Tuesday, 13 September 2016

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दुर्योधन की मृत्यु के समय श्रीकृष्ण ने किया था इस रहस्य का खुलासा, पांडव एवं उनकी सम्पूर्ण सेना सिर्फ एक दिन में ही हो सकती थी पराजित !

By: Secret On: 14:13
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  • दुर्योधन की मृत्यु के समय श्रीकृष्ण ने किया था इस रहस्य का खुलासा, पांडव एवं उनकी सम्पूर्ण सेना सिर्फ एक दिन में ही हो सकती थी पराजित !



    Ashwathama Story in Hindi:-

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    महाभारत के युद्ध समाप्ति के बाद जब कुरुक्षेत्र के मैदान में दुर्योधन मरणासन अवस्था में अपनी अंतिम सासे ले रहा था तब भगवान श्री कृष्ण उससे मिलने गए. हालाँकि भगवान श्री कृष्ण को देख दुर्योधन क्रोधित नहीं हुआ परन्तु उसने श्री कृष्ण को ताने जरूर मारे.
    श्री कृष्ण ने दुर्योधन से उस समय कुछ न कहा परन्तु जब वह शांत हुआ तब श्री कृष्ण ने दुर्योधन को उसकी युद्ध में की गई उन गलतियों के बारे में बताया जो वह न करता तो आज महाभारत का युद्ध वह जीत चुका होता.
    कुरुक्षेत्र में लड़े गए युद्ध में कौरवों के सेनापति पहले दिन से दसवें दिन तक भीष्म पितामह थे, वहीं ग्याहरवें से पंद्रहवे तक गुरु दोणाचार्य ने ये जिम्मेदारी संभाली. लेकिन द्रोणाचार्य के मृत्यु के बाद दुर्योधन ने कर्ण को सेनापति बनाया.
    यही दुर्योधन के महाभारत के युद्ध में सबसे बड़ी गलती थी इस एक गलती के कारण उसे युद्ध में पराजय का मुख देखना पड़ा. क्योकि कौरवों सेना में स्वयं भगवान शिव के अवतार मौजूद थे जो समस्त सृष्टि के संहारक है.
    अश्वथामा ( ashwathama ) स्वयं महादेव शिव के रूद्र अवतार है और युद्ध के सोलहवें दिन यदि दुर्योधन कर्ण के बजाय अश्वथामा ( ashwathama ) को सेनापति बना चुका होता तो शायद आज महाभारत के युद्ध का परिणाम कुछ और ही होता.
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    इसके साथ ही दुर्योधन ने अश्वथामा ( ashwathama ) को पांडवो के खिलाफ भड़काना चाहिए था जिससे वह अत्यधिक क्रोधित हो जाए. परन्तु कहा जाता है की ”विनाश काले विपरीत बुद्धि ” दुर्योधन अपने मित्र प्रेम के कारण इतना अंधा हो गया था की अश्वथामा ( ashwathama ) अमर है यह जानते हुए भी उसने कर्ण को सेनापति चुना.
    कृपाचार्य अकेले ही एक समय में 60000 योद्धाओं का मुकाबला कर सकते थे लेकिन उनका भांजा ( कृपाचर्य की बहन कृपी अश्वथामा की बहन थी ) अश्वथामा ( ashwathama ) में इतना समार्थ्य था की वह एक समय में 72000 योद्धाओं के छक्के छुड़ा सकता था.
    अश्वथामा ( ashwathama ) ने युद्ध कौशल की शिक्षा केवल अपने पिता से ही गृहण नहीं करी थी बल्कि उन्हें युद्ध कौशल की शिक्षा इन महापुरषो परशुराम, दुर्वासा, व्यास, भीष्म, कृपाचार्य आदि ने भी दी थी.
    ऐसे में दुर्योधन ने अश्वथामा ( ashwathama ) की जगह कर्ण को सेनापति का पद देकर महाभारत के युद्ध में सबसे बड़ी भूल करी थी.
    भगवान श्री कृष्ण के समान ही अश्वथामा भी 64 कलाओं और 18 विद्याओं में पारंगत था.
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    युद्ध के अठारहवे दिन भी दुर्योधन ने रात्रि में उल्लू और कौवे की सलाह पर अश्वथामा ( ashwathama ) को सेनापति बनाया था. उस एक रात्रि में ही अश्वथामा ( ashwathama ) ने पांडवो की बची लाखो सेनाओं और पुत्रों को मोत के घाट उतार दिया था.
    अतः अगर दुर्योधन ऐसा पहले कर चुका होता था तो वह खुद भी न मरता और पांडवो पर जीत भी दर्ज कर चुका होता, हालाँकि यह काम अश्वथामा ( ashwathama ) ने युद्ध की समाप्ति पर किया था. जब अश्व्थामा ( ashwathama ) का यह कार्य दुर्योधन को पता चला था तो उसे शकुन की मृत्यु प्राप्त हुई थी.
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