Sunday, 2 October 2016

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महान सम्राट अशोक के 9 रहस्यमय रत्न, जानिए उनका रहस्य

By: Secret On: 14:20
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  • महान सम्राट अशोक के 9 रहस्यमय रत्न, जानिए उनका रहस्य


    अशोक महान (304 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व) : अशोक महान पूरा नाम देवानांप्रिय अशोक मौर्य (राजा प्रियदर्शी देवताओं का प्रिय)। पिता का नाम बिंदुसार। दादा का नाम चक्रवर्ती सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य (शासनकाल : 322 से 298 ईपू तक)। माता का नाम सुभद्रांगी था जिन्हें रानी धर्मा भी कहते थे।


    पत्नियों का नाम देवी (वेदिस-महादेवी शाक्यकुमारी), कारुवाकी (द्वितीय देवी तीवलमाता), असंधिमित्रा (अग्रमहिषी), पद्मावती और तिष्यरक्षित। पुत्रों का नाम- देवी से पुत्र महेन्द्र, पुत्री संघमित्रा और पुत्री चारुमती, कारुवाकी से पुत्र तीवर, पद्मावती से पुत्र कुणाल (धर्मविवर्धन) और भी कई पुत्रों का उल्लेख है। धर्म- हिन्दू और बौद्ध। राजधानी पाटलीपुत्र। 
     
     
    सम्राट अशोक को 'देवानांप्रिय' अशोक मौर्य सम्राट कहा जाता था। देवानांप्रिय का अर्थ देवताओं का प्रिय। ऐसी उपाधि भारत के किसी अन्य सम्राट के नाम के आगे नहीं लगाई गई।
     
    सम्राट अशोक का नाम संसार के महानतम व्यक्तियों में गिना जाता है। ऐसा माना जाता हैं कि ईरान से लेकर बर्मा तक अशोक का साम्राज्य था। अंत में कलिंग युद्ध ने अशोक को धर्म की ओर मोड़ दिया। अशोक ने जहां-जहां भी अपना साम्राज्य स्थापित किया, वहां-वहां अशोक स्तंभ बनवाए। उनके हजारों स्तंभों को मध्यकाल के मुस्लिमों ने ध्वस्त कर दिया।
     
    अशोक के समय मौर्य राज्य उत्तर में हिन्दूकुश की श्रेणियों से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी के दक्षिण तथा मैसूर, कर्नाटक तक तथा पूर्व में बंगाल से पश्चिम में अफगानिस्तान तक पहुंच गया था। यह उस समय तक का सबसे बड़ा भारतीय साम्राज्य था। 
     
    अशोक महान ने बौद्ध धर्म का प्रचार भारत के अलावा श्रीलंका, अफगानिस्तान, पश्चिम एशिया, मिस्र तथा यूनान में भी करवाया। बिंदुसार की कई पटरानियों और पुत्रों का उल्लेख मिलता है। उनमें से  अशोक का सबसे बड़ा भाई सुसीम था। तिष्य अशोक का सहोदर भाई और सबसे छोटा था। श्यामक अशोक का भाई नहीं था। कहते हैं कि भाइयों के साथ गृहयुद्ध के बाद अशोक को राजगद्दी मिली थी।
     
    आओ हम जानते हैं महान सम्राट अशोक के जीवन से जुड़े उनके 9 रहस्यमय रत्नों के बारे में...

    • सम्राट अशोक के 9 रहस्यमयी सलाहकार : 9 रत्न रखने की परंपरा की शुरुआत सम्राट अशोक और उज्जैन सम्राट प्रथम राजा विक्रमादित्य से मानी जाती है। उनके ही अनुसार बाद के राजाओं ने भी इस परंपरा को निभाया। अकबर ने अपने दरबार में 9 रत्नों की नियुक्ति सम्राट अशोक के जीवन से प्रेरित होकर ही की थी।
     
    अकबर ने अशोक की लगभग सभी नीतियां अपनाई थीं जिसके चलते उन्हें महान घोषित किया जा सकता था। इतिहासकारों ने ऐसा किया भी। हालांकि अकबर ने किसी अन्य धर्म को अपनाने के बजाए खुद ही एक नया धर्म चलाने का प्रयास किया और वे उसके संस्थापक बन बैठे।
     
    कुछ लोग कहते हैं कि अशोक के साथ ऐसे 9 लोग थे, जो उनको निर्देश देते थे जिनके निर्देश और सहयोग के बल पर ही अशोक ने महान कार्यों को अंजाम दिया। ये 9 लोग कौन थे इसका रहस्य आज भी बरकरार है। क्या वे मनुष्य थे या देवता?

    • 9 रत्नों की गुप्त पुस्तक : अब सवाल यह उठता है कि सम्राट अशोक के साथ वे कौन 9 लोग थे जिनके बारे में कहा जाता है कि उनमें से प्रत्येक के पास अपने-अपने ज्ञान की विशेषता थी अर्थात उनमें से प्रत्येक विशेष ज्ञान से युक्त था और अंत में सम्राट अशोक ने उनके ज्ञान को दुनिया से छुपाकर रखा।
     
    वे ही लोग थे जिन्होंने बड़े-बड़े स्तूप बनवाए और जिन्होंने विज्ञान और टेक्नोलॉजी में भी भारत को समृद्ध बनाया। कहा जाता है कि उनके ज्ञान को एक पुस्तक के रूप से संग्रहीत किया गया था। जिस पुस्तक को किसी विशेष व्यक्ति को सुपुर्द किया गया, उसने पीढ़ी-दर-पीढ़ी उस पुस्तक या उसके ज्ञान को आगे फैलाया। हालांकि यह रहस्य आज भी बरकरार है।

    • नौ रत्नों का कार्य : ऐसा माना जाता है कि सम्राट अशोक ने प्रमुख 9 लोगों की एक ऐसी संस्था बनाई हुई थी जिन्हें कभी सार्वजनिक तौर पर उपस्थित नहीं किया गया और उनके बारे में लोगों को कम ही जानकारी थी। यह कहना चाहिए कि आमजन महज यही जानता था कि सम्राट के 9 रत्न हैं जिनके कारण ही सम्राट शक्तिशाली है।
     
    इन रहस्यमय 9 लोगों का कार्य ऐसी जानकारियों की विद्या को बचाकर रखना था, जो अगर किसी के हाथ लग जाए तो सृष्टि का विनाश कर सकती है।
     
    बहुत से लोगों का मानना था कि सम्राट अशोक की यह रहस्यमय संस्था धरती पर मौजूद अन्य किसी भी संस्था से ज्यादा शक्तिशाली थी जिसमें बेहतरीन वैज्ञानिक और विचारक शामिल थे।




    • अशोक का निधन कहां हुआ? : यह तो पता चलता है कि सम्राट अशोक का निधन 232 ईसा पूर्व हुआ था लेकिन उनका निधन कहां और कैसे हुआ यह थोड़ा कठिन है।
     
    तिब्बती परंपरा के अनुसार उसका देहावसान तक्षशिला में हुआ। उनके एक शिलालेख के अनुसार अशोक का अंतिम कार्य भिक्षु संघ में फूट डालने की निंदा करना था। संभवत: यह घटना बौद्धों की तीसरी संगीति के बाद की है। सिंहली इतिहास ग्रंथों के अनुसार तीसरी संगीति अशोक के राज्यकाल में पाटलिपुत्र में हुई थी।

    • भारत की अर्थव्यवस्था : नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री डॉ. अमर्त्य सेन के अनुसार 'सम्राट अशोक के काल में दुनिया की अर्थव्यवस्था में भारत की भागीदारी 35% थी और सम्राट अशोक के काल में भारत जागतिक (ग्लोबल) महाशक्ति था।' जब मुगल और अंग्रेज आए, तब तक भारत की भागीदारी 23% थी और जब 1947 में अंग्रेज देश छोड़कर गए तब 4 फीसदी थी। दोनों ने ही भारत को लूटकर अरब और यूरोप को समृद्ध बनाया और आज भारत में अफ्रीका के बाद सबसे ज्यादा गरीब लोग रहते हैं।
    औपनि‍वेशि‍क युग (1773-1947) के दौरान ब्रि‍टि‍श भारत से सस्‍ती दरों पर कच्‍ची सामग्री खरीदा करते थे और तैयार माल भारतीय बाजारों में सामान्‍य मूल्‍य से कहीं अधि‍क उच्‍चतर कीमत पर बेचते थे जि‍सके परि‍णामस्‍वरूप स्रोतों का द्धि‍मार्गी ह्रास होता था। इस अवधि‍ के दौरान वि‍श्‍व की आय में भारत का हि‍स्‍सा 1700 ई. के 22.3 प्रति‍शत से गि‍रकर 1952 में 3.8 प्रति‍शत रह गया।
     
    अशोक के काल में भारत में जातिवाद नहीं था। उस काल में जनसंख्या भी कम थी तो जातिविहीन शील- संपन्न गुणों से उच्च आदर्श विचारों का समाज था। गुप्तकाल में इस तरह के समाज को और बढ़ावा मिला। हर्षवर्धन के काल तक यह सिलसिला चला। फिर भारत के सीमावर्ती क्षेत्र में युद्ध, घुसपैठ और आक्रमण के लंबे दौर के बाद संपूर्ण भारत को तुर्क, अरब, ईरानी आदि लोगों ने रणक्षेत्र बना दिया और 7वीं सदी से ही भारत का पतन होना शुरू होने लगा, जो आज तक जारी है।  
     
    सम्राट अशोक को अपने विस्तृत साम्राज्य के बेहतर कुशल प्रशासन तथा बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए जाना जाता है। अशोक के काल में बौद्ध धर्म की जड़ें मिस्र, सऊदी अरब, इराक, यूनान से लेकर श्रीलंका और बर्मा, थाईलैंड, चीन आदि क्षेत्र में गहरी जम गई थीं। लेकिन इस्लाम के उदय के बाद हिंसक दौर में सबसे ज्यादा नुकसान बौद्ध धर्म को ही झेलना पड़ा।

    • अशोक के होने पर एक नजर : चूंकि भारत के एक बहुत बड़े भू-भाग पर मुगलों और संपूर्ण भारत पर अंग्रेजों ने राज किया था। इस दौरान कुछ मुस्लिम राजाओं ने यहां की संस्कृति और सभ्यता को नष्ट करने का भरपूर प्रयास किया। बाद में अंग्रेजों ने यहां के इतिहास के तथ्‍यों के साथ छेड़खानी की और भारतीय इतिहास को जान-बूझकर भ्रमपूर्ण इसलिए बनाया ताकि आने वाली पीढ़ियों को असली इतिहास की जानकारी न मिले और वह इसे असत्य मानने लगे।
    हालांकि इतिहास के साथ छेड़खानी करने वालों ने ज्यादातर मौकों पर हिन्दू धर्मग्रंथों और स्मारकों को ही क्षतिग्रस्त किया। उसमें भी उनका ध्यान मथुरा, काशी, अयोध्या और प्रमुख तीर्थस्थलों पर ही ज्यादा रहा जिसके चलते जैन और बौद्ध धर्मग्रंथों में इतिहास सुरक्षित ही नहीं रहा बल्कि आज भी कई ऐसे स्मारक हैं, जो भारतीय गौरव को उजागर करते हैं।
     
    बौद्ध ग्रंथों में यद्यपि महान सम्राट अशोक के संबंध में बड़े विस्तार से उल्लेख मिलता है, लेकिन उनके वर्णन भी एक-दूसरे से भिन्न हैं। माना जाता है कि लेखकों ने अशोकादित्य (समुद्रगुप्त) और गोनंदी अशोक (कश्मीर का राजा) दोनों को मिलाकर एक चक्रवर्ती अशोक की कल्पना कर ली है। इस स्थिति में यह निष्कर्ष निकालना मुश्किल है कि बौद्ध धर्म का प्रचारक देवानांप्रिय अशोक कौन था? सम्राट अशोक को देवानांप्रिय भी कहा जाता था इसीलिए ज्यादातर विद्वानों ने मान लिया कि सम्राट अशोक का काल (269-232) ईस्वी पूर्व गद्दी पर बैठा था जबकि यह गलत है।
     
    अशोक सीरिया के राजा 'एण्टियोकस द्वितीय' और कुछ अन्य यवन राजाओं का समसामयिक था जिनका उल्लेख 'शिलालेख संख्या 8' में है। इससे विदित होता है कि अशोक ने ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी के उत्तरार्ध में राज्य किया, किंतु उसके राज्याभिषेक की सही तारीख का पता नहीं चलता है। अशोक ने 40 वर्ष राज्य किया इसलिए राज्याभिषेक के समय वह युवक ही रहा होगा। 
     
    चीनी विवरण के आधार पर अशोक का काल 850 ईसा पूर्व, सीलोनी विवरण के आधार पर 315 ईसा पूर्व और राजतरंगिणी के अनुसार 1260 ईसा पूर्व।
     
    पौराणिक कालगणना के अनुसार अशोक के राज्य के लिए निकाले गए 1472 से 1436 ईसा पूर्व के काल में और राजतरंगिणी के आधार पर धर्माशोक के लिए निकले राज्यकाल 1448 से 1400 ईसा पूर्व में कुछ-कुछ समानता है जबकि भारत के इतिहास को आधुनिक रूप में लिखने वाले इतिहासकारों द्वारा निकाले गए 265 ईसा पूर्व के काल से कोई समानता ही नहीं है।
     
    उक्त के आधार पर कहा जा सकता है कि वर्तमान इतिहासकारों द्वारा अशोक के संबंध में निर्धारित कालनिर्णय बहुत ही उलझा और अपुष्ट है जबकि भारत पौराणिक आधार पर कालगणना करने वालों और इतिहासकारों के बीच लगभग 1200 वर्ष का अंतर आ जाता है।
     
    चंद्रगुप्त मौर्य, अशोक और कनिष्क की जोन्स आदि पाश्‍चात्य विद्वानों द्वारा निर्धारित तिथियों के संदर्भ में एबी त्यागराज अय्यर की 'इंडियन आर्किटेक्चर' का निम्नलिखित उद्धरण भी ध्यान देने योग्य है- 
     
    'एथेंस में कुछ समय पूर्व एक समाधि मिली थी, उस पर लिखा था कि- 'यहां बौधगया के एक श्रवणाचार्य लेटे हुए हैं। एक शाक्य मुनि को उनके यूनानी शिष्य द्वारा ग्रीक देश ले जाया गया था। समाधि में स्थित शाक्य मुनि की मृत्यु 1000 ईसा पूर्व अंकित है। यदि शाक्य साधु को 1000 ईसा पूर्व के आसपास यूनान ले जाया गया था तो कनिष्क की तिथि कम से कम 1100 ईसा पूर्व और अशोक की 1250 ईसा पूर्व और चंद्रगुप्त मौर्य की 1300 ईसा पूर्व होनी चाहिए और इस मान से भगवान बुद्ध उनके भी पूर्व हुए थे। यदि यह मान लिया जाए तो संपूर्ण इतिहास ही बदल जाएगा। यूनानी साहित्य का सेड्रोकोट्टस चंद्रगुप्त मौर्य सेल्यूकस निकेटर का समकालीन था जिसने 303 ईसा पूर्व में भारत पर आक्रमण किया था, एकदम निराधार और अनर्गल है।' (दि प्लाट इन इंडियन क्रोनोलॉजी पृ. 9)
     
    अंग्रेज काल में नए सिरे से लिखे गए भारतीय इतिहास के कारण ही यह भ्रम की स्थिति उत्पन्न हई है कि भारतीय इतिहास में ठीक-ठीक तिथि निर्धारण नहीं है। भारत में अब तक जो भी सरकार सत्ता में रही उसने भी इसकी कभी चिंता नहीं ‍की कि भारत के इतिहास को खोजा जाए। ज्यादातर भारतीय इतिहासकारों ने विदेशी इतिहासकारों का अनुसरण ही किया है।

    पहला अशोक : कल्हण की 'राजतरंगिणी' के अनुसार कश्मीर के राजवंशों की लिस्ट में 48वें राजा का नाम अशोक था, जो कि कनिष्क से तीन पीढ़ी पहले था। वह कश्मीर के गोनंद राजवंश का राजा था। इस राजा को धर्माशोक भी कहते थे। अंग्रेज इतिहासकारों ने इसे लेकर भी बहुत भ्रम फैलाने का प्रयास किया। 
     
    दूसरा अशोक : हिन्दू पुराणों के अनुसार मौर्य वंश का तीसरा राजा अशोकवर्धन था, जो चंद्रगुप्त मौर्य का पौत्र और बिंदुसार का पुत्र था। इसी अशोक को महान सम्राट अशोक कहा गया था और इसी ने अशोक स्तंभ बनवाए और इसी ने कलिंग का युद्ध किया था। कलिंग के युद्ध के बाद यही अशोक बौद्ध धर्म का अनुयायी बन गया था।
     
    तीसरा अशोक : गुप्त वंश के दूसरे राजा समुद्रगुप्त का उपनाम अशोकादित्य था। समुद्रगुप्त को अनेक स्थानों पर अशोक ही कहा गया जिसके चलते भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है। समुद्रगुप्त बड़ा ही साहसी और बुद्धिमान राजा था। उसने संपूर्ण भारतवर्ष में बड़े व्यापक स्तर पर विजयी अभियान चलाए थे। अधिकतर इतिहासकार इसे ही महान सम्राट अशोक मानकर भ्रम की स्थिति निर्मित करते हैं।
     
    चौथा अशोक : पुराणों में शिशुनाग वंश के दूसरे राजा का नाम भी अशोक था। वह शिशुनाग का पुत्र था। उसका काला रंग होने के कारण उसे 'काकवर्णा' कहते थे, हालांकि उसे कालाशोक नाम से भी पुकारा जाता था।

     



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