Friday, 30 September 2016

दुनिया के टॉप 10 आविष्कार जो भारत ने किए

By: Secret On: 20:00
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  •  दुनिया के टॉप 10 आविष्कार जो भारत ने किए


    बहुत से लोग यह मानते या कहते पाए गए हैं कि पश्चिम ने विश्व को विज्ञान दिया और पूर्व ने धर्म। दूसरी ओर हमारे ही भारतीय लोग यह कहते हुए भी पाए गए हैं कि भारत में कोई वैज्ञानिक सोच कभी नहीं रही। ऐसे लोग अपने अधूरे ज्ञान का परिचय देते हैं या फिर वे भारत विरोधी हैं।
    भारत के बगैर न धर्म की कल्पना की जा सकती है और न विज्ञान की। हमारे भारतीय ऋषि-मुनियों और वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसे आविष्कार किए और सिद्धांत गढ़े हैं कि जिनके बल पर ही आज के आध‍ुनिक विज्ञान और दुनिया का चेहरा बदल गया है। सोचिए 0 (शून्य) नहीं होता तो क्या हम गणित की कल्पना कर सकते थे? दशमलव (.) नहीं होता तो क्या होता? इसी तरह भारत ने कई मूल: आविष्कार और सिद्धांतों की रचना की। आइए जानते हैं, उनमें से खास 10 आविष्कार जिन्होंने बदल दी दुनिया।
    1. विमान :
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    इतिहास की किताबों और स्कूलों के कोर्स में पढ़ाया जाता है कि विमान का आविष्कार राइट ब्रदर्स ने किया, लेकिन यह गलत है। हां, यह ठीक है कि आज के आधुनिक विमान की शुरुआत ओरविल और विल्बुर राइट बंधुओं ने 1903 में की थी। लेकिन उनसे हजारों वर्ष पूर्व ऋषि भारद्वाज ने विमानशास्त्र लिखा था जिसमें हवाई जहाज बनाने की तकनीक का वर्णन मिलता है।चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में महर्षि भारद्वाज द्वारा लिखित ‘वैमानिक शास्त्र’ में एक उड़ने वाले यंत्र ‘विमान’ के कई प्रकारों का वर्णन किया गया था तथा हवाई युद्ध के कई नियम व प्रकार बताए गए थे।
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    ‘गोधा’ ऐसा विमान था, जो अदृश्य हो सकता था। ‘परोक्ष’ दुश्मन के विमान को पंगु कर सकता था। ‘प्रलय’ एक प्रकार की विद्युत ऊर्जा का शस्त्र था जिससे विमान चालक भयंकर तबाही मचा सकता था। ‘जलद रूप’ एक ऐसा विमान था, जो देखने में बादल की भांति दिखता था।
    स्कंद पुराण के खंड 3 अध्याय 23 में उल्लेख मिलता है कि ऋषि कर्दम ने अपनी पत्नी के लिए एक विमान की रचना की थी जिसके द्वारा कहीं भी आया-जाया सकता था। रामायण में भी पुष्पक विमान का उल्लेख मिलता है जिसमें बैठकर रावण सीताजी को हर ले गया था।

    2.अस्त्र-शस्त्र :
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    धनुष-बाण, भाला या तलवार की बात नहीं कर रहे हैं। इसका आविष्कार तो भारत में हुआ ही है लेकिन हम आग्नेय अस्त्रों की बात कर रहे हैं। आग्नेयास्त्र, वरुणास्त्र, पाशुपतास्त्र, सर्पास्त्र, ब्रह्मास्त्र आदि अनेक ऐसे अस्त्र हैं जिसका आधुनिक रूप बंदूक, मशीनगन, तोप, मिसाइल, विषैली गैस तथा परमाणु अस्त्र हैं।
    वेद और पुराणों में निम्न अस्त्रों का वर्णन मिलता है:- इन्द्र अस्त्र, आग्नेय अस्त्र, वरुण अस्त्र, नाग अस्त्र, नाग पाशा, वायु अस्त्र, सूर्य अस्त्र, चतुर्दिश अस्त्र, वज्र अस्त्र, मोहिनी अस्त्र, त्वाश्तर अस्त्र, सम्मोहन/ प्रमोहना अस्त्र, पर्वता अस्त्र, ब्रह्मास्त्र, ब्रह्मसिर्षा अस्त्र, नारायणा अस्त्र, वैष्णव अस्त्र, पाशुपत अस्त्र आदि।
    महाभारत के युद्ध में कई प्रलयकारी अस्त्रों का प्रयोग हुआ है। उसमें से एक था ब्रह्मास्त्र। आधुनिक काल में परमाणु बम के जनक जे. रॉबर्ट ओपनहाइमर ने गीता और महाभारत का गहन अध्ययन किया। उन्होंने महाभारत में बताए गए ब्रह्मास्त्र की संहारक क्षमता पर शोध किया और अपने मिशन को नाम दिया ट्रिनिटी (त्रिदेव)। रॉबर्ट के नेतृत्व में 1939 से 1945 के बीच वैज्ञानिकों की एक टीम ने यह कार्य किया। 16 जुलाई 1945 को इसका पहला परमाणु परीक्षण किया गया।
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    परमाणु सिद्धांत और अस्त्र के जनक जॉन डाल्टन को माना जाता है, लेकिन उनसे भी 2,500 वर्ष पूर्व ऋषि कणाद ने वेदों में लिखे सूत्रों के आधार पर परमाणु सिद्धांत का प्रतिपादन किया था। भारतीय इतिहास में ऋषि कणाद को परमाणुशास्त्र का जनक माना जाता है। आचार्य कणाद ने बताया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं। कणाद प्रभास तीर्थ में रहते थे। विख्यात इतिहासज्ञ टीएन कोलेबु्रक ने लिखा है कि अणुशास्त्र में आचार्य कणाद तथा अन्य भारतीय शास्त्रज्ञ यूरोपीय वैज्ञानिकों की तुलना में विश्वविख्यात थे।

    3.पहिए का आविष्कार :
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    आज से 5,000 और कुछ 100 वर्ष पूर्व महाभारत का युद्ध हुआ जिसमें रथों के उपयोग का वर्णन है। जरा सोचिए पहिए नहीं होते तो क्या रथ चल पाता? इससे सिद्ध होता है कि पहिए 5,000 वर्ष पूर्व थे।
    पहिए का आविष्कार मानव विज्ञान के इतिहास में महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। पहिए के आविष्कार के बाद ही साइकल और फिर कार तक का सफर पूरा हुआ। इससे मानव को गति मिली। गति से जीवन में परिवर्तन आया। हमारे पश्‍चिमी विद्वान पहिए के आविष्कार का श्रेय इराक को देते हैं, जहां रेतीले मैदान हैं, जबकि इराक के लोग 19वीं सदी तक रेगिस्तान में ऊंटों की सवारी करते रहे।
    हालांकि रामायण और महाभारतकाल से पहले ही पहिए का चमत्कारी आविष्कार भारत में हो चुका था और रथों में पहियों का प्रयोग किया जाता था। विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता सिन्धु घाटी के अवशेषों से प्राप्त (ईसा से 3000-1500 वर्ष पूर्व की बनी) खिलौना हाथीगाड़ी भारत के राष्ट्रीय संग्रहालय में प्रमाणस्वरूप रखी है। सिर्फ यह हाथीगाड़ी ही प्रमाणित करती है कि विश्व में पहिए का निर्माण इराक में नहीं, बल्कि भारत में ही हुआ था।

    4.प्लास्टिक सर्जरी :
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    जी हां, प्लास्टिक सर्जरी के आविष्कार से दुनिया में क्रांति आ गई। पश्चिम के लोगों के अनुसार प्लास्टिक सर्जरी आधुनिक विज्ञान की देन है। प्लास्टिक सर्जरी का मतलब है- ‘शरीर के किसी हिस्से को ठीक करना।’ भारत में सुश्रुत को पहला शल्य चिकित्सक माना जाता है। आज से करीब 3,000 साल पहले सुश्रुत युद्ध या प्राकृतिक विपदाओं में जिनके अंग-भंग हो जाते थे या नाक खराब हो जाती थी, तो उन्हें ठीक करने का काम वे करते थे।
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    सुश्रुत ने 1,000 ईसापूर्व अपने समय के स्वास्थ्य वैज्ञानिकों के साथ प्रसव, मोतियाबिंद, कृत्रिम अंग लगाना, पथरी का इलाज और प्लास्टिक सर्जरी जैसी कई तरह की जटिल शल्य चिकित्सा के सिद्धांत प्रतिपादित किए थे। हालांकि कुछ लोग सुश्रुत का काल 800 ईसापूर्व का मानते हैं। सुश्रुत से पहले धन्वंतरि हुए थे।

    5.बिजली का आविष्कार :
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    महर्षि अगस्त्य एक वैदिक ॠषि थे। निश्चित ही बिजली का आविष्कार थॉमस एडिसन ने किया लेकिन एडिसन अपनी एक किताब में लिखते हैं कि एक रात मैं संस्कृत का एक वाक्य पढ़ते-पढ़ते सो गया। उस रात मुझे स्वप्न में संस्कृत के उस वचन का अर्थ और रहस्य समझ में आया जिससे मुझे मदद मिली।
    महर्षि अगस्त्य राजा दशरथ के राजगुरु थे। इनकी गणना सप्तर्षियों में की जाती है। ऋषि अगस्त्य ने ‘अगस्त्य संहिता’ नामक ग्रंथ की रचना की। आश्चर्यजनक रूप से इस ग्रंथ में विद्युत उत्पादन से संबंधित सूत्र मिलते हैं-
    संस्थाप्य मृण्मये पात्रे
    ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्‌।
    छादयेच्छिखिग्रीवेन
    चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥
    दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:।
    संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्‌॥
    -अगस्त्य संहिता
    अर्थात : एक मिट्टी का पात्र लें, उसमें ताम्र पट्टिका (Copper Sheet) डालें तथा शिखिग्रीवा (Copper sulphate) डालें, फिर बीच में गीली काष्ट पांसु (wet saw dust) लगाएं, ऊपर पारा (mercury‌) तथा दस्त लोष्ट (Zinc) डालें, फिर तारों को मिलाएंगे तो उससे मित्रावरुणशक्ति (Electricity) का उदय होगा।
    अगस्त्य संहिता में विद्युत का उपयोग इलेक्ट्रोप्लेटिंग (Electroplating) के लिए करने का भी विवरण मिलता है। उन्होंने बैटरी द्वारा तांबा या सोना या चांदी पर पॉलिश चढ़ाने की विधि निकाली अत: अगस्त्य को कुंभोद्भव (Battery Bone) कहते हैं।
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    6.बटन :
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    आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि शर्ट के बटन का आविष्कार भारत में हुआ। इसका सबसे पहला प्रमाण मोहन जोदड़ो की खुदाई में प्राप्त हुआ। खुदाई में बटनें पाई गई हैं। सिन्धु नदी के पास आज से 2500 से 3000 पहले यह सभ्यता अपने अस्तित्व में थी।

    7.ज्यामिति :
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    बौधायन भारत के प्राचीन गणितज्ञ और शुल्व सूत्र तथा श्रौतसूत्र के रचयिता हैं। पाइथागोरस के सिद्धांत से पूर्व ही बौधायन ने ज्यामिति के सूत्र रचे थे लेकिन आज विश्व में यूनानी ज्या‍मितिशास्त्री पाइथागोरस और यूक्लिड के सिद्धांत ही पढ़ाए जाते हैं।
    दरअसल, 2800 वर्ष (800 ईसापूर्व) बौधायन ने रेखागणित, ज्यामिति के महत्वपूर्ण नियमों की खोज की थी। उस समय भारत में रेखागणित, ज्यामिति या त्रिकोणमिति को शुल्व शास्त्र कहा जाता था।
    शुल्व शास्त्र के आधार पर विविध आकार-प्रकार की यज्ञवेदियां बनाई जाती थीं। दो समकोण समभुज चौकोन के क्षेत्रफलों का योग करने पर जो संख्या आएगी उतने क्षेत्रफल का ‘समकोण’ समभुज चौकोन बनाना और उस आकृति का उसके क्षेत्रफल के समान के वृत्त में परिवर्तन करना, इस प्रकार के अनेक कठिन प्रश्नों को बौधायन ने सुलझाया।
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    8.रेडियो :
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    इतिहास की किताब में बताया जाता है कि रेडियो का आविष्कार जी. मार्कोनी ने किया था, लेकिन यह सरासर गलत है। अंग्रेज काल में मार्कोनी को भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु के लाल डायरी के नोट मिले जिसके आधार पर उन्होंने रेडियो का आविष्कार किया। मार्कोनी को 1909 में वायरलेस टेलीग्राफी के लिए नोबेल पुरस्कार मिला। लेकिन संचार के लिए रेडियो तरंगों का पहला सार्वजनिक प्रदर्शन मिलीमीटर तरंगें और क्रेस्कोग्राफ सिद्धांत के खोजकर्ता जगदीश चंद्र बसु ने 1895 में किया था।
    इसके 2 साल बाद ही मार्कोनी ने प्रदर्शन किया और सारा श्रेय वे ले गए। चूंकि भारत उस समय एक गुलाम देश था इसलिए जगदीश चंद्र बसु को ज्यादा महत्व नहीं दिया गया। दूसरी ओर वे अपने आविष्कार का पेटेंट कराने में असफल रहे जिसके चलते मार्कोनी को रेडियो का आविष्कारक माना जाने लगा। संचार की दुनिया में रेडियो का आविष्कार सबसे बड़ी सफलता है। आज इसके आविष्कार के बाद ही टेलीविजन और मोबाइल क्रांति संभव हो पाई है।

    9.गुरुत्वाकर्षन का नियम :
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    हलांकि वेदों में गुरुत्वाकर्षन के नियम का स्पष्ट उल्लेख है लेकिन प्राचीन भारत के सुप्रसिद्ध गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री भास्कराचार्य ने इस पर एक ग्रंथ लिखा ‘सिद्धांतशिरोमणि’ इस ग्रंथ का अनेक विदेशी भाषाओं में अनुवाद हुआ और यह सिद्धांत यूरोप में प्रचारित हुआ।
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    न्यूटन से 500 वर्ष पूर्व भास्कराचार्य ने गुरुत्वाकर्षण के नियम को जानकर विस्तार से लिखा था और उन्होंने अपने दूसरे ग्रंथ ‘सिद्धांतशिरोमणि’ में इसका उल्लेख भी किया है।
    गुरुत्वाकर्षण के नियम के संबंध में उन्होंने लिखा है, ‘पृथ्वी अपने आकाश का पदार्थ स्वशक्ति से अपनी ओर खींच लेती है। इस कारण आकाश का पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है।’ इससे सिद्ध होता है कि पृथ्वी में गुत्वाकर्षण की शक्ति है।
    भास्कराचार्य द्वारा ग्रंथ ‘लीलावती’ में गणित और खगोल विज्ञान संबंधी विषयों पर प्रकाश डाला गया है। सन् 1163 ई. में उन्होंने ‘करण कुतूहल’ नामक ग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ में बताया गया है कि जब चन्द्रमा सूर्य को ढंक लेता है तो सूर्यग्रहण तथा जब पृथ्वी की छाया चन्द्रमा को ढंक लेती है तो चन्द्रग्रहण होता है। यह पहला लिखित प्रमाण था जबकि लोगों को गुरुत्वाकर्षण, चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण की सटीक जानकारी थी।

    10.भाषा का व्याकरण :
    बोलना, पढ़ना और लिखना
    दुनिया का पहला व्याकरण पाणिनी ने लिखा। 500 ईसा पूर्व पाणिनी ने भाषा के शुद्ध प्रयोगों की सीमा का निर्धारण किया। उन्होंने भाषा को सबसे सुव्यवस्थित रूप दिया और संस्कृत भाषा का व्याकरणबद्ध किया। इनके व्याकरण का नाम है अष्टाध्यायी जिसमें 8 अध्याय और लगभग 4 सहस्र सूत्र हैं। व्याकरण के इस महनीय ग्रंथ में पाणिनी ने विभक्ति-प्रधान संस्कृत भाषा के 4000 सूत्र बहुत ही वैज्ञानिक और तर्कसिद्ध ढंग से संग्रहीत किए हैं।
    अष्टाध्यायी मात्र व्याकरण ग्रंथ नहीं है। इसमें तत्कालीन भारतीय समाज का पूरा चित्र मिलता है। उस समय के भूगोल, सामाजिक, आर्थिक, शिक्षा और राजनीतिक जीवन, दार्शनिक चिंतन, खान-पान, रहन-सहन आदि के प्रसंग स्थान-स्थान पर अंकित हैं।
    इनका जन्म पंजाब के शालातुला में हुआ था, जो आधुनिक पेशावर (पाकिस्तान) के करीब तत्कालीन उत्तर-पश्चिम भारत के गांधार में हुआ था। हालांकि पाणिनी के पूर्व भी विद्वानों ने संस्कृत भाषा को नियमों में बांधने का प्रयास किया लेकिन पाणिनी का शास्त्र सबसे प्रसिद्ध हुआ।
    19वीं सदी में यूरोप के एक भाषा विज्ञानी फ्रेंज बॉप (14 सितंबर 1791- 23 अक्टूबर 1867) ने पाणिनी के कार्यों पर शोध किया। उन्हें पाणिनी के लिखे हुए ग्रंथों तथा संस्कृत व्याकरण में आधुनिक भाषा प्रणाली को और परिपक्व करने के सूत्र मिले। आधुनिक भाषा विज्ञान को पाणिनी के लिखे ग्रंथ से बहुत मदद मिली। दुनिया की सभी भाषाओं के विकास में पाणिनी के ग्रंथ का योगदान है।
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    इस तरह ऐसे सैंकड़ों आविष्कार है जो भारत के लोगों ने किए लेकिन चूंकि पश्‍चिम ने विश्व पर राज किया इसलिए इतिहास उन्होंने ही लिखा और उन्होंने साजिश के तहत खुद के दार्शनिक और वैज्ञानिकों को महिमामंडित किया। 

    दुनिया खोज रही है ये 10 रहस्य, आप भी जानिए...

    By: Secret On: 06:30
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  • दुनिया खोज रही है ये 10 रहस्य, आप भी जानिए...

    पहले बल्ब का जलना, विमान का उड़ना, सिनेमा और टीवी का चलन, मोबाइल पर बात करना और कार में घूमना एक रहस्य और कल्पना की बातें हुआ करती थीं। आज इसके आविष्कार से दुनिया तो बदल गई है, लेकिन आदमी वही मध्ययुगीन सोच का ही है। धरती तो कई रहस्यों से पटी पड़ी है। उससे कहीं ज्यादा रहस्य तो समुद्र में छुपा हुआ है। उससे भी कहीं ज्यादा आकाश रहस्यमयी है और उससे कई गुना अं‍तरिक्ष में अंतहीन रहस्य छुपा हुआ है।
    दुनिया में ऐसे कई रहस्य हैं जिनका जवाब अभी भी खोजा जाना बाकी है। विज्ञान के पास इनके जवाब नहीं हैं, लेकिन खोज जारी है। ऐसे कौन-कौन से रहस्य हैं जिनके खुलने पर इंसान ही नहीं, धरती का संपूर्ण भविष्य बदल जाएगा। आओ जानते हैं ऐसी ही 10 रहस्य और रोमांच से भरी बतों को...
     
    पहला रहस्य...

    1. : समय की सीमाएं लांघकर अतीत और भविष्य में पहुंचने की परिकल्पना तो मनुष्य करता रहा है। भारत में ऐसे कई साधु-संत हुए हैं, जो आंख बंद कर अतीत और भविष्य में झांक लेते थे। अब सवाल यह है कि यह काम मशीन से कैसे हो? इंग्लैंड के मशहूर लेखक एचजी वेल्स ने 1895 में 'द टाइम मशीन' नामक एक उपन्यास प्रकाशित किया, तो समूचे योरप में तहलका मच गया। उपन्यास से प्रेरित होकर इस विषय पर और भी कई तरह के कथा साहित्य रचे गए। इस कॉन्सेप्ट पर हॉलीवुड में एक फिल्म भी बनी।
     
    टाइम मशीन अभी एक कल्पना है। टाइम ट्रेवल और टाइम मशीन, यह एक ऐसे उपकरण की कल्पना है जिसमें बैठकर कोई भी मनुष्य भूतकाल या भविष्य के किसी भी समय में सशरीर अपनी पूरी मानसिक और शारीरिक क्षमताओं के साथ जा सकता है। अधिकतर वैज्ञानिक मानते हैं कि यह कल्पना ही रहेगी कभी हकीकत नहीं बन सकती, क्योंकि यह अतार्किक बात है कि कोई कैसे अतीत में या भविष्य में जाकर अतीत या भविष्य के सच को जान सकता है? 
     
    टाइम मशीन की कल्पना भी भारतीय धर्मग्रंथों से प्रेरित है। आप सोचेंगे कैसे? वेद और पुराणों में ऐसी कई घटनाओं का जिक्र है जिसमें कहा गया है कि कोई व्यक्ति ब्रह्मा के पास मिलने ब्रह्मलोक गया और जब वह धरती पर पुन: लौटा तो यहां एक युग बीत चुका था। अब सवाल यह उठता है कि कोई व्यक्ति एक युग तक कैसे जी सकता है? इसका जवाब है कि हमारी समय की अवधारणा धरती के मान से है लेकिन जैसे ही हम अंतरिक्ष में जाते हैं, समय बदल जाता है। जो व्यक्ति ब्रह्मलोक होकर लौटा उसके लिए तो उसके मान से 1 वर्ष ही लगा। लेकिन उक्त 1 वर्ष में धरती पर एक युग बीत गया, बुध ग्रह पर तो 2 युग बीत गए होंगे, क्योंकि वहां का 1 वर्ष तो 88 दिनों का ही होता है। अब हम टाइम मशीन की थ्‍योरी को समझें...
     
    पहले यह माना जाता था कि समय निरपेक्ष और सार्वभौम है अर्थात सभी के लिए समान है यानी यदि धरती पर 10 बज रहे हैं तो क्या यह मानें कि मंगल ग्रह पर भी 10 ही बज रहे होंगे? लेकिन आइंस्टीन के सापेक्षता सिद्धांत के अनुसार ऐसा नहीं है। समय की धारणा अलग-अलग है।
     
    आइंस्टीन ने कहा कि दो घटनाओं के बीच का मापा गया समय इस बात पर निर्भर करता है कि उन्हें देखने वाला किस गति से जा रहा है। मान लीजिए की दो जुड़वां भाई हैं- A और B। एक अत्यंत तीव्र गति के अंतरिक्ष यान से किसी ग्रह पर जाता है और कुछ समय बाद पृथ्वी पर लौट आता है जबकि B घर पर ही रहता है। A के लिए यह सफर हो सकता है 1 वर्ष का रहा हो, लेकिन जब वह पृथ्वी पर लौटता है तो 10 साल बीत चुके होते हैं। उसका भाई B अब 9 वर्ष बड़ा हो चुका है, जबकि दोनों का जन्म एक ही दिन हुआ था। यानी A 10 साल भविष्य में पहुंच गया है। अब वहां पहुंचकर वह वहीं से धरती पर चल रही घटना को देखता है तो वह अतीत को देख रहा होता है।
     
    जैसे एक गोली छूट गई लेकिन यदि आपको उसको देखना है तो उस गोली से भी तेज गति से आगे जाकर उसे क्रॉस करना होगा और फिर पलटकर उसको देखना होगा तभी वह तुम्हें दिखाई देगी। इसी तरह ब्रह्मांड में कई आवाजें, चित्र और घटनाएं जो घटित हो चुकी हैं वे फैलती जा रही हैं। वे जहां तक पहुंच गई हैं वहां पहुंचकर उनको पकड़कर सुना होगा।
     
    यदि ऐसा हुआ तो...? कुछ ब्रह्मांडीय किरणें प्रकाश की गति से चलती हैं। उन्हें एक आकाशगंगा पार करने में कुछ क्षण लगते हैं लेकिन पृथ्वी के समय के हिसाब से ये दसियों हजार वर्ष हुए।
     
    भौतिकशास्त्र की दृष्टि से यह सत्य है लेकिन अभी तक ऐसी कोई टाइम मशीन नहीं बनी जिससे हम अतीत या भविष्य में पहुंच सकें। यदि ऐसे हो गया तो बहुत बड़ी क्रांति हो जाएगी। मानव जहां खुद की उम्र बढ़ाने में सक्षम होगा वहीं वह भविष्य को बदलना भी सीख जाएगा। इतिहास फिर से लिखा जाएगा।
     
    एक और उदाहारण से समझें। आप कार ड्राइव कर रहे हैं आपको पता नहीं है कि 10 किलोमीटर आगे जाकर रास्ता बंद है और वहां एक बड़ा-सा गड्डा है, जो अचानक से दिखाई नहीं देता। आपकी कार तेज गति से चल रही है। अब आप सोचिए कि आपके साथ क्या होने वाला है? लेकिन एक व्यक्ति हेलीकॉप्टर में बैठा है और उसे यह सब कुछ दिखाई दे रहा है अर्थात यह कि वह आपका भविष्य देख रहा है। यदि आपको किसी तकनीक से पता चल जाए कि आगे एक गड्‍ढा है तो आप बच जाएंगे। भारत का ज्योतिष भी यही करता है कि वह आपको गड्ढे की जानकारी दे देता है।
     
    लेकिन एक अतार्किक उदाहरण भी दिया जा सकता है, जैसे कि एक व्यक्ति विवाह करने से पहले अपने पुत्र को देखने जाता है टाइम मशीन से। वहां जाकर उसे पता चलता है कि उनका पुत्र तो जेल के अंदर देशद्रोह के मामले में सजा काट रहा है तो... तब वह दो काम कर सकता है या तो वह किसी अन्य महिला से विवाह करे या विवाह करने का विचार ही त्याग दे।
     
    दूसरा रहस्य...

    अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषण:।
    कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥
    सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
    जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।
     
    2. अमर होने का रहस्य : अमर कौन नहीं होना चाहता? समुद्र मंथन में अमृत निकला। इसे प्राप्त करने के लिए देवताओं ने दानवों के साथ छल किया। देवता अमर हो गए। मतलब कि क्या समुद्र में ऐसा कुछ है कि उसमें से अमृत निकले? तो आज भी निकल सकता है? अभी अधिकतम 100 साल के जीवन में अनेकानेक रोग, कष्ट, संताप और झंझट हैं तो अमरता प्राप्त करने पर क्या होगा? 100 वर्ष बाद वैराग्य प्राप्त कर व्यक्ति हिमालय चला जाएगा। वहां क्या करेगा? बोर हो जाएगा तो फिर से संसार में आकर रहेगा। बस यही सिलसिला चलता रहेगा।
     
    महाभारत में 7 चिरंजीवियों का उल्लेख मिलता है। चिरंजीवी का मतलब अमर व्यक्ति। अमर का अर्थ, जो कभी मर नहीं सकते। ये 7 चिरंजीवी हैं- राजा बलि, परशुराम, विभीषण, हनुमानजी, वेदव्यास, अश्वत्थामा और कृपाचार्य। हालांकि कुछ विद्वान मानते हैं कि मार्कंडेय ऋषि भी चिरंजीवी हैं।
     
    माना जाता है कि ये सातों पिछले कई हजार वर्षों से इस धरती पर रह रहे हैं, लेकिन क्या धरती पर रहकर इतने हजारों वर्ष तक जीवित रहना संभव है? हालांकि कई ऐसे ऋषि-मुनि थे, जो धरती के बाहर जाकर फिर लौट आते थे और इस तरह वे अपनी उम्र फ्रिज कर बढ़ते रहते थे। हालांकि हिमालय में रहने से भी उम्र बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है। हिन्दू धर्मशास्त्रों में ऐसी कई कथाएं हैं जिसमें लिखा है कि अमरता प्राप्त करने के लिए फलां-फलां दैत्य या साधु ने घोर तप करके शिवजी को प्रसन्न कर लिया। बाद में उसे मारने के लिए भगवान के भी पसीने छूट गए। अमर होने के लिए कई ऐसे मंत्र हैं जिनके जपने से शरीर हमेशा युवा बना रहता है। महामृत्युंजय मंत्र के बारे में कहा जाता है कि इसके माध्यम से अमरता पाई जा सकती है।
     
    वेद, उपनिषद, गीता, महाभारत, पुराण, योग और आयुर्वेद में अमरत्व प्राप्त करने के अनेक साधन बताए गए हैं। आयुर्वेद में कायाकल्प की विधि उसका ही एक हिस्सा है। लेकिन अब सवाल यह उठता है कि विज्ञान इस दिशा में क्या कर रहा है? विज्ञान भी इस दिशा में काम कर रहा है कि किस तरह व्यक्ति अमर हो जाए अर्थात कभी नहीं मरे।
     
    सावित्री-सत्यवान की कथा तो आपने सुनी ही होगी। सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस ले लिए थे। सावित्री और यमराज के बीच लंबा संवाद हुआ। इसके बाद भी यह पता नहीं चलता है कि सावित्री ने ऐसा क्या किया कि सत्यवान फिर से जीवित हो उठा। इस जीवित कर देने या हो जाने की प्रक्रिया के बारे में महाभारत भी मौन है। जरूर सावित्री के पास कोई प्रक्रिया रही होगी। जिस दिन यह प्रक्रिया वैज्ञानिक ढंग से ज्ञात हो जाएगी, हम अमरत्व प्राप्त कर लेंगे।
     
    आपने अमरबेल का नाम सुना होगा। विज्ञान चाहता है कि मनुष्य भी इसी तरह का बन जाए, कायापलट करता रहा और जिंदा बना रहे। वैज्ञानिकों का एक समूह चरणबद्ध ढंग से इंसान को अमर बनाने में लगा हुआ है। समुद्र में जेलीफिश (टयूल्रीटोप्सिस न्यूट्रीकुला) नामक मछली पाई जाती है। यह तकनीकी दृष्टि से कभी नहीं मरती है। हां, यदि आप इसकी हत्या कर दें या कोई अन्य जीव जेलीफिश का भक्षण कर ले, फिर तो उसे मरना ही है। इस कारण इसे इम्मोर्टल जेलीफिश भी कहा जाता है। जेलीफिश बुढ़ापे से बाल्यकाल की ओर लौटने की क्षमता रखती है। अगर वैज्ञानिक जेलीफिश के अमरता के रहस्य को सुलझा लें, तो मानव अमर हो सकता है।
     
    क्या कर रहे हैं वैज्ञानिक : वैज्ञानिक अमरता के रहस्यों से पर्दा हटाने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। बढ़ती उम्र के प्रभाव को रोकने के लिए कई तरह की दवाइयों और सर्जरी का विकास किया जा रहा है। अब इसमें योग और आयुर्वेद को भी महत्व दिया जाने लगा है। बढ़ती उम्र के प्रभाव को रोकने के बारे में आयोजित एक व्यापक सर्वे में पाया गया कि उम्र बढ़ाने वाली 'गोली' को बनाना संभव है। रूस के साइबेरिया के जंगलों में एक औषधि पाई जाती है जिसे जिंगसिंग कहते हैं। चीन के लोग इसका ज्यादा इस्तेमाल करके देर तक युवा बने रहते हैं।
     
    ' जर्नल नेचर' में प्रकाशित 'पजल, प्रॉमिस एंड क्योर ऑफ एजिंग' नामक रिव्यू में कहा गया है कि आने वाले दशकों में इंसान का जीवनकाल बढ़ा पाना लगभग संभव हो पाएगा। अखबार 'डेली टेलीग्राफ' के अनुसार एज रिसर्च पर बक इंस्टीट्यूट, कैलिफॉर्निया के डॉक्टर जूडिथ कैंपिसी ने बताया कि सिंपल ऑर्गनिज्म के बारे में मौजूदा नतीजों से इसमें कोई शक नहीं कि जीवनकाल को बढ़ाया-घटाया जा सकता है। पहले भी कई स्टडीज में पाया जा चुका है कि अगर बढ़ती उम्र के असर को उजागर करने वाले जिनेटिक प्रोसेस को बंद कर दिया जाए, तो इंसान हमेशा जवान बना रह सकता है। जर्नल सेल के जुलाई के अंक में प्रकाशित एक रिसर्च रिपोर्ट में कहा गया कि बढ़ती उम्र का प्रभाव जिनेटिक प्लान का हिस्सा हो सकता है, शारीरिक गतिविधियों का नतीजा नहीं। खोज और रिसर्च जारी है...।
     

    तीसरा रहस्य...

    3. हो जाने का रहस्य : अमर होने से ज्यादा लोगों में गायब होने की तमन्ना है। जिसने भी 'मिस्टर इंडिया' फिल्म देखी होगी वह जानता है कि इसके ऐसे भी फायदे हो सकते हैं। गायब या अदृश्य होना मनुष्य की प्राचीन अभिलाषा रही है जिसके लिए समय-समय पर तरह-तरह के प्रयोग होते रहे हैं। इसके लिए कई सिद्धांत गढ़े गए हैं।
     
     
     
    वेद, महाभारत और पुराणों में ऐसी कई कथाएं हैं जिसमें कहा गया है कि देवता अचानक प्रकट हुए और फिर अंतर्ध्यान हो गए अर्थात गायब हो गए। हनुमानजी के बाद भगवान कृष्ण के पास यह विद्या थी। मशहूर विज्ञान गल्‍पकार एचजी वेल्‍स (H.G. Wells) ने 1897 में प्रकाशित अपने लोकप्रिय उपन्‍यास 'अदृश्‍य आदमी' (The Invisible Man) में गायब होने का फॉर्मूला दिया है। हालांकि भारत के हिमालयीन राज्यों में ऐसी धारणा है कि जड़ी-बूटियों के माध्यम से एक ऐसी गोली बनती है कि जिसको मुंह में रखने से व्यक्ति तब तक के लिए अदृश्य हो जाता है है, जब तक कि उस गोली का असर रहता है। खैर...
     
    मिस्टर इंडिया लाल चश्मा पहनते ही गायब हो जाते थे तो हैरी पॉटर के पास इनविजिबिलिटी क्लॉक था लेकिन वैज्ञानिकों ने गायब होने का एक तरीका निकाला है। वे एक ऐसी ड्रेस बनाने वाले हैं जिसे पहनकर व्यक्ति गायब हो जाएगा यानी कि लबादा ओढ़ो और गायब हो जाओ।
     
    जर्मनी के कार्ल्सरूहे तकनीकी विश्वविद्यालय और इंपीरियल कॉलेज ऑफ लंदन के कुछ वैज्ञानिकों ने मिलकर फोटोनिक क्रिस्टलों से एक लबादा तैयार किया है। फोटोनिक क्रिस्टल ऐसे पदार्थ होते हैं, जो अपने पर पड़ने वाली रोशनी के इलेक्ट्रॉन की दिशा बदल देते हैं। अगर इस प्रवृत्ति को विकसित किया जाए तो ऐसे पदार्थ बनाए जा सकते हैं, जो रोशनी के कणों को पूरी तरह मोड़ सकते हैं। आज हम जो भी देख रहे हैं, वे उस पदार्थ पर पड़ने वाली रोशनी के कारण देख रहे हैं भले ही यह रोशनी धुंधली ही क्यों न हो।
     
    लेकिन इस प्रयोग में दिक्कत यह है कि भले ही सामने से व्यक्ति स्पष्ट नजर न आए लेकिन वह बगल से दिखाई दे सकता है। वैज्ञानिक कहते हैं कि दृश्‍यमानता प्रकाश के साथ पिंडों की क्रिया पर निर्भर करती है। आप जानते हैं कि कोई भी पिंड या तो प्रकाश को अवशोषित करता है या परावर्तित या अपवर्तित। यदि पिंड न तो प्रकाश को अवशोषित करता है, न परावर्तित या अपवर्तित, तो पिंड अदृश्‍य होगा। 
     
    हालांकि अभी अदृश्य होने का कोई पुख्ता फॉर्मूला विकसित नहीं हुआ है लेकिन अमेरिका सहित दुनियाभर के वैज्ञानिक इस पर रिसर्च में लगे हुए हैं ताकि हजारों अदृश्य मानवों से जासूसी करवाई जा सके और दूसरों देशों में अशांति फैलाई जा सके। हो सकता है कि आने वाले समय में नैनो टेक्नोलॉजी से यह संभव हो। 
     
    चौथा रहस्य...

    4. ब्रह्मांड के बनने का रहस्य : आजकल के ‍वैज्ञानिक ब्रह्मांड की उत्पत्ति के रहस्य को जानने से ज्यादा उसके अंत में उत्सुक हैं। वे बताते रहते हैं कि धरती पर जीवन का खात्मा इस तरह होगा। सूर्य ठंडा हो जाएगा। ग्रह-नक्षत्र आपस में टकरा जाएंगे। तब क्या होगा? इसलिए मानव को अभी से ही दूसरे ग्रहों को तलाश करना चाहिए।

    अधिकतर वैज्ञानिक शायद यह मान ही बैठे हैं ‍कि उत्पत्ति का रहस्य तो हम जान चुके हैं। बिग बैंग का सिद्धांत अकाट्य है। लेकिन कई ऐसे वैज्ञानिक हैं, जो यह कहते हैं कि हमने अभी भी ब्रह्मांड की उत्पत्ति और धरती पर जीवन की उत्पत्ति के रहस्य को नहीं सुलझाया है। अभी तक जितने भी सिद्धांत बताए जा रहे हैं वे सभी तर्क से खारिज किए जा सकते हैं।
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    ब्रह्मांड की उत्पत्ति के सबसे ज्यादा मान्य सिद्धांत को महाविस्फोट (The Big Bang) कहते हैं। इसके अनुसार अब से लगभग 14 अरब वर्ष पहले एक बिंदु से ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई है। फिर उस बिंदु में महाविस्फोट हुआ और असंख्य सूर्य, ग्रह, नक्षत्र आदि का जन्म होता गया। 
     
    वैज्ञानिक मानते हैं कि बिंदु के समय ब्रह्मांड के सभी कण एक-दूसरे के एकदम पास-पास थे। वे इतने ज्यादा पास-पास थे कि वे सभी एक ही जगह थे, एक ही बिंदु पर। सारा ब्रह्मांड एक बिंदु की शक्ल में था।
     
    यह बिंदु अत्यधिक घनत्व का, अत्यंत छोटा बिंदु था। ब्रह्मांड का यह बिंदु रूप अपने अत्यधिक घनत्व के कारण अत्यंत गर्म रहा होगा। इस स्थिति में भौतिकी, गणित या विज्ञान का कोई भी नियम काम नहीं करता है। यह वह स्थिति है, जब मनुष्य किसी भी प्रकार अनुमान या विश्लेषण करने में असमर्थ है। काल या समय भी इस स्थिति में रुक जाता है, दूसरे शब्दों में काल या समय के कोई मायने नहीं रहते हैं। इस स्थिति में किसी अज्ञात कारण से अचानक ब्रह्मांड का विस्तार होना शुरू हुआ। एक महाविस्फोट के साथ ब्रह्मांड का जन्म हुआ और ब्रह्मांड में पदार्थ ने एक-दूसरे से दूर जाना शुरू कर दिया।
     
    हालांकि ब्रह्मांड की उत्पत्ति और प्रलय के बारे में अभी भी प्रयोग और शोध जारी है। सबसे बड़े प्रयोग की चर्चा करें तो महाप्रयोग सर्न के वैज्ञानिक कर रहे हैं। ये वैज्ञानिक उस खास कण को ढूंढने में लगे हैं जिसके कारण ब्रह्मांड बना होगा। दावा किया जाता है कि फ्रांस और स्विट्जरलैंड की बॉर्डर पर बनी दुनिया की सबसे बड़ी प्रयोगशाला में दुनियाभर के वैज्ञानिकों ने वो कण ढूंढ लिया है जिसे गॉड पार्टिकल यानी भगवान का कण कहा जाता है। इसे उन्होंने 'हिग्स बोसन' नाम दिया है। सर्न के वैज्ञानिकों को 99 फीसदी यकीन है कि गॉड पार्टिकल का रहस्य सुलझ गया है। मतलब 1 प्रतिशत संदेह है? 
     
    हमारा ब्रह्मांड रहस्य-रोमांच और अनजानी-अनसुलझी पहेलियों से भरा है। सदियों से इंसान सवालों की भूलभुलैया में भटक रहा है कि कैसे बना होगा ब्रह्मांड, कैसे बनी होगी धरती, कैसे बना होगा फिर इंसान। हालांकि धर्मग्रंथों में रेडीमेड उत्तर लिखे हैं कि भगवान ने इसे बनाया और फिर 7वें दिन आराम किया।
     
    पांचवां रहस्य...

    5. बिगफुट का रहस्य : अमेरिका, अफ्रीका, चीन, रूस और भारत में बिगफुट की खोज जारी है। कई लोग बिगफुट को देखे जाने का दावा करते हैं। पूरे विश्व में इन्हें अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। तिब्बत और नेपाल में इन्हें 'येती' का नाम दिया जाता है तो ऑस्ट्रेलिया में 'योवी' के नाम से जाना जाता है। भारत में इसे 'यति' कहते हैं।
     
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    ज्यादा बालों वाले इंसान जंगलों में ही रहते थे। जंगल में भी वे वहां रहते थे, जहां कोई आता-जाता नहीं था। माना जाता था कि ज्यादा बालों वाले इंसानों में जादुई शक्तियां होती हैं। ज्यादा बालों वाले जीवों में बिगफुट का नाम सबसे ऊपर आता है। बिगफुट के बारे में आज भी रहस्य बरकरार है।
     
    छठा रहस्य...

    6. एलियंस का रहस्य : वर्षों के वैज्ञानिक शोध से यह पता चला कि 10 हजार ईपू धरती पर एलियंस उतरे और उन्होंने पहले इंसानी कबीले के सरदारों को ज्ञान दिया और फिर बाद में उन्होंने राजाओं को अपना संदेशवाहक बनाया और अंतत: उन्होंने इस तरह धरती पर कई प्रॉफेट पैदा कर दिए। क्या इस बात में सच्चाई है?
     
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    अब वैज्ञानिक तो यही मानते हैं। हालांकि उन्होंने कभी एलियंस को देखा नहीं फिर भी वे विश्वास करते हैं कि धरती के बाहर किसी अन्य धरती पर हमारे जैसे ही लोग या कुछ अलग किस्म के लोग रहते हैं, जो हमसे भी ज्यादा बुद्धिमान हैं। आज नहीं तो कल उनसे हमारी मुलाकात हो जाएगी। हालांकि यह कल कब आएगा?
     
    नासा के शीर्ष वैज्ञानिकों ने कहा कि एलियन के जीवन का संकेत 2025 तक पता चल जाएगा जबकि परग्रही जीव के बारे में ‘निश्चित सबूत’ अगले 20-30 साल में मिल सकता है। यदि नासा का यह दावा सच साबित होता है तो सवाल यह उठता है कि तब क्या होगा? क्या एलियन मानव जैसे हैं या कि जैसी उनके बारे में कल्पना की गई है, वैसे हैं? यदि वे मिल गए तो मानव के साथ कैसा व्यवहार करेंगे?
     
    सातवां रहस्य...

    7. गति का रहस्य : गति ने ही मानव का जीवन बदला है और गति ही बदल रही है। बैलगाड़ी और घोड़े से उतरकर व्यक्ति साइकल पर सवार हुआ। फिर बाइक पर और अब विमान में सफर करने लगा। पहले 100 किलोमीटर का सफर तय करने के लिए 2 दिन लगते थे अब 2 घंटे में 100 किलोमीटर पहुंच सकते हैं। रफ्तार ने व्यक्ति की जिंदगी बदल दी। पहले पत्र को 400 किलोमीटर पहुंचने में पूरा 1 हफ्ता लगता था अब मेल करेंगे तो 4 सेकंड में 6 हजार किलोमीटर दूर बैठे व्यक्ति को मिल जाएगी। मोबाइल करेंगे तो 1 सेकंड में वह आपकी आवाज सुन लेगा। तो कहने का मतलब यह है कि गति का जीवन में बहुत महत्व है। इस गति के कारण ही पहले मानव का भविष्य कुछ और था लेकिन अब भविष्य बदल गया है।
     
    मानव के पास अभी इतनी गति नहीं है कि वह चंद्रमा पर जाकर चाय की एक चुस्की लेकर पुन: धरती पर 1 घंटे में वापस लौट आए। मंगल ग्रह पर शाम को यदि किसी ने डिनर का आयोजन किया हो तो धरती पर सुबह होते ही पुन: लौट आए। जब इतनी गति विकसित हो जाएगी तब आज हम जो विकास देख रहे हैं उससे कई हजार गुना ज्यादा विकास हो जाएगा। वैज्ञानिक इस तरह की गति को हासिल करने की दिशा में कार्य कर रहे हैं।
     
    मानव चाहता है प्रकाश की गति से यात्रा करना : आकाश में जब बिजली चमकती है तो सबसे पहले हमें बिजली की चमक दिखाई देती है और उसके बाद ही उसकी गड़गड़ाहट सुनाई देती है। इसका मतलब यह कि प्रकाश की गति ध्वनि की गति से तेज है। वैज्ञानिकों ने ध्वनि की गति तो हासिल कर ली है लेकिन अभी प्रकाश की गति हासिल करना जरा टेढ़ी खीर है।
     
    बहुत सी ऐसी मिसाइलें हैं जिनकी मारक क्षमता ध्वनि की गति से भी तेज है। ऐसे भी लड़ाकू विमान हैं, जो ध्वनि की गति से भी तेज उड़ते हैं। लेकिन मानव चाहता है कि ध्वनि की गति से कार चले, बस चले और ट्रेन चले। हालांकि इसमें वह कुछ हद तक सफल भी हुआ है और अब इच्छा है कि प्रकाश की गति से चलने वाला अंतरिक्ष विमान हो।
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    प्रकाश की गति इतनी ज्यादा होती है कि यह लंदन से न्यूयॉर्क की दूरी को 1 सेकंड में 50 से ज्यादा बार तय कर लेगी। यदि ऐसी स्पीड संदेश भेजने में हो तो मंगल ग्रह पर संदेश भेजने में 12.5 मिनट लगेंगे। अब यदि हमें मंगल ग्रह पर जाकर लौटना है तो प्रकाश की गति ही हासिल करना होगी अन्यथा जा तो सकते हैं लेकिन लौटने की कोई गारंटी नहीं। अब आप जोड़ सकते हैं कि 22 करोड़ किलोमीटर दूर जाने में कितना समय लगेगा यदि हम 1,000 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से जाएं तो...।
     
    क्या है प्रकाश की गति : अंतरिक्ष जैसी शून्यता में प्रकाश की एकदम सही गति 2,99,792.458 किलोमीटर प्रति सेकंड है। ऋग्वेद में सूर्य की प्रकाश की गति लगभग इतनी ही बताई गई है। सूर्य से पृथ्वी की औसत दूरी लगभग 14,96,00,000 किलोमीटर या 9,29,60,000 मील है तथा सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी तक पहुंचने में 8 मिनट 16.6 सेकंड का समय लगता है।
     
    एक वर्ष में प्रकाश द्वारा तय की जाने वाली दूरी को एक प्रकाश वर्ष कहते हैं। एक प्रकाश वर्ष का मतलब होता है लगभग 9,500 अरब किलोमीटर। यह होती है प्रकाश की गति।
     
    आठवां रहस्य...

    जीवन की शुरुआत : धरती पर जीवन की शुरुआत कब और कैसे हुई? किसने की या यह कि यह  क्रमविकास का परिणाम है? ये कुछ सवाल जिनके जवाब अभी भी ढूंढे जा रहे हैं। सवाल यह भी है कि यह शुरुआत पृथ्वी पर ही क्यों हुई? कई शोध बताते हैं कि मनुष्य का विकास जटिल अणुओं के विघटन और सम्मिलन से हुआ होगा, लेकिन सारे जवाब अभी नहीं मिले हैं।
    हालांकि चार्ल्स डार्विन के सिद्धांत में त्रुटी है तो महर्षि अरविंद का सिद्धांत तार्किक ही है। लेकिन विज्ञान आज भी डार्विन के सिद्धांत को मानने को मजबूर है, लेकिन अब कुछ वैज्ञानिक कहते हैं कि हमारी धरती पर जीवन की शुरुआत परग्रही लोगों ने की है जिन्हें आजकल एलियन कहा जाता है। डीएनए कोड पर अभी रिसर्च जारी है। 
     

    पश्चिमी धर्म कहता है कि मानव की उत्पत्ति ईश्‍वर ने की। उसने पहले आदम को बनाया फिर उसकी ही छाती की एक पसली से हव्वा को। जबकि पूर्वी धर्मों के पास दो तरह के सिद्धांत है पहला यह कि मानव की रचना ईश्वर ने की और दूसरी की आठ तत्वों से संपूर्ण संसार की क्रमश: रचना हुई। उक्त आठ तत्वों में पंच तत्व क्रमश: है आकाश, वायु, अग्नि, जल और धरती।

    नौवां सिद्धांत...

    डार्क मैटर : अंतरिक्ष में 80 फीसदी से ज्यादा पदार्थ दिखाई नहीं देता इसे डार्क मैटर कहते हैं। वैज्ञानिक अभी तक इसकी खोज में लगे हुए हैं। आज तक यह रहस्य बना हुआ है कि डार्क मैटर किस चीज से बना है। 

    कैसे काम करता है गुरुत्वाकर्षण : न्यूटन ने यह तो कह दिया की धरती में गुरुत्वाकर्षण बल है जिसके कारण चीजें टीकी रहती है लेकिन यह बल कहां से आया, कैसे काम करता है यह नहीं बताया। हालांकि न्यूटन से पहले भास्कराचार्य ने भी गुरुत्वाकर्षण बल की चर्चा की लेकिन उन्होंने भी यह नहीं बताया कि यह बल काम कैसे करता है।
    पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल उसे सूर्य के कक्ष में स्थिर रखता है अन्यथा पृथ्वी किसी अंधकार में खो जाती। चंद्रमाका गुरुत्वबल धरती पर फैला समुद्र है। लेकिन यह गुरुत्वाकर्षण बल असल में कहां से आया, वैज्ञानिक इसे पूरी तरह से स्पष्ट नहीं कर पाए हैं। यह गुरुत्वाकर्षण अन्य कणों के गुरुत्व केंद्र के साथ कैसे संतुलन बनाता है?
     

    खगोल विज्ञान को वेद का नेत्र कहा गया, क्योंकि सम्पूर्ण सृष्टियों में होने वाले व्यवहार का निर्धारण काल से होता है और काल का ज्ञान ग्रहीय गति से होता है। अत: प्राचीन काल से खगोल विज्ञान वेदांग का हिस्सा रहा है। ऋग्वेद, शतपथ ब्राहृण आदि ग्रथों में नक्षत्र, चान्द्रमास, सौरमास, मल मास, ऋतु परिवर्तन, उत्तरायन, दक्षिणायन, आकाशचक्र, सूर्य की महिमा, कल्प का माप आदि के संदर्भ में अनेक उद्धरण मिलते हैं।  

    Thursday, 29 September 2016

    महाभारत : परशुराम ने कर्ण को श्राप क्‍यों दिया?

    By: Secret On: 10:00
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  •  महाभारत : परशुराम ने कर्ण को श्राप क्‍यों दिया?

     महाभारत कथा : परशुराम ने कर्ण को श्राप क्‍यों दिया?

       MAHABHARAT

    कर्ण ने धारण की ब्राह्मणों की वेश भूषा

    महाभारत काल में, युद्ध कला में सिर्फ मल्ल-युद्ध ही नहीं होता था, बल्कि सभी तरह के शस्त्रों को चलाना भी सिखाया जाता था। इसमें ख़ास रूप से तीरंदाजी पर जोर दिया जाता था। कर्ण जानता था कि परशुराम सिर्फ ब्राह्मणों को अपने शिष्य के रूप में स्वीकार करेंगे। सीखने की चाहत में उसने एक नकली जनेऊ धारण किया और एक ब्राह्मण के रूप में परशुराम के पास चला गया।
    दोहरे श्राप के साथ, कर्ण आगे बढ़ा। उसे पता नहीं था कि उसे कहां जाना चाहिए। वह धुल के एक कण पर भी अपने बाणों से निशाना साध सकता था। पर इसका फायदा क्या था? वह क्षत्रिय नहीं था 
    परशुराम ने उसे अपना शिष्य बना लिया, और वो सब कुछ सिखा दिया जो वे जानते थे। कर्ण बहुत जल्दी सीख गया। किसी भी अन्य शिष्य में उस तरह का स्वाभाविक गुण और क्षमता नहीं थी। परशुराम उससे बहुत खुश हुए।
    उन दिनों, परशुराम काफी बूढ़े हो चुके थे। एक दिन जंगल में अभ्यास करते समय, परशुराम बहुत थक गए। उन्होंने कर्ण से कहा वे लेटना चाहते हैं। कर्ण बैठ गया ताकि परशुराम कर्ण की गोद में अपना सिर रख पाएं। फिर परशुराम सो गये। तभी एक खून चूसने वाला कीड़ा कर्ण की जांघ में घुस गया और उसका खून पीने लगा। उसे भयंकर कष्ट हो रहा था, और उसके जांघ से रक्त की धार बहने लगी। वह अपने गुरु की नींद को तोड़े बिना उस कीड़े को हटा नहीं सकता था। लेकिन अपने गुरु की नींद को तोड़ना नहीं चाहता था। धीरे-धीरे रक्त की धार परशुराम के शरीर तक पहुंची और इससे उनकी नींद खुल गई। परशुराम ने आंखें खोल कर देखा कि आस पास बहुत खून था।

    परशुराम को पता चली कर्ण की असलियत

    परशुराम बोले – ‘ये किसका खून है?’ कर्ण ने बताया – ‘यह मेरा खून है।’ फिर परशुराम ने कर्ण की जांघ पर खुला घाव देखा। खून पीने वाला कीड़ा कर्ण की मांसपेशी में गहरा प्रवेश कर चुका था। फिर भी वह बिना हिले डुले वहीँ बैठा था।
    परशुराम ने उस की ओर देखकर बोले – ‘तुम ब्राह्मण नहीं हो सकते। अगर तुम ब्राह्मण होते तो एक मच्छर के काटने पर भी तुम चिल्लाने लगते।
    परशुराम अत्यधिक क्रोध से भर गए। वे बोले – ‘ तुमको क्या लगता है, तुम एक झूठा जनेऊ पहनकर यहां आ सकते हो और मुझे धोखा देकर सारी विद्या सीख सकते हो? मैं तुम्हें श्राप देता हूं।’
    इतना दर्द सहकर भी स्थिर बैठे रहना, ऐसा तो कोई क्षत्रिय ही कर सकता है।’
    कर्ण बोला – ‘हां, मैं ब्राह्मण नहीं हूं। कृपया मुझ पर क्रोधित न हों।’
    परशुराम अत्यधिक क्रोध से भर गए। वे बोले – ‘ तुमको क्या लगता है, तुम एक झूठा जनेऊ पहनकर यहां आ सकते हो और मुझे धोखा देकर सारी विद्या सीख सकते हो? मैं तुम्हें श्राप देता हूं।’
    कर्ण बोला – ‘हां मैं एक ब्राह्मण नहीं हूं। पर मैं क्षत्रिय भी नहीं हूं। मैं सूतपुत्र हूं, मैंने बस आधा झूठ बोला था।’

    परशुराम ने दिया कर्ण को श्राप

    पशुराम ने उसकी बात नहीं सुनी। उस स्थिति को देखते ही वे सत्य जान गए – कि कर्ण एक क्षत्रिय है।
    वे बोले – ‘तुमने मुझे धोखा दिया है।
    परशुराम ने उस की ओर देखकर बोले – ‘तुम ब्राह्मण नहीं हो सकते। अगर तुम ब्राह्मण होते तो एक मच्छर के काटने पर भी तुम चिल्लाने लगते।
    जो कुछ मैंने सिखाया है तुम उसका आनंद ले सकते हो, पर जब तुम्हें इसकी सचमुच जरूरत होगी, तब तुम सभी मंत्र भूल जाओगे जिनकी तुम्हें जरूरत होगी, और वही तुम्हारा अंत होगा।’
    कर्ण उनके पैरों में गिरकर दया की भीख मांगने लगा। वह बोला – ‘कृपया ऐसा मत कीजिए। मैं आपको धोखा देने की नीयत से नहीं आया था। बस मैं सीखने के लिए बैचैन था, और कोई भी सिखाने के लिए तैयार नहीं था। सिर्फ आप ही अकेले ऐसे इंसान हैं, जो किसी ऐसे को सिखाने के लिए तैयार हों, जो कि क्षत्रिय न हो।’

    बस यश प्राप्ति ही थी कर्ण की चाहत

    परशुराम का गुस्सा ठंडा हो गया। वे बोले – ‘लेकिन फिर भी, तुमने झूठ बोला। तुम्हें अपनी स्थिति मुझे बतानी चाहिए थी। तुमको मुझसे बात करनी चाहिए थी। पर तुम्हें कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए था। मैं श्राप वापस नहीं ले सकता। पर मैं देख सकता हूं कि तुम्हारी महत्वाकांक्षा राजपाट पाने या शक्तिशाली होने की नहीं है। 
    उसे तीर के निशाने पर लगने की आवाज़ सुनाई दी। वह मांस से अपनी भूख को शांत करने की कल्पना करने लगा। पर झाड़ियों में जाने के बाद उसे पता चला कि वह तो एक गाय थी।
    तुम सिर्फ यश चाहते हो, और तुम्हें यश मिलेगा। लोग हमेशा तुम्हें एक यशस्वी योद्धा की तरह याद करेंगे। पर तुम्हारे पास कभी शक्ति या साम्राज्य नहीं होगा, और तुम कभी महानतम धनुर्धर के रूप में भी नहीं जाने जाओगे। पर तुम्हारा यश हमेशा बना रहेगा, जो कि तुम्हारी चाहत भी है।’
    इस श्राप को लेकर, कर्ण भटकता रहा। वह शिक्षा पाकर खुश था। खुद के सामर्थ्य को लेकर भी बहुत खुश था। पर वह इसे कहीं प्रदर्शित नहीं कर सकता था। क्योंकि सिर्फ क्षत्रिय ही युद्ध या प्रतियोगिता में भाग ले सकते थे। वह आंखें बंद करके किसी भी चीज़ पर निशाना लगा सकता था, पर अपने कौशल को प्रदर्शित नहीं कर सकता था। उसे बस यश की चाहत थी, और उसे यश प्राप्त नहीं हो रहा था।

    कर्ण पहुंचा ओडिशा के कोणार्क मंदिर के पास

    उदास होकर वो दक्षिण पूर्व की तरफ चला गया और समुद्र के किनारे जा कर बैठ गया। वर्तमान समय के उड़ीसा राज्य में कोणार्क के पास उस स्थान पर बैठ गया, जहां सूर्य देव की कृपा सबसे अच्छे से पाई जा सकती है। शायद कर्ण की याद में ही, कोणार्क का सूर्य मंदिर बनाया गया। वह तपस्या करने लगा और कई दिनों तक ध्यान में बैठा रहा।
    आर्य गोहत्या को सबसे बुरा कर्म मानते थे। डरते हुए, उसने गाय की ओर देखा, और गाय ने उसकी ओर – कोमल नेत्रों से देखा, और फिर हमेशा के लिए अपनी आंखें बंद कर लीं।
    खाने के लिए कुछ नहीं था, पर वह बैठ कर ध्यान करता रहा। जब उसे बहुत भूख लगी, तो उसने कुछ केकड़े पकड़कर खा लिए। इससे उसे पोषण तो मिला, पर उसकी भूख और बढ़ गई।
    कुछ हफ्ते साधना करने के बाद, उसकी भूख बहुत ज्यादा बढ़ गयी। इस स्थिति में उसने, झाड़ियों में एक जानवर देखा। उसे लगा कि वह एक हिरन होगा, उसने अपना तीर और धनुष निकाला और आंखें बंद करके तीर चला दिया। 
    उसे तीर के निशाने पर लगने की आवाज़ सुनाई दी। वह मांस से अपनी भूख को शांत करने की कल्पना करने लगा। पर झाड़ियों में जाने के बाद उसे पता चला कि वह तो एक गाय थी। वह भयभीत हो उठा। आर्य गोहत्या को सबसे बुरा कर्म मानते थे। डरते हुए, उसने गाय की ओर देखा, और गाय ने उसकी ओर – कोमल नेत्रों से देखा, और फिर हमेशा के लिए अपनी आंखें बंद कर लीं। वह व्याकुल हो उठा। उसे समझ नहीं आ रहा था, कि क्या करे। तभी, एक ब्राह्मण आया, और मृत गाय को देखकर विलाप करने लगा।

    कर्ण को मिला एक और श्राप

    ब्राह्मण बोला – ‘तुमने मेरी गाय को मार डाला। मैं तुम्हें श्राप दूंगा। तुम एक योद्धा लगते हो, इसलिए मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि रण भूमि में जब तुम बहुत मुश्किल स्थिति में होगे, तब तुम्हारा रथ इतना गहरा धंस जाएगा कि तुम उसे बाहर नहीं निकाल पाओगे। और तुम तब मारे जाओगे जब तुम असहाय होगे, ठीक वैसे जैसे तुमने इस असहाय गाय को मार डाला।’
    कर्ण उसके पैरों में गिर कर बोला – ‘कृपया क्षमा करें, मैं बहुत भूखा था।
    उदास होकर वो दक्षिण पूर्व की तरफ चला गया और समुद्र के किनारे जा कर बैठ गया। वर्तमान समय के उड़ीसा राज्य में कोणार्क के पास उस स्थान पर बैठ गया, जहां सूर्य देव की कृपा सबसे अच्छे से पाई जा सकती है। 
    मुझे पता नहीं था कि वह एक गाय है। अगर आप चाहें तो मैं आपको सौ गाएं इसके बदले में दे सकता हूं।’
    ब्राह्मण बोला – ‘ये गाय मेरे लिए बस एक जानवर नहीं थी। ये मुझे सबसे अधिक प्रिय थी। मेरी मृत गाय के बदले दूसरी गाएं देने के इस प्रस्ताव के लिए मैं तुम्हें और भी ज्यादा श्राप देता हूं।’
    दोहरे श्राप के साथ, कर्ण आगे बढ़ा। उसे पता नहीं था कि उसे कहां जाना चाहिए। वह धुल के एक कण पर भी अपने बाणों से निशाना साध सकता था। पर इसका फायदा क्या था? वह क्षत्रिय नहीं था – कोई भी उसे प्रतियोगिता में शामिल होने नहीं देता, युद्ध में शामिल होने देने की तो बात ही नहीं थी। वह बिना किसी लक्ष्य के यहां से वहां भटकता रहा।

     

     

    शिव का त्रिशुल, तीसरी आंख और नंदी – का क्या है रहस्य?

    By: Secret On: 06:00
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    शिव की तीसरी आंख

    तीसरी आंख का मतलब है कि आपका बोध जीवन के द्वैत से परे चला गया है। तब आप जीवन को सिर्फ उस रूप में नहीं देखते जो आपके जीवित रहने के लिए जरूरी है। बल्कि आप जीवन को उस तरह देख पाते हैं, जैसा वह वाकई है।

    शिव को हमेशा त्रयंबक कहा गया है, क्योंकि उनकी एक तीसरी आंख है। तीसरी आंख का मतलब यह नहीं है कि किसी के माथे में दरार पड़ी और वहां कुछ निकल आया! इसका मतल‍ब सिर्फ यह है कि बोध या अनुभव का एक दूसरा आयाम खुल गया है। दो आंखें सिर्फ भौतिक चीजों को देख सकती हैं।
                अगर मैं अपना हाथ उन पर रख लूं, तो वे उसके परे नहीं देख पाएंगी। उनकी सीमा यही है। अगर तीसरी आंख खुल जाती है, तो इसका मतलब है कि बोध का एक दूसरा आयाम खुल जाता है जो कि भीतर की ओर देख सकता है। इस बोध से आप जीवन को बिल्कुल अलग ढंग से देख सकते हैं। इसके बाद दुनिया में जितनी चीजों का अनुभव किया जा सकता है, उनका अनुभव हो सकता है। आपके बोध के विकास के लिए सबसे अहम चीज यह है – कि आपकी ऊर्जा को विकसित होना होगा और अपना स्तर ऊंचा करना होगा। योग की सारी प्रक्रिया यही है कि आपकी ऊर्जा को इस तरीके से विकसित किया जाए और सुधारा जाए कि आपका बोध बढ़े और तीसरी आंख खुल जाए। तीसरी आंख दृष्टि की आंख है। दोनों भौतिक आंखें सिर्फ आपकी इंद्रियां हैं। 
          वे मन में तरह-तरह की फालतू बातें भरती हैं क्योंकि आप जो देखते हैं, वह सच नहीं है। आप इस या उस व्यक्ति को देखकर उसके बारे में कुछ अंदाजा लगाते हैं, मगर आप उसके अंदर शिव को नहीं देख पाते। आप चीजों को इस तरह देखते हैं, जो आपके जीवित रहने के लिए जरूरी हैं। कोई दूसरा प्राणी उसे दूसरे तरीके से देखता है, जो उसके जीवित रहने के लिए जरूरी है। इसीलिए हम इस दुनिया को माया कहते हैं। माया का मतलब है कि यह एक तरह का धोखा है। इसका मतलब यह नहीं है कि अस्तित्व एक कल्पना है। बस आप उसे जिस तरीके से देख रहे हैं, जिस तरह उसका अनुभव कर रहे हैं, वह सच नहीं है।
    इसलिए एक और आंख को खोलना जरूरी है, जो ज्यादा गहराई में देख सके। तीसरी आंख का मतलब है कि आपका बोध जीवन के द्वैत से परे चला गया है। तब आप जीवन को सिर्फ उस रूप में नहीं देखते जो आपके जीवित रहने के लिए जरूरी है। बल्कि आप जीवन को उस तरह देख पाते हैं, जैसा वह वाकई है। हाल में ही एक वैज्ञानिक ने एक किताब लिखी है, जिसमें बताया गया है कि इंसानी आंख किस सीमा तक भौतिक अस्तित्व को देख सकती है।
               उनका कहना है कि इंसानी आंख भौतिक अस्तित्व का सिर्फ 0.00001 फीसदी देख सकती है। इसलिए अगर आप दो भौतिक आंखों से देखते हैं, तो आप वही देख सकते हैं, जो सामने होता है। अगर आप तीसरी आंख से देखते हैं, तो आप वह देख सकते हैं जिसका सामने आना अभी बाकी है और जो सामने आ सकता है। हमारे देश और हमारी परंपरा में, ज्ञान का मतलब किताबें पढ़ना, किसी की बातचीत सुनना या यहां-वहां से जानकारी इकट्ठा करना नहीं है। ज्ञान का मतलब जीवन को एक नई दृष्टि से देखना है। किसी कारण से महाशिवरात्रि के दिन प्रकृति उस संभावना को हमारे काफी करीब ले आती है। ऐसा करना हर दिन संभव है। इस खास दिन का इंतजार करना हमारे लिए जरूरी नहीं है, मगर इस दिन प्रकृति उसे आपके लिए ज्यादा उपलब्ध बना देती है।

    शिव का वाहन नंदी

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    नंदी का गुण यह है की, वह बस सजग होकर बैठा रहता है। यह बहुत अहम चीज है – वह सजग है, सुस्त नहीं है। वह आलसी की तरह नहीं बैठा है। वह पूरी तरह सक्रिय, पूरी सजगता से, जीवन से भरपूर बैठा है, ध्यान यही है।
    नंदी अनंत प्रतीक्षा का प्रतीक है। भारतीय संस्कृति में इंतजार को सबसे बड़ा गुण माना गया है। जो बस चुपचाप बैठकर इंतजार करना जानता है, वह कुदरती तौर पर ध्यानमग्न हो सकता है। नंदी को ऐसी उम्मीद नहीं है कि शिव कल आ जाएंगे। वह किसी चीज का अंदाजा नहीं लगाता या उम्मीद नहीं करता। वह बस इंतजार करता है। वह हमेशा इंतजार करेगा। यह गुण ग्रहणशीलता का मूल तत्व है। नंदी शिव का सबसे करीबी साथी है क्योंकि उसमें ग्रहणशीलता का गुण है। किसी मंदिर में जाने के लिए आपके अंदर नंदी का गुण होना चाहिए। ताकि आप बस बैठ सकें। इस गुण के होने का मतलब है – आप स्वर्ग जाने की कोशिश नहीं करेंगे, आप यह या वह पाने की कोशिश नहीं करेंगे – आप बस वहां बैठेंगे। लोगों को हमेशा से यह गलतफहमी रही है कि ध्यान किसी तरह की क्रिया है। नहीं – यह एक गुण है। यही बुनियादी अंतर है। प्रार्थना का मतलब है कि आप भगवान से बात करने की कोशिश कर रहे हैं। ध्यान का मतलब है कि आप भगवान की बात सुनना चाहते हैं।
                 आप बस अस्तित्व को, सृष्टि की परम प्रकृति को सुनना चाहते हैं। आपके पास कहने के लिए कुछ नहीं है, आप बस सुनते हैं। नंदी का गुण यही है, वह बस सजग होकर बैठा रहता है। यह बहुत अहम चीज है – वह सजग है, सुस्त नहीं है। वह आलसी की तरह नहीं बैठा है। वह पूरी तरह सक्रिय, पूरी सजगता से, जीवन से भरपूर बैठा है, ध्यान यही है। ध्यान का मतलब मुख्य रूप से यही है कि वह इंसान अपना कोई काम नहीं कर रहा है। वह बस वहां मौजूद है। जब आप बस मौजूद होते हैं, तो आप अस्तित्व के विशाल आयाम के प्रति जागरूक हो जाते हैं जो हमेशा सक्रिय होता है। आप जागरूक हो जाते हैं कि आप उसका एक हिस्सा हैं। आप अब भी उसका एक हिस्सा हैं मगर यह जागरूकता – कि ‘मैं उसका एक हिस्सा हूं’ – ध्यान में मग्न होना है। नंदी उसी का प्रतीक है। वह बस बैठा रहकर हर किसी को याद दिलाता है, ‘तुम्हें मेरी तरह बैठना चाहिए।’ ‘ध्यानलिंग मंदिर के बाहर भी हमने एक बड़ा बैल स्थापित किया है। उसका संदेश बहुत साफ है, आपको अपनी सभी फालतू बातों को बाहर छोड़कर ध्यानलिंग में जाना चाहिए।’ – सद्‌गुरु।

    शिव का त्रिशूल

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    शिव का त्रिशूल जीवन के तीन मूल पहलुओं को दर्शाता है। योग परंपरा में उसे रुद्र, हर और सदाशिव कहा जाता है। ये जीवन के तीन मूल आयाम हैं, जिन्हें कई रूपों में दर्शाया गया है। उन्हें इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना भी कहा जा सकता है। ये तीनों प्राणमय कोष यानि मानव तंत्र के ऊर्जा शरीर में मौजूद तीन मूलभूत नाड़ियां हैं – बाईं, दाहिनी और मध्य। नाड़ियां शरीर में उस मार्ग या माध्यम की तरह होती हैं जिनसे प्राण का संचार होता है। तीन मूलभूत नाड़ियों से 72,000 नाड़ियां निकलती हैं। इन नाड़ियों का कोई भौतिक रूप नहीं होता। यानी अगर आप शरीर को काट कर इन्हें देखने की कोशिश करें तो आप उन्हें नहीं खोज सकते। लेकिन जैसे-जैसे आप अधिक सजग होते हैं, आप देख सकते हैं कि ऊर्जा की गति अनियमित नहीं है, वह तय रास्तों से गुजर रही है। प्राण या ऊर्जा 72,000 विभिन्न रास्तों से होकर गुजरती है। इड़ा और पिंगला जीवन के बुनियादी द्वैत के प्रतीक हैं। इस द्वैत को हम परंपरागत रूप से शिव और शक्ति का नाम देते हैं। या आप इसे बस पुरुषोचित और स्त्रियोचित कह सकते हैं, या यह आपके दो पहलू – तर्क-बुद्धि और सहज-ज्ञान हो सकते हैं।
    शिव का त्रिशूल जीवन के तीन मूल पहलुओं को दर्शाता है। योग परंपरा में उसे रुद्र, हर और सदाशिव कहा जाता है। ये जीवन के तीन मूल आयाम हैं, जिन्हें कई रूपों में दर्शाया गया है। उन्हें इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना भी कहा जा सकता है।
                जीवन की रचना भी इसी के आधार पर होती है। इन दोनों गुणों के बिना, जीवन ऐसा नहीं होता, जैसा अभी है। सृजन से पहले की अवस्था में सब कुछ मौलिक रूप में होता है। उस अवस्था में द्वैत नहीं होता। लेकिन जैसे ही सृजन होता है, उसमें द्वैतता आ जाती है। पुरुषोचित और स्त्रियोचित का मतलब लिंग भेद से – या फिर शारीरिक रूप से पुरुष या स्त्री होने से – नहीं है, बल्कि प्रकृति में मौजूद कुछ खास गुणों से है। प्रकृति के कुछ गुणों को पुरुषोचित माना गया है और कुछ अन्य गुणों को स्त्रियोचित। आप भले ही पुरुष हों, लेकिन यदि आपकी इड़ा नाड़ी अधिक सक्रिय है, तो आपके अंदर स्त्रियोचित गुण हावी हो सकते हैं। आप भले ही स्त्री हों, मगर यदि आपकी पिंगला अधिक सक्रिय है तो आपमें पुरुषोचित गुण हावी हो सकते हैं।
                  अगर आप इड़ा और पिंगला के बीच संतुलन बना पाते हैं तो दुनिया में आप प्रभावशाली हो सकते हैं। इससे आप जीवन के सभी पहलुओं को अच्छी तरह संभाल सकते हैं। अधिकतर लोग इड़ा और पिंगला में जीते और मरते हैं, मध्य स्थान सुषुम्ना निष्क्रिय बना रहता है। लेकिन सुषुम्ना मानव शरीर-विज्ञान का सबसे अहम पहलू है। जब ऊर्जा सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश करती है, जीवन असल में तभी शुरू होता है। आप एक नए किस्म का संतुलन पा लेते हैं, एक अंदरूनी संतुलन, जिसमें बाहर चाहे जो भी हो, आपके भीतर एक खास जगह बन जाती है, जो किसी भी तरह की हलचल में कभी अशांत नहीं होती, जिस पर बाहरी हालात का असर नहीं पड़ता। आप चेतनता की चोटी पर सिर्फ तभी पहुंच सकते हैं, जब आप अपने अंदर यह स्थिर अवस्था बना लें।


    Wednesday, 28 September 2016

    आखिर क्यों खाया था पांडवों ने अपने मृत पिता के शरीर का मांस?

    By: Secret On: 09:00
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  • आखिर क्यों खाया था पांडवों ने अपने मृत पिता के शरीर का मांस?


    Why Pandavas eat dead body (Flesh) of Pandu : आज हम आपको महाभारत से जुडी एक घटना बताते है जिसमे पांचो पांडवों ने अपने मृत पिता पाण्डु का मांस खाया था उन्होंने ऐसा क्यों किया यह जानने के लिए पहले हमे पांडवो के जनम के बारे में जानना पड़ेगा। पाण्डु के पांच पुत्र युधिष्ठर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव थे।  इनमे से युधिष्ठर, भीम और अर्जुन की माता कुंती तथा नकुल और सहदेव की माता माद्री थी। पाण्डु इन पाँचों पुत्रों के पिता तो थे पर इनका जनम पाण्डु के वीर्य तथा सम्भोग से नहीं हुआ था क्योंकि पाण्डु को श्राप था की जैसे ही वो सम्भोग करेगा उसकी मृत्यु हो जाएगी। इसलिए पाण्डु के आग्रह पर यह पुत्र कुंती और माद्री ने भगवान का आहवान करके प्राप्त किये थे।

    Why Pandavas eat dead body (Flesh) of Pandu in Hindi
    जब पाण्डु की मृत्यु हुई तो उसके मृत शरीर का मांस पाँचों भाइयों ने मिल बाट कर खाया था। उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योकिं स्वयं पाण्डु की ऐसी इच्छा थी। चुकी उसके पुत्र उसके वीर्ये से पैदा नहीं हुए थे इसलिए पाण्डु का ज्ञान, कौशल उसके बच्चों में नहीं आ पाया था।  इसलिए उसने अपनी मृत्यु पूर्व ऐसा वरदान माँगा था की उसके बच्चे उसकी मृत्यु के पश्चात उसके शरीर का मांस मिल बाँट कर खाले ताकि उसका ज्ञान बच्चों में स्थानांतरित हो जाए।
    पांडवो द्वारा पिता का मांस खाने के सम्बन्ध में दो मान्यता प्रचलित है।  प्रथम मान्यता के अनुसार मांस तो पांचो भाइयों ने खाया था पर सबसे ज्यादा हिस्सा सहदेव ने खाया था।  जबकि एक अन्य मान्यता के अनुसार सिर्फ सहदेव ने पिता की इच्छा का पालन करते हुए उनके मस्तिष्क के तीन हिस्से खाये। पहले टुकड़े को खाते ही सहदेव को इतिहास का ज्ञान हुआ, दूसरे टुकड़े को खाने पे वर्तमान का और तीसरे टुकड़े को खाते ही भविष्य का। यहीं कारण था की सहदेव पांचो भाइयों में सबसे अधिक ज्ञानी था और इससे उसे भविष्य में होने वाली घटनाओ को देखने की शक्ति मिल गई थी।
    शास्त्रों के अनुसार श्री कृष्ण के अलावा वो एक मात्र शख्स सहदेव ही था जिसे भविष्य में होने वाले महाभारत के युद्ध के बारे में सम्पूर्ण बाते पता थी। श्री कृष्ण को डर था की कहीं सहदेव यह सब बाते औरों को न बता दे इसलिए श्री कृष्ण ने सहदेव को श्राप  दिया था की की यदि उसने ऐसा किया तो  मृत्यु हो जायेगी।
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    भगवान शिव : जो शून्य से परे हैं

    By: Secret On: 08:00
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  • भगवान शिव : जो शून्य से परे हैं

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    lord shiva

    अगर आप भौतिकता से थोड़ा आगे जाएं, तो सब कुछ शून्य हो जाता है। शून्य का अर्थ है पूर्ण खालीपन, एक ऐसी स्थिति जहां भौतिक कुछ भी नहीं है। जहां भौतिक कुछ है ही नहीं, वहां आपकी ज्ञानेंद्रियां भी बेकाम की हो जाती हैं। अगर आप शून्य से परे जाएं, तो आपको जो मिलेगा, उसे हम शिव के रूप में जानते हैं। शिव का अर्थ है, जो नहीं है। जो नहीं है, उस तक अगर पहुंच पाएंगे, तो आप देखेंगे कि इसकी प्रकृति भौतिक नहीं है। इसका मतलब है इसका अस्तित्व नहीं है, पर यह धुंधला है, अपारदर्शी है। ऐसा कैसे हो सकता है?  यह आपके तार्किक दिमाग के दायरे में नहीं है। आधुनिक विज्ञान मानता है कि इस पूरी रचना को इंसान के तर्कों  पर खरा उतरना होगा, लेकिन जीवन को देखने का यह बेहद सीमित तरीका है। संपूर्ण सृष्टि मानव बुद्धि के तर्कों पर कभी खरी नहीं उतरेगी। आपका दिमाग इस सृष्टि में फिट हो सकता है, यह सृष्टि आपके दिमाग में कभी फिट नहीं हो सकती। तर्क इस अस्तित्व के केवल उन पहलुओं का विश्लेषण कर सकते हैं, जो भौतिक हैं। एक बार अगर आपने भौतिक पहलुओं को पार कर लिया, तो आपके तर्क पूरी तरह से उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर होंगे।
    योगिक विद्या में विज्ञान को कहानियों के रूप में प्रकट किया गया है। लेकिन हमें हमेशा यह बताया गया है कि हमें किसी विद्या पर तब तक यकीन नहीं करना चाहिए, जब तक हम खुद उसका अनुभव न कर लें। एक बार जब मैंने कुछ प्रमुख वैज्ञानिकों को अपने आंतरिक अनुभव के आधार पर इस अस्तित्व की प्रकृति के बारे में बताया, तो उन्होंने कहा – सद्‌गुरु, आप जो कह रहे हैं, अगर आप उसकी गणितीय व्याख्या कर दें, तो आपके इस विचार को नोबेल पुरस्कार तक दिया जा सकता है। मैं इसके लिए कोई गणितीय समीकरण नहीं लिखना चाहता, लेकिन मेरे लिए यह सत्य है और मैं जो भी हूं, इसने मुझे पूरी तरह से रूपांतरित करके रख दिया है। जो कुछ भी मैं था, वह सब कुछ बदल गया, जब मैंने अपने भीतर उस आयाम को स्पर्श किया। यह सिद्धांत बिल्कुल सही है और हमने अपने भीतर साबित किया है कि यह सत्य है। जिस चीज को साबित करने के लिए वैज्ञानिकों ने खरबों डॉलर के यंत्र बनाए, उसी चीज को आपके भीतर आपके अपने अनुभवों में साबित किया जा सकता है, बशर्ते आप इस जीवन की गहराई में उतरने को इच्छुक हों। अगर आप गहराई से देखें तो आप पाएंगे कि इस ब्रह्मांड की हर चीज के बारे में अनुमान के आधार पर निष्कर्ष निकाला गया है। यहां तक कि विज्ञान भी अनुमान के आधार पर ही निष्कर्ष निकाल रहा है।
    भौतिक से परे होने के कारण शून्य तत्व को सीधे तौर पर दर्शाया नहीं जा सकता। यही कारण है कि योगिक विज्ञान ने हमेशा कहानियों के माध्यम से इसकी ओर इंगित किया है। शिव और शक्ति का  मेल, आभूषणों और अलंकारों से सजा शिव का रूप इसी शून्य की ओर  संकेत करते हैं। हमें सद्‌गुरु बता रहे हैं शिव के रूप और उनके महामंत्र ॐ नम: शिवाय के बारे में…

    शिव और शक्ति की क्रीड़ा:

    योगिक विज्ञान में  भगवान शिव को रूद्र कहा जाता है। रूद्र का अर्थ है वह जो रौद्र या भयंकर रूप में हो। शिव को सृष्टि -कर्ता भी कहा जाता है। आइये जानते हैं कि कैसे शिव के इन्हीं दोनों पक्षों के मेल को ही विज्ञान बिग-बैंग का नाम दे रहा है।
    आपको पता है आजकल वैज्ञानिक कह रहे हैं कि हर चीज डार्क मैटर से आती है साथ ही उन्होंने डार्क एनर्जी के बारे में भी बात करना शुरू कर दिया है। योग में हमारे पास दोनों मौजूद हैं – डार्क मैटर भी और डार्क एनर्जी भी। यहां शिव को काला माना गया है यानी डार्क मैटर और शक्ति का प्रथम रूप या डार्क एनर्जी को काली कहा जाता है।
    हाल ही में स्कॉटिश यूनिवर्सिटी के कुछ वैज्ञानिक कह रहे थे कि डार्क मैटर और डार्क एनर्जी के बीच एक तरह का लिंक है। उन्हें लगता था कि ये चीजें अलग-अलग हैं। अब वे कह रहे हैं कि वे एक दूसरे से जुड़ी हैं।
    अब मैं आपको बताता हूं कि योग कैसे सृष्टि को भीतर से समझाता है। यह एक तार्किक संस्कृति है। अगर आप चाहें तो मैं आपको इसके बारे में सारी जानकारी दे सकता हूं, लेकिन छोडि़ए, बस इस संस्कृति का आनंद लीजिए।
    इसकी शब्दावली की अपनी एक खास पहचान है, क्योंकि यह एक ऐसे पहलू के बारे में बात कर रही है जो हमारी तार्किक समझ के दायरे में नहीं है। लेकिन इसे तार्किक ढंग से बताना ज्यादा अच्छा है। तो कहानी कुछ इस तरह है – शिव सो रहे हैं। जब हम यहां शिव कहते हैं तो हम किसी व्यक्ति या उस योगी के बारे में बात नहीं कर रहे हैं, यहां शि-व का मतलब है “वह जो है ही नहीं”। जो है ही नहीं, वह सिर्फ सो सकता है। इसलिए शिव को हमेशा ही डार्क बताया गया है।
    शिव सो रहे हैं और शक्ति उन्हें देखने आती हैं। वह उन्हें जगाने आई हैं क्योंकि वह उनके साथ नृत्य करना चाहती हैं, उनके साथ खेलना चाहती हैं और उन्हें रिझाना चाहती हैं। शुरू में वह नहीं जागते, लेकिन थोड़ी देर में उठ जाते हैं। मान लीजिए कि कोई गहरी नींद में है और आप उसे उठाते हैं तो उसे थोड़ा गुस्सा तो आएगा ही, बेशक उठाने वाला कितना ही सुंदर क्यों न हो। अत: शिव भी गुस्से में गरजे और तेजी से उठकर खड़े हो गए। उनके ऐसा करने के कारण ही उनका पहला रूप और पहला नाम रुद्र पड़ गया। रुद्र शब्द का अर्थ होता है – दहाडऩे वाला, गरजने वाला।
    भगवान श्री अर्धनारीश्वर
    भगवान श्री अर्धनारीश्वर
    मैंने एक वैज्ञानिक से बिग बैंग के धमाकों के बारे में पूछा – अगर कई धमाकें हों, तो क्या वह एक गर्जना जैसी नहीं होगी? अगर धमाकों की एक श्रृंखला बन जाए तो वह ऐसे ही होगा, जैसे किसी इंजन की आवाज हो। मैंने फिर पूछा – क्या केवल एक ही धमाका था या यह लगातार होने वाली प्रक्रिया थी? वह कुछ सोचकर बोला – यह एक धमाका नहीं हो सकता, यह धमाका एक पल से ज्यादा लंबा चला होगा। फिर मैंने पूछा – तो आप इसे धमाका क्यों कह रहे हैं? क्या यह एक गर्जना जैसा नहीं है? जैसे कि शिव हुंकार भरकर खड़े हो गए हों।

    योग का जन्म:

    आज जिस भी चीज़ को हम योग के नाम से जानते हैं, उसकी शुरुआत कई सालों पहले भगवान शिव द्वारा की गयी थी। वैज्ञानिक तथ्य भी यह बताते हैं कि करीब पचास हज़ार साल पहले मानव चेतना में एक जबरदस्त उछाल आया था। 
    आधुनिक मानवशास्त्र और विज्ञान के मुताबिक आज से करीब पचास हजार साल और सत्तर हजार साल पहले के बीच कहीं कुछ घटित हुआ। इन बीस हजार सालों के दौरान कुछ ऐसा हुआ, जिसने अचानक मानव जाति में बुद्धि को एक अलग स्तर तक पहुंचा दिया। इंसानों में बुद्धि और चेतना का अचानक विस्फोट सा हुआ, जो सामान्य विकास के क्रम में नहीं है। उस समय कुछ ऐसी प्रेरक घटनाएं हुईं जिसने उस समय के मानव की बुद्धि और चेतनता के विकास को एकदम से तीव्र कर दिया। योगिक परंपरा के मुताबिक यही वो समय था जब हिमालय क्षेत्र में योगिक प्रक्रिया की शुरुआत हुई थी।
    आदियोगी ने अपने सात शिष्यों यानी सप्तऋषियों के साथ दक्षिण का रुख किया। उन्होंने जीवन-तंत्र की खोज करनी शुरू कर दी, जिसे आज हम योग कहते हैं। मानवता के इतिहास में पहली बार किसी ने इस संभावना को खोला कि अगर आप इसके लिए कोशिश करने को इच्छुक हैं, तो आप अपनी पूरी चेतना में अपनी वर्तमान अवस्था से दूसरी अवस्था में विकसित हो सकते हैं। आदियोगी ने बताया कि आपका जो वर्तमान ढांचा है, यही आपकी सीमा नहीं है। आप इस ढांचे को पार कर सकते हैं और जीवन के एक पूरी तरह से अलग पहलू की ओर बढ़ सकते हैं।
    एक ऋषि दक्षिण अमेरिका तो एक दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में चले गए। एक शिष्य ने कभी अपना मुंह नहीं खोला और न ही कोई उपदेश दिया, लेकिन उनकी मौजूदगी ने बड़े-बड़े काम किए।
    उस ज्ञान के प्रसार के लिए इन सात लोगों को भेजा गया। योगिक कथाओं में कई तरह से इसका वर्णन है।

    भगवान शिव के अलंकार:

    हमारी परंपरा में भगवान शिव को कई सारी वस्तुओं से सजा हुआ दिखाया जाता है। उनके माथे पर तीसरी आंख, उनका वाहन नंदी, और उनका त्रिशूल इसके उदाहरण हैं। क्या सच में शिव के माथे पर एक और आंख है? और क्या वे हमेशा नंदी और त्रिशूल को अपने साथ रखते हैं? या फिर इन्हें चिन्हों की तरह इस्तेमाल करके हमें कुछ और समझाने की कोशिश की गई है? आइये जानते हैं ।

    शिव की तीसरी आंख:

    शिव को हमेशा त्रयंबक कहा गया है, क्योंकि उनकी एक तीसरी आंख है। तीसरी आंख का मतलब यह नहीं है कि किसी के माथे में दरार पड़ी और वहां कुछ निकल आया! इसका मतल‍ब सिर्फ यह है कि बोध या अनुभव का एक दूसरा आयाम खुल गया है। दो आंखें सिर्फ भौतिक चीजों को देख सकती हैं। अगर मैं अपना हाथ उन पर रख लूं, तो वे उसके परे नहीं देख पाएंगी। उनकी सीमा यही है। अगर तीसरी आंख खुल जाती है, तो इसका मतलब है कि बोध का एक दूसरा आयाम खुल जाता है जो कि भीतर की ओर देख सकता है। इस बोध से आप जीवन को बिल्कुल अलग ढंग से देख सकते हैं। इसके बाद दुनिया में जितनी चीजों का अनुभव किया जा सकता है, उनका अनुभव हो सकता है। आपके बोध के विकास के लिए सबसे अहम चीज यह है – कि आपकी ऊर्जा को विकसित होना होगा और अपना स्तर ऊंचा करना होगा। योग की सारी प्रक्रिया यही है कि आपकी ऊर्जा को इस तरीके से विकसित किया जाए और सुधारा जाए कि आपका बोध बढ़े और तीसरी आंख खुल जाए। तीसरी आंख दृष्टि की आंख है। दोनों भौतिक आंखें सिर्फ आपकी इंद्रियां हैं। वे मन में तरह-तरह की फालतू बातें भरती हैं क्योंकि आप जो देखते हैं, वह सच नहीं है। आप इस या उस व्यक्ति को देखकर उसके बारे में कुछ अंदाजा लगाते हैं, मगर आप उसके अंदर शिव को नहीं देख पाते। आप चीजों को इस तरह देखते हैं, जो आपके जीवित रहने के लिए जरूरी हैं। कोई दूसरा प्राणी उसे दूसरे तरीके से देखता है, जो उसके जीवित रहने के लिए जरूरी है। इसीलिए हम इस दुनिया को माया कहते हैं। माया का मतलब है कि यह एक तरह का धोखा है। इसका मतलब यह नहीं है कि अस्तित्व एक कल्पना है।
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    भगवान त्रिनेत्र, त्र्यम्बक और सोमशेखर के नामों से भी जानें जाते हैं

    चंद्रमा:

    शिव के कई नाम हैं। उनमें एक काफी प्रचलित नाम है सोम या सोमसुंदर। वैसे तो सोम का मतलब चंद्रमा होता है मगर सोम का असली अर्थ नशा होता है। नशा सिर्फ बाहरी पदार्थों से ही नहीं होता, बल्कि केवल अपने भीतर चल रही जीवन की प्रक्रिया में भी आप मदमस्त रह सकते हैं।
    अगर आप जीवन के नशे में नहीं डूबे हैं, तो सिर्फ सुबह का उठना, अपने शरीर की जरूरतों को पूरा करना, खाना-पीना, रोजी-रोटी कमाना, आस-पास फैले दुश्मनों से खुद को बचाना और फिर हर रात सोने जाना, जैसी दैनिक क्रियाएं आपकी जिंदगी कष्टदायक बना सकती हैं। अभी ज्यादातर लोगों के साथ यही हो रहा है। जीवन की सरल प्रक्रिया उनके लिए नर्क बन गई है। ऐसा सिर्फ इसलिए है क्योंकि वे जीवन का नशा किए बिना उसे बस जीने की कोशिश कर रहे हैं। चंद्रमा को सोम कहा गया है, यानि नशे का स्रोत।
    अगर आप किसी चांदनी रात में किसी ऐसी जगह गए हों जहां बिजली की रोशनी नही हो, या आपने बस चंद्रमा की रोशनी की ओर ध्यान से देखा हो, तो धीरे-धीरे आपको सुरूर चढ़ने लगता है। क्या आपने इस बात पर ध्यान दिया है? हम चंद्रमा की रोशनी के बिना भी ऐसा कर सकते हैं मगर चांदनी से ऐसा बहुत आसानी से हो जाता है। अपने इसी गुण के कारण चंद्रमा को नशे का स्रोत माना गया है। शिव चंद्रमा को एक आभूषण की तरह पहनते हैं क्योंकि वह एक महान योगी हैं जो हर समय नशे में चूर रहते हैं। फिर भी वह बहुत ही सजग होकर बैठते हैं। नशे का आनंद उठाने के लिए आपको सचेत होना ही चाहिए।

    शिव का वाहन नंदी:

    नंदी अनंत प्रतीक्षा का प्रतीक है। भारतीय संस्कृति में इंतजार को सबसे बड़ा गुण माना गया है। जो बस चुपचाप बैठकर इंतजार करना जानता है, वह कुदरती तौर पर ध्यानमग्न हो सकता है। नंदी को ऐसी उम्मीद नहीं है कि शिव कल आ जाएंगे। वह किसी चीज का अंदाजा नहीं लगाता या उम्मीद नहीं करता। वह बस इंतजार करता है। वह हमेशा इंतजार करेगा। यह गुण ग्रहणशीलता का मूल तत्व है। नंदी शिव का सबसे करीबी साथी है क्योंकि उसमें ग्रहणशीलता का गुण है। किसी मंदिर में जाने के लिए आपके अंदर नंदी का गुण होना चाहिए। ताकि आप बस बैठ सकें। इस गुण के होने का मतलब है – आप स्वर्ग जाने की कोशिश नहीं करेंगे, आप यह या वह पाने की कोशिश नहीं करेंगे – आप बस वहां बैठेंगे। लोगों को हमेशा से यह गलतफहमी रही है कि ध्यान किसी तरह की क्रिया है। नहीं – यह एक गुण है। यही बुनियादी अंतर है। प्रार्थना का मतलब है कि आप भगवान से बात करने की कोशिश कर रहे हैं। ध्यान का मतलब है कि आप भगवान की बात सुनना चाहते हैं। आप बस अस्तित्व को, सृष्टि की परम प्रकृति को सुनना चाहते हैं। आपके पास कहने के लिए कुछ नहीं है, आप बस सुनते हैं। नंदी का गुण यही है, वह बस सजग होकर बैठा रहता है। यह बहुत अहम चीज है – वह सजग है, सुस्त नहीं है। वह आलसी की तरह नहीं बैठा है। वह पूरी तरह सक्रिय, पूरी सजगता से, जीवन से भरपूर बैठा है, ध्यान यही है।

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    तीन गुणों को दर्शाता भगवान शिव का त्रिशूल

    शिव का त्रिशूल:

    शिव का त्रिशूल जीवन के तीन मूल पहलुओं को दर्शाता है। योग परंपरा में उसे रुद्र, हर और सदाशिव कहा जाता है। ये जीवन के तीन मूल आयाम हैं, जिन्हें कई रूपों में दर्शाया गया है। उन्हें इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना भी कहा जा सकता है। ये तीनों प्राणमय कोष यानि मानव तंत्र के ऊर्जा शरीर में मौजूद तीन मूलभूत नाड़ियां हैं – बाईं, दाहिनी और मध्य। नाड़ियां शरीर में उस मार्ग या माध्यम की तरह होती हैं जिनसे प्राण का संचार होता है। तीन मूलभूत नाड़ियों से 72,000 नाड़ियां निकलती हैं। इन नाड़ियों का कोई भौतिक रूप नहीं होता।  यानी अगर आप शरीर को काट कर इन्हें देखने की कोशिश करें तो आप उन्हें नहीं खोज सकते। लेकिन जैसे-जैसे आप अधिक सजग होते हैं, आप देख सकते हैं कि ऊर्जा की गति अनियमित नहीं है, वह तय रास्तों से गुजर रही है। प्राण या ऊर्जा 72,000 विभिन्न रास्तों से होकर गुजरती है। इड़ा और पिंगला जीवन के बुनियादी द्वैत के प्रतीक हैं। इस द्वैत को हम परंपरागत रूप से शिव और शक्ति का नाम देते हैं। या आप इसे बस पुरुषोचित और स्त्रियोचित कह सकते हैं, या यह आपके दो पहलू – तर्क-बुद्धि और सहज-ज्ञान हो सकते हैं।

    सर्प:

    योग संस्कृति में, सर्प यानी सांप कुंडलिनी का प्रतीक है। यह आपके भीतर की वह उर्जा है जो फिलहाल इस्तेमाल नहीं हो रही है। कुंडलिनी का स्वभाव ऐसा होता है कि जब वह स्थिर होती है, तो आपको पता भी नहीं चलता कि उसका कोई अस्तित्व है। केवल जब उसमें हलचल होती है, तभी आपको महसूस होता है कि आपके अंदर इतनी शक्ति है। जब तक वह अपनी जगह से हिलती-डुलती नहीं, उसका अस्तित्व लगभग नहीं के बराबर होता है।
    इस कारण सांप को कुंडलिनी के प्रतीक के रूप में देखा जाता है, क्योंकि कुंडली मारे सांप को भी देखना बहुत मुश्किल होता है, जब तक कि वह आगे नहीं बढ़ता। इसी तरह, आप कुंडलिनी में कैद इस ऊर्जा को सिर्फ तब देख पाते हैं जब वह हिलती-डुलती है। शिव के साथ सांप को दिखाने की यही वजह है। यह दर्शाता है कि उनकी ऊर्जा शिखर तक पहुंच चुकी है।  आध्यात्मिकता या रहस्यवाद को सांपों से अलग नहीं किया जा सकता क्योंकि इस जीव में बोध का एक खास आयाम विकसित है। यह एक रेंगने वाला जीव है, जिसे जमीन पर रेंगना चाहिए मगर शिव ने उसे अपने सिर पर धारण किया है। इससे यह पता चलता है कि वह उनसे भी ऊपर है। यह दर्शाता है कि कुछ रूपों में सांप शिव से भी बेहतर हैं। सांप ऐसा जानवर है जो आपके सहज रहने पर आपके साथ बहुत आराम से रहता है।

    ॐ नम: शिवाय

    “ॐ नम: शिवाय” वह मूल मंत्र है, जिसे कई सभ्यताओं में महामंत्र माना गया है। इस मंत्र का अभ्यास विभिन्न आयामों में किया जा सकता है। इन्हें पंचाक्षर कहा गया है, इसमें पांच मंत्र हैं। ये पंचाक्षर प्रकृति में मौजूद पांच तत्वों के प्रतीक हैं और शरीर के पांच मुख्य केंद्रों के भी प्रतीक हैं। इन पंचाक्षरों से इन पांच केंद्रों को जाग्रत किया जा सकता है। ये पूरे तंत्र (सिस्टम) के शुद्धीकरण के लिए बहुत शक्तिशाली माध्यम हैं।
    लेकिन अगर आपके अंदर एक खास तरह की तैयारी नहीं है तो बेहतर होगा कि आप खुद मंत्रोच्‍चारण न करें। आप इस मंत्रोच्‍चारण को खूब ध्‍यान से सुनें, यही लाभदायक होगा।