भगवान श्री राम की मृत्यु कैसे हुई | Bhagwan Shri Ram Ji ki Mrityu Kaise Hui In Hindi
हिन्दू धर्म के प्रमुख तीन देवता - ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश में से भगवान विष्णु के कई अवतारों ने विभिन्न युग में जन्म लिया। यह अवतार भगवान विष्णु द्वारा संसार की भलाई के लिए लिये थे। भगवान विष्णु द्वारा कुल 10 अवतारों की रचना की गई थी, जिसमें से भगवान राम सातवें अवतार माने जाते हैं। यह अवतार भगवान विष्णु के सभी अवतारों में से सबसे ज्यादा प्रसिद्ध और पूजनीय माना जाता है।
प्रभु राम के बारे में महर्षि वाल्मीकि द्वारा अनेक कथाएं लिखी गई हैं, जिन्हें पढ़कर कलयुग के मनुष्य को श्रीराम के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। वाल्मीकि के अलावा प्रसिद्ध महाकवि तुलसीदास ने भी अनगिनत कविताओं द्वारा कलियुग के मानव को श्री राम की तस्वीर जाहिर करने की कोशिश की है। भारत में उत्तर से लेकर दक्षिण तथा पूर्व से पश्चिम तक, सभी जगहों पर भगवान राम के मंदिर स्थापित किये गए हैं। इनमें से कई मंदिर ऐतिहासिक दृष्टि से बनाए गए हैं।
भगवान श्री राम की मुक्ति से पूर्व यदि हम उनके जीवनकाल पर नजर डालें तो प्रभु राम ने पृथ्वी पर 10 हजार से भी ज्यादा वर्षों तक राज किया है। अपने इस लम्बे परिमित समय में भगवान राम ने ऐसे कई महान कार्य किए हैं, जिन्होंने हिन्दू धर्म को एक गौरवमयी इतिहास प्रदान किया है।
फिर कैसे भगवान राम इस दुनिया से लोप हो गए?
वह क्या कारण था जो उन्हें अपने परिवार को छोड़ विष्णु लोक वापस पधारना पड़ा। पद्म पुराण में दर्ज एक कथा के अनुसार, एक दिन एक वृद्ध संत भगवान राम के दरबार में पहुंचे और उनसे अकेले में चर्चा करने के लिए निवेदन किया। उस संत की पुकार सुनते हुए प्रभु राम उन्हें एक कक्ष में ले गए और द्वार पर अपने छोटे भाई लक्ष्मण को खड़ा किया और कहा कि यदि उनके और उस संत की चर्चा को किसी ने भंग करने की कोशिश की तो उसे मृत्युदंड प्राप्त होगा।
लक्ष्मण ने अपने ज्येष्ठ भ्राता की आज्ञा का पालन करते हुए दोनों को उस कमरे में एकांत में छोड़ दिया और खुद बाहर पहरा देने लगे। वह वृद्ध संत कोई और नहीं बल्कि विष्णु लोक से भेजे गए काल देव थे जिन्हें प्रभु राम को यह बताने भेजा गया था कि उनका धरती पर जीवन पूरा हो चुका है और अब उन्हें अपने लोक वापस लौटना होगा।
अभी उस संत और श्रीराम के बीच चर्चा चल ही रही थी कि अचानक द्वार पर ऋषि दुर्वासा आ गए। उन्होंने लक्ष्मण से भगवान राम से बात करने के लिए कक्ष के भीतर जाने के लिए निवेदन किया लेकिन श्रीराम की आज्ञा का पालन करते हुए लक्ष्मण ने उन्हें ऐसा करने से मना किया। ऋषि दुर्वासा हमेशा से ही अपने अत्यंत क्रोध के लिए जाने जाते हैं, जिसका खामियाजा हर किसी को भुगतना पड़ता है, यहां तक कि स्वयं श्रीराम को भी।
लक्ष्मण के बार-बार मना करने पर भी ऋषि दुर्वासा अपनी बात से पीछे ना हटे और अंत में लक्ष्मण को श्री राम को श्राप देने की चेतावनी दे दी। अब लक्ष्मण की चिंता और भी बढ़ गई। वे समझ नहीं पा रहे थे कि आखिरकार अपने भाई की आज्ञा का पालन करें या फिर उन्हें श्राप मिलने से बचाएं। ऋषि दुर्वासा द्वारा भगवान राम को श्राप देने जैसी चेतावनी सुनकर लक्ष्मण काफी भयभीत हो गए और फिर उन्होंने एक कठोर फैसला लिया।
लक्ष्मण कभी नहीं चाहते थे कि उनके कारण उनके भाई को कोई किसी भी प्रकार की हानि पहुंचा सके। इसलिए उन्होंने अपनी बलि देने का फैसला किया। उन्होंने सोचा यदि वे ऋषि दुर्वासा को भीतर नहीं जाने देंगे तो उनके भाई को श्राप का सामना करना पड़ेगा, लेकिन यदि वे श्रीराम की आज्ञा के विरुद्ध जाएंगे तो उन्हें मृत्यु दंड भुगतना होगा, यही लक्ष्मण ने सही समझा।
वे आगे बढ़े और कमरे के भीतर चले गए। लक्ष्मण को चर्चा में बाधा डालते देख श्रीराम ही धर्म संकट में पड़ गए। अब एक तरफ अपने फैसले से मजबूर थे और दूसरी तरफ भाई के प्यार से निस्सहाय थे। उस समय श्रीराम ने अपने भाई को मृत्यु दंड देने के स्थान पर राज्य एवं देश से बाहर निकल जाने को कहा। उस युग में देश निकाला मिलना मृत्यु दंड के बराबर ही माना जाता था।
लेकिन लक्ष्मण जो कभी अपने भाई राम के बिना एक क्षण भी नहीं रह सकते थे उन्होंने इस दुनिया को ही छोड़ने का निर्णय लिया। वे सरयू नदी के पास गए और संसार से मुक्ति पाने की इच्छा रखते हुए वे नदी के भीतर चले गए। इस तरह लक्ष्मण के जीवन का अंत हो गया और वे पृथ्वी लोक से दूसरे लोक में चले गए। लक्ष्मण के सरयू नदी के अंदर जाते ही वह अनंत शेष के अवतार में बदल गए और विष्णु लोक चले गए।
अपने भाई के चले जाने से श्री राम काफी उदास हो गए। जिस तरह राम के बिना लक्ष्मण नहीं, ठीक उसी तरह लक्ष्मण के बिना राम का जीना भी प्रभु राम को उचित ना लगा। उन्होंने भी इस लोक से चले जाने का विचार बनाया। तब प्रभु राम ने अपना राज-पाट और पद अपने पुत्रों के साथ अपने भाई के पुत्रों को सौंप दिया और सरयू नदी की ओर चल दिए।
वहां पहुंचकर श्री राम सरयू नदी के बिलकुल आंतरिक भूभाग तक चले गए और अचानक गायब हो गए। फिर कुछ देर बाद नदी के भीतर से भगवान विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने अपने भक्तों को दर्शन दिए। इस प्रकार से श्री राम ने भी अपना मानवीय रूप त्याग कर अपने वास्तविक स्वरूप विष्णु का रूप धारण किया और वैकुंठ धाम की ओर प्रस्थान किया।
यह भी पढ़े >>
- भारत में छिपे हुए इन बेशकीमती खजानों की खोज अभी है बाकी
- नारीलता फूल का रहस्य | Narilatha Ful Ka Rahasya In Hindi
- हजारों वर्षों से जीवित है ये आठ महामानव - Hazaro Varsho Se Jivit Hai Ye 8 Mahamanav
- वर्षों से इस मंदिर के तहखाने में कैद एक रहस्य... वर्षों से इस मंदिर के तहखाने में कैद एक रहस्य...