आखिर क्यों दिए थे हनुमान जी ने भीम को अपने शरीर के तीन बाल, एक अनसुनी कथा !
Bheem :-
महाभारत युद्ध समाप्त हो चुका था तथा इस युद्ध में पांडवो ने कौरवों पर विजयी प्राप्त कर ली थी. ( bheem ) पांडव हस्तिनापुर में खुसी-खुसी अपने दिन काट रहे थे तथा प्रजा को भी राजा युधिस्ठर के रहते किसी चीज की कमी नहीं थी. एक दिन देवऋषि नारद मुनि महाराज युधिस्ठर के सामने प्रकट हुए और कहा यहाँ आप तो खुस लग रहे पर क्या आप को पता है की स्वर्गलोक में आपके पिता बहुत दुखी है.
जब युधिस्ठर ने देवऋषि से इसका कारण पूछा तो वह बोले पाण्डु अपने जीते जी राजसूय यज्ञ कराना चाहते थे जो वे न कर सके इसी बात को लेकर वे दुखी रहते है. महाराज युधिस्ठर ! आपको आपके पिता के आत्मा के शांति के लिए यह यज्ञ करवाना चाहिए.
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युधिस्ठर ने उन्हें यज्ञ में बुलाने था ढूढ़ने का जिम्मा भीम ( bheem ) को दिया. अपने बड़े भ्राता की आज्ञा पाते ही भीम ऋषि पुरुष मृगा को धुंध ने निकल पड़े. जंगल में चलते वक्त भीम को मार्ग में भी हनुमान जी दिखाई दिए जिन्होंने भीम के घमंड को चूर किया .
दोनों ही वायु के पुत्र थे इस लिहाज से से भाई भी थे. जब भीम ( bheem ) हनुमान जी से आज्ञा पाकर अपने मुख्य काम के लिए जा रहे थे तब हनुमान जी ने भीम ( bheem ) को अपने शरीर के तीन बाल दिए थे तथा कहा था की इन्हे अपने पास रखो संकट के समय में ये तुम्हारे काम आएंगे.
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कुछ दुरी पर ही चलकर भगवान शिव को पुरुष मृगा मिल गए जो महादेव शिव की स्तुति कर रहे थे. भीम ( bheem ) ने उनके पास जाकर उन्हें प्रणाम किया तथा अपने आने का प्रयोजन बताया. इस पर ऋषि पुरुष मृगा भी उनके साथ चलने को राजी हो गए.
पर इसके साथ ही पुरुष मृगा ने यह शर्त रखी की भीम ( bheem ) को ऋषि पुरुष मृगा से पहले हस्तिनापुर पहुंचना होगा नहीं तो वे उन्हें खा जाएंगे. भीम ने ऋषि पुरुष मृगा की यह शर्त स्वीकार कर ली तथा अपनी पूरी शक्ति के साथ वे हस्तिनापुर की और भागे.
भगवान शिव के परम भक्त होने के कारण ऋषि पुरुष मृगा प्रत्येक शिवलिंग को प्रणाम करते हुए आगे बढ़ने लगे और वही भीम ( bheem ) भी लगातार भागते रहे. जब भीम को लगा की ऋषि अब फिर से उन्हें पकड़ ही लेंगे उन्होंने फिर से एक बाल गिरा दिया और वह बहुत से शिवलिंग में परिवर्तित हो गए.
इस प्रकार से भीम ( bheem ) ने ऐसा तीन बार किया. अंत में जब भीम हस्तिनापुर के द्वार में घुसने ही वाले थे की ऋषि पुरुष मृगा ने उन्हें पीछे से पकड़ लिया, हालाकि भीम ने छलांग लगाई थी परन्तु उनके पैर दरवाजे के बाहर ही रह गए थे.
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इस पर पुरुष मृगा ने उन्हें खाना चाहा, इसी दौरान भगवान कृष्ण और युधिस्ठर दरवाजे पर पहुंच गए. दोनों को देखकर युधिस्ठर ने भी बहस करनी शुरू कर दी, तब युधिस्ठर से पुरुष मृग ने न्याय करने को कहा.
तब युधिस्ठर ने ऋषि पुरुष मृगा से कहा की भीम के केवल पैर ही द्वार के बहार रह गए थे अतः आप केवन भीम ( bheem ) के पैर ही खा सकते है. युधिस्ठर के न्याय से ऋषि पुरुष मृगा प्रसन्न हुए तथा उन्होंने भीम ( bheem ) को जीवनदान दिया. इसके बाद ऋषि यज्ञ में भी सम्लित हुए तथा सबको आशीर्वाद दिया.
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