Wednesday 25 April 2018

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दूसरी दुनिया के दरवाजे और वर्महोल का रहस्य

By: Secret On: 08:00
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  • दूसरी दुनिया के दरवाज़े हैं ये रहस्यमय वर्महोल




           अपनी धरती पर अब तक इस तरह के दो वर्म होल ढूँढ़े जा चुके हैं। इनमें से एक फ्लोरिडा कोस्टारिका और बरमूडा के बीच बरमूडा त्रिकोण है, जबकि दूसरे की खोज अभी २६ वर्ष पहले 18 अगस्त 1990 को हुई। जापान, ताइवान तथा गुगुआन के मध्य स्थित यह ट्रायंगल “ड्रेगन्स ट्राइएंगल” के नाम से प्रसिद्ध है | क्या होते है ये वर्म होल ? वर्म होल इस अखिल विश्व ब्रह्माण्ड के वो छिद्र हैं जहाँ पर समय (Time) और आकाश (Space) की सारी ज्यामितियाँ एक हो जाती हैं अर्थात यहाँ पर समय (Time) और आकाश (Space) का परस्पर एक-दूसरे में रूपांतर संभव है | समय (Time) और आकाश (Space) की ज्यामितियाँ एक हो जाने की वजह से, इस अखिल विश्व ब्रह्माण्ड में जितनी भी विमायें (Dimensions) हैं वो सब उस ‘बिंदु’ में तिरोहित हो जाती हैं इसी वजह से इस बिंदु में प्रचंड आकर्षण शक्ति होती है |

    तो अगर आप किसी वर्म होल के मुहाने पर खड़े हैं तो उसकी अकल्पनीय आकर्षण शक्ति में फंस सकते हैं | एक बार कोई भी वस्तु उस छिद्र में फंसी तो वो स्वयं भी उस बिंदु के समान हो जाएगी लेकिन अगले ही क्षण वो इस बिंदु से बाहर किसी दूसरे लोक में होगी | जितने समय तक वो वस्तु उस बिंदु में रहेगी वो अपने आप को उस ब्रह्माण्ड की सारी विमाओं (Dimensions) में व्यक्त करेगी लेकिन ये समय इतना कम होता है कि न तो इसको किसी भी तरह से मापा जा सकता है और न ही इस मानवीय शरीर से इसका अनुभव किया जा सकता है |

    अगर आप दुर्भाग्य वश इस वर्म होल में फंस गए तो, दिक्-काल (Time-Space) की सारी ज्यामितियों के हो जाने की वजह से, आप के साथ दो संभावने हो सकती है | या तो आप किसी बिलकुल अद्भुत और अनजान लोक में पहुंचे लेकिन वहां भी उसी समय में जी रहे होंगे जिस समय में आप जीते अगर पृथ्वी लोक में होते तो | ऐसा भी हो सकता है की दूसरे लोक में भी आपको अपने आस-पास, अपने लोगो की आवाज़े आरही हों जो गायब होते वक्त आपके आस-पास थे लेकिन आप उनको देख नहीं पा रहे हों क्योकि आप उनसे इतर किसी दूसरे लोक में हैं | ऐसा इसलिए होता है की वर्म होल में फंसने की वजह आप के क्षेत्र या आकाश (Space) की ज्यामिति परिवर्तित (Change) हो गयी लेकिन आपके समय (Time) की ज्यामिति नहीं बदली |

    दूसरी सम्भावना ये है कि हो सकता है वर्म होल में फंसने के बाद आप वापस उसी जगह पर हों लेकिन आप की अपनी दुनिया के लोग वहां न हों हांलाकि हो सकता है जगह थोड़ी सी बदली-बदली सी लगे लेकिन वास्तव में आप होंगे उसी जगह पर, लेकिन आप के अपने समय के संगी-साथी वहां नहीं होंगे | ऐसा समय की ज्यामिति परिवर्तित होने से होता है | यानि आपके स्थान या आकाश (Space) की ज्यामिति तो वही रही लेकिन समय (Time) की ज्यामिति बदल गयी |आप अपने ही लोक, अपने ही ग्रह पर लेकिन किसी और समय में होंगे |

    यद्यपि वर्महोल की परिकल्पना वैज्ञानिको के लिए अभी भी चुनौती पूर्ण बनी हुई है लेकिन ब्रह्माण्ड के अद्भुत रहस्यों में से एक वर्म होल ने कई अनसुलझी गुत्थियों को सुलझा भी दिया है | पृथ्वी पर स्थित वर्म होलों के संबंध में वैज्ञानिकों के एक दल का विश्वास है कि इस प्रकार के अनेक छोटे वर्म होल्स इसके जल या स्थल भाग में स्थित हो सकते हैं पर किन्हीं कारणों से उनके मुँह बंद रहते हैं और यदा−कदा ही खुलते हैं, किन्तु जब खुलते हैं, तो इस प्रकार की घटनाएँ देखने−सुनने को मिलती हैं। ये छिद्र कभी−कभी ही क्यों खुलते हैं और अधिकाँश समय बंद क्यों रहते हैं? इस संबंध में जानकारी प्राप्त करने के लिए वैज्ञानिक अब पृथ्वी स्थित अपनी प्रयोगशाला में ही छोटे आकार के वर्महोल विनिर्मित करने का प्रयास कर रहे हैं, ताकि उनकी प्रकृति के बारे में गहराई से अध्ययन किया जा सके। यदि ऐसा हुआ, तो फिर लोक−लोकान्तरों की यात्रा बिना किसी कठिनाई के कर सकना संभव हो सकेगा और व्यक्ति इच्छानुसार किसी भी लोक का सफर किसी भी समय सरलतापूर्वक कर सकेगा।

    ऐसे गमनागमन का आर्ष साहित्यों में यत्र−तत्र वर्णन भी मिलता है। महाभारत में एक इसी तरह के प्रसंग का उल्लेख वन पर्व के तीर्थयात्रा प्रकरण में मौजूद है, जिसमें बंदी नामक एक पंडित ने यज्ञ के आयोजन के लिए विद्वान ब्राह्मणों को समुद्र मार्ग से वरुण लोक भेजा था। चर्चा यह भी है कि यज्ञ के उपराँत वे सकुशल पुनः उसी मार्ग से पृथ्वी लोक आ गये थे। इससे स्पष्ट है कि तब लोग उस विद्या में निष्णात् हुआ करते थे, जिसे आत्मिकी या उच्च स्तरीय रूप माना जाता है। यदि ऐसा नहीं होता, तो उनका वापस लौट पाना एक प्रकार से अशक्य बना रहता। आज इसी अशक्त ता के कारण ऐसी घटनाओं में व्यक्ति एक लोक से दूसरे में पहुँच तो जाता है, पर फिर अपने पूर्व लोक में वापस नहीं आ पाता। इससे यह भी साबित होता है कि अन्य लोकों का सुनिश्चित अस्तित्व असंदिग्ध रूप से विद्यमान है।

    इसी का समर्थन करते हुए प्रसिद्ध वैज्ञानिक रिचर्ड एच. ब्रायण्ट अपनी कृति “अदर वर्ल्डस” में लिखते हैं कि भौतिक आयामों से परे अपने ही जैसे किसी अन्य विश्व-ब्रह्माण्ड के लिए यह जरूरी है कि व्यक्त चार आयामों के अतिरिक्त और चार आयाम हों। यह आयाम प्रत्यक्ष आयामों को ढकेंगे नहीं, वरन् हर नया आयाम प्रत्येक दूसरे से समकोण पर स्थित होगा। वे कहते हैं कि यद्यपि इस प्रकार की विचारधारा सिद्धाँत रूप में संभव नहीं है, फिर भी गणितीय रूप से इसे दर्शाया जा सकता है। उनके अनुसार यदि भौतिक विज्ञान की पहुँच से बाहर दृश्य आयामों से परे कोई पड़ोसी अदृश्य संसार वास्तव में है, तो इसे पाँचवें, छठवें, सातवें और आठवें आयामों से बना होना चाहिए। इस प्रकार विज्ञान ने भी सूक्ष्म लोकों के अस्तित्व पर एक प्रकार से मुहर लगा दी है।


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