Friday, 13 November 2015

समय : समय क्या नही है ?

By: Secret On: 12:48
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  • अनसुलझे रहस्य:

                                 

    समय : समय क्या नही है ?

    जीवन समय मे कैद एक यात्रा है, कुछ पलों के अतिरिक्त जो स्वतंत्र होते है।
    समय को समझने के लिये सिद्धांतो की गहराई मे जाने से पहले हम समय से संबधित कुछ गलतफहमीयों को दूर करना होगा। ये गलतफहमीयाँ मुख्यतः समय के प्रवाह से उत्पन्न है तथा काल-अंतराल मे द्रव्यमान द्वारा उत्पन्न वक्रता को सही रूप से नही समझ पाने से उत्पन्न है।

    ब्लाक ब्रह्मांड

    ब्लाक ब्रह्माण्ड  के परिपेक्ष्य मे समय एक भूदृश्य(landscpae) के समान है, जिसमे भूतकाल, वर्तमान और भविष्यकाल तीनो एक साथ भिन्न आयामो मे मौजूद हैं। इसका अर्थ है कि डायनासोर अभी भी है, साथ ही आपकी अपनी बहुत सी प्रतिलिपीयाँ है तथा सारा ब्रह्मांड भी भविष्यकाल और भूतकाल की विभिन्न अवस्थाओं मे उपस्थित है।
    ब्रह्माण्ड विस्तार
    ब्रह्माण्ड विस्तार
    यह विचित्र चित्र आइंस्टाइन के साधारण सापेक्षतावाद(Theory of relativity) के सिद्धांत से उत्पन्न होता है जिसमे समय एक एक चतुर्थ आयाम(fourth dimension) है और उसकी दिशा भूतकाल से भविष्य काल की ओर है। साधारण सापेक्षतावाद मे दो घटनायें(Events) एक साथ एक ही समय मे नही हो सकती है, इससे एन्ड्रोमीडा विरोधाभास(Andromeda paradox) जैसी विसंगतियां उत्पन्न होती है।
    हमारे जैसे व्यक्ति जो भौतिकशास्त्र मे विश्वास करते है भूतकाल, वर्तमान तथा भविष्यकाल मे अंतर जानते है, उन्हे ज्ञात है कि यह एक जिद्दी स्थायी भ्रम है। –अलबर्ट आइंस्टाइन
    सापेक्षतावाद सिद्धांत के काल अंतराल मे वक्रता को “उच्च आयाम मे आयी एक ऐसी वक्रता” के रूप मे माना जा सकता है जहां समय धीमा हो और समय एक भिन्न आयाम ना हो। इसे इस तथ्य से प्रमाणित भी किया जा सकता है जिसमे गति करते पिंड अपने साथ फोटानो को खींच कर समकालीनता(Simultaneity)* का संरक्षण करते है। इस व्यवहार को गतिशील प्लाज्मा मे फोटान त्वरण ( photon acceleration caused by  moving plasmas)से सिद्ध भी किया जा चुका है।

    समकालीनता

    साथ दिये चित्र मे समकालीनता से संबधित एक वैचारिक प्रयोग को दर्शाया गया है। एक अंतरिक्षयान अत्यंत तीव्र गति से बायें से दायें दिशा मे गतिमान है। सापेक्षतावाद के नियम के अनुसार प्रकाशगति यान के अंदर निरीक्षक तथा यान से बाहर स्थिर निरीक्षक के लिये समान होगी।
    यान के सामने तथा पीछे से उत्सर्जित प्रकाश किरणे यान के अंदर वाले निरीक्षक के लिये यान के मध्य मे मिलेंगी। लेकिन यान बाह्य स्थिर निरीक्षक के लिये वे यान के पिछले भाग की ओर मिलेंगी।
    समय गति निरीक्षक के सापेक्ष होती है।
    समय गति निरीक्षक के सापेक्ष होती है।
    इस जानकारी के प्रयोग से एक वैचारिक प्रयोग(thought experiment) किया जा सकता है जिसमे प्रकाश किरणो के यान के मध्य मे ना मिलने पर यान के मध्य एक बिल्ली को बंदूक से गोली मार दी जायेगी।
    इसका अर्थ यह होगा कि यान के अंदर स्थित निरीक्षक के लिये बिल्ली जीवित होगी, लेकिन यान बाह्य स्थिर निरीक्षक के लिये बिल्ली मृत क्योंकि उसके अनुसार प्रकाश किरणे मध्य मे नही मीली हैं।
    गतिशील पिंड भी अंतराल मे वक्रता उत्पन्न करते हैं।
    गतिशील पिंड भी अंतराल मे वक्रता उत्पन्न करते हैं।
    अब कौन सा निरीक्षक सही है ? बिल्ली जीवित है या मृत ? इस प्रश्न को सुलझाने का एक तरीका यह है कि यह मान कर चला जाये कि बंदूक दागने की प्रणाली गतिशील यान के नियमों का पालन करेगी। अर्थात बिल्ली जीवित है। इसका अर्थ यह भी है कि यान बाह्य स्थिर निरीक्षक के निरीक्षण निरर्थक हैं। इस घटना को भी इस तथ्य से प्रमाणित भी किया जा सकता है जिसमे गति करते पिंड अपने साथ फोटानो को खींच कर समकालीनता* का संरक्षण करते है और इस व्यवहार को गतिशील प्लाज्मा मे फोटान त्वरण से सिद्ध भी किया जा चुका है। अर्थात ब्रह्माण्ड को किसी खांचे की आवश्यकता नही है।
    अगले लेखों मे हम देखेंगे कि समय अंतर के निर्माण से गतिशील पिंड किस तरह से अंतराल मे वक्रता उत्पन्न करते है। द्रव्यमान रहित कण(शून्य द्रव्यमान) समय अंतर मे गति की दिशा मे खिंचे जाते है, जिससे उस पिंड मे स्थित निरीक्षक द्वारा किया गया निरीक्षण ही अर्थपूर्ण होता है।

    ब्लाक ब्रह्मांड की समस्याएं

    समय के अपरिवर्ती सिद्धांत(static theory of time) से कुछ समस्यायें और विरोधाभाष उत्पन्न होते है जिनका विश्लेषण आवश्यक है। इस सिद्धांत मे समय भूदृश्य के ही जैसे समय-पटल मे पसरा हुआ है। इसके अनुसार भविष्य का आस्तित्व है और इसके अनुसार स्वतंत्र इच्छा/घटना का आस्तित्व संभव नही है। एक छोटे से समय के अंतराल मे भी पूरे ब्रह्माण्ड की हर वस्तु की असंख्य प्रतिलिपीयाँ होना चाहीये।
    समांतर ब्रह्माण्ड ?
    समांतर ब्रह्माण्ड ?
    इस ब्लाक ब्रह्माण्ड मे ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति(Origin of Universe) की चर्चा व्यर्थ है क्योंकि ब्रह्माण्ड के हर भाग का आस्तित्व हमेशा ही रहा है। यदि कोई महाविस्फोट(Big Bang) हुआ है तब उसका आस्तित्व अभी भी होगा। यदि समयपटल(time-scape) का आस्तित्व है जिसमे भूतकाल, वर्तमानकाल और भविष्य फैले हुये है, तब हमे घटनाये घटित होते हुये और समय का प्रवाह कैसे महसूस होता है ? क्या हमारी चेतना(consciousness ) समय के प्रवाह मे बहती रहती है ? हमारी चेतना को इस प्रवाह मे गतिमान कौन बनाता है ? हम अपनी इच्छा से समय के प्रवाह मे स्वतंत्र रूप से क्यो आगे पिछे नही जा सकते है ? समय के प्रवाह मे चेतना की गति को समझने हमे एक नयी भौतिकी की आवश्यकता होगी।
    “ब्लाक ब्रह्मांड” क्षद्म वैज्ञानिको(pseudo science) के लिये एक वरदान बन कर आया है। यह उन्हे भविष्य के अनुमान, ज्योतिष, स्वप्न जैसी चीजों की अपनी मर्जी से व्याख्या के लिये एक अवसर प्रदान करता है। इसी तरह के कुछ आइडीये क्वांटम भौतिकी के कुछ कारको की प्रकृति द्वारा विशिष्ट रूप से चयन की गयी राशि पर भी लगाये जाते है, क्वांटम भौतिकी के इन कारको की राशि यदि कुछ और हो तो ब्रह्माण्ड का आस्तित्व संभव नही है। हम एक ही ब्रह्माण्ड को समझने मे असमर्थ है, यदि अरबो व्यक्तियों द्वारा अरबो विकल्पो के चयन के द्वारा खरबो ब्रह्माण्ड के अस्तित्व की संभावना किसी को भी मानसिक रूप से अंसंतुलित करने के लिये पर्याप्त है। ऐसा इसलिये कि हर संभावना एक समांतर ब्रह्माण्ड को जन्म देती है, एक सिक्का उछालने पर दो समांतर ब्रह्माण्ड बन जाते है, एक मे सिक्का चीत होगा दूसरे मे पट!

    समय यात्रीयों का अभाव

    यदि ब्लाक ब्रह्माण्ड का आस्तित्व है, तब भविष्य की उन्नत सभ्यताओं का आस्तित्व भी होगा जोकि हमसे तकनीक मे लाखों अरबो वर्ष आगे होंगी। इनमे से कम से कम कुछ सभ्यतायें समय यात्रा मे सक्षम होना चाहीये। इन समय यात्राओं के कुछ प्रमाण भी होना चाहीये या समय यात्रा किसी अज्ञात भौतिकी के नियमो के अनुसार अंसभव होना चाहीये।
    पोते द्वारा दादा कि विवाह से पहले हत्या!
    पोते द्वारा दादा कि विवाह से पहले हत्या!
    यदि समय यात्रा संभव है ,तब कोई व्यक्ति भूतकाल मे जाकर अपने दादा की उनके विवाह से पहले हत्या कर सकता है, इस तरह से वह भविष्य मे परिवर्तन कर अपने आप को भी पैदा होने से रोक देता है। जब वह पैदा नही हुआ तो वह समय यात्रा कर भूतकाल मे कैसे पहुंचेगा ?

    सक्षेंप

    समय एक वास्तविक अद्भुत घटना है तथा वह कुछ तरह से किसी ब्लाक ब्रह्माण्ड के जैसे समयपटल पर पसरी प्रतित होती है लेकिन  उसका ब्लाक ब्रह्माण्ड के जैसे प्रतित होना एक भ्रम मात्र है। केवल वर्तमान वास्तविक है, भूतकाल स्मृति है तथा भविष्य का आस्तित्व नही है। समकालीनता का संरक्षण होता है तथा प्लाज्मा की गति द्वारा फोटान त्वरण से प्रमाणित है। समय यात्रीयों के अनुपस्थिति तथा समय यात्रा से जुड़े विरोधाभाषो के फलस्वरूप ब्लाक ब्रह्माण्ड की अवधारणा संभव नही है।
    हमारा वर्तमान इतना छोटा होता है कि उसे किसी इकाई मे मापना संभव नही है। वर्तमान की तुलना किसी सीडी रीकार्डीग यंत्र की तीव्र सुई से की जा सकती है। भूतकाल और भविष्य का मापन संभव है, जैसे हम किसी टेप या सीडी की स्मृति का मापन कर सकते है। भूतकाल के लिए इस स्मृति मे आंकड़े होंगे, वही भविष्य के लिये वह कोरे कागज के जैसे खाली होगी। इसका अर्थ यह नही है कि समय का आस्तित्व नही है, यह सिर्फ यह दर्शाता है कि जिसे हम समय समझते है वह एक आभास या भ्रम मात्र है।
    *समकालीनता(Simultaneity ): यह किसी एक ही पर्यवेक्षक के संदर्भ मे समान समय मे घटित होने वाली घटनाओं का गुणधर्म है।
                          

    हिग्स बोसान के अनसुलझे रहस्य:

    By: Secret On: 12:41
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  • अनसुलझे रहस्य:  

                     हिग्स बोसान मिल ही गया !

                                        जिनीवा में CERN के भौतिक विज्ञानीयों  ने  बुधवार 4 जुलाई 2012 को एक प्रेस कांफ्रेंस में दावा किया कि उन्‍हें प्रयोग के दौरान नए कण मिले, जिसके गुणधर्म हिग्‍स बोसोन से मिलते  हैं। उन्‍होंने बताया कि वैज्ञानिक नए कणों के आंकड़ो के विश्‍लेषण में जुटे हैं। हालांकि उन्‍होंने यह भी कहा कि इन नए कणों के कई गुण हिग्‍स बोसोन सिद्धांत से मेल नहीं खाते हैं। फिर भी इसे ब्रह्मांड की उत्त्पत्ती के  रहस्‍य खोलने की दिशा में एक महत्वपूर्ण  कदम  माना जा रहा है।
    वैज्ञानिक हिग्स कण की मौजूदगी के बारे में ठोस सबूतों की खोज कर रहे थे। बुधवार को घोषणा की गई है कि खोज प्रारंभिक है लेकिन इसके ठोस सबूत मिले हैं। इस घोषणा से पहले अफवाहों का बाज़ार गर्म था। हिग्स बॉसन या God Particle विज्ञान की एक ऐसी अवधारणा रही है जिसे अभी तक प्रयोग के ज़रिए साबित नहीं किया जा सका था।
    वैज्ञानिकों की अब ये कोशिश होगी कि वे पता करें कि ब्रह्रांड की स्थापना कैसे हुई होगी। हिग्स बॉसन के बारे में पता लगाना भौतिक विज्ञान की सबसे बड़ी पहेली माना जाता रहा है। लार्ज हेड्रॉन कोलाइडर नामक परियोजना में दस अरब डॉलर खर्च हो चुके हैं। इस परियोजना के तहत दुनिया के दो सबसे तेज़ कण त्वरक बनाए गए हैं जो  प्रोटानो को प्रकाश गति के समीप गति से टकरायेंगे। इसके बाद जो होगा उससे ब्रह्रांड के उत्पत्ति के कई राज खुल सकेंगे।
    वहीं, एटलस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे ब्रिटिश भौतिकशास्त्री ब्रॉयन कॉक्सके मुताबिक सीएमएस ने भी एक नया बोसोन खोजा है जो कि मानक हिग्स बोसोन की तरह ही है। हालांकि कॉक्स ने यह भी कहा कि अधिक जानकारी के लिए हिग्स सिग्नल को प्रत्येक इवेंट में 30- प्रोटान-प्रोटान टकराव  कराना पड़ेगा जो कि काफी मुश्किल होगा क्योंकि यह एटलस प्रोजेक्ट की डिजाइन क्षमता के बाहर की बात है।सर्न की खोज पर प्रतिक्रिया देते हुए वैज्ञानिक पीटर हिग्स ने कहा,
    "सर्न के वैज्ञानिक आज के नतीजों के लिए बधाई के पात्र हैं, यह यहां तक पहुंचने के लिए लार्ज हेड्रान कोलाइडर और अन्य प्रयोगों के प्रयासों का ही नतीजा है। मैं नतीजों की रफ्तार देखकर हैरान हूं। खोज की रफ्तार शोधकर्ताओं की विशेषज्ञता और मौजूदा तकनीक की क्षमताओं का प्रमाण है। मैंने कभी उम्मीद नहीं की थी कि मेरे जीवनकाल में ही ऐसा होगा।"
    इससे पहले, फ्रांस और स्विटजरलैंड की सीमा पर जिनीवा में बनी सबसे बड़ी प्रयोगशाला में दुनिया भर के बड़े वैज्ञानिकों को निमंत्रित किया गया था।हिग्स बोसोन वे कण हैं, जिसकी ब्रह्मांड के बनने में अहम भूमिका मानी जाती है। भौतिकी  के स्टेंडर्ड माडल  के नियमों के मुताबिक धरती पर हर चीज को द्रव्यमान देने वाले यही कण हैं। लोगों को 1960 के दशक में इनके बारे में पहली बार पता चला। तब से ये भौतिकी की अबूझ पहेली बने हुए हैं।
    यूरोपियन ऑर्गनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च (सर्न) के जिनीवा के पास स्थित भौतिकी रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिको ने बताया कि हिग्ग्स बोसोन का पता तब चला, जब एटलस और सीएमएस प्रयोगों से जुड़े वैज्ञानिको ने लार्ज हैड्रोन कॉलाइडर में तेज गति (प्रकाश गति के समीप) से मूलभूत कणों  को आपस में टकराए।
    इस दौरान बोसोन के चमकते हुए अंश सामने आए, लेकिन उन्हें पकड़ना आसान नहीं था। सीएमएस से जुड़े एक वैज्ञानिक ने बताया, ये दोनों ही प्रयोग एक ही द्रव्यमान स्तर पर हिग्स बोसान की उपस्थिति का संकेत दे रहे हैं।

    ब्रह्माण्ड का केन्द्र कहाँ है?

    By: Secret On: 12:32
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  • ब्रह्माण्ड का केन्द्र कहाँ है?

    universe_center_wideसरल उत्तर है कि
    ब्रह्माण्ड का कोई केन्द्र नही है!
    ब्रह्माण्ड विज्ञान की मानक अवधारणाओं के अनुसार ब्रह्माण्ड का जन्म एक महाविस्फोट(Big Bang) मे लगभग 14 अरब वर्ष पहले हुआ था और उसके पश्चात उसका विस्तार हो रहा है। लेकिन इस विस्तार का कोई केण्द नही है, यह विस्तार हर दिशा मे समान है। महाविस्फोट को एक साधारण विस्फोट की तरह मानना सही नही है। ब्रह्माण्ड अंतरिक्ष मे किसी एक केन्द्र से विस्तारीत नही हो रहा है, समस्त ब्रह्माण्ड का विस्तार हो रहा है और यह विस्तार हर दिशा मे हर जगह एक ही गति से हो रहा है।
    1929 मे एडवीन हब्बल ने घोषणा की कि उन्होने हम से विभिन्न दूरीयों पर आकाशगंगाओं की गति की गणना की है और पाया है कि हर दिशा मे जो आकाशगंगा हमसे जितनी ज्यादा दूर है वह उतनी ज्यादा गति से दूर जा रही है। इस कथन से ऐसा लगता है कि हम ब्रह्माण्ड के केन्द्र मे है; लेकिन तथ्य यह है कि यदि ब्रह्माण्ड का विस्तार हर जगह समान गति से हो रहा हो तो हर निरीक्षण बिंदु से ऐसा प्रतीत होगा कि वह ब्रह्मांड के केन्द्र मे है और उसकी हर दिशा मे आकाशगंगाये उससे दूर जा रही है।
    मान लिजीये की तीन आकाशगंगाये “अ”,”ब” और “स” है। यदि आकाशगंगा “ब” आकाशगंगा “अ” से 10,000 किमी/सेकंड की गति से दूर जा रही हो तो, आकाशगंगा “ब” मे स्थित परग्रही जीव को आकाशगंगा अ विपरीत दिशा मे 10,000 किमी/सेकंड से दूर जाते हुये दिखेगी। यदि आकाशगंगा “स” आकाशगंगा “ब” की दिशा मे दोगुनी दूरी पर हो तो उसकी गति आकाशगंगा “अ” से 20,000 किमी/सेकंड होगी लेकिन आकाशगंगा “ब” के परग्रही के लिये 10,000 किमी/सेकंड ही होगी।
    आकाशगंगा “अ” आकाशगंगा “ब” आकाशगंगा “स”
    आकाशगंगा “अ” से 0 किमी/सेकंड 10,000 किमी/सेकंड 20,000 किमी/सेकंड
    आकाशगंगा “ब” से -10,000 किमी/सेकंड 0 किमी/सेकंड 10,000 किमी/सेकंड
    इस तरह आकाशगंगा ब के परग्रही के अनुसार हर दिशा मे सभी कुछ उससे दूर जा रहा है। इसी तरह से हमारी भी हर दिशा मे सभी कुछ दूर जा रहा है।

    प्रसिद्ध गुब्बारे का उदाहरण या रूपक

    ब्रह्माण्ड के विस्तार को समझने के लिये सबसे सरल उदाहरण अंतरिक्ष की फूलते गुब्बारे की सतह से तुलना है। यह प्रसिद्ध तुलना आर्थर एडींगटन ने 1933 मे अपनी पुस्तक “The Expanding Universe” मे की थी। इसके पश्चात फ़्रेड हायल ने 1960 मे अपनी पुस्तक “The Nature of the Universe” मे की थी। होयल ने लिखा था कि
    “मेरे अगणितज्ञ मित्र अक्सर मुझसे कहते है कि उन्हे ब्रह्माण्ड विस्तार को एक चित्र के रूप मे देखने मे कठिनाई होती है। उन्हे समझाने के लिये गणित के सूत्रों का प्रयोग करने की बजाये मुझे उन्हे ब्रह्माण्ड के विस्तार को फूलते हुये गुब्बारे की सतह जिस पर बहुत से बिंदु बने हो के रूप समझाने मे आसानी होती है। जब गुब्बारे को फूलाया जाता है तब उसकी सतह पर के बिंदु एक दूसरे से समान रूप से दूर जाते है उसी तरह से आकाशगंगाओं के मध्य का अंतराल भी बड रहा है।”
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    गुब्बारे का उदाहरण अच्छा है लेकिन इसे सही तरह से समझना होगा अन्यथा वह विषय को और उलझा देगा। होयल ने पहले ही चेता दिया है कि
    “ब्रह्माण्ड के विस्तार मे कई ऐसे पहलू है जोकि गलत संकेत दे सकते है”।
    ध्यान दें कि यहां पर हम गुब्बारे की द्वि-आयामी सतह की तुलना त्री-आयामी अंतरिक्ष से कर रहे है। हम गुब्बारे की तुलना अंतरिक्ष से नहीं, हम “गुब्बारे की सतह” की तुलना अंतरिक्ष से कर रहे है।
    गुब्बारे की सतह समांगी(homogeneous) है जिसमे किसी भी बिंदु को केंद्र नही माना जा सकता है। गुब्बारे का केंद्र उसकी सतह पर नही है और उसे ब्रह्माण्ड के केंद्र के जैसे नही माना जाना चाहिये। यदि आपको सरल लगे तो आप गुब्बारे की त्रिज्या(radial) दिशा को समय मान सकते है। यह होयल का सुझाब था जो इसे और भी उलझा सकता है। सबसे सरल है कि आप गुब्बारे की सतह के अतिरिक्त किसी भी बिंदु को ब्रह्मांड का भाग ना समझे। गणितज्ञ गास मे 19वीं सदी के प्रारंभ मे कहा था कि अंतरिक्ष के गुणधर्म जैसे वक्रता को ऐसी अंतर्भूत राशीयों के रूप मे भी समझा जा सकता है जिनका मापन वक्रता के कारण को जाने बिना भी किया जा सकता हो। किसी बाह्य आयाम की अनुपस्थिती मे भी अंतरिक्ष मे वक्रता संभव है। गास मे अंतराल की वक्रता का मापन का प्रयास तीन पर्वतों की चोटीयो से बने त्रिभूज के कोणो के मापन से किया था।
    आप जब भी गुब्बारे के उदाहरण के बारे मे सोचें हमेशा ध्यान मे रखे कि
    • गुब्बारे की द्विआयामी सतह अंतरिक्ष के तीन आयामो के समरूप है।
    • त्रीआयामी अंतरिक्ष जो गुब्बारे के अंतर्भूत है, वह किसी अन्य भौतिक आयाम के समरूप नही है, आप चाहे तो उसे उसे आप समय के समरूप मान सकते है।
    • गुब्बारे का केन्द्र किसी भी भौतिक वस्तु के समरूप नही है, उसे आप अंतरिक्ष/ब्रह्मांड का भाग ना माने।
    • संभव है कि ब्रह्माण्ड आकार मे सीमित हो और गुब्बारे की सतह जैसे विस्तार कर रहा हो लेकिन वह असीमित भी हो सकता है।
    • आकाशगंगाये गुब्बारे की सतह के बिंदुओं की तरह एक दूसरे से दूर जा रही है लेकिन आकाशगंगाये स्वयं गुरुत्वाकर्षण से बंधी है, वह बिखर नही रही है।

    …..लेकिन यदि महाविस्फोट(Big Bang) एक विस्फोट था तो…

    किसी सामान्य विस्फोट मे पदार्थ विस्फोट केंद्र से बाहर की दिशा की ओर फैलता है। विस्फोट प्रक्रिया शुरु होने के एक क्षण के पश्चात केंद्र सबसे ज्यादा गर्म बिंदु होता है। उसके पश्चात केन्द्र से सभी दिशाओं की ओर पदार्थ एक गोले की शक्ल मे बाहर जाता है। महाविस्फोट अर्थात बिग बैंग इस तरह का विस्फोट नही था। वह अंतरिक्ष का विस्फोट था, वह अंतरिक्ष मे विस्फोट नही था। स्टैंडर्ड माडेल के अनुसार बिग बैंग के पहले समय और अंतरिक्ष दोनो नही थे। सही मायनो मे समय के अनुपस्थिति मे “पहले” शब्द ही निरर्थक हो जाता है। बिग बैंग अन्य विस्फोटों से अलग था। यह हमे बताता है कि किसी एक बिंदु से बाह्य दिशा मे पदार्थ विस्तारित नही हो रहा है, बल्कि अंतरिक्ष हर दिशा मे समान गति से विस्तारित हो रहा है।
    यदि बिग बैंग किसी उपस्थित अंतरिक्ष मे एक साधारण विस्फोट के जैसे हुआ होता तो हम इस विस्फोट की विस्तारित होती सीमा को देख पाते क्योंकि उसके पश्चात रिक्त अंतरिक्ष होता। लेकिन हम भूतकाल मे देखने का प्रयास करते हैं तो हर दिशा मे बिग बैंग के प्रभाव को देखते है। यह ब्रहमाण्डिय माइक्रोवेव विकिरण अर्थात कास्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड विकिरण हर दिशा मे संमागी है। यह भी दर्शाता है कि पदार्थ किसी बिंदु से बाह्य दिशा की ओर नही जा रहा है बल्कि अंतरिक्ष ही हर दिशा मे समान रूप से विस्तार कर रहा है।
    यह भी महत्वपूर्ण है कि अभी तक के समस्त निरीक्षण भी यही दर्शाते है कि ब्रह्माण्ड का कोई केंद्र नही है। यह एक तथ्य है कि ब्रह्माण्ड के समान रूप से विस्तार से यह संभावना समाप्त नही होती कि एक गर्म घना ब्रह्माण्डिय केंद्र संभव नही है लेकिन आकाशगंगाओं के वितरण और गति के अध्ययन ने यह स्थापित कर दिया है कि हमारे निरीक्षण की सीमा के अंतर्गत ऐसा कोई केंद्र नही है।

    ब्रह्माण्डिय सिद्धांत(cosmological principle)

    1933 मे आर्थर मिलेने ने ब्रह्माण्डिय सिद्धांत(cosmological principle) प्रस्तुत किया था जिसके अनुसार ब्रह्माण्ड का एक समान(समांगी और सावर्तिक) होना चाहिये। इसके कुछ पहले ही यह माना जाता था कि ब्रह्माण्ड मे केवल हमारी आकाशगंगा मंदाकिनी ही है और उसका केंद्र ब्रह्माण्ड का केंद्र है। 1924 मे हब्बल द्वारा अन्य आकाशगंगाओं की खोज ने इस बहस को समाप्त कर दिया। आकाशगंगाओं के वितरण की संरचना मे काफी खोज हो जाने के पश्चात भी अनेक खगोल विज्ञानी इस सिद्धांत को दार्शनिक रूप से मानते है क्योंकि यह एक ऐसी उपयोगी अवधारणा है जिसके विरोध मे कोई प्रमाण नही मिला है। लेकिन ब्रह्माण्ड का हमारा परिप्रेक्ष्य प्रकाश गति तथा बिग बैंग के पश्चात के सीमित समय द्वारा अवरोधित है। हमारे द्वारा निरीक्षित किया जा सकने वाला ब्रह्माण्ड विशाल है, लेकिन संभवतः वह समस्त ब्रह्माण्ड की तुलना मे बहुत क्षुद्र हो सकता है, ब्रह्माण्ड असीमित भी हो सकता है। हमारे द्वारा देखे जा सकने वाले ब्रह्माण्ड के क्षितीज के पश्चात क्या है? इसे जानने के लिये हमारे पास कोई साधन या उपाय नही है, हम यह भी नही जान सकते है कि यह ब्रह्माण्डिय सिद्धांत(cosmological principle) सही है या गलत।
    1927 मे जार्ज लेमैत्रे ने अंतरिक्ष के विस्तार के लिये आइंस्टाइन के सापेक्षतावाद के समीकरणो का हल निकाला। इन्ही समिकरणो के हल के आधार पर उन्होने बिगबैंग सिद्धांत को प्रस्तावित किया। इन समिकरणो के हल पर आधारित माडेल को फ़्रीडमैन-लैमीत्रे-राबर्टसन-वाकर(Friedman-Lemaitre-Robertson-Walker (FLRW)) माडेल कहा जाता है। फ़्रीडमैन ने इस माडेल को खोजा था लेकिन उसे सही माडेल नही माना था। यह बहुत कम लोग को ज्ञात है कि लैमीत्रे ने एक ऐसा माडेल भी बनाया था जो गोलाकार सममिती मे विस्तार करते हुये ब्रह्माण्ड का था। इस माडेल को लैमीत्रे-टालमन-बांडी माडेल(Lemaître-Tolman-Bondi (LTB)) कहा जाता है, इस माडेल के अनुसार ब्रह्मांड का केण्द्र संभव है। हमारे पास यह मानने का कोई आधार नही है कि LTB माडेल सही नही है क्योंकि FLWR माडेल यह LTB माडेल का एक विशेष सिमीत प्रकार है। FLWR माडेल यह एक ऐसा सन्निकटिकरण है को निरीक्षण किये जा सकने वाले ब्रह्माण्ड के लिये सही है लेकिन उसके बाह्य कुछ कहा नही जा सकता है।
    ब्रह्मांड की संरचना और भी अन्य आकारो मे संभव है जिसमे केंद्र हो भी सकता है या नही भी हो सकता है। निरीक्षण किये जा सकने वाले ब्रह्माण्ड के पैमाने पर उसका केंद्र नही है। लेकिन यदि यह पाया जाता है कि निरीक्षण किये जा सकने वाले ब्रह्माण्ड से बडे पैमाने पर ब्रह्माण्ड का केंद्र है तब यह भी संभव है कि उससे भी बड़े पैमाने पर वह ऐसे अनेक ब्रह्मांड केंद्रो मे से एक हो, ठीक उसी तरह जैसे कुछ समय पहले मंदाकिनी आकाशगंगा का केंद्र ब्रह्माण्ड का केंद्र था।
    साधारण शब्दों मे बिग बैंग सिद्धांत की अवधारणा के अनुसार विस्तार करते हुये ब्रह्माण्ड का कोई केंद्र नही है और यह अब तक के निरीक्षणो के आधार पर सही है। लेकिन यह भी संभव है कि हमारे निरीक्षण से बड़े पैमाने पर यह सही ना हो। हमारे आप इस प्रश्न का अकाट्य उत्तर नही है कि ब्रह्माण्ड का केंद्र कहां है?

    Sunday, 1 November 2015

    रहस्यमयी और अलौकिक निधिवन

    By: Secret On: 14:41
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  • रहस्यमयी और अलौकिक निधिवन - यहाँ आज भी राधा संग रास रचाते है कृष्ण, जो भी देखता है हो जाता है पागल:


    Mysterious and Super natural NidhiVan
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    भारत में कई ऐसी जगह है जो अपने दामन में कई रहस्यों को समेटे हुए है ऐसी ही एक जगह है वृंदावन स्तिथ निधि वन जिसके बारे में मान्यता है की यहाँ आज भी हर रात कृष्ण गोपियों संग रास रचाते है। यही कारण है की सुबह खुलने वाले निधिवन को संध्या आरती के पश्चात बंद कर दिया जाता है। उसके बाद वहां कोई नहीं रहता है यहाँ तक की निधिवन में दिन में रहने वाले पशु-पक्षी भी संध्या होते ही निधि वन को छोड़कर चले जाते है।

    Mysterious and Super natural NidhiVan
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    जो भी देखता है रासलीला हो जाता है पागल :

    Mysterious and Super natural NidhiVan
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    वैसे तो शाम होते ही निधि वन बंद हो जाता है और सब लोग यहाँ से चले जाते है। लेकिन फिर भी यदि कोई छुपकर रासलीला देखने की कोशिश करता है तो पागल हो जाता है। ऐसा ही एक वाक़या करीब 10 वर्ष पूर्व हुआ था जब जयपुर से आया एक कृष्ण भक्त रास लीला देखने के लिए निधिवन में छुपकर बैठ गया। जब सुबह निधि वन के गेट खुले तो वो बेहोश अवस्था में मिला, उसका मानसिक संतुलन बिगड़ चूका था। ऐसे  अनेकों किस्से यहाँ के लोग बताते है। ऐसे ही एक अन्य वयक्ति थे पागल बाबा जिनकी समाधि भी निधि वन में बनी हुई है। उनके बारे में भी कहा जाता है की उन्होंने भी एक बार निधि वन में छुपकर रास लीला देखने की कोशिश की थी। जिससे की वो पागल ही गए थे। चुकी वो कृष्ण के अनन्य भक्त थे इसलिए उनकी मृत्यु के पश्चात मंदिर कमेटी ने निधि वन में ही उनकी समाधि बनवा दी।

    रंगमहल में सज़ती है सेज़ :

    Rang mahal
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    निधि वन के अंदर ही है 'रंग महल' जिसके बारे में मान्यता है की रोज़ रात यहाँ पर राधा और कन्हैया आते है। रंग महल में राधा और कन्हैया के लिए रखे गए चंदन की पलंग को शाम सात बजे के पहले सजा दिया जाता है। पलंग के बगल में एक लोटा पानी, राधाजी के श्रृंगार का सामान और दातुन संग पान रख दिया जाता है। सुबह पांच बजे जब 'रंग महल' का पट खुलता है तो बिस्तर अस्त-व्यस्त, लोटे का पानी खाली, दातुन कुची हुई और पान खाया हुआ मिलता है। रंगमहल में भक्त केवल श्रृंगार का सामान ही चढ़ाते है और प्रसाद स्वरुप उन्हें भी श्रृंगार का सामान मिलता है।

    Rang mahal
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    पेड़ बढ़ते है जमीन की और :

    Nidhivan
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    निधि वन के पेड़ भी बड़े अजीब है जहाँ हर पेड़ की शाखाएं ऊपर की और बढ़ती है वही निधि वन के पेड़ो की शाखाएं नीचे की और बढ़ती है।  हालात यह है की रास्ता बनाने के लिए इन पेड़ों को डंडों के सहारे रोक गया है।

    Tree at Nidhivan
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    तुलसी के पेड़ बनते है गोपियाँ :
    निधि वन की एक अन्य खासियत यहाँ के तुलसी के पेड़ है।  निधि वन में तुलसी का हर पेड़ जोड़े में है।  इसके पीछे यह मान्यता है कि जब राधा संग कृष्ण वन में रास रचाते हैं तब यही जोड़ेदार पेड़ गोपियां बन जाती हैं। जैसे ही सुबह होती है तो सब फिर तुलसी के पेड़ में बदल जाती हैं। साथ ही एक अन्य मान्यता यह भी है की इस वन में लगे जोड़े की वन तुलसी की कोई भी एक डंडी नहीं ले जा सकता है। लोग बताते हैं कि‍ जो लोग भी ले गए वो किसी न किसी आपदा का शिकार हो गए। इसलिए कोई भी इन्हें नहीं छूता।

    वन के आसपास बने मकानों में नहीं हैं खिड़कियां :

    वन के आसपास बने मकानों में खिड़कियां नहीं हैं। यहां के निवासी बताते हैं कि शाम सात बजे के बाद कोई इस वन की तरफ नहीं देखता। जिन लोगों ने देखने का प्रयास किया या तो अंधे हो गए या फिर उनके ऊपर दैवी आपदा आ गई। जिन मकानों में खिड़कियां हैं भी, उनके घर के लोग शाम सात बजे मंदिर की आरती का घंटा बजते ही बंद कर लेते हैं। कुछ लोग तो अपनी खिड़कियों को ईंटों से बंद भी करा दिया है।
    वंशी चोर राधा रानी का भी है मंदिर :
    Radha rani
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    निधि वन में ही वंशी चोर राधा रानी का भी मंदिर है। यहां के महंत बताते हैं कि जब राधा जी को लगने लगा कि कन्हैया हर समय वंशी ही बजाते रहते हैं, उनकी तरफ ध्यान नहीं देते, तो उन्होंने उनकी वंशी चुरा ली। इस मंदिर में कृष्ण जी की सबसे प्रिय गोपी ललिता जी की भी मूर्ति राधा जी के साथ है। 
    Radha rani
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    विशाखा कुंड :
    Vishakha kund
    विशाखा कुंड  Image Credit H Subhash
    निधिवन में स्थित विशाखा कुंड के बारे में कहा जाता है कि जब भगवान श्रीकृष्ण सखियों के साथ रास रचा रहे थे, तभी एक सखी विशाखा को प्यास लगी। कोई व्यवस्था न देख कृष्ण ने अपनी वंशी से इस कुंड की खुदाई कर दी, जिसमें से निकले पानी को पीकर विशाखा सखी ने अपनी प्यास बुझायी। इस कुंड का नाम तभी से विशाखा कुंड पड़ गया।
    बांकेबिहारी का प्राकट्य स्थल :
    Baakein bihari
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    विशाखा कुंड के साथ ही ठा. बिहारी जी महाराज का प्राकट्य स्थल भी है। कहा जाता है कि संगीत सम्राट एवं धु्रपद के जनक स्वामी हरिदास जी महाराज ने अपने स्वरचित पदों का वीणा के माध्यम से मधुर गायन करते थे, जिसमें स्वामी जी इस प्रकार तन्मय हो जाते कि उन्हें तन-मन की सुध नहीं रहती थी। बांकेबिहारी जी ने उनके भक्ति संगीत से प्रसन्न होकर उन्हें एक दिन स्वप्न दिया और बताया कि मैं तो तुम्हारी साधना स्थली में ही विशाखा कुंड के समीप जमीन में छिपा हुआ हूं।
    स्वप्न के आधार पर हरिदास जी ने अपने शिष्यों की सहायता से बिहारी जी को वहा से निकलवाया और उनकी सेवा पूजा करने लगे। ठा. बिहारी जी का प्राकट्य स्थल आज भी उसी स्थान पर बना हुआ है। जहा प्रतिवर्ष ठा. बिहारी जी का प्राकट्य समारोह बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। कालान्तर में ठा. श्रीबांकेबिहारी जी महाराज के नवीन मंदिर की स्थापना की गयी और प्राकट्य मूर्ति को वहा स्थापित करके आज भी पूजा-अर्चना की जाती है। जो आज बाकेबिहारी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। 
    संगीत सम्राट स्वामी हरिदास जी महाराज की समाधि :
    Tomb of Haridas ji maharaj
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    संगीत सम्राट स्वामी हरिदास जी महाराज की भी समाधि निधि वन परिसर में ही है। स्वामी हरिदास जी श्री बिहारी जी के लिए  अपने स्वरचित पदों के द्वारा वीणा यंत्र पर मधुर गायन करते थे तथा गायन करते हुए ऐसे तन्मय हो जाते की उन्हें तन मन की सुध नहीं रहती।  प्रसिद्ध बैजूबावरा और तानसेन इन्ही के शिष्य थे। 
    अपने सभारत्न तानसेन के मुख से स्वामी हरिदास जी की प्रशंसा सुनकर सम्राट अकबर इनकी संगीत कला का रसास्वादन करना चाहते थे।  किन्तु स्वामी जी का यह दृढ़ निश्चय था की अपने ठाकुर के अतिरिक्त वो किसी का मनोरंजन नहीं करेंगे। इसलिए एक बार सम्राट अकबर वेश बदलकर साधारण व्यक्ति की भांति तानसेन के साथ निधिवन में स्वामी हरिदास की कुटिया में उपस्थित हुए। तानसेन ने जानभूझकर अपनी वीणा लेकर एक मधुर पद का गायन किया। अकबर तानसेन का गायन सुनकर मुग्ध हो गए।  इतने में स्वामी हरिदास जी तानसेन के हाथ से वीणा लेकर स्वयं उस पद का गायन करते हुए तानसेन की त्रुटियों की और इंगित करने लगे। उनका गायन इतना मधुर और आकर्षक था की वन के पशु पक्षी भी वहां उपस्तिथ होकर मौन भाव से श्रवण करने लगे।  सम्राट अकबर के विस्मय का ठिकाना नहीं रहा। 

                            

    धरती कि 10 सबसे खतरनाक जगह 

    By: Secret On: 14:34
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  • धरती कि 10 सबसे खतरनाक जगह (10 most dangerous place on earth):

                                    हम में से हर कोई एक सुरक्षित जगह में रहना और जाना पसंद करता है, लेकिन विश्व में कुछ ऐसे भी स्थान हैं, जहां इंसान के जीवन के लिए बहुत अधिक खतरा है। इनमे से कुछ खतरनाक स्थानों में आज भी लोगों को जाने की मनाही है। इन जगहों में से कुछ स्थानों पर तो ऐसे खतरे हैं, कि स्थिति अगर थोड़ा सा भी बदल जाए तो लाखों लोग मौत के मुंह में जा सकते हैं। कुछ स्थान तो ऐसे हैं, यदि कोई मनुष्य वहां जाए तो उसके बचकर वापस आने की संभावना बहुत कम ही रहती है। आज हम आपको धरती के कुछ ऐसे ही खतरनाक स्थानों के बारे में बताएँगे। 

    खूनी पोखर - जापान (Bloody Pond - Japan) :-
    यह जापान के सबसे प्रसिद्ध स्थानों में से एक है। इस पोखर में तैरना मना है क्योंकि इसक तापमान 194 फैरेनहाइट रहता है। झील में लोहे और नमक की मात्रा काफी होती है और इसका पानी खूनी लाल रंग का होता है। पानी की सतह से भाप वाष्पित होती रहती है। इसे देखकर ऐसा लगता है कि जैसे यह नर्क का द्वार हो।



    किवु लेक (Lake Kivu) : 
    अफ्रीका महाद्वीप के डेमोक्रेटिक रिपब्लिक कांगो (Democratic Republic of the Congo) और रवांडा (Rwanda) की सीमा के बीच में यह झील स्थित है। इसके गहरे पानी के नीचे मीथेन गैस छिपी हुई है। अगर इस जहरीली गैस से बने मौत के बादल सतह के ऊपर आ जाए तो इस क्षेत्र में बसे 20 लाख लोगों की जान खतरे में पड़ सकती है।


    माउंट मेरापी वोल्केनो (Mount Merapi Volcano) :   
    माउंट मेरापी एक सक्रिय ज्वालामुखी है जो मध्य जावा और इंडोनेशिया के योग्याकार्ता की सीमा पर स्थित है। इंडोनेशिया का यह सबसे सक्रिय ज्वालामुखी है और 1548 से यह लगातार सक्रिय है। जब इसमें विस्फोट नहीं होता है, तब भी इससे बहुत मात्रा में धुंआ निकलता रहता है और यह आसमान में 2 मील की ऊंचाई तक दिखाई देता है। इसके आसपास 4 मील से भी कम दूरी में लगभग 200,000 लोग रहते हैं। यदि इस ज्वालामुखी ने कभी अचानक बड़ा रूप धारण कर लिया तो भारी तबाही मचा देगा। 
    Mount Merapi Volcano
    Mount Merapi Volcano
    Mount Merapi Volcano
    Mount Merapi Volcano





    राम्री द्वीप (Ramree Island) : 
    यह द्वीप बर्मा के नजदीक स्थित है। इस द्वीप को गिनीज ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में इस बात के लिए जगह मिली है, कि यहां के खतरनाक जानवरों ने सबसे अधिक लोगों को नुकसान पहुंचाया है। इस द्वीप में खारे पानी कि कई झीलें हैं और ये खतरनाक मगरमच्छों (Crocodiles)  से भरी हुई हैं।
    Ramree Island
    Ramree Island

    Saltwater  Crocodile
    Saltwater  Crocodile
    द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापानी सेना के 1000 जवान ब्रिटिश सैनिकों से बचने के लिए इस द्वीप में पहुंच गए, लेकिन उन में से अधिकतर इस आइलैंड पर रहने वाले खतरनाक मगरमच्छों (Crocodiles)का शिकार बन गए कहते है कि आइलैंड से केवल 20 सैनिक ही ज़िंदा वापस आये थे। रामरी आइलैंड के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करे। 




    मियाकेजीमा इजू आइलैंड - जापान  (Miyakejima Izu Island - Japan) :-
    जापान में स्थित इस आइलैंड में न्यूक्लियर दुर्घटनाओं के अलावा यहां भूकंप की घटनाएं भी खूब होती है। यहां ओयामा ज्वालामुखी (Oyama Volcano) फूटता रहता है। इसके कारण लोग यहां स्वच्छ सांस भी नहीं ले सकता है। इस आइलैंड पर जिन्दा रहने के लिए हमेशा गैस मास्क लगा के रखना पड़ता है  क्योकि यहाँ के वातावरण में ज़हरीली गैसों कि मात्रा सामान्य से बहुत अधिक स्तर तक पहुच गयी है।  इस तरह इस द्वीप में एक नहीं बल्कि कई खतरे हैं। मियाकेजीमा इजू आइलैंड के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करे।
    Miyake Island - Japan
    Miyake Island - Japan 



    स्नेक आइलैंड - ब्राजील  ( Snake Island - Brazil ) : -
    इलहा डी क्विमाडा ग्रांड का निक नेम स्नेक आयलैंड भी है। यह ब्राजील के साओ पालो द्वीप का तट है। इसे गोल्डन लांसहेड सर्प की प्रजाति का घर कहा जाता है।  यहाँ पर इन सांपो कि संख्या इतनी अधिक है कि हर एक वर्ग मीटर में पांच सांप रहते है यानि कि आपके सिंगल बेड जितनी जगह में दस साँप और डबल बेड जितनी जगह में बीस सांप। इस सांप कि गिनती विशव के सबसे जहरीले सांपो में होती है। इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते है इस सांप के काटने से आदमी 10  से 15 मिनट के अंदर मर जाता है। पुरे ब्राज़िल मे साँपो के काटने से होने वाली मौतों में से 90 प्रतिशत मौतों के लिए यही सांप जिम्मेदार है। वर्तमान में ब्राजील की नेवी ने लोगों के यहां घुसने पर प्रतिबंध लगा रखा है। स्नेक आइलैंड के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करे। 
    Snake Island - Brazil
    Snake Island - Brazil
    ओकफेनोकी दलदल - जॉर्जिया  (Okefenokee Swamp - Georgia) :-
    यह जॉर्जिया स्टेट में स्थित है। यहां हजारों साल से पांस नाम की घास हर जगह फैली हुई है। लोगों ने पहले जो मकान और रास्ते बनाए थे, उन्हें इस घास ने ढंक दिया है। यह एक परभक्षी घास है। यहां जहरीले मच्छर, कीड़े मकोड़े, जहरीले सांप, मेढ़क और हजारों मगरमच्छों का आतंक है। ये जीव यहां इंसान के लिए बेहद खतरनाक हैं।
    Okefenokee Swamp - Georgia
    Okefenokee Swamp - Georgia

    एओकिगाहरा - जापान (Aokigahara - Japan) :-
    जापान के माउंट फुजी की तलहटी में अओकीगाहारा एक प्राचीन भुतिहा जगह है। 60 साल पहले यह जगह आत्महत्या करने वालों के लिए पसंदीदा जगह बन गई, जब सीको मात्सुमोतो की किताब ब्लैक सी ऑफ ट्रीज प्रकाशित हुई थी। इस किताब के पात्र इस जंगल में सामूहिक रूप से आत्महत्या करते हैं। हर साल इस जंगल से 70 से 100 लोगों की डेड बॉडीज मिलती हैं। इसके अलावा इस जंगल मर्डरर और ऐसे लुटेरे मिलते हैं, जो आत्महत्या करने वाले लोगों की जेबों के पैसों पर हाथ साफ करते हैं।
    Aokigahara - Japan
    Aokigahara - Japan


    सेबल आइलैंड - जहाजों का भक्षण करने वाला (Sable Island - The Devourer Of Ships) :-
    कनाडा के हैलिफैक्स पार्ट के पास यह द्वीप धुंध में लगातार छिपा रहता है। इसे देखकर ऐसा लगता है कि जैसे यह शिकार की तलाश में हमेशा चौकन्ना बना रहता है। खाड़ी की गर्म हवाएं लेब्राडोर की ठंडी हवाएं यहां मिलती हैं। तेज तूफानी हवाओं और ऊंची लहरों के बीच यह द्वीप लगभग दिखाई नहीं देता है। इससे कई जहाज यहां दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं। इसकी बालू मिट्टी का रंग समुद्र के पानी की तरह बदल जाता है। इसे दुनिया के सबसे खतरनाक स्थानों में से एक माना जाता है।
    Sable Island - Canada
    Sable Island - Canada 
    रॉयल पाथ - स्पेन ( Royal Path - Spain )  : -
    दुनिया की सबसे खतरनाक स्थानों में से एक है स्पेन का यह रॉयल पाथ। यह अलोरा नाम के एक गांव के पास जॉर्ज एल चोरो के बगल में बना हुआ है। यह खतरनाक रास्ता 300 से 900 फीट की उंचाई पर है और इसकी लंबाई 1.8 मीटर है और चौड़ाई मात्र 3 फीट। इसे पब्लिक के लिए बंद कर दिया गया है लेकिन पर्यटकों के बीच यह अभी भी रोमांच बना हुआ और यहां कुछ लोगों के गिरकर मरने की खबरें भी आती रहती हैं। रॉयल पाथ कि ज्यादा जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करे। 
    Royal Path - Spain
    Royal Path - Spain

    अनसॉल्वड मिस्ट्री

    By: Secret On: 14:28
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  • अनसॉल्वड मिस्ट्री- आखिर कब, कैसे और क्यों बना अमेरिका में यह विशालकाय "श्रीयंत्र":

                                          दुनिया के सबसे सभ्य और विकसित देश कहे जाने वाले अमेरिका में आज भी एक पहली अनसुलझी हैं, अमेरिका के सभी वैज्ञानिक, प्रकृति के जानकार, यू.एफ.ओ. से सम्बंधित जानकारी रखने वाले सभी हैरान हैं कि आखिर यह हिन्दुओं का श्री यंत्र बना तो कैसे बना …

    Unsolved Oregon Shri Yantra Mystery in Hindi
    इडाहो एयर नेशनल गार्ड का पायलट बिल मिलर 10 अगस्त 1990 को अपनी नियमित प्रशिक्षण उड़ान पर था। अचानक उसने ओरेगॉन प्रांत की एक सूखी हुई झील की रेत पर कोई विचित्र आकृति देखी। यह आकृति लगभग चौथाई मील लंबी-चौड़ी और सतह में लगभग तीन इंच गहरे धंसी हुई थी। बिल मिलर चौंका, क्योंकि लगभग तीस मिनट पहले ही उसने इस मार्ग से उड़ान भरी थी तब उसे ऐसी कोई आकृति नहीं दिखाई दी थी। उसके अलावा कई अन्य पायलट भी इसी मार्ग से लगातार उड़ान भरते थे, उन्होंने भी कभी इस विशाल आकृति के निर्माण की प्रक्रिया अथवा इसे बनाने वालों को कभी नहीं देखा था। आकृति का आकार इतना बड़ा था, कि ऐसा संभव ही नहीं कि पायलटों की निगाह से चूक जाए।
    सेना में लेफ्टिनेंट पद पर कार्यरत बिल मिलर ने तत्काल इसकी रिपोर्ट अपने उच्चाधिकारियों को दी, कि ओरेगॉन प्रांत की सिटी ऑफ बर्न्स से सत्तर मील दूर सूखी हुई झील की चट्टानों पर कोई रहस्यमयी आकृति दिखाई दे रही है।मिलर ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि यह आकृति अपने आकार और लकीरों की बनावट से किसी मशीन की आकृति प्रतीत होती है। इस खबर को लगभग तीस दिनों तक आम जनता से छिपाकर रखा गया, कि कहीं उस स्थान पर भीडभाड ना हो जाए। लेकिन फिर भी 12 सितम्बर 1990 को प्रेस को इसके बारे में पता चल ही गया। सबसे पहले बोईस टीवी स्टेशन ने इसकी ब्रेकिंग न्यूज़ दर्शकों को दी। जैसे ही लोगों ने उस आकृति को देखा तो तत्काल ही समझ गए कि यह हिन्दू धर्म का पवित्र चिन्ह “श्रीयंत्र” है। परन्तु किसी के पास इस बात का जवाब नहीं था कि हिन्दू आध्यात्मिक यन्त्र की विशाल आकृति ओरेगॉन के उस वीरान स्थल पर कैसे और क्यों आई?
    Unsolved Oregon Shri Yantra Mystery in Hindi
    14 सितम्बर को अमेरिका असोसिएटेड प्रेस तथा ओरेगॉन की बैण्ड बुलेटिन ने भी प्रमुखता से दिखाया और इस पर चर्चाएं होने लगीं। समाचार पत्रों ने शहर के विख्यात वास्तुविदों एवं इंजीनियरों से संपर्क किया तो उन्होंने भी इस आकृति पर जबरदस्त आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि इतनी बड़ी आकृति को बनाने के लिए यदि जमीन का सिर्फ सर्वे भर किया जाए तब भी कम से कम एक लाख डॉलर का खर्च आएगा। श्रीयंत्र की बेहद जटिल संरचना और उसकी कठिन डिजाइन को देखते हुए जब इसे सादे कागज़ पर बनाना ही मुश्किल होता है तो सूखी झील में आधे मील की लम्बाई-चौड़ाई में जमीन पर इस डिजाइन को बनाना तो बेहद ही मुश्किल और लंबा काम है, यह विशाल आकृति रातोंरात नहीं बनाई जा सकती। इस व्यावहारिक निष्कर्ष से अंदाजा लगाया गया कि निश्चित ही यह मनुष्य की कृति नहीं है। 
    तमाम माथापच्ची के बाद यह निष्कर्ष इसलिए भी निकाला गया, क्योंकि जितनी विशाल यह आकृति थी, और इसकी रचना एवं निश्चित पंक्तियों की लम्बाई-चौड़ाई को देखते हुए इसे जमीन पर खड़े रहकर बनाना संभव ही नहीं था। बल्कि यह आकृति को जमीन पर खड़े होकर पूरी देखी भी नहीं जा सकती थी, इसे पूरा देखने के लिए सैकड़ों फुट की ऊँचाई चाहिए थी। अंततः तमाम विद्वान, प्रोफ़ेसर, आस्तिक-नास्तिक, अन्य धर्मों के प्रतिनिधि इस बात पर सहमत हुए कि निश्चित ही यह आकृति किसी रहस्यमयी घटना का नतीजा है। फिर भी वैज्ञानिकों की शंका दूर नहीं हुई तो UFO पर रिसर्च करने वाले दो वैज्ञानिक डोन न्यूमन और एलेन डेकर ने 15 सितम्बर को इस आकृति वाले स्थान का दौरा किया और अपनी रिपोर्ट में लिखा कि इस आकृति के आसपास उन्हें किसी मशीन अथवा टायरों के निशान आदि दिखाई नहीं दिए, बल्कि उनकी खुद की बड़ी स्टेशन वैगन के पहियों के निशान उन चट्टानों और रेत पर तुरंत आ गए थे। 
    ओरेगॉन विश्वविद्यालय के डॉक्टर जेम्स देदरोफ़ ने इस अदभुत घटना पर UFO तथा परावैज्ञानिक शक्तियों से सम्बन्धित एक रिसर्च पेपर भी लिखा जो “ए सिम्बल ऑन द ओरेगॉन डेज़र्ट” के नाम से 1991 में प्रकाशित हुआ। अपने रिसर्च पेपर में वे लिखते हैं कि अमेरिकी सरकार अंत तक अपने नागरिकों को इस दैवीय घटना के बारे कोई ठोस जानकारी नहीं दे सकी, क्योंकि किसी को नहीं पता था कि श्रीयंत्र की वह विशाल आकृति वहाँ बनी कैसे? कई नास्तिकतावादी इस कहानी को झूठा और श्रीयंत्र की आकृति को मानव द्वारा बनाया हुआ सिद्ध करने की कोशिश करने वहाँ जुटे. लेकिन अपने तमाम संसाधनों, ट्रैक्टर, हल, रस्सी, मीटर, नापने के लिए बड़े-बड़े स्केल आदि के बावजूद उस श्रीयंत्र की आकृति से आधी आकृति भी ठीक से और सीधी नहीं बना सके। 
    इस तरह तमाम कोशिशों के बाबजूद यह आज भी एक रहस्य है की आखिर आखिर कब, कैसे और क्यों बना अमेरिका में यह विशालकाय "श्रीयंत्र" .

    सत्य घटना - सांप ने काटा, डाकटरों ने मृत घोषित किया, घरवालों ने गंगा में बहाया, 14 साल बाद जिन्दा लौट आया युवक:

    By: Secret On: 14:25
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  • सत्य घटना - सांप ने काटा, डाकटरों ने मृत घोषित किया, घरवालों ने गंगा में बहाया, 14 साल बाद जिन्दा लौट आया युवक:

                                           

    कभी-कभी कुछ ऐसी घटनाये घट जाती है  जिन पर यकीन करना मुश्किल होता है।  ऐसी ही एक घटना हाल ही में बरेली के देबरनिया थाना क्षेत्र के भुड़वा नगला गांव में घटी जब उस गाँव का मृत लड़का 14  साल बाद जिन्दा घर लौट आया। लड़के का नाम  छत्रपाल व उसके पिता का नाम नन्थू लाल है। नन्थू लाल के घर बेटे को देखने वालों की भीड़ जमा हो रही है। लड़के के परिजन और गाँव वाले उसको पहचान चुके है। हर जगह छत्रपाल चर्चा का विषय बना हुआ है।  लोग इस चमत्कार को नमस्कार करने पर मजबूर हैं। आइये अब हम आपको छत्रपाल के मरने से लेकर वापस लौटने कि घटना को विस्तारपूर्वक बताते है।  

    यह भी पढ़े-  नागिन के बदले की एक सच्ची कहानी- परिवार ने ली पहले नाग की जान, फिर 4 दिन बाद नागिन ने लिया बदला
    Snake Real story
     छत्रपाल (Photo Via Bhaskar)




    घटना  कुछ इस प्रकार है कि  आज से 14 साल पहले  छत्रपाल अपने पिता नन्थू लाल के साथ खेत में काम कर रहा था जहा पर उसे एक ज़हरीले सांप ने डस लिया।  सांप का ज़हर तेजी से उसके शारीर में फैलने लगा।  उसे तुरंत नज़दीकी अस्पताल ले जाया गया पर तब तक देर हो चुकी थी, डॉक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया। परिजन उसके शव को लेकर वापस घर आ गए और उसके अंतिम  संस्कार कि क्रिया शुरू कर दी। हिंदू मान्यता के मुताबिक, पवित्र व्यक्ति, बच्चे, गर्भवती, कुष्ठ रोग और सांप के काटे जाने वाले व्यक्ति का दाह संस्कार नहीं किया जाता है। इन सभी को नदी में बहा दिया जाता है। अतः लड़के के परिजनो ने उसका अंतिम संस्कार करते हुए उसके शव को गंगा में बहा दिया। बहता हुआ छत्रपाल हरि सिंह सपेरे को मिलाजिसने उसका जहर उतार कर उसे फिर से जिन्दा कर दिया। छत्रपाल के साथ हरी सिंह भी उसके गाँव आया हुआ है। 
    Hindi sanke story
     छत्रपाल व हरी सिंह (Photo Via Bhaskar)

    सपेरे हरी सिंह ने बताया की उसने यह विद्या अपने गुरु से सीखी थी, क्योंकि वह भी मर कर ही जिन्दा हुआ था। उनके भी शव का अंतिम संस्कार कर गंगा में बहा दिया गया था। बहते हुए वह बंगाल पहुंच गए, जहां पर एक गुरु ने उनको जिन्दा किया। हरी सिंह कहते हैं की एक परंपरा है कि यदि हम किसी को जिन्दा करते हैं तो चौदह साल तक उसे हमारे पास शिष्य बन कर रहना पड़ता है। सिर्फ छत्रपाल ही नहीं बल्कि कई ऐसे शिष्य हैं जो मरकर जिन्दा हुए हैं और उनके साथ घूम रहे हैं।
    Hari singh
    हरी सिंह  (Photo Via Bhaskar)
    उन्होंने कहा कि वह सर्पदंश से मरे हुए लोगों की निशुल्क मदद करते हैं और इसके लिए वह जगह-जगह घूमते रहते हैं। साथ ही लाइलाज बीमारियों का भी फ्री में इलाज करते हैं। सांप के काटने से मर चुके दर्जनों लोगों को इन्होने जीवन दान देकर उनके परिजनों को बगैर कीमत वसूले सौंपे हैं।
    मौत के बाद छत्रपाल को जीवन दान देकर सपेरा हरी सिंह अपने कबीले की परंपरा को बताते हुए कहते हैं कि जिन्दा किया हुआ इंसान कम से कम चौदह वर्ष तक हमारे साथ रहता है। उसके बाद वह अपनी या परिजनों की मर्जी से अपने घर जा सकता है नहीं तो वह जीवन भर हमारे साथ रहे और हमारी तरह बीन बजाय और गुरु शिक्षा ग्रहण करते हुए साधू रूपी जीवन जिए।
    सपेरे हरी सिंह दावा करते हैं कि सांप का काटा हुआ इंसान मर जाए और उसके नाक, कान औऱ मुंह से खून नहीं निकला हो तो वह एक महीने दस दिन बाद भी उसे जिन्दा कर लेते हैं। इसी तरह जिन्दा किए हुए कई लोग आज अपने परिवार के साथ जिंदगिया जी रहे हैं। सांप के काटे का इलाज सबसे आसान है। इस इलाज में इस्तेमाल में लाने वाला मुख्य यंत्र साइकिल में हवा डालने वाला पम्प होता है। इसी पम्प और कुछ जड़ी बूटियों से वह मरे हुए लोगों को फिर से जीवन दान देते हैं।
    बहरहाल जो भी हो यहां सब कुछ फ़िल्मी अंदाज में हुआ। मरे हुए इंसान का दोबारा जिन्दा होकर आना अपने आप में चमत्कार है।

    रूपकुंड झील - उत्तराखंड - यह है नरकंकालों वाली झील

    By: Secret On: 14:24
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  • रूपकुंड झील - उत्तराखंड - यह है नरकंकालों वाली झील:

                                          

    यदि आप एडवेंचर ट्रैकिंग के शौक़ीन है तो रूपकुंड झील आपके लिए एक बेहतरीन जगह हैं। रूपकुंड झील (Roopkund lake ) हिमालय के ग्लेशियरों के गर्मियों में पिघलने से उत्तराखंड के पहाड़ों मैं बनने वाली छोटी सी झील हैं। 
     Roopkund Lake - Uttrakhand
    यह झील 5029 मीटर ( 16499 फीट )कि ऊचाई पर स्तिथ हैं जिसके चारो और ऊचे ऊचे बर्फ के ग्लेशियर हैं। यहाँ तक पहुचे का रास्ता बेहद दुर्गम हैं इसलिए यह जगह एडवेंचर ट्रैकिंग करने वालों कि पसंदीदा जगह हैं।
    यह झील यहाँ पर मिलने वाले नरकंकालों के कारण काफी चर्चित हैं।  यहाँ पर गर्मियों मैं बर्फ पिघलने के साथ ही कही पर भी नरकंकाल दिखाई देना आम बात हैं।  यहाँ तक कि झील के अंदर देखने पर भी तलहटी मैं भी नरकंकाल पड़े दिखाई दे जाते हैं। 

    Human skeleton fond at Roopkund LAke
    यहाँ पर सबसे पहला नरकंकाल 1942 मैं एक रेंजर H. K. Madhwal द्वारा खोज गया था। तब से अब तक यहाँ पर सैकड़ो नरकंकाल मिल चुके हैं। जिसमे हर उम्र व लिंग के कंकाल शामिल हैं। यहाँ पर National Geographic Team द्वारा भी एक अभियान चलाया गया था जिसमे उन्हें 30 से ज्यादा नरकंकाल मिले थे। 

    यहाँ पर इतने सारे नरकंकाल आये कैसे इसके बारे मैं तीन अलग अलग कहानिया प्रचलित हैं। 

    ओलों की एक भयंकर बारिश
    1942 में हुए एक रिसर्च से हड्डियों के इस राज पर थोड़ी रोशनी पड़ सकती है। रिसर्च के अनुसार ट्रेकर्स का एक ग्रुप यहां हुई ओलावृष्टि में फंस गया जिसमें सभी की अचानक और दर्दनाक मौत हो गई। हड्डियों के एक्स-रे और अन्य टेस्ट्स में पाया गया कि हड्डियों में दरारें पड़ी हुई थीं जिससे पता चलता है कि कम से कम क्रिकेट की बॉल की साइज़ के बराबर ओले रहे होंगे। वहां कम से कम 35 किमी तक कोई गांव नहीं था और सिर छुपाने की कोई जगह भी नहीं थी। आंकड़ों के आधार पर माना जा सकता है कि यह घटना 850AD के आस पास की रही होगी।
    Human skeleton fond at Roopkund LAke
    रास्ता भटकते सैनिक
    एक दूसरी किवदंती के मुताबिक तिब्बत में 1841 में हुए युद्ध के दौरान सैनिकों का एक समूह इस मुश्किल रास्ते से गुज़र रहा था। लेकिन वो रास्ता भटक गए और खो गए और कभी मिले नहीं। हालांकि यह एक फिल्मी प्लॉट जैसा लगता है पर यहां मिलने वाली हड्डियों के बारे में यह कथा भी खूब प्रचलित है।
    Skeleton lake - Uttrakhand
    नंदा देवी का प्रकोप 
    अगर स्थानीय लोगों के माने तो उनके अनुसार एक बार एक राजा जिसका नाम जसधावल थानंदा देवी की तीर्थ यात्रा पर निकला। उसको संतान की प्राप्ति होने वाली थी इसलिए वो देवी के दर्शन करना चाहता था। स्थानीय पंडितों ने राजा को इतने भव्य समारोह के साथ देवी दर्शन जाने को मना किया। जैसा कि तय थाइस तरह के जोर-शोर और दिखावे वाले समारोह से देवी नाराज़ हो गईं और सबको मौत के घाट उतार दिया। राजाउसकी रानी और आने वाली संतान को सभी के साथ खत्म कर दिया गया। मिले अवशेषों में कुछ चूड़ियां और अन्य गहने मिले जिससे पता चलता है कि समूह में महिलाएं भी मौजूद थीं।
    तो अगर आप सुपरनैचुरल और देवी-देवताओं में विश्वास करते हैं तो इस कहानी को मान सकते हैं। अपने साथ किसी स्थानीय व्यक्ति को ले जाइए और रात के समय यह कहानी उनसे सुनिए। आपके रोंगटे ज़रूर खड़े हो जाएंगे।
    Roopkund lake - Uttrakhand
    कुछ ऐसा है सफर रूपकुंड झील तक का
    इस मिस्टीरियस लेक जाने के लिए लोहाजंग से रास्ता शुरू होता है जो कि करनप्रयाग से 85 किमी की दूरी पर है। काठगोदाम स्टेशन से लोहाजंग के लिए आप टैक्सी ले सकते हैं। रिशिकेश से आ रहे हैं तो वहां से करनप्रयाग तक बस ले सकते हैं। करनप्रयाग से 4-5 घंटे में आप लोहाजंग पहुंच जाएंगे।
    Traking path of Rooopkund lake
    रुपकुंड झील की तरफ लॉर्ड कर्ज़न ट्रेल को पकड़िए। नीलगंगा नदी के पुराने पुल को पार करके करीब 3 घंटे तक जंगली पेड़ों के बीच ट्रेकिंग करनी होगी। आप जल्द ही एक वाटरफॉल के पास आ जाएंगे। आगे चलते जाएंगे तो राउन बगाद पहुंचकर डिडिना की चढ़ाई करनी होगी। पास के गांव को फॉलो करते रहिए और 2 घंटे में आप एक आसान जगह पहुंच जाएंगे जहां आप आराम कर सकते हैं।
    अब आपकी अगली यात्रा डिडना से बेदनी बुग्याल की होगी। अली की तरफ से जाने वाला रास्ता छोटा पर थोड़ा खड़ी चढ़ाई वाला है। यहां से बुग्याल पहुंचने में आपको 3 घंटे करीब लगेंगे। एक दूसरा रास्ता टोपलानी की तरफ से भी जाता है पर वो लंबा है। यहां आप रात गुजार सरते हैं और अगली सुबह स्नो को फॉलो करते हुए चल पड़िए।
    Traking path of Rooopkund lake
    जल्दी निकलने से आप भगवाबासा जल्द पहुंच जाएंगे जहां आप थोड़ा आराम कर सकते हैं। लोटानी से कालू विनायक की तरफ 4 घंटे की चढ़ाई के बाद गणेशा मंदिर पहुंच जाएंगे। आपके पास यहां रुकने का विकल्प है। या तो आप भगवाबासा में ठहर जाइए या हूनिया थल पर कैंप लगा लीजिए। यहां रातें काफी ठंड़ी होती हैं।
    सुबह 5 बजे आप रुपकुंड झील के अंतिम पड़ाव की ओर निकल पड़िए। बर्फ पिघलने से पहले शुरू हो जाइए। बर्फ काटने के लिए साथ में कुल्हाड़ी लेते जाइए। झील का पहला नज़ारा आपको ज़रूर मंत्रमुग्ध कर देगा। यह एक नीले रंग का बर्फीले शीशे जैसा दिखता है। बर्फ जमी होने पर भी इस पर चलने की गलती मत कीजिएगा। अगर आपको यहां मिलने वाली हड्डियों की कहानियों से डर नहीं लगता है तो यहां आप जब तक चाहें कैंप लगाकर आनंद ले सकते हैं।
    Traking path of Rooopkund lake

    हॉन्टेड विलेज "कुलधरा"(Haunted Village Kuldhara) 

    By: Secret On: 14:20
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  • हॉन्टेड विलेज "कुलधरा"(Haunted Village Kuldhara) - एक श्राप के कारण 170 सालों से हैं वीरान - रात को रहता है भूत प्रेतों का डेरा:

                                            हमारे देश भारत के कई शहर अपने दामन में कई रहस्यमयी घटनाओ को समेटे हुए है ऐसी ही एक घटना हैं राजस्थान के जैसलमेर जिले के कुलधरा(Kuldhara) गाँव कि, यह गांव पिछले 170 सालों से वीरान पड़ा हैं।कुलधरा(Kuldhara) गाँव के हज़ारों लोग एक ही रात मे इस गांव को खाली कर के चले गए थे  और जाते जाते श्राप दे गए थे कि यहाँ फिर कभी कोई नहीं बस पायेगा। तब से गाँव वीरान पड़ा हैं।

    A house at haunted village Kuldhara
    कुलधरा मे एक मकान 

    कहा जाता है कि यह गांव रूहानी ताकतों के कब्जे में हैं, कभी एक हंसता खेलता यह गांव आज एक खंडहर में तब्दील हो चुका है| टूरिस्ट प्लेस में बदल चुके कुलधरा गांव घूमने आने वालों के मुताबिक यहां रहने वाले पालीवाल ब्राह्मणों की आहट आज भी सुनाई देती है। उन्हें वहां हरपल ऐसा अनुभव होता है कि कोई आसपास चल रहा है। बाजार के चहल-पहल की आवाजें आती हैं, महिलाओं के बात करने उनकी चूडिय़ों और पायलों की आवाज हमेशा ही वहां के माहौल को भयावह बनाते हैं। प्रशासन ने इस गांव की सरहद पर एक फाटक बनवा दिया है जिसके पार दिन में तो सैलानी घूमने आते रहते हैं लेकिन रात में इस फाटक को पार करने की कोई हिम्मत नहीं करता हैं।


    Abandoned village Kuldhara
    वीरान कुलधरा गाँव 

    वैज्ञानिक तरीके से हुआ था गाँव का निर्माण 
    कुलधरा(Kuldhara) जैसलमेर से लगभग अठारह किलोमीटर की दूरी पर स्थिति है । पालीवाल समुदाय के इस इलाक़े में चौरासी गांव थे और यह उनमें से एक था । मेहनती और रईस पालीवाल ब्राम्हाणों की कुलधार शाखा ने सन 1291 में तकरीबन छह सौ घरों वाले इस गांव को बसाया था। कुलधरा गाँव पूर्ण रूप से वैज्ञानिक तौर पर बना था। ईट पत्थर से बने इस गांव की बनावट ऐसी थी कि यहां कभी गर्मी का अहसास नहीं होता था। कहते हैं कि इस कोण में घर बनाए गये थे कि हवाएं सीधे घर के भीतर होकर गुज़रती थीं । कुलधरा के ये घर रेगिस्ताकन में भी वातानुकूलन का अहसास देते थे । इस जगह गर्मियों में तापमान 45 डिग्री रहता हैं पर आप यदि अब भी भरी गर्मी में इन वीरान पडे मकानो में जायेंगे तो आपको शीतलता का अनुभव होगा। गांव के तमाम घर झरोखों के ज़रिए आपस में जुड़े थे इसलिए एक सिरे वाले घर से दूसरे सिरे तक अपनी बात आसानी से पहुंचाई जा सकती थी । घरों के भीतर पानी के कुंड, ताक और सीढि़यां कमाल के हैं ।
    A house at abandoned village Kuldhara
    कुलधरा  मे 170 साल पुराना मकान 

    पालीवाल ब्राम्ह>ण होते हुए भी बहुत ही उद्यमी समुदाय था । अपनी बुद्धिमत्ताl, अपने कौशल और अटूट परिश्रम के रहते पालीवालों ने धरती पर सोना उगाया था । हैरत की बात ये है कि पाली से कुलधरा आने के बाद पालीवालों ने रेगिस्तापनी सरज़मीं के बीचोंबीच इस गांव को बसाते हुए खेती पर केंद्रित समाज की परिकल्पलना की थी । रेगिस्ता़न में खेती । पालीवालों के समृद्धि का रहस्य था । जिप्सरम की परत वाली ज़मीन को पहचानना और वहां पर बस जाना । पालीवाल अपनी वैज्ञानिक सोच, प्रयोगों और आधुनिकता की वजह से उस समय में भी इतनी तरक्की कर पाए थे ।
    पालीवाल समुदाय आमतौर पर खेती और मवेशी पालने पर निर्भर रहता था । और बड़ी शान से जीता था । जिप्सआम की परत बारिश के पानी को ज़मीन में अवशोषित होने से रोकती और इसी पानी से पालीवाल खेती करते । और ऐसी वैसी नहीं बल्कि जबर्दस्तं फसल पैदा करते । पालीवालों के जल-प्रबंधन की इसी तकनीक ने थार रेगिस्तारन को इंसानों और मवेशियों की आबादी या तादाद के हिसाब से दुनिया का सबसे सघन रेगिस्ताकन बनाया । पालीवालों ने ऐसी तकनीक विकसित की थी कि बारिश का पानी रेत में गुम नहीं होता था बल्कि एक खास गहराई पर जमा हो जाता था ।
    Haunted village Kuldhara
    कुलधरा गाँव के खंडहर 

    कुलधरा के वीरान होने कि कहानी (Story of Kuldhara)
    जो गाँव इतना विकसित था तो फिर क्या वजह रही कि वो गाँव रातों रात वीरान हो गया। इसकी वजह था गाँव   का अय्याश दीवान सालम सिंह जिसकी गन्दी नज़र गाँव कि एक खूबसूरत लड़की पर पड़ गयी थी। दीवान उस लड़की के पीछे इस कदर पागल था कि बस किसी तरह से उसे पा लेना चाहता था। उसने इसके लिए ब्राह्मणों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया। हद तो तब हो गई कि जब सत्ता के मद में चूर उस दीवान ने लड़की के घर संदेश भिजवाया कि यदि अगले पूर्णमासी तक उसे लड़की नहीं मिली तो वह गांव पर हमला करके लड़की को उठा ले जाएगा। गांववालों के लिए यह मुश्किल की घड़ी थी। उन्हें या तो गांव बचाना था या फिर अपनी बेटी। इस विषय पर निर्णय लेने के लिए सभी 84 गांव वाले एक मंदिर पर इकट्ठा हो गए और पंचायतों ने फैसला किया कि कुछ भी हो जाए अपनी लड़की उस दीवान को नहीं देंगे।
    फिर क्या था, गांव वालों ने गांव खाली करने का निर्णय कर लिया और रातोंरात सभी 84 गांव आंखों से ओझल हो गए। जाते-जाते उन्होंने श्राप दिया कि आज के बाद इन घरों में कोई नहीं बस पाएगा। आज भी वहां की हालत वैसी ही है जैसी उस रात थी जब लोग इसे छोड़ कर गए थे।
    Kuldhara village - Jaisalmer

    आज भी है श्राप का असर:
    पालीवाल ब्राह्मणों के श्राप का असर यहां आज भी देखा जा सकता है। जैसलमेर के स्थानीय निवासियों की मानें तो कुछ परिवारों ने इस जगह पर बसने की कोशिश की थी, लेकिन वह सफल नहीं हो सके। स्थानिय लोगों का तो यहां तक कहना है कि कुछ परिवार ऐसे भी हैं, जो वहां गए जरूर लेकिन लौटकर नहीं आए। उनका क्या हुआ, वे कहां गए कोई नहीं जानता।
    Kuldhara gaanv ke khandhar
    कुलधरा गाँव  (जैसलमेर) के अवशेष 

    यहां के धरती में दबा है सोना इसलिए आते हैं पर्यटक: 
    पर्यटक यहां इस चाह में आते हैं कि उन्हें यहां दबा हुआ सोना मिल जाए। इतिहासकारों के मुताबिक पालीवाल ब्राह्मणों ने अपनी संपत्ति जिसमें भारी मात्रा में सोना-चांदी और हीरे-जवाहरात थे, उसे जमीन के अंदर दबा रखा था। यही वजह है कि जो कोई भी यहां आता है वह जगह-जगह खुदाई करने लग जाता है। इस उम्मीद से कि शायद वह सोना उनके हाथ लग जाए। यह गांव आज भी जगह-जगह से खुदा हुआ मिलता है।
    Temple at Kuldhara village - Jaisalmer
    कुलधरा गाँव मे एक प्राचीन मंदिर के अवशेष 
    पेरानार्मल सोसायटी की टीम ने कि कुलधरा में पड़ताल :-
    मई 2013 मे दिल्ली से आई भूत प्रेत व आत्माओं पर रिसर्च करने वाली पेरानार्मल सोसायटी की टीम ने कुलधरा(Kuldhara) गांव में बिताई रात। टीम ने माना कि यहां कुछ न कुछ असामान्य जरूर है। टीम के एक सदस्य ने बताया कि विजिट के दौरान रात में कई बार मैंने महसूस किया कि किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा, जब मुड़कर देखा तो वहां कोई नहीं था। पेरानॉर्मल सोसायटी के उपाध्यक्ष अंशुल शर्मा ने बताया था कि हमारे पास एक डिवाइस है जिसका नाम गोस्ट बॉक्स है। इसके माध्यम से हम ऐसी जगहों पर रहने वाली आत्माओं से सवाल पूछते हैं। कुलधरा में भी ऐसा ही किया जहां कुछ आवाजें आई तो कहीं असामान्य रूप से आत्माओं ने अपने नाम भी बताए। शनिवार चार मई की रात्रि में जो टीम कुलधरा गई थी उनकी गाडिय़ों पर बच्चों के हाथ के निशान मिले। टीम के सदस्य जब कुलधरा गांव में घूमकर वापस लौटे तो उनकी गाडिय़ों के कांच पर बच्चों के पंजे के निशान दिखाई दिए। (जैसा कि कुलधरा(Kuldhara) गई टीम के सदस्यों ने मीडिया को बताया )