महाभारत के सबसे बड़े रहस्य का खुलासा, शकुनि के अद्भुत पासे का राज !
Mahabharat ke rahasya
महाभारत युद्ध का सबसे प्रमुख कारण होने के बावजूद शकुनि के पात्र को काम आंका जाता है. इस बात से कोई भी इंकार नहीं कर सकता की यदि महाभारत के पात्र में शकुनि नहीं होता तो शायद महाभारत की सम्पूर्ण कथा ही कुछ और होती.
शकुनि तथा इसके पासो ने कुरु वंशजों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा कर दिया. वह शकुनि ही था जिसने कौरवों और पांडवों को इस कदर दुश्मन बना दिया कि दोनों ही एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए.
क्या आप जानना नहीं चाहते कि आखिर शकुनि यह सब करने के लिए क्यों बाध्य हुआ? ऐसा क्या राज था शकुनि का जिसके चलते उसने अपनी बहन के पति को ही अपना सबसे बड़ा दुश्मन समझ लिया था?
चौसर, शकुनि का प्रिय खेल था. वह पासे को जो अंक लाने के लिए कहता हैरानी की बात है वही अंक पासे पर दिखाई देता. इस चौसर के खेल से शकुनि ने द्रौपदी का चीरहरण करवाया, पांडवों से उनका राजपाठ छीनकर वनवास के लिए भेज दिया, भरी सभा में उनका असम्मान करवाया.
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पासे की इस स्वामिभक्त से तो हम कई बार परिचित हो चुके है लिखें क्या आप जानते है शकुनि का अपने पासों से इतना गहरा संबंध और कुरुवंश को तबाह करने की मंशा एक-दूसरे के साथ गहराई से जुड़ी हैं, जिसकी नींव गांधारी के जन्म के साथ ही रख दी गई थी.
जब गांधारी की कुंडली बनवाई गई थी तो उसमे एक हैरान करने वाली बात सामने आई थी.
ज्योतिषाचार्यों ने गांधारी के पिता को बताया कि गांधारी की कुंडली में उसके दो विवाह होने के योग हैं. गांधारी की पहले पति की मौत निश्चित है, उसका दूसरा पति ही जीवित रह सकता है.
ऐसा कर गांधारी की कुंडली में पति की मौत के योग समाप्त हो गए और उसका परिवार उसके दूसरे विवाह और पति की आयु को लेकर निश्चिंत हो गया. जब गांधारी विवाह योग्य हुई तब उसके लिए धृतराष्ट्र का विवाह प्रस्ताव पहुंचाया गया.
इस विवाह के प्रस्ताव को गांधारी के माता पिता ने स्वीकार कर लिया परन्तु जब गांधारी को इस विषय में पता चला तो उन्होंने अपनी माता पिता को दिए गये वाचन के कारण इस विवाह प्रस्ताव को स्वीकार किया.
लेकिन शकुनि को यह कदापि स्वीकार नहीं हुआ की उसकी बहन का विवाह उसे सूचित किये बगैर ऐसे व्यक्ति से किया जो दृष्टिहीन है. परन्तु फिर भी गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र से कर दिया गया.
लेकिन विवाह होने के बाद जब धृतराष्ट्र को गांधारी के विधवा होने जैसी बात पता चली तो वह आगबबूला हो उठा. क्रोध के आवेग में आकर धृतराष्ट्र ने गांधार नरेश पर आक्रमण किया और उस परिवार के सभी पुरुष सदस्यों को कारागार में डलवा दिया.युद्ध में बंधकों की हत्या करना पाप से कम नहीं है अतः धृष्टराष्ट्र ने उन्हें भूख से तड़पा तड़पा कर मारने की सोची.
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उन्होंने सर्वसम्मित से अपने सबसे छोटे पुत्र को जीवित रखने का विचार किया ताकि वह धृतराष्ट्र के पुरे परिवार को नष्ट कर सके. मुट्ठी भर चावल केवल शकुनि को दिए जाते थे ताकि वह जीवित रह सके, इस तरह धीरे धीरे अन्य बंधकों की मृत्यु होने लगी.
शकुनि के सामने धीरे-धीरे कर उसका पूरा परिवार समाप्त हो गया और उसने यह ठान ली कि वह कुछ भी कर कुरुवंश को समाप्त कर देगा. अपने अंतिम क्षणों में शकुनि के पिता ने उससे कहा कि उसकी मौत के पश्चात उनकी अस्थियों की राख से वह एक पासे का निर्माण करें.
ऐसा भी कहा जाता है की शकुनि के पासे में उसके पिता की आत्मा वास करती थी जिस कारण वह पासा शकुनि की बात मानता था.
इसके अलावा शकुनि के पासे से चर्चित एक अन्य कथा भी है जो काफी तर्किक है . दरसल शकुनि के पासे के भीतर एक भवरा था जो हर बार शकुनि के पैरो में आकर गिरता था.
इसलिए जब भी पासा गिरता था तो वह छः अंक ही दर्शाता था. शकुनि इस बात से भली भाँति वाकिफ था इसलिए वह भी छः अंक ही कहता था.
शकुनि का छोटा भाई मटकुनि इस बात को जानता था पासे के भीतर भवरा है.इसलिए कुरुक्षेत्र के युद्ध से पूर्व उसने चौपड़ के खेल में शकुनि के विरुद्ध जाकर युधिष्ठिर की मदद की थी.
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