्यु के लिए शत्रुओं का सर्वनाश करने का फैसला किया.
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