महाभारत के रहस्य – आखिर क्यों कर्ण ने अपना सोने का दांत भगवन श्री कृष्ण को दिया !
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महाभारत के रहस्य – ( mahabharat ke rahasya ) :- महाभारत के रहस्य जो शायद ही पहले कभी आपने सुने होंगे ! mahabharat ke rahasya in hindi.
1.कौरवो के सेनाओ की संख्या महभारत के युद्ध में लगातार कम हो रही थी, जिसे देख एक दिन दुर्योधन बहुत चिंतित हुआ. उसे समझ नही आ रहा था की भीष्म पितामाह जैसे सेनापति, दोर्णाचार्य व कर्ण जैसे योद्धाओ और कृष्ण की नारायणी सेना उसके पक्ष में होने के बावजूद युद्ध में उसे निरंतर पराजय का मुख देखना पड़ रहा था.यह सोचते हुए वह उसी पल भीष्म पितामाह के समीप गया और कहा की आप में अब पहले जैसा सामर्थ्य नही रहा आप युद्ध में कमजोर पड़ रहे है . जिसे सुन भीष्म पितामह क्रोधित हो गए तथा अपने तरकश से पांच तीर निकाल कर उन में मन्त्र प्रभाव से शक्ति भरी और दुर्योधन से कहा कल में इन तिरो से पांचो पांडवो को यमलोक पहुंचाउंगा. क्योकि पांडव भीष्म पितामाह के प्रिय थे अतः दुर्योधन को उन पर विश्वास नही हुआ.
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अब वह समय आ गया है क्योकि दुर्योधन के पास पांच अत्यंत शक्तिशाली तीर है. जो तुम पांचो भाइयो के अंत के लिए पर्याप्त है अतः दुर्योधन के पास जाके उन तिरो को मांग लो. अर्जुन बिना विलम्ब किये उसी क्षण दुर्योधन के पास पहुंचे और उनसे उन तिरो को माँगा. दुर्योधन एक क्षत्रिय था, क्षत्रिय अपने प्राण देकर भी अपने वचनो को निभाते है. अतः दुर्योधन के ना चाहते हुए भी उसे उन तिरो को अर्जुन को सौपना पड़ा.
2.पांडवो के पिता ने अपने पांचो पुत्रो को उनकी मृत्यु के पश्चात उनका मांस खाने को कहा था ताकि वे अपने पिता के ज्ञान को प्राप्त कर सके. परन्तु उनकी इस इच्छा को केवल उनके पुत्र सहदेव ने पूरा किया.सहदेव अपने मृत पिता के समीप गया. जैसे ही उसने अपने मृत पिता का एक टुकड़ा खाया उसे समस्त भूतकाल का ज्ञान हो गया इसी प्रकार जैसे उसने दूसरा टुकड़ा खाया उसमे वर्तमान का ज्ञान समा गया.
इस तरह तीसरा टुकड़ा खाते ही उसे भविष्य में होने वाली समस्त घटनाओ का ज्ञान हो गया. सहदेव अपने सभी भाइयो में सबसे ज्यादा बुद्धिमानी था. दुर्योधन पांडवो का सबसे बड़ा शत्रु था फिर भी वह सहदेव के ज्ञान के कारण उनके पास गया और महाभारत युद्ध को आरम्भ करने के लिए शुभ मुहर्त के बारे में पूछा. तथा सहदेव ने बिना अपने ज्ञान का अभिमान किये दुर्योधन को यही मुहर्त बताया.
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महाभारत का यह युद्ध 18 दिन तक चला और सेनिको के भोजन में कभी भी कमी नही आई. एक दिन कुछ सेनिको ने राजा उडुपी से पूछा की आप को पूर्व से ही कैसे होता है, भोजनशाला में कितने व्यक्तियों के लिए भोजन तैयार होगा. राजा उडुपी ने इसका श्रेय भगवान कृष्ण को बतलाया. उन्होंने कहा भगवान कृष्ण जितना भोजन युद्ध आरम्भ करने के पूर्व करते थे उससे हमे पता लग जाता था की आज युद्ध में कितने सैनिक मारे जायेंगे, युद्ध समाप्त होने के बाद हम उसी हिसाब से भोजन पकाते थे.
4.एक बार भगवान श्री कृष्ण ने अपने भ्राता बलराम तथा उनकी पत्नी रेवती की पुत्री वत्सला का विवाह अर्जुन पुत्र अभिमन्यु से करने का प्रस्ताव रखा. जिसके लिए सब राजी थे. परन्तु बलराम को अपने कार्य से कहि जाना पड़ा जिस कारण उनका विवाह उनके लौटने तक स्थगित हो गया. इसी बीच पांडवो और कौरवो ने मिलकर चोपड़ के खेल का आयोजन किया जिसमे पांडव शकुनि के चोपड़ में किये धुर्ता के कारण राज्य सहित अपना सब कुछ गवा बैठे तथा उन्हें तेरह वर्ष के लिए वनवास जाना पड़ा.
बलराम के वापस लौटने पर उन्हें जब पांडवो के विषय में समाचार मिला तो उन्होने अपनी पुत्री वत्सला का विवाह अभिमन्यु से तोड़ दिया. दुर्योधन बलराम का शिष्य रह चूका था अतः बलराम चाहते थे की उनकी पुत्री का विवाह दुर्योधन के पुत्र लक्ष्मण से हो. अभिमन्यु को यह बात पता चलने पर वह बहुत व्याकुल हो गए. वे वत्सला से प्रेम करते थे. अतः वे कृष्ण के पास अपनी यह समस्या ले कर गए. बलराम कृष्ण के बड़े भाई थे इसलिए कृष्ण ने मदद करने में असमर्थता जताई, और उन्हें अपने भाई घटोच्कच के पास जाने को कहा.
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कभी वे लक्ष्मण के कानो को खीचते तो कभी दूसरे मर्दो को छेड़ते. उनके इस हरकत को देख लक्ष्मण भय के मारे विवाह मंडप से भाग गया. जब बलराम ने दुर्योधन के पुत्र को कायर की तरह भागते देखा तो वे दुर्योधन से क्रोधित हो गए और और अपनी पुत्री का विवाह दुर्योधन के पुत्र से तोड़ अभिमन्यु से सम्पन्न कराया .
5. वास्तव में कौरव 100 नहीं बल्कि 102 थे इनमे एक थी गांधारी की पुत्री दुशाला जो कौरवों की इकलौती बहन थी और दूसरा था युयुत्सु. युयुत्सु महाभारत का एक उज्जवल और तेजस्वी एक पात्र है. यह पात्र इसलिए विशेष है क्योंकि महाभारत का युद्ध आरम्भ होने से पूर्व धर्मराज युद्धिष्ठिर के आह्वान इस पात्र ने कौरवों की सेना का साथ छोड़कर पाण्डव सेना के साथ मिलने का निर्णय लिया था. युयत्सु एक वैश्य महिला का बेटा था. दरअसल, धृतराष्ट्र के संबंध एक दासी के साथ थे जिससे युयत्सु पैदा हुआ था.
6.महाभारत में कर्ण को महादानी की संज्ञा दी गई है. महाभारत के युद्ध के उपरांत, सूर्यास्त के समय कर्ण घायल अवस्था में भूमि पर लेटे हुए अपनी आखरी सास की प्रतीक्षा कर रहे थे.उसी समय भगवान श्री कृष्ण उनके समीप एक ब्राह्मण का रूप धारण कर आये. वे कर्ण के दानवीरता की परीक्षा लेना चाहते थे. ब्राह्मण रूप में कृष्ण के समीप गए. घायल अवस्था में भी कर्ण ने उन्हें प्रणाम किया और उनके आने का कारण जानना चाहा. ब्रहामण बोले हमने आपकी दानवीरता की कीर्ति बहुत सुनी है, आप किसी को भी अपने समीप से खाली हाथ नही लौटने देते. आज यह ब्राह्मण आप से दान मागने आया है.
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कर्ण ने उस धारा द्वारा अपना वह सोने का दात धोया. तथा ब्राह्मण को देते हुए बोले ब्राह्मण जी अब यह गंगा की पवित्र धारा से धुलकर शुद्ध हो चूका हे कृपया ग्रहण करे .इस तरह कर्ण ने अपनी कृति सिद्ध करी.
7.इरावन अर्जुन और उनकी पत्नी-नाग कन्या उलूपी का पुत्र था. इरावन महाभारत के युद्ध में अपने पिता को जीतते हुए देखना चाहता था. अतः उसने अपने पिता की जीत के लिए खुद को बलि देने की प्रतिज्ञा ली. परन्तु मृत्यु से पूर्व उसकी विवाह करने की इच्छा थी. परन्तु कोई कन्या उसे विवाह के लिए नही मिली क्योकि सब जानते थे विवाह के बाद इरावन की मृत्यु हो जाएगी. अतः भगवान कृष्ण ने स्वयं मोहनी का रूप धारण कर इरावन से विवाह किया तथा इरावन के मृत्यु के समय वह उसके वियोग में रोये भी .
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