Monday, 19 September 2016

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महाभारत युद्ध का सबसे बड़ा खलनायक कौन?

By: Secret On: 20:30
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  • महाभारत युद्ध का सबसे बड़ा खलनायक कौन?

    आमतौर पर खलनायक एक ऐसा बुरा व्यक्ति होता है जिसमें आम मानवीय भावनाएं नहीं होती हैं। वह धर्म-विरुद्ध आचरण करता है और अपनी शक्ति का दुरुपयोग करके अपने हितों की रक्षा कर अपने तरीके से जीवन या चीजों को संचालित करता है। उपरोक्त लिखी हुई बातों को ध्यान रखेंगे तो आपको पता चलेगा कि कौन खलनायक हो सकते हैं

     

     

    कुरुक्षेत्र में लड़ा गया महाभारत का युद्ध भयंकर युद्ध था। इससे भारत का पतन हो गया। इस युद्ध में संपूर्ण भारतवर्ष के राजाओं के अतिरिक्त बहुत से अन्य देशों के राजाओं ने भी भाग लिया और सब के सब वीरगति को प्राप्त हो गए। लाखों महिलाएं विधवा हो गईं। इस युद्ध के परिणामस्वरूप भारत से वैदिक धर्म, समाज, संस्कृति और सभ्यता का पतन हो गया। इस युद्ध के बाद से ही अखंड भारत बहुधर्मी और बहुसंस्कृति का देश बनकर खंड-खंड होता चला गया।

    अब सवाल यह उठता है कि आखिर कौन इस युद्ध का जिम्मेदार था और कौन इस युद्ध का सबसे बड़ा खलनायक था? आलोचक कहते हैं कि पांडवों ने संपूर्ण युद्ध छलपूर्वक जीता और जो जीतता है इतिहास उसे ही नायक मानता है। ऐसे में यह कैसे तय होगा कि नायक कौन और खलनायक कौन?

    महाभारत युद्ध में सबसे बड़ा खलनायक कौन था? सभी इसका जवाब या तो शकुनि देंगे या फिर दुर्योधन। हो सकता है कि कुछ लोग धृतराष्ट्र या दु:शासन का नाम ले या यह भी हो सकता है कि कुछ लोग कर्ण या भीष्म का नाम लें। आओ हम जानते हैं... कौन था सबसे बड़ा खलनायक... यह जानने से पहले कौन कौन शामिल थे युद्ध में...

      युद्ध में...शामिल थे
    *कौरवों की ओर से : कौरवों की ओर से दुर्योधन व उसके 99 भाइयों सहित भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण, अश्वत्थामा, मद्रनरेश शल्य (श्रीराम की 50वीं पीढ़ी में शल्य हुए), भूरिश्रवा, अलम्बुष, कृतवर्मा कलिंगराज श्रुतायुध, शकुनि, भगदत्त, जयद्रथ, विन्द-अनुविन्द, काम्बोजराज सुदक्षिण और बृहद्वल युद्ध में शामिल थे।

    *पांडवों की ओर से : पांडवों की ओर से युधिष्ठिर व उनके 4 भाई भीम, नकुल, सहदेव, अर्जुन सहित सात्यकि, अभिमन्यु, घटोत्कच, विराट, द्रुपद, धृष्टद्युम्न, शिखण्डी, पांड्यराज, युयुत्सु, कुंतीभोज, उत्तमौजा, शैब्य और अनूपराज नील युद्ध में शामिल थे।

    *इस तरह सभी महारथियों की सेनाओं को मिलाकर कुल 1 करोड़ से ज्यादा लोगों ने इस युद्ध में भाग लिया था। उस काल में धरती की जनसंख्या ज्यादा नहीं थी।

    *कृष्ण की सेना लड़ी थी दुर्योधन की ओर से : पांडवों और कौरवों द्वारा यादवों से सहायता मांगने पर श्रीकृष्ण ने पहले तो युद्ध में शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा की और फिर कहा कि एक तरफ मैं अकेला और दूसरी तरफ मेरी एक अक्षौहिणी नारायणी सेना होगी।

    अब अर्जुन व दुर्योधन को इनमें से एक का चुनाव करना था। अर्जुन ने तो श्रीकृष्ण को ही चुना, तब श्रीकृष्ण ने अपनी एक अक्षौहिणी सेना दुर्योधन को दे दी और खुद अर्जुन का सारथी बनना स्वीकार किया। इस प्रकार कौरवों ने 11 अक्षौहिणी तथा पांडवों ने 7 अक्षौहिणी सेना एकत्रित कर ली।
     
    भीष्म : कुछ विद्वान कहते हैं कि देवव्रत (भीष्म) को खलनायक माना जाना चाहिए। भीष्म ने अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका की भावनाओं को कुचलकर जो कार्य किया वह अमानवीय था। आज वे ऐसा करते तो जेल में होते। भीष्म ने ऐसे कई अपराध किए, जो किसी भी तरह से धर्म द्वारा उचित नहीं थे इसलिए कहा जाता है कि वे अधर्म के साथ होने के कारण आदर्श चरित्र नहीं हो सकते।


    * शांतनु सत्यवती के रूप और सौंदर्य से मुग्ध होकर उससे प्यार करने लगे थे और वे उससे विवाह करना चाहते थे लेकिन सत्यवती ने उनके समक्ष ऐसी शर्त रख दी थी जिसे कि वे पूरी नहीं कर सकते थे। इसके कारण वे दुखी और उदास रहते थे। जब भीष्म को इसका कारण पता चला तो उन्होंने सत्यवती की शर्त मानकर अपने पिता शांतनु का विवाह सत्यवती से करवा दिया था। सत्यवती के कारण ही भीष्म को आजीवन ब्रह्मचर्य रहने की कसम खानी पड़ी थी।

    * सत्यवती के कहने पर ही भीष्म ने काशी नरेश की 3 पुत्रियों (अम्बा, अम्बालिका और अम्बिका) का अपहरण किया था। बाद में अम्बा को छोड़कर सत्यवती के पुत्र विचित्रवीर्य से अम्बालिका और अम्बिका का विवाह करा दिया था।

    * गांधारी और उनके पिता सुबल की इच्छा के विरुद्ध भीष्म ने धृतराष्ट्र का विवाह गांधारी से करवाया था। माना जाता है कि इसीलिए गांधारी ने भी अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी। आखिर अंत में गांधारी को दावाग्नि में जलकर खुद के प्राणों का अंत करना पड़ा था।

    * भरी सभा में जब द्रौपदी को निर्वस्त्र किया जा रहा था तो भीष्म चुप बैठे थे। भीष्म ने जानते-बुझते दुर्योधन और शकुनि के अनैतिक और छलपूर्ण खेल को चलने दिया। शरशैया पर भीष्म जब मृत्यु का सामना कर रहे थे, तब भीष्म ने द्रौपदी से इसके लिए क्षमा भी मांगी थी।

    * जब कौरवों की सेना जीत रही थी ऐसे में भीष्म ने ऐन वक्त पर पांडवों को अपनी मृत्यु का राज बताकर कौरवों के साथ धोखा किया था?

    * फिर भी भीष्म को किसी भी तरह से खलनायक नहीं माना जा सकता, क्योंकि भीष्म ने जो भी किया वह हस्तिनापुर के सिंहासन की रक्षा और कुरुवंश को बचाने के लिए किया। तो फिर सबसे बड़ा खलनायक कौन था? अगले पन्ने पर जारी...

    दूसरा खलनायक..
     धृतराष्ट्र : सत्यवती के चित्रांगद और विचित्रवीर्य नामक दो पुत्र हुए। पहला अल्पावस्था में मर गया तो दूसरे का विवाह काशी नरेश की पुत्री अम्बिका और अम्बालिका से किया गया, लेकिन इन दोनों से विचित्रवीर्य को कोई संतान नहीं हुई तब सत्यवती ने अपने पराशर से उत्पन्न पुत्र वेदव्यास के माध्यम से अम्बिका और अम्बालिका से पुत्र उत्पन्न कराए। अम्बिका से धृतराष्ट्र और अम्बालिका से पांडु का जन्म हुआ। उसी दौरान सत्यवती ने एक दासी से भी वेदव्यास को 'नियोग' करने का कहा जिससे विदुर जन्मे।

    पांडु तो शापवश जंगल चले गए, ऐसे में धृतरष्ट्र को सिंहासन मिला। किंवदंती है कि गांधारी धृतराष्ट्र से विवाह नहीं करना चाहती थी लेकिन भीष्म ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र से कराया था। लेकिन जब विवाह हो ही गया तब गांधारी ने सबकुछ भूलकर अपना जीवन पति-सेवा में लगा दिया। जब गांधारी गर्भ से थी तब धृतराष्ट्र ने अपनी ही सेविका के साथ सहवास किया जिससे उनको युयुत्सु नाम का एक पुत्र मिला।

    गांधारी के लाख समझाने के बावजूद धृतराष्ट्र ने अपने श्‍वसुर (गांधारी के पिता) और उसके पुत्रों (गांधारी के भाई) को आजीवन कारागार में डाल दिया था। क्यों? इसके लिए पढ़े मामा शकुनि थे कौरवों के दुश्मन नामक लेख।

    वयोवृद्ध और ज्ञानी होने के बावजूद धृतराष्ट्र के मुंह से कभी न्यायसंगत बात नहीं निकली। पुत्रमोह में उन्होंने कभी गांधारी की न्यायोचित बात पर ध्यान नहीं दिया। गांधारी के अलावा संजय भी उनको न्यायोचित बातों से अवगत कराकर राज्य और धर्म के हितों की बात बताता था, लेकिन वे संजय की बातों को नहीं मानते थे। वे हमेशा ही शकुनि और दुर्योधन की बातों को ही सच मानते थे। वे जानते थे कि यह अधर्म और अन्याय कर रहे हैं फिर भी वे पुत्र का ही साथ देते थे। अधर्म का साथ देने वाला कैसे नहीं खलनायक हो सकता है?
       
    तीसरा खलनायक...

    दुर्योधन : दुर्योधन की जिद, अहंकार और लालच ने लोगों को युद्घ की आग में झोंक दिया था इसलिए दुर्योधन को महाभारत का खलनायक कहा जाता है। महाभारत की कथा में ऐसा प्रसंग भी आया है कि दुर्योधन ने काम-पीड़ित होकर कुंवारी कन्याओं का अपहरण किया था।

    द्यूतक्रीड़ा में पांडवों के हार जाने पर जब दुर्योधन भरी सभा में द्रौपदी का का अपमान कर रहा था, तब गांधारी ने भी इसका विरोध किया था फिर भी दुर्योधन नहीं माना था। यह आचरण धर्म-विरुद्ध ही तो था। जब दुर्योधन को लगा कि अब तो युद्ध होने वाला है तो वह महाभारत युद्घ के अंतिम समय में अपनी माता के समक्ष नग्न खड़ा होने के लिए भी तैयार हो गया।

    महाभारत में दुर्योधन के अनाचार और अत्याचार के किस्से भरे पड़े हैं। पांडवों को बिना किसी अपराध के उसने ही तो जलाकर मारने की योजना को मंजूरी दी थी।
       
    चौथा खलनायक...

    अश्‍वत्थामा : माना जाता है कि अश्‍वत्थामा इस युद्ध का सबसे बड़ा खलनायक थे, क्योंकि उनके ही अप्रत्यक्ष संचालन में युद्ध चल रहा था। युद्ध में सबसे शक्तिशाली वही एकमात्र योद्धा थे। गुरु द्रोण के पुत्र अश्वत्थामा युद्ध की संपूर्ण कलाओं के ज्ञाता थे। उन्हें संपूर्ण वेदों और धर्मशास्त्रों का ज्ञान था। द्रोण ने अपने शिष्यों को हर तरह की शिक्षा दी थी लेकिन कुछ ऐसी विद्याएं और शिक्षाएं थीं, जो सिर्फ अश्‍वत्थामा ही जानते थे।

    अश्‍वत्थामा महाभारत युद्ध में कौरव-पक्ष के एक सेनापति थे। उन्होंने भीम-पुत्र घटोत्कच को परास्त किया तथा घटोत्कच पुत्र अंजनपर्वा का वध किया। उसके अतिरिक्त द्रुपदकुमार, शत्रुंजय, बलानीक, जयानीक, जयाश्व तथा राजा श्रुताहु को भी मार डाला था। उन्होंने कुंतीभोज के 10 पुत्रों का वध किया।

    जब पिता-पुत्र की जोड़ी (द्रोण-अश्‍वत्थामा) से महाभारत युद्ध में पांडवों की सेना में भय व्याप्त हो गया था और सेना तितर-बितर हो गई थी, तब पांडवों की सेना की हार देखकर श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से छलनीति का सहारा लेने को कहा, लेकिन युधिष्ठिर इसके लिए तैयार नहीं हुए। सभी के कहने पर युधिष्ठिर माने।

    इस योजना के तहत युद्धभूमि पर यह बात फैला दी गई कि 'अश्वत्थामा मारा गया'। जब गुरु द्रोणाचार्य ने धर्मराज युधिष्ठिर से अश्वत्थामा के मारे जाने की सत्यता जानना चाही, क्योंकि द्रोण जानते थे कि युधिष्ठिर कभी झूठ नहीं बोलेंगे। तो युधिष्ठिर ने जवाब दिया- 'हां, अश्वत्थामा मारा गया, परंतु हाथी।'

    जब युधिष्ठिर के मुख से 'हाथी' शब्द निकला, तब श्रीकृष्ण ने उसी समय जोर से शंखनाद कर दिया जिसके शोर से गुरु द्रोणाचार्य आखिरी शब्द नहीं सुन पाए और वे अपने प्रिय पुत्र अश्‍वत्थामा की मृत्यु का समाचार सुनकर हताश हो गए और उन्होंने अपने शस्त्र त्याग दिए और युद्धभूमि में आंखें बंद कर शोक अवस्था में भूमि पर बैठ गए।

    गुरु द्रोणाचार्य को इस अवस्था में देखकर द्रौपदी के भाई द्युष्टद्युम्न ने तलवार से उनका सिर काट डाला। यह युद्ध की सबसे भयंकर घटना थी। इस छल ने अश्‍वत्थामा को क्रोधित कर दिया।

    अश्वत्थामा ने द्रोणाचार्य वध के पश्चात अपने पिता की निर्मम हत्या का बदला लेने के लिए पांडवों पर नारायण अस्त्र का प्रयोग किया जिसके चलते पांडवों की सारी सेना मारी जाती है। कृष्ण ने पांडवों से कहा कि तुम तुरंत ही रथ से उतरकर इस नारायणास्त्र की शरण में चले जाओ, यही बचने का एकमात्र उपाय है। सभी पांडव भूमि पर घुटने टेककर हाथ जोड़कर बैठ जाते हैं। नारायण अस्त्र का प्रतिशोध नहीं करने से सभी बच जाते हैं।

    यह युद्ध का अंतिम दौर चल रहा था। दुर्योधन की जान संकट में पड़ गई थी। वह भीम से गदा युद्ध हार गया था। दुर्योधन के हारते ही पांडवों की जीत पक्की हो गई थी। सभी पांडव खेमे के लोग जीत की खुशी मना रहे थे। अश्‍वत्थामा दुर्योधन की यह हालत देखकर और दुखी हो जाता है।

    एक उल्लू द्वारा रात्रि को कौवे पर आक्रमण करने एक उल्लू उन सभी को मार देता है। यह घटना देखकर अश्‍वत्थामा के मन में भी यही विचार आता है और वह घोर कालरात्रि में कृपाचार्य तथा कृतवर्मा की सहायता से पांडवों के शिविर में पहुंचकर सोते हुए पांडवों के 5 पुत्रों को पांडव समझकर उनका सिर काट देता है। इस घटना से धृष्टद्युम्न जाग जाता है तो अश्‍वत्थामा उसका भी वध कर देता है।

    अश्वत्थामा के इस कुकर्म की सभी निंदा करते हैं। अपने पुत्रों की हत्या से दुखी द्रौपदी विलाप करने लगती है। उसके विलाप को सुनकर अर्जुन उस नीच-कर्म हत्यारे ब्राह्मण पुत्र अश्‍वत्थामा के सिर को काट डालने की प्रतिज्ञा लेते हैं। अर्जुन की प्रतिज्ञा सुन अश्वत्थामा भाग निकलता है, तब श्रीकृष्ण को सारथी बनाकर एवं अपना गाण्डीव-धनुष लेकर अर्जुन उसका पीछा करता है। अश्वत्थामा को कहीं भी सुरक्षा नहीं मिली तो भय के कारण वह अर्जुन पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर देता है।

    मजबूरी में अर्जुन को भी ब्रह्मास्त्र चलाना पड़ता है। ऋषियों की प्रार्थना पर अर्जुन तो अपना अस्त्र वापस ले लेता है लेकिन अश्वत्थामा अपना ब्रह्मास्त्र अभिमन्यु की विधवा उत्तरा की कोख की तरफ मोड़ देता है। कृष्ण अपनी शक्ति से उत्तरा के गर्भ को बचा लेते हैं।

    अंत में श्रीकृष्ण बोलते हैं, 'हे अर्जुन! धर्मात्मा, सोए हुए, असावधान, मतवाले, पागल, अज्ञानी, रथहीन, स्त्री तथा बालक को मारना धर्म के अनुसार वर्जित है। इसने धर्म के विरुद्ध आचरण किया है, सोए हुए निरपराध बालकों की हत्या की है। जीवित रहेगा तो पुनः पाप करेगा अतः तत्काल इसका वध करके और इसका कटा हुआ सिर द्रौपदी के सामने रखकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी करो।'

    श्रीकृष्ण के इन वचनों को सुनने के बाद भी अर्जुन को अपने गुरुपुत्र पर दया आ गई और उन्होंने अश्वत्थामा को जीवित ही शिविर में ले जाकर द्रौपदी के समक्ष खड़ा कर दिया। पशु की तरह बंधे हुए गुरुपुत्र को देखकर द्रौपदी ने कहा, 'हे आर्यपुत्र! ये गुरुपुत्र तथा ब्राह्मण हैं। ब्राह्मण सदा पूजनीय होता है और उसकी हत्या करना पाप है। आपने इनके पिता से इन अपूर्व शस्त्रास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया है। पुत्र के रूप में आचार्य द्रोण ही आपके सम्मुख बंदी रूप में खड़े हैं। इनका वध करने से इनकी माता कृपी मेरी तरह ही कातर होकर पुत्रशोक में विलाप करेगी। पुत्र से विशेष मोह होने के कारण ही वह द्रोणाचार्य के साथ सती नहीं हुई। कृपी की आत्मा निरंतर मुझे कोसेगी। इनके वध करने से मेरे मृत पुत्रलौट कर तो नहीं आ सकते! अतः आप इन्हें मुक्त कर दीजिए।'

    द्रौपदी के इन धर्मयुक्त वचनों को सुनकर सभी ने उसकी प्रशंसा की। इस पर श्रीकृष्ण ने कहा, 'हे अर्जुन! शास्त्रों के अनुसार पतित ब्राह्मण का वध भी पाप है और आततायी को दंड न देना भी पाप है अतः तुम वही करो जो उचित है।'

    उनकी बात को समझकर अर्जुन ने अपनी तलवार से अश्वत्थामा के सिर के केश काट डाले और उसके मस्तक की मणि निकाल ली। मणि निकल जाने से वह श्रीहीन हो गया। बाद में श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को 6 हजार साल तक भटकने का शाप दिया। अंत में अर्जुन ने उसे उसी अपमानित अवस्था में शिविर से बाहर निकाल दिया।
     
    अंत में जानिए सबसे बड़ा खलनायक...
    शकुनि : बहुत से लोग कहते हैं कि शकुनि नहीं होता तो महाभारत का युद्ध नहीं होता। सब कुछ ठीक चल रहा था। कौरवों और पांडवों में किसी प्रकार का मतभेद नहीं था, लेकिन शकुनि ने दोनों के बीच प्रतिष्ठा और सम्मान की लड़ाई पैदा कर दी। शकुनि ने ही दुर्योधन के मन में पांडवों के प्रति वैरभाव बिठाया था। शकुनि ने सिर्फ यही कार्य नहीं किया, उसने दुर्योधन सहित धृतराष्ट्र के सभी पुत्रों के चरित्र को बिगाड़ने का कार्य किया। उसका दिमाग छल, कपट और अनीति से परिपूर्ण था।

    शकुनि मामा थे कौरवों के दुश्मन!

    गांधारी की इच्छा के विरुद्ध भीष्म ने उसका विवाह धृतराष्ट्र से कराया था। यह बात शकुनि भूला नहीं था। उसने अपने तड़पते पिता की मृत्यु को देखा था। उसके सामने ही उसका पूरा परिवार नष्ट हो गया था। ऐसे में उसके मन में क्या धृतराष्ट्र और कौरवों के प्रति अच्छे भाव रह सकते हैं? इस पूरे घटनाक्रम को जानने के लिए ऊपर की लिंक पर क्लिक करें।

    माना जाता है कि शकुनि कौरवों और पांडवों दोनों के ही दुश्मन थे और वे दोनों का ही नाश देखना चाहते थे, क्योंकि धृतराष्ट्र ने शकुनि के माता-पिता, भाई और बहन को कारागार में बंद कर भूखों मार दिया था।

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